भारत-चीन रिश्तों का नया दौर, ट्रम्प की नीतियों से बदला समीकरण

चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा ऐसे समय हो रही है जब भारत के अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते अपने बुरे दौर से गुजर रहे हैं।

Ramkrishna Vajpei
Published on: 18 Aug 2025 4:30 PM IST
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india-china-relations-new-era-trump-policies-impact (image from Social Media)

India-China Relations: चीन के विदेश मंत्री वांग यी की अगस्त 2025 की भारत यात्रा वर्तमान परिदृश्य में भारत चीन के अब तक के तनावपूर्ण संबंधों से कुछ अलग नजर आती है। मजे की बात यह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प या ओवरकान्फिडेंस के शिकार हैं या अनजाने में इसे गति दे रहे हैं। इससे भारत चीन रूस का एक नया त्रिकोण बनने के आसार हो गए हैं। हालांकि चीन इस मौके पर भरपूर फायदा उठाना चाहेगा लेकिन यहां देखना होगा कि भारत चीन का इस्तेमाल किस रूप में करना चाहता है या इस दोस्ती की कीमत क्या होगा।

अगर अतीत पर नजर डालें या पिछले पांच साल का इतिहास देखें तो भारत और चीन के बीच संबंध इस दौरान निहायत ठंडे या निचले बिंदु पर रहे, 2020 में गलवान घाटी में घातक झड़प के बाद ऐसी स्थितियां बनीं लोग एक और जंग की आहट मानने लगे। चीन के लिए उड़ानें निलंबित कर दी गईं, चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिए गए, वीज़ा देने से मना कर दिया गया और तीखी बयानबाज़ी हुई। सीमा को लेकर लगातार बैठकें हुईं।

लेकिन पिछले साल के अंत में संबंधों में नरमी के संकेत तब मिले जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि राजनयिक बातचीत ने संबंधों को "कुछ सुधार की दिशा में" गति दी है। उन्होंने सकारात्मक पहल करते हुए यह घोषणा की थी कि LAC पर सैनिकों की वापसी के 75 प्रतिशत मुद्दे सुलझ गए हैं।

ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद भारत चीन संबंधों को फिर से स्थापित करने के प्रयासों में तेज़ी आई है - सीधी उड़ानें फिर से शुरू हो गई हैं, कैलाश मानसरोवर मार्ग फिर से खुल गया है और सीमा व्यापार तथा सैनिकों की वापसी पर बातचीत आगे बढ़ रही है। SCO शिखर सम्मेलन में आगामी मोदी-शी बैठक सहित उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान अब विश्वास बहाली के लिए एक जानबूझकर किए गए प्रयास का संकेत देते हैं।

मोदी-ट्रम्प की दोस्ती जहां उनके पहले कार्यकाल में एक मिसाल मानी जाती थी दूसरे कार्यकाल में ट्रम्प के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दूरियां बढ़ाने के संकेत दिखे। इसके बाद ट्रम्प की नीतियां जैसे भारत पर टैरिफ वार, पाकिस्तान से सैन्य और आर्थिक समझौते ने इसे खराब किया। यह महसूस हो रहा था कि ट्रम्प के प्रयास भारत को दबाव में लाने के हैं, रूस को लेकर उनका रवैया एकदम आक्रामक दिखा। लेकिन यह सब विफल रहा। पाकिस्तान के साथ संबंधों में ट्रम्प के मध्यस्थता के प्रस्तावों को भी भारत ने सिरे से खारिज किया। ट्रम्प ने पाकिस्तान को "सौदेबाजी का कार्ड" बनाया, लेकिन इससे भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति, मजबूत अर्थव्यवस्था से धता बताते हुए रूस से तेल खरीद जारी रखी और चीन से बातचीत बढ़ाई। जो कि अब दिखाई देने लगी है।

ट्रम्प के टैरिफ वार ने भारत-अमेरिका व्यापार को भी प्रभावित किया है। तमाम लोग इसे ट्रम्प के पाकिस्तान प्रेम और भारत-अमेरिका संबंधों में गिरावट के रूप में देखते हैं। इतिहास दोहरा रहा है यह समय 1971 के भारत-पाक युद्ध जैसी स्थिति की याद दिला रहा है, जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखा था।

दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका ने इस सकारात्मक गति को अनजाने में बढ़ावा दिया है, जिससे दोनों एशियाई दिग्गज भारत और चीन ऐसे समय में करीब आ गए हैं, जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ ने दुनिया में अव्यवस्था पैदा कर दी है। और अगर रूस को भी इस कड़ी में जोड़ लें तो यह तिकड़ी बहुत भारी पड़ने जा रही है।

द न्यू यॉर्क टाइम्स ने भी एक लेख में यह इशारा किया था कि कैसे भारत और अमेरिका के बीच "अचानक दरार" ने "चीन और भारत के बीच तनाव कम करने" में नई गति दी है। तक्षशिला संस्थान में हिंद-प्रशांत अध्ययन के प्रमुख मनोज केवलरमानी का मानना है कि नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच राजनीतिक विश्वास का टूटना बीजिंग के पक्ष में काम करता है।

द टाइम्स ऑफ इंडिया में हाल ही में प्रकाशित एक लेख में, बीजिंग में भारत के पूर्व राजदूत विजय गोखले ने कहा कि भारत और चीन के बीच कई अलग-अलग हितों के बावजूद, नई दिल्ली के सामरिक, आर्थिक और तकनीकी हित "ट्रम्पियन अव्यवस्था" के बीच चीन के साथ काम करने में निहित हैं। गोखले ने तर्क दिया कि भारत का हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण चीन को बाहर करने के बारे में नहीं, बल्कि अपने हितों की रक्षा करने के बारे में है। उन्होंने कहा कि भारत को वैश्विक स्तर पर चीन के साथ काम करना चाहिए, जहाँ बीजिंग ने पश्चिम के प्रतिकार के रूप में काम किया है।

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