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भारत–चीन संबंध; सिर्फ सलाह-मशविरा नहीं, परस्पर रणनीति, प्रतिस्पर्धा और विवेकपूर्ण संतुलन
India China Relations: भारत और चीन का सम्बन्ध काफी पुराना है लेकिन ये आज परस्पर रणनीति, प्रतिस्पर्धा और विवेकपूर्ण संतुलन का तालमेल है।
India China Relations (Image Credit-Social Media)
India China Relations: निकट 2000 वर्ष पूर्व चीनी यात्री ह्वेन सांग भारत भ्रमण पर आए, जहाँ उन्होंने भरूच, मालवा और वल्लभी का उल्लेख किया — आज का गुजरात। यह पुरातन साझा विरासत आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (गुजराती) और राष्ट्रपति शी जिनपिंग (शियांग) के संबंधों में झलकती है। मोदी की पहल पर शी को भारत में पहले आगंतुक के रूप में आमंत्रित किया गया, और उनके आगमन को औपचारिक ही नहीं—भावनात्मक रूप से भी स्वागत मिला।
विषम दौर: राजनयिक गर्माहट के बीच सीमा तनाव
अहमदाबाद की अतिथि–दयालुता और दिल्ली में मोदी की दृढ़ता के बीच कई अदृश्य खींचतान वाली पंक्तियाँ रहीं। शी जिनपिंग के आगमन के तुरंत बाद लद्दाख के डेमचोक और चुमार क्षेत्रों में चीनी सेनाओं की अनधिकृत घुसपैठ ने भारत–चीन संबंधों की “मिठास” को झंझोड़ दिया। 1955, 1962 और 1965 जैसे पुराने घाव फिर से खुलते नजर आए। शी के चतुर उद्धरण—“सेना युद्ध के लिए तैयार रहे”—ने फिक्रमंद भारतीय जनमानस में बैराजों एवं बांधों के प्रति संदेह फिर से बढ़ाया।
आर्थिक आयाम: एकतरफ़ा व्यापार घाटा
वाणिज्य के क्षेत्र में चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साथी बन गया। पर 2024–25 के आंकड़े चिंताजनक हैं:
• चीन से आयात: $113.5 अरब (11.5 % वृद्धिपर)
• भारत का निर्यात: मात्र $14.3 अरब (–14.4 %)
• ट्रेड डिफिसिट: $99.2 अरब, जो एक अभूतपूर्व स्तर पर पहुँच गया है ।
यह स्पष्ट संकेत है कि भारत–चीन आर्थिक संबंधों में टूटता संतुलन एक गंभीर जोखिम बन चुका है। सरकारी योजनाओं में “लो-कॉस्ट इम्पोर्ट मॉनिटरिंग यूनिट” गठित करने पर विचार हो रहा है ()।
सैन्य और रणनीतिक गतिरोध
• 2020 में गलवान वैली में हुई झड़पों के बाद इस माहौल में द्विपक्षीय वार्ता का एक दौर शुरू हुआ।
• 2022 में तवांग क्षेत्र (यांग्त्से) में हथियारहीन झड़पें हुईं; कई घायल हुए ।
• अक्टूबर 2024 में भारत-चीन ने सीमा पर पैट्रोल राइट्स बहाल करनी शुरू की, जो हाई-टेंशन के बाद भी एक सकारात्मक संकेत था ()।
• जून 2025 में शंघाई कॉ–ऑपरेशन (SCO) के मंच पर रक्षा मंत्रियों (रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और डोंग जून) की वार्ता में स्थाई सीमा निपटान हेतु रोडमैप पर बल दिया गया ।
यही समझौते 2025 के तालचिन मंच पर चीन को सोच-समझकर “कौशलपूर्ण दूरी” बनाने को प्रेरित कर रहे हैं।
द्विपक्षीय पहलें—समानता की राह
वाणिज्य, संस्कृति और कूटनीति के क्षेत्र में भारत–चीन दोनों ने कई समझौते किए हैं:
• रेलवे सहयोग, हाइ‑स्पीड रेल प्रोजेक्ट सहयोग—दो समझौते
• सीमा शुल्क अपराधों पर संयुक्त समझौता
• सांस्कृतिक सहयोग और पुस्तक मेले (न्यू दिल्ली, 2016)
• नाथू ला या लिपुलेख दर्रे से कैलाश मानसरोवर यात्रा—अब नाथू ला से भी संभव होगी ()।
• इसरो और चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने अंतरिक्ष में सहयोग हेतु समझौते किए हैं ()।
ये सब्बी अधिकारिक पहलें यह जताती हैं कि दोनों राष्ट्र संबंधों को शीत तनाव से आगे ले जाना चाहते हैं।
उदय और सतर्कता का समायोजन
• चीन का वैश्विक विस्तार—‘चायना ड्रीम’—जिसमें सैन्य सामर्थ्य और आर्थिक प्रभुत्व प्रमुख हैं। लद्दाख, पाकिस्तान-हस्तक, नेपाल, श्रीलंका में आर्थिक-रणनीतिक विस्तार ()।
• 2025 में मोदी की विदेश यात्राओं—भूटान, नेपाल, जापान, म्यांमार—से चीन को यह संकेत मिला कि भारत भी चतुराई से क्षेत्रीय साझेदारी के नए समीकरण बनाने में है।
चीन ने $20 अरब निवेश की पेशकश, जबकि जापान ने $35 अरब का—इससे स्पष्ट हुआ कि भारत चतुर आर्थिक संतुलन बना रहा है।
इन व्यापक परिप्रेक्ष्यों में नई गतिशीलता स्पष्ट होती है:
• हिन्दी–चीनी भाईचारा नहीं,
• बल्कि राष्ट्र-हित, रणनीतिक संतुलन, आर्थिक विवेक।
शीत–उष्मा–सचेतता का गठजोड़
भारत–चीन संबंध अब यह स्पष्ट कर रहे हैं कि यह कोई एकल आयामी साझेदारी नहीं है, बल्कि:
• आर्थिक राजस्व के साथ गहरे घाटे की चिंता,
• सीमा और सैन्य तनावें पर कूटनीतिक वार्ता,
• स्पेस, संस्कृति और यात्रा पर औपचारिक साझा निवेश,
• एवं वैश्विक रणनीतिक संतुलन (अमेरिका–चीन–भारत त्रिकोण में)।
यह गठजोड़ मोदी की ठोस–नई रणनीतिक संतुलन की नीति के अनुरूप है — जहां उपलब्ध अवसरों का संज्ञान लेकर, नए निवेश आकर्षक बनाकर, और सीमा सुरक्षा को सुदृढ बनाकर सातातीत संतुलन साधा जाए।
(यह लेख 25–26 सितंबर 2014 में दैनिक ‘डेली न्यूज एक्टिविस्ट’ में प्रकाशित श्रृंखला का संशोधित, सम्पादित, और ताज़ा संस्करण July-2025 है)
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