Cloudbursts in India: जब बादल के फटने से मचा कोहराम, लाखों लोग हुए बेघर, आइए समझें कब क्या-क्या हुआ

India Cloudburst History: आइये जानते हैं भारत में बादल फटने से हुई अब तक की सबसे बड़ी तबाही कौन कौन सी रहीं।

Akshita Pidiha
Published on: 6 Aug 2025 4:41 PM IST
Uttarkashi Cloudburst
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Uttarkashi Cloudburst (Image Credit-Social Media)

India Cloudburst History: भारत, एक ओर जहाँ प्रकृति का हर रंग देखने को मिलता है, वहीं उसकी खूबसूरती और क्रूरता दोनों ही देखने को मिलती हैं। खेतों में लहलहाती फसलें, नदियों का बहन और पहाड़ों की सुंदरता हमारे देश की शान रही हैं, लेकिन यही प्रकृति जब क्रोध में आती है, तो सब कुछ तहस-नहस हो जाता है। बादल का फटना भी एक ऐसी ही प्राकृतिक आपदाएं हैं, जो पल भर में लाखों जिंदगियां तबाह कर देती हैं। हमने देखा है कि भारत में कई बार बादल फटने की घटनाओं ने भयानक तबाही मचाई है, लेकिन कुछ ऐसी हैं, जिन्हें याद करते ही आप कांप उठते हैं। इस लेख में हम भारत में बादल फटने से हुई अब तक की सबसे बड़ी तबाही की बात करेंगे।

बदल का फटना क्या है:

बादल फटना कोई सामान्य बारिश नहीं है। यह एक ऐसी प्राकृतिक घटना है, जिसमें कुछ ही चंद मिनटों में भारी मात्रा में पानी आसमान से बरस पड़ता है। विज्ञान की भाषा में इसे "क्लाउडबर्स्ट" कहते हैं। देखने में ऐसा लगता है जैसे कि बादल अपने भीतर जमा पानी को एकदम से छोड़ रहा है। यह पानी इतनी तेजी से नीचे गिरता है कि नदियां, नाले और गलियां पल भर में अपनी उच्च सीमा को पार कर लेते हैं। पहाड़ी इलाकों में यह और भी खतरनाक है, क्योंकि पानी के साथ मिट्टी, पत्थर और मलबा यहाँ तक कि पूरे पहाड़ नीचे बहकर आ जाते हैं, जो रास्ते में आने वाली हर चीज को बर्बाद कर देते हैं।

भारत में पहाड़ी क्षेत्रों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में बादल फटने की घटनाएं हर साल होती हैं। यहां का भूगोल और मौसम इसके लिए जिम्मेदार है।

2013 की उत्तराखंड त्रासदी:


जून 2013 में उत्तराखंड में जो हुआ, वह एक इतिहास सा बन गया। कोई शायद ही उस मंजर को अपने आँख से निकाल पाएगा। यह भारत के इतिहास में बादल फटने से हुई सबसे बड़ी तबाही मानी जाती है। केदारनाथ, जो भगवान शिव का पवित्र धाम है, वहां प्रकृति ने ऐसा रोद्र रूप दिखाया कि हजारों लोग अपनी जान गंवा बैठे। यह सिर्फ एक आपदा नहीं थी, बल्कि एक ऐसी त्रासदी थी, जिसने इंसान को प्रकृति के आगे उसकी लाचारी का अहसास कराया।

आखिर क्या हुआ था?

16 और 17 जून 2013 की रात, पूरे उत्तराखंड के लिए विनाशकारी साबित हुई। जब केदारनाथ और आसपास के इलाकों में बादल फटने की घटना हुई। भारी बारिश के कारण मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों उफान पर आ गई। केदारनाथ मंदिर के आसपास का पूरा एरिया पल भर में पानी और मलबे से तबाह हो गया। हजारों लोग, जो भगवान के दर्शन के लिए आए थे, इस आपदा की बुरी चपेट में आ गए। पूरे गांव के गांव बह गए, सड़कें टूट गईं, पुल धारासाही हो गए और पूरा इलाका एक मैदान जैसा बन गया।

इस आपदा का सबसे बात थी, इसका अचानक होना। लोग बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। तीर्थयात्रियों के पास न तो भागने का समय था, न ही कहीं छिपने की जगह। पानी और मलबे की तेज धार घरों, होटलों और दुकानों को अपने साथ ले गई। कई लोग तो उस रात के अंधेरे में ही गायब हो गए, जिनका आज तक शायद कोई सुराग नहीं मिला। सरकारी आंकड़ों की बात करें तो, इस आपदा में करीब 6000 लोग मारे गए, लेकिन गैर-सरकारी अनुमान इसे 10,000 से ज्यादा बताते हैं। लाखों लोग बेघर हो गए और उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ, जो अभी भी जीवन के ट्रेक में आने के लिए मशक्कत कर रहे हैं।

तबाही की सीमा

केदारनाथ के अलावा, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ जैसे जिले भी इस आपदा को सह नहीं आपे। गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ जैसे तीर्थस्थल भी इसके प्रभाव मे आ गए। भूस्खलन और मलबे ने सड़कों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया, जिससे राहत और बचाव से जुड़े कार्यों में भारी मुश्किल आई। भारतीय सेना, वायुसेना और एनडीआरएफ ने दिन-रात मेहनत की, लेकिन हालात इतने बुरे थे कि इन इलाकों में हेलीकॉप्टर ही एकमात्र जरिया था। हजारों लोग फंसे हुए थे, जिन्हें हेलीकॉप्टर की मदद से ही सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया।

इस आपदा ने न सिर्फ जान-माल का नुकसान किया, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति और धार्मिक विरासत को भी हिल कर रख दिया। केदारनाथ मंदिर को भले ही ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन आसपास का पूरा इलाका अपनी पहचान खो बैठा। पर्यटन ही उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था, कई सालों तक ठप ही रहा।

और भी बड़ी घटनाएं

हालांकि 2013 की उत्तराखंड त्रासदी सबसे बड़ी आपदा थी, लेकिन भारत में बादल फटने की कई और घटनाओं ने भी भारी तबाही मचाई है। इनमें से कुछ पर बात करना अहम है, ताकि हम इस प्राकृतिक आपदा की गंभीरता को जान सकें।

2018 की केरल की बाढ़


अगस्त 2018 में केरल में बादल फटा और भारी बारिश ने ऐसी तबाही मचाई कि इस राज्य की सदी की सबसे बड़ी बाढ़ कहा गया। इडुक्की, वायनाड और कोच्चि जैसे इलाकों में सबसे ज्यादा असर हुआ। लगभग 324 लोग मारे गए और लाखों लोग बेघर हो गए। 500 से ज्यादा राहत शिविर बनाए गए, जहाँ दो लाख से ज्यादा लोग जाने को मजबूर हुए। इस बाढ़ ने केरल खूबसूरत जमीन को मातम में बदल दिया। सड़कें, घर, स्कूल और अस्पताल सब कुछ पानी में डूब गया।इस बाढ़ ने केरल की अर्थव्ययवस्था को भी नुकसान पहुंचाया।

2023 की सिक्किम बाढ़


सिक्किम की तीस्ता नदी में अक्टूबर 2023 में बादल फटने से अचानक बाढ़ आई। लोनक झील में पानी की मात्रा अचानक इतनी बढ़ गई कि चंगथांग बांध टूट गया, जिसमें सिक्किम की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर परियोजना शामिल थी। इस घटना में 100 से ज्यादा लोग लापता हो गए, जिनमें 22 भारतीय सैनिक भी शामिल थे। सिंगटाम जैसे इलाके पूरी तरह जलमग्न हो गए। विशेषज्ञों ने इसके लिए ग्लेशियर झीलों के बढ़ रहे खतरे और भूकंप को जिम्मेदार ठहराया।

2025 की हिमाचल प्रदेश तबाही


अभी हमने देखा, हाल ही में, जुलाई 2025 में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की सराज घाटी में 24 घंटे के भीतर बादल फटने की 14 घटनाएं हुईं। इसमें 14 लोग मौत के मुह में समा गए और 31 लोग लापता हो गए। भारी बारिश और भूस्खलन ने सड़कों को तबाह कर दिया और कई गांवों का संपर्क टूट गया। स्थानीय लोगों का कहना है ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक ही दिन में इतनी बार बादल फटते हुए देखे गए।

क्यों कारण हैं ऐसी घटनाओं का ?

बादल फटने की घटनाएं प्राकृतिक तो हैं, लेकिन इनके पीछे कई मानवीय कारण भी हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन ने मौसम को और बदल कर रख दिया है। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बारिश का पैटर्न बदल रहा है और कम समय में ज्यादा बारिश होती हुए देखी जा सकती है। इसके अलावा जंगलों की कटाई, अवैध खनन और बिना किसी योजना के निर्माण ने पहाड़ी इलाकों को और कमजोर कर दिया है। नदियों के किनारे बस्तियां बसाना, बांधों का प्रबंधन ना होना और प्राकृतिक जल निकासी को रोकना भी इन आपदाओं को बढ़ावा दे रहा है।

उत्तराखंड में 2013 की त्रासदी के बाद यह सवाल उठता है कि क्या अनियोजित विकास इसके लिए जिम्मेदार था? केदारनाथ जैसे बहुत ही संवेदनशील इलाकों में मानवीय हस्तक्षेप हुए, जिसमें होटल, सड़कें और बांध बनाए गए, जिन्होंने प्राकृतिक जल प्रवाह को रोका। यही हाल केरल और सिक्किम में भी देखने को मिला, जहां पर्यावरण की अनदेखी ने आपदा को और रोद्र बना दिया।

बचाव और राहत की कोशिश

इन आपदाओं से निपटने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकारों ने कई प्रयास किये हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने बाढ़ और बादल फटने जैसी आपदाओं के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। सैटेलाइट मैपिंग और मौसम पूर्वानुमान ने आपदा प्रबंधन को बेहतर बनाने की कोशिश की है।

2013 की उत्तराखंड त्रासदी में भारतीय सेना और एनडीआरएफ की भूमिका प्रशंसनीय थी। हेलीकॉप्टरों मई मदद से हजारों लोगों को बचाया गया। केरल में भी नौसेना और वायुसेना ने राहत कार्यों में अहम सहयोग किया, लेकिन इन सबके बावजूद, आपदा प्रबंधन में अभी भी कई खामियाँ हैं। कई बार राहत सामग्री समय पर नहीं पहुंच पाती, और प्रभावित इलाकों तक पहुंचने में देरी होती है। जिससे लोगों को और नुकसान उठाना पड़ता है।

इन त्रासदियों ने हमें एक बड़ा सबक सिखाया है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। सरकारों को अपने विकास मॉडल पर दोबारा विचार करना होगा। पहाड़ी इलाकों में अनियोजित निर्माण पर रोक लगानी होगी और इसके लिए अलग योजना बनानी चाहिए। जंगलों को बचाना होगा और नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को नहीं रोकना चाहिए। साथ ही, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।जैसे कि और देश इन कामों में लग गए हैं। साथ ही लोगों में जागरूकता भी जरूरी है। बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोगों को आपदा से पहले की तैयारी, जैसे ऊंचे स्थानों पर जाना और सुरक्षित आश्रय लेना, इन सब के बारे में पहले से बताना होगा। स्कूलों में बच्चों को आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग देनी चाहिए। सरकार को मौसम पूर्वानुमान को और सटीक करना होगा, ताकि ऐसी घटनाओं की पहले से चेतावनी मिल सके। इसलिए ट्रैनिंग पद्धति को बदलना होगा।

बादल फटने की घटनाएं भारत के लिए एक गंभीर चुनौती हैं। 2013 की उत्तराखंड त्रासदी हो, 2018 की केरल बाढ़ हो या 2023 की सिक्किम आपदा, हर बार प्रकृति ने हमें अपने सर्वस्व होने का अहसास कराया है। ये आपदाएं सिर्फ प्राकृतिक नहीं हैं, बल्कि मनुष्यों के गलत फैसलों का नतीजा भी हैं। अगर हम सब समय रहते नहीं संभले, तो भविष्य में ऐसी त्रासदियां और बढ़ सकती हैं। अब हमें जरूरत है प्रकृति के साथ तालमेल बिठाएं, ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक सुरक्षित भारत दे सकें।

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