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India Pakistan War Update: पाकिस्तान के साथ युद्धों के बावजूद भारत ने कब-कब शांति का हाथ बढ़ाया? जानिए संपूर्ण इतिहास
India Pakistan War Alert: यह लेख ऐसे प्रमुख क्षणों का विश्लेषण करता है जब भारत ने संघर्षों के बाद भी पाकिस्तान के साथ शांति स्थापित करने का प्रयास किया, यह दर्शाते हुए कि भारत ने सदा स्थायी समाधान और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को प्राथमिकता दी है।
India Pakistan War History (Photo - AI)
India Pakistan War History: भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध 1947 के विभाजन के साथ ही तनावपूर्ण हो गए थे। स्वतंत्रता के तुरंत बाद शुरू हुआ यह द्वंद्व केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि दोनों देशों की नीतियों, जनमानस और इतिहास को भी गहराई से प्रभावित करता रहा है। बीते दशकों में भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध, सीमाई झड़पें और आतंकवादी घटनाएँ हुई हैं, जिनमें अनगिनत जानें गईं और लाखों लोग विस्थापित हुए। इसके बावजूद भारत ने बार-बार यह साबित किया है कि वह केवल एक शक्तिशाली राष्ट्र ही नहीं, बल्कि एक परिपक्व, शांतिप्रिय और जिम्मेदार लोकतंत्र भी है।
भारत की विदेश नीति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात "पूरा विश्व एक परिवार है" की भावना से प्रेरित रही है, जिसने युद्ध की विभीषिका के बीच भी संवाद और सहयोग का मार्ग प्रशस्त किया।
1947 - 1948 के पहले कश्मीर युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता
1947 - 1948 में भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर हुआ। यह संघर्ष उस समय शुरू हुआ जब जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलों से राज्य को बचाने के लिए भारत से मदद मांगी और बदले में भारत के साथ राज्य का विलय स्वीकार कर लिया। इसके बाद भारतीय सेना ने कश्मीर में सैन्य कार्रवाई शुरू की। हालांकि भारत को सैन्य रूप से महत्वपूर्ण बढ़त मिल गई थी, फिर भी उसने युद्ध को आगे बढ़ाने के बजाय शांति और स्थायित्व को प्राथमिकता दी। भारत इस मसले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुलझाना चाहता था, इसलिए उसने इसे संयुक्त राष्ट्र में उठाया। भारत का उद्देश्य था कि वैश्विक सहयोग से एक शांतिपूर्ण समाधान निकाला जाए। इस प्रयास के फलस्वरूप जनवरी 1949 में युद्धविराम की घोषणा हुई और नियंत्रण रेखा (LoC) का निर्धारण किया गया। भारत ने यह स्पष्ट किया कि वह स्थायी शांति चाहता है और उसने पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर को सैन्य रूप से हासिल करने की बजाय, राजनयिक उपायों को महत्व दिया। यह भारत के शांतिप्रिय और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण का प्रमाण था, जिसमें युद्ध की बजाय संवाद को प्राथमिकता दी गई।
1965 - दूसरा युद्ध और ताशकंद समझौता
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध मुख्यतः कश्मीर को लेकर था, जिसमें पाकिस्तान ने "ऑपरेशन जिब्राल्टर" के तहत कश्मीर में घुसपैठ की कोशिश की, ताकि वहां विद्रोह भड़काया जा सके। भारतीय सेना ने इस प्रयास का दृढ़ता से जवाब दिया और युद्ध पश्चिमी मोर्चे तक फैल गया, जिसमें भारत की सेना लाहौर की सीमा तक पहुंच गई। इस युद्ध के दौरान भारत ने कई रणनीतिक चौकियों और क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था, जिनमें हाजी पीर दर्रा भी शामिल था। हालांकि भारत को सैन्य रूप से बढ़त हासिल थी, फिर भी 22 सितंबर 1965 को संयुक्त राष्ट्र की पहल पर युद्धविराम की घोषणा की गई। इसके बाद, सोवियत संघ की मध्यस्थता में 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद समझौता हुआ। इस समझौते के तहत दोनों देशों ने युद्ध के दौरान कब्जा किए गए क्षेत्रों को लौटाने और अपनी सेनाएं युद्ध से पहले की स्थिति में वापस बुलाने पर सहमति जताई। इसके साथ ही दोनों देशों ने एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, युद्धबंदियों की रिहाई, और भविष्य में सभी विवादों को शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाने का संकल्प लिया। भारत की सैन्य विजय के बावजूद, उसने एक बार फिर शांति और कूटनीति को प्राथमिकता दी।
1971 में बांग्लादेश युद्ध और शिमला समझौता
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध इतिहास की सबसे निर्णायक सैन्य झड़पों में से एक था, जिसमें भारतीय सेना ने पूर्वी मोर्चे पर अभूतपूर्व जीत दर्ज की। इस युद्ध का परिणाम 16 दिसंबर 1971 को सामने आया, जब पाकिस्तान की पूर्वी कमान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। लगभग 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों और नागरिकों को युद्धबंदी बनाया गया, जो विश्व सैन्य इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण माना जाता है। इस युद्ध के फलस्वरूप बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। इसके बाद, 2 जुलाई 1972 को शिमला में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौता हुआ। इस समझौते के अंतर्गत भारत ने अपनी उदारता दिखाते हुए सभी युद्धबंदियों को बिना किसी अतिरिक्त शर्त के लौटा दिया और कूटनीतिक समाधान को प्राथमिकता दी। समझौते की एक महत्वपूर्ण शर्त यह थी कि भारत और पाकिस्तान अपने सभी विवाद, विशेष रूप से कश्मीर, को द्विपक्षीय वार्ता के ज़रिए सुलझाएंगे और किसी तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप की अनुमति नहीं होगी। यह भारत की कूटनीतिक और नैतिक विजय थी, जिसने न केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, बल्कि शांति और संयम का भी उदाहरण पेश किया।
1987 में ऑपरेशन ब्रासटैक्स
ऑपरेशन ब्रासटैक्स, जो नवंबर 1986 से मार्च 1987 तक राजस्थान में आयोजित हुआ, भारतीय सेना का अब तक का सबसे विशाल सैन्य अभ्यास था, जिसमें लगभग 5 लाख सैनिकों ने भाग लिया। इस अभ्यास की व्यापकता और उसकी युद्ध-सदृश योजना ने पाकिस्तान को गंभीर चिंता में डाल दिया। पाकिस्तान ने इसे भारत की संभावित सैन्य कार्रवाई के रूप में देखा और अपनी सेनाएं सीमा पर तैनात कर दीं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुँच गया। इस विस्फोटक स्थिति में भारत और पाकिस्तान युद्ध के मुहाने पर खड़े थे। लेकिन इसी बीच एक असामान्य राजनयिक पहल हुई, जिसे 'क्रिकेट डिप्लोमेसी' कहा गया। फरवरी 1987 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक जयपुर में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट टेस्ट मैच देखने के बहाने अचानक भारत पहुंचे और प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भेंट की। इस अनौपचारिक मुलाकात ने दोनों देशों के बीच संवाद की खिड़की खोली और तनाव में ठंडक आई। इस दौरान जिया-उल-हक ने अप्रत्यक्ष रूप से परमाणु युद्ध की चेतावनी भी दी, जिससे भारत की रणनीतिक सतर्कता और बढ़ गई। अंततः दोनों देशों ने सैन्य बलों को सीमा से हटाने का निर्णय लिया और युद्ध की आशंका टल गई।
1999 में करगिल युद्ध के बाद
1999 का कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर गहरे विश्वासघात और सैन्य संघर्ष का प्रतीक बना, जब पाकिस्तानी सेना और कश्मीरी आतंकवादियों ने नियंत्रण रेखा (LoC) पार कर भारतीय क्षेत्रों में घुसपैठ की। भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत इस चुनौती का साहसिक और निर्णायक ढंग से सामना किया और घुसपैठियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। यह युद्ध उस समय हुआ, जब कुछ ही माह पहले, फरवरी 1999 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ‘लाहौर बस यात्रा’ के माध्यम से पाकिस्तान गए थे और वहाँ के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ ‘लाहौर घोषणा पत्र’ पर हस्ताक्षर किए थे। इस घोषणापत्र में दोनों देशों ने कश्मीर सहित सभी विवादों को शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाने, परमाणु हथियारों के आकस्मिक प्रयोग से बचने और आपसी विश्वास बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई थी। कारगिल में पाकिस्तान की हरकत ने इस समझौते को ठेस पहुँचाई और भारत के साथ विश्वासघात किया, फिर भी भारत ने युद्ध के बाद कूटनीतिक रास्ता नहीं छोड़ा। वाजपेयी सरकार ने सैन्य जीत का उपयोग पाकिस्तान पर कोई अतिरिक्त राजनीतिक दबाव डालने या शर्तें थोपने के लिए नहीं किया, बल्कि एक बार फिर शांति और संवाद की नीति को प्राथमिकता दी। यह भारत के संयमित और परिपक्व नेतृत्व का प्रमाण था, जिसने हर युद्ध के बाद भी शांति का द्वार खुला रखा।
संसद हमले के बाद का तनाव और ‘अग्नि परीक्षण’
13 दिसंबर 2001 को हुए भारतीय संसद पर आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को एक बार फिर गंभीर संकट में डाल दिया। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकवादियों द्वारा किया गया यह हमला पाकिस्तान प्रायोजित था, जिसमें कई सुरक्षाकर्मी शहीद हुए। इस घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अत्यधिक बढ़ गया और दोनों देशों ने सीमाओं पर भारी सैन्य जमावड़ा कर लिया, जिससे पूर्ण युद्ध की आशंका पैदा हो गई। हालांकि, भारत ने इस बार भी युद्ध का रास्ता न चुनकर एक संतुलित और रणनीतिक नीति अपनाई। भारत ने कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव के माध्यम से पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बनाया। अमेरिकी नेतृत्व समेत वैश्विक शक्तियों के साथ संवाद कर भारत ने पाकिस्तान की आतंकवाद-प्रेरित नीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर किया। इसके साथ ही, भारत ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त को तलब किया, राजनयिक संबंध सीमित किए और विश्व समुदाय को पाकिस्तान की जिम्मेदारी तय करने के लिए प्रेरित किया। सेना सीमाओं पर सजग रही, परंतु भारत ने युद्ध से परहेज करते हुए परिपक्वता दिखाई और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बल पर पाकिस्तान को दबाव में लाने में सफलता प्राप्त की, जिससे दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध टल गया।
2004 - 2008 शांति वार्ता और ‘सांस्कृतिक कूटनीति’
2004 में भारत और पाकिस्तान के बीच 'कॉम्प्रिहेन्सिव डायलॉग प्रोसेस' की शुरुआत हुई, जिसमें कश्मीर, आतंकवाद, वाणिज्य, जल विवाद जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर औपचारिक वार्ता का सिलसिला चला। इस प्रक्रिया के तहत दोनों देशों के बीच संवाद को प्रोत्साहन मिला और कई विवादों को सुलझाने की दिशा में प्रयास किए गए। इसके साथ ही, सांस्कृतिक और संपर्क पहलें भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही। 2004 के बाद समझौता एक्सप्रेस ट्रेन सेवा को फिर से सक्रिय किया गया, जो दोनों देशों के बीच संपर्क और व्यापार का एक महत्वपूर्ण साधन बन गई। इसके अलावा, दिल्ली-लाहौर और श्रीनगर-मुज़फ्फराबाद के बीच बस सेवाओं ने आम नागरिकों के बीच आवाजाही और संवाद को बढ़ावा दिया। व्यापारिक गतिविधियाँ भी इन संपर्क साधनों के माध्यम से बढ़ीं, जिससे आर्थिक रिश्तों में सुधार आया। सांस्कृतिक कूटनीति के तहत क्रिकेट मैच, संगीत कार्यक्रम, कला प्रदर्शनियां और मीडिया आदान-प्रदान जैसी गतिविधियों के जरिए दोनों देशों के बीच विश्वास और संवाद को मजबूत करने का प्रयास किया गया। इन पहलों ने दोनों देशों के बीच बेहतर समझ और विश्वास की दिशा में सकारात्मक योगदान दिया।
26/11 मुंबई हमलों के बाद भारत की संयम नीति
26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने मुंबई में चार दिन तक चले हमलों को अंजाम दिया, जिसमें 166 से अधिक लोग मारे गए और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए। इस भीषण आतंकी हमले के बाद भारत ने सैन्य कार्रवाई के बजाय कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव की नीति अपनाई। भारत ने अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थाओं से पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई की मांग की। इस हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराया और वैश्विक जनमत तैयार किया, जिससे पाकिस्तान पर दबाव डाला गया। युद्ध या प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई से बचते हुए, भारत ने संयम का परिचय दिया और कूटनीतिक, कानूनी तथा अंतरराष्ट्रीय दबाव के माध्यम से पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कदम उठाने के लिए जोर दिया।
हालिया वर्षों में शांति के प्रयास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित करके दोनों देशों के बीच संवाद की दिशा में महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम उठाया। इसके बाद, 2014 और 2015 के दौरान मोदी और शरीफ के बीच कई द्विपक्षीय मुलाकातें हुईं, जिनमें ऊफा (रूस), पेरिस और काठमांडू (सार्क सम्मेलन) शामिल हैं। 25 दिसंबर 2015 को, प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक लाहौर यात्रा की और नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन और परिवार की शादी की शुभकामनाएँ दीं, जिसे एक सकारात्मक कूटनीतिक पहल के रूप में देखा गया। हालांकि, इन शांति प्रयासों के बावजूद सीमा पर तनाव और आतंकवादी घटनाएं जारी रहीं, जिनमें 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद द्वारा किए गए आतंकी हमले ने 40 सीआरपीएफ जवानों की शहादत का कारण बना। इस हमले के जवाब में भारत ने 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की, यह स्पष्ट करते हुए कि यह कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ थी, न कि पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध। भारत की नीति आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई और युद्ध से बचाव की रही।
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