Kashmir Accession to India 1947: कश्मीर का भारत में विलय, इतिहास, विवाद और सत्य

Kashmir Accession to India 1947: भारत की स्वतंत्रता और विभाजन (1947) के साथ-साथ जिन घटनाओं ने उपमहाद्वीप के राजनीतिक नक्शे को बदल दिया...

Yogesh Mishra
Published on: 1 Nov 2025 3:18 PM IST
Kashmir Accession to India 1947 Nehru, Patel and History
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Kashmir Accession to India 1947 Nehru, Patel and History

Kashmir Accession to India 1947: भारत की स्वतंत्रता और विभाजन (1947) के साथ-साथ जिन घटनाओं ने उपमहाद्वीप के राजनीतिक नक्शे को बदल दिया, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण था — जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय। यह विलय केवल एक दस्तावेज़ी प्रक्रिया नहीं थी; यह राजनैतिक जटिलताओं, वैचारिक मतभेदों, सैन्य दबावों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की परतों में लिपटा हुआ प्रसंग था।

कश्मीर आज भी भारत-पाकिस्तान संबंधों का केंद्रीय बिंदु है। अतः इस आलेख में कश्मीर के विलय की पूरी प्रक्रिया, उससे जुड़े प्रश्न-विवाद और नेहरू-पटेल की भूमिका को ऐतिहासिक साक्ष्यों और शैक्षणिक स्रोतों सहित स्पष्ट किया गया है।

पृष्ठभूमि: रियासतों का एकीकरण और कश्मीर की स्थिति

भारत के विभाजन (15 अगस्त 1947) के समय ब्रिटिश शासन के अधीन 562 से अधिक रियासतें थीं। इन्हें भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया था — या वे सैद्धांतिक रूप से स्वतंत्र रह सकती थीं। (स्रोत: Encyclopaedia Britannica – Princely States and Partition, 1947).

जम्मू और कश्मीर की स्थिति विशिष्ट थी। यहाँ महाराजा हरि सिंह (एक हिन्दू शासक) शासन कर रहे थे, जबकि राज्य की जनसंख्या में 75% से अधिक मुस्लिम थी। भौगोलिक रूप से यह राज्य भारत और पाकिस्तान के बीच स्थित था। महाराजा की प्राथमिक इच्छा थी कि वे “स्वतंत्र रहकर दोनों देशों के साथ संतुलित संबंध रखें” (स्रोत: Alastair Lamb, Kashmir: A Disputed Legacy, 1991).

11 अगस्त 1947 को जम्मू-कश्मीर ने भारत और पाकिस्तान दोनों को “स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट” (Standstill Agreement) का प्रस्ताव भेजा। पाकिस्तान ने इसे स्वीकार कर लिया, भारत ने नहीं। (स्रोत: Indian Independence Act & Standstill Agreement, 1947 – National Archives of India).

पाकिस्तान की घुसपैठ और विलय की प्रक्रिया

पाकिस्तान का सैन्य-समर्थित आक्रमण - 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान की ओर से कबीलाई सैनिकों (tribal raiders), जिन्हें NWFP (North-West Frontier Province) से भेजा गया था, ने कश्मीर में आक्रमण किया। इन हमलावरों को पाकिस्तानी सेना की अप्रत्यक्ष सहायता प्राप्त थी। (स्रोत: Instrument of Accession – Background Note, Ministry of Home Affairs, India, 1950; Mountbatten Papers, Vol. XI).

इन हमलों में बारामूला शहर को जला दिया गया, और श्रीनगर की ओर बढ़ने लगे। महाराजा हरि सिंह श्रीनगर छोड़कर जम्मू भागे।

भारत से सहायता की मांग

24 अक्टूबर 1947 को महाराजा ने भारत सरकार से तत्काल सहायता मांगी। तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने साफ कहा कि भारत तभी सैन्य मदद देगा जब राज्य भारत में विधिवत शामिल होगा। (स्रोत: V.P. Menon, The Story of the Integration of the Indian States, 1956).

इन्स्ट्रूमेंट ऑफ़ ऍक्सेशन (Instrument of Accession)

26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ अधिग्रहण-पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए। इसे 27 अक्टूबर को भारत के गवर्नर-जनरल ने स्वीकार किया।

इस दस्तावेज़ के अनुसार भारत को रक्षा, विदेश नीति और संचार जैसे विषयों पर अधिकार मिले। (स्रोत: Instrument of Accession, Government of India Records, 1947).

उसी दिन भारतीय सेना को श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतारा गया — यह भारत-पाकिस्तान के प्रथम युद्ध (1947-48) की शुरुआत थी। (स्रोत: Official History of the Indian Armed Forces in the Second World War, Ministry of Defence Archives).

युद्ध, विभाजन और नियंत्रण की रेखाएँ

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947-48 में कई मोर्चों पर चला।

जनवरी 1949 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के बाद युद्धविराम हुआ और सीज़फ़ायर लाइन (Ceasefire Line) बनी। इस रेखा के पश्चिमी भाग पर पाकिस्तान का नियंत्रण स्थापित हुआ — जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) कहा जाता है, जबकि पूर्वी भाग भारत के नियंत्रण में रहा।

बाद में 1963 में पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान के कुछ भाग चीन को सौंप दिए (अक्साई चिन क्षेत्र)। (स्रोत: United Nations Security Council Resolution 47, 21 April 1948; Alastair Lamb, Kashmir: A Disputed Legacy).

नेहरू और पटेल: दो दृष्टिकोणों का अंतर

नेहरू की नीतियाँ

जवाहरलाल नेहरू कश्मीर से भावनात्मक रूप से जुड़े थे क्योंकि वे स्वयं कश्मीरी पंडित परिवार से थे। वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया और जनमत-मत (plebiscite) के पक्षधर थे।

उन्होंने शेख अब्दुल्ला को राजनीतिक रूप से मुख्य भूमिका देने का समर्थन किया — यह कदम महाराजा हरि सिंह को अप्रिय लगा।

इतिहासकार Durga Das अपनी पुस्तक India From Curzon to Nehru and After (1969) में लिखते हैं:

“Nehru’s insistence on involving Sheikh Abdullah delayed the accession decision and created confusion at a critical hour.”

पटेल का दृष्टिकोण

इसके विपरीत, सरदार वल्लभभाई पटेल का दृष्टिकोण व्यावहारिक और त्वरित कार्रवाई का था।

संयुक्त राष्ट्र और जनमत-मत का प्रश्न

1 जनवरी 1948 को भारत ने कश्मीर मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया।

21 अप्रैल 1948 को UN Security Council Resolution 47 पारित हुआ — इसमें कहा गया कि:

1. पाकिस्तान पहले अपने सैनिक और जनजातीय हमलावर हटाए,

2. उसके बाद भारत अपनी सेना सीमित करे,

3. फिर जनमत-मत (plebiscite) कराया जाए।

क्योंकि पहला कदम — पाकिस्तान की सेना की वापसी — कभी नहीं हुआ, इसलिए जनमत-मत की प्रक्रिया कभी शुरू नहीं हो सकी। (स्रोत: UN Security Council Resolutions, 1948–1950; UN Archives).

विवादित प्रश्नों पर शोधपरक विश्लेषण

(क) क्या नेहरू ने कश्मीर के भारत में विलय में अड़चन डाली थी?

इन दोनों स्रोतों के अनुसार नेहरू की “राजनीतिक सावधानी और शेख अब्दुल्ला-प्रेम” ने स्थिति को कुछ समय के लिए जटिल बनाया। किंतु उन्होंने अंततः महाराजा का हस्ताक्षर होते ही हस्तक्षेप किया और सेना भेजी। इसलिए उन्हें पूरी तरह दोष देना ऐतिहासिक रूप से अतिशयोक्ति होगी।

(ख) क्या अगर पटेल होते तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) भारत का हिस्सा रहता?

इन शोध-स्रोतों के अनुसार, पटेल की नीति निर्णायक होती, तो भारत युद्ध-पूर्व ही संपूर्ण क्षेत्र पर नियंत्रण पा सकता था।

लेकिन, जैसा कि Alastair Lamb लिखते हैं: “Even with swift action, the geography, the tribal support to Pakistan, and the absence of prior military preparedness might still have left the upper valleys beyond Indian control.”

इससे स्पष्ट होता है कि यह कथन एक ऐतिहासिक “संभावना” है, तथ्य नहीं।

कानूनीता, वैधता और आज की स्थिति

Instrument of Accession एक वैध कानूनी दस्तावेज़ था, जैसा कि Indian Independence Act (Section 6) में निर्दिष्ट है। भारत ने उसी के आधार पर कश्मीर को अपना अभिन्न अंग माना।

पाकिस्तान ने इस पर प्रश्न उठाए कि महाराजा ने “जनमत के बिना निर्णय लिया।”

2019 में भारत ने अनुच्छेद 370 और 35A हटाकर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण रूप से संघीय इकाई बना दिया। यह निर्णय भारत की दृष्टि में “1947 की विलय-प्रक्रिया का तार्किक समापन” था।

कश्मीर का भारत में विलय एक ऐतिहासिक सत्य है, लेकिन उसकी प्रक्रिया ने उपमहाद्वीप की राजनीति को सात दशकों तक विभाजित रखा।

नेहरू की वैचारिक प्राथमिकताएँ, पटेल की निर्णायकता, पाकिस्तान की अवसरवादिता और अंतरराष्ट्रीय राजनीति — सबने इस घटना को बहुआयामी बना दिया।

इतिहास यह कहता है कि अगर निर्णय-प्रक्रिया त्वरित होती, तो नक्शा अलग हो सकता था; परंतु यह भी सच है कि कश्मीर का भारत में रहना कोई संयोग नहीं था, बल्कि एक कानूनी, राजनीतिक और नैतिक निर्णय था।

मुख्य संदर्भ सूची (Cited Sources)

1. V.P. Menon – The Story of the Integration of the Indian States (1956).

2. Durga Das – India From Curzon to Nehru and After (1969).

3. Alastair Lamb – Kashmir: A Disputed Legacy (1991).

4. United Nations Security Council Resolution 47 (21 April 1948).

5. Instrument of Accession – Government of India Archives (1947).

6. India Today – “Patel Differed With Nehru on Kashmir” (27 May 2025).

7. ORF Online Paper – “Nehru–Patel Dithering Approach to Kashmir” (2018).

8. IJHSSM Journal – “The Unsolved Dispute of Kashmir: From Nehru to Patel with Maharaja to Sheikh and Betrayal at UN” (2020).

9. Civilsdaily Historical Series – Story of Kashmir’s Accession to India (2019).

10. Mountbatten Papers, Vol. XI – British Library Collection.

11. UN Archives – Resolutions on Jammu & Kashmir (1948–1950).

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