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'पहलगाम हमला भूले तो नहीं…' जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग पर SC सख्त, जानें क्या बोले CJI?
Jammu Kashmir statehood demand: जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग पर 8 अगस्त के बाद आज 14 अगस्त को फिर सुनवाई हुई। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार से आठ सप्ताह में जवाब मांगा है।
Jammu Kashmir statehood demand (PHOTO CREDIT: SOCIAL MEDIA)
Jammu Kashmir statehood demand: साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 के निरस्तीकरण तो आपको याद ही होगा, जो जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन अधिनियम संसद में लाया गया और.... इसी के बाद जम्मू-कश्मीर राज्य से केंद्रशासित प्रदेश में बदल गया। पिछले छह सालों से प्रदेश के राज्य के दर्जे की बहाली की मांग की जा रही है। अब इस मामले में 8 अगस्त के बाद आज 14 अगस्त यानी गुरुवार को फिर सुनवाई हुई। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार से आठ सप्ताह में जवाब मांगा है।
सुनवाई के दौरान, सीजेआई ने कहा कि पहलगाम में जो हुआ, उसे कतई नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उन्होंने साफ़ किया कि इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय संसद और कार्यपालिका के हाथ में है।
साल 2019 में बदल गया था जम्मू-कश्मीर का स्वरूप
साल 2019 अगस्त के महीने में संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लाकर आर्टिकल 370 को निरस्त कर दिया गया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर राज्य से केंद्रशासित प्रदेश में परिवर्तित हो गया और इसे दो हिस्से, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया। तब से लेकर आज तक प्रदेश के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग निरंतर उठती रही है।
याचिकाकर्ताओं की दलील और केंद्र का रवैया
इस मामले में शिक्षाविद जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अहमद मलिक ने याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने जल्द से जल्द सुनवाई की मांग की। वहीं, केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करने से जुड़ा फैसला कई पहलुओं पर विचार के बाद ही लिया जाएगा।
‘पहलगाम हमले को न भूलें’... CJI
सुनवाई के दौरान, CJI B.R. गवई ने कहा कि "पहलगाम में जो कुछ हुआ, उसे आप कभी भूल नहीं कर सकते।" हालांकि उन्होंने यह भी बोला कि इस पर अंतिम फैसला लेने की जिम्मेदारी संसद और कार्यपालिका की है। CJI की यह टिप्पणी हालिया घटनाओं के आधार पर सामने आई है, जिसमें सुरक्षा स्थिति को लेकर गंभीर चिंताएं जताई गयीं हैं।
इस मुद्दे पर राजनीतिक प्रतिक्रिया
कांग्रेस विधायक इरफान हाफिज लोन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग राज्य का दर्जा पाने के लिए कई सालों से लगातार संघर्ष करते आ रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट गुण-दोष के मुताबिक पर फैसला लेगा और प्रदेश के लोगों को न्याय मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट का पूर्व आदेश
11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा था। इसके साथ ही अदालत ने केंद्र को आदेश दिया था कि सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाएं और राज्य का दर्जा 'जल्द से जल्द' बहाल किया जाए। इसके बावजूद, पिछले साल दाखिल एक याचिका में केंद्र को दो महीने के अंदर राज्य का दर्जा बहाल करने का आदेश देने की मांग की गई थी, जिस पर अब नई सुनवाई हो रही है।
आगे की राह ?
इस मामले पर अब केंद्र को 8 हफ्तों में अपना जवाब दाखिल करना होगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई में तय करेगा कि राज्य का दर्जा बहाली को लेकर क्या आदेश दिए जाएं। हालांकि, सुरक्षा परिस्थितियों और राजनीतिक माहौल पर ध्यान देते हुए, यह मामला सिर्फ कानूनी ही नहीं बल्कि संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा भी है।
जम्मू-कश्मीर के लोग अब भी इस उम्मीद में हैं कि उन्हें बहुत जल्द अपना पूर्ण राज्य का दर्जा वापस मिल जाएगा, लेकिन इसके लिए संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका—तीनों की सहमति आवश्यक होगी।
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