TRENDING TAGS :
Madanlal Dhingra: मदनलाल ढींगरा: एक भारतीय क्रांतिकारी की शहादत
Madanlal Dhingra: मदनलाल ढींगरा ने लंदन में कर्जन वायली की हत्या कर ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी और फांसी पर झूलकर भारत की आज़ादी की लड़ाई को नई दिशा दी।
मदनलाल ढींगरा: एक भारतीय क्रांतिकारी की शहादत (Photo- Newstrack)
Madanlal Dhingra: मदनलाल ढींगरा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिनकी शहादत ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ चल रहे आंदोलन को एक नई दिशा दी। उन्हें 17 अगस्त, 1909 को लंदन की पेंटोनविले जेल में फांसी दी गई थी, जब वे सिर्फ 24 साल के थे। उनकी फांसी का कारण सर विलियम हट कर्जन वायली की हत्या था, जो उस समय भारत के राज्य सचिव के राजनीतिक सलाहकार थे। ढींगरा ने यह हत्या इसलिए की थी ताकि वे भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा क्रांतिकारियों पर हो रहे अत्याचारों, फांसी और निर्वासन का बदला ले सकें।
लंदन में क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत
मदनलाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर, 1883 को अमृतसर में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता, डॉ. साहिब दित्ता ढींगरा, एक सिविल सर्जन थे और ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार थे। यही कारण था कि ढींगरा के क्रांतिकारी विचारों और गतिविधियों से उनके परिवार में हमेशा मतभेद रहा। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा अमृतसर में ही पूरी की और फिर लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में दाखिला लिया।
बाद में, 1906 में, वे लंदन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए। लंदन में रहते हुए वे भारतीय क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। वे श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित 'इंडिया हाउस' में रहने लगे, जो उस समय भारतीय राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों का केंद्र बन चुका था। यहीं पर उन्होंने रिवॉल्वर चलाने का प्रशिक्षण लिया और अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की तैयारी में जुट गए।
कर्जन वायली की हत्या और गिरफ्तारी
मदनलाल ढींगरा ने कर्जन वायली को मारने का फैसला सोच-समझकर लिया था। वे मानते थे कि कर्जन वायली जैसे अधिकारी ही भारत में ब्रिटिश अत्याचारों के लिए जिम्मेदार थे। 1 जुलाई, 1909 को, लंदन के इंपीरियल इंस्टीट्यूट में एक वार्षिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में कर्जन वायली और उनकी पत्नी शामिल हुए थे। जैसे ही कर्जन वायली कार्यक्रम से बाहर आ रहे थे, ढींगरा ने उन पर पांच गोलियां दागीं। दो गोलियां कर्जन वायली को लगीं और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। एक और गोली एक पारसी डॉक्टर, कावस ललकाका को लगी, जो बीच-बचाव करने आए थे। ढींगरा को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया।
अदालत में देशभक्तिपूर्ण बयान
गिरफ्तारी के बाद, ढींगरा को लंदन की अदालत में पेश किया गया। मुकदमे के दौरान उन्होंने अपने बचाव के लिए कोई वकील नहीं लिया और यह कहकर सबको चौंका दिया कि उन्हें अंग्रेजी अदालत पर कोई भरोसा नहीं है। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने कर्जन वायली की हत्या की है और यह भी कहा कि उन्हें इस पर गर्व है।
अदालत में दिए गए उनके बयान को इतिहास में सबसे साहसी और देशभक्तिपूर्ण बयानों में से एक माना जाता है। उन्होंने कहा, "मैंने एक अंग्रेज की हत्या की है, क्योंकि वह मेरे देश पर शासन कर रहा था। मेरी मातृभूमि का अपमान करना और उसे गुलाम बनाना एक अंग्रेज के लिए सबसे बड़ा अपमान है, ठीक वैसे ही जैसे एक भारतीय के लिए अपने देश को गुलाम देखना।" उन्होंने आगे कहा, "मैं अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए जान देने में गर्व महसूस करता हूँ। मेरी मौत मेरे देश के लिए एक मामूली भेंट है।" उनके इस बयान ने न केवल भारतीयों को बल्कि कई ब्रिटिश लोगों को भी प्रभावित किया। महात्मा गांधी, विंस्टन चर्चिल और ब्रिटिश अखबारों ने भी उनके साहस की सराहना की।
शहादत और उसका प्रभाव
23 जुलाई, 1909 को, मदनलाल ढींगरा को मौत की सजा सुनाई गई और 17 अगस्त, 1909 को उन्हें फांसी दे दी गई। फांसी के बाद ब्रिटिश सरकार ने उनके शव को उनके परिवार को देने से मना कर दिया और उन्हें लंदन की पेंटोनविले जेल में दफना दिया। उनकी शहादत ने भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों को एक नई ऊर्जा दी। ढींगरा की बहादुरी और बलिदान ने भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे आने वाले क्रांतिकारियों को भी प्रेरित किया।
मदनलाल ढींगरा की शहादत ने यह साबित कर दिया कि भारतीय युवा अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे केवल एक हत्यारे नहीं थे, बल्कि एक देशभक्त थे, जिन्होंने अपने देश के सम्मान के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। आज भी, उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सम्मान और गौरव के साथ लिया जाता है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!


