Independence Day 2025: गांधीवादी व्यक्तित्व अब्दुल गफ्फार खान, जिन्होंने 35 वर्षों तक सही पाकिस्तान जेल में सजा

Independence Day Inside Story: अपने 98 वर्ष के जीवनकाल में कुल 35 वर्ष जेल में रहे। महात्मा गांधी के एक दोस्त ने उन्हें फ्रंटियर गांधी का नाम दिया था। आइये जानते हैं क्या थी इनकी कहानी।

Jyotsna Singh
Published on: 9 Aug 2025 7:10 AM IST (Updated on: 9 Aug 2025 7:10 AM IST)
Independence Day Insider Story
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Independence Day Insider Story (Image Credit-Social Media)

Independence Day Inside Story: 15 अगस्त को भारत जब स्वतंत्रता का जश्न मनाता है, तब उन नायकों को भी याद किया जाता है जिन्होंने इस ऐतिहासिक उपलब्धि में अप्रतिम योगदान दिया। ऐसे ही एक नायक थे खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें 'सरहदी गांधी', 'फ्रंटियर गांधी', 'बादशाह खान' और 'बच्चा खान' जैसे नामों से जाना गया। उनका जीवन, संघर्ष और गांधीवादी विचारधारा के प्रति समर्पण आज भी प्रेरणास्त्रोत है।

ये गांधीवादी विचारों को मानते थे और इसी के साथ भारत की आजादी की लड़ाई में शरीक हुए थे। पाकिस्तान बनाने की बात आई तो विरोध में उठ खड़े हुए। हालांकि देश का बंटवारा हो गया तो उनका पुश्तैनी घर पाकिस्तान में चला गया। इसलिए वहीं रहने लगे, फिर भी पाकिस्तान ने उन्हें कभी अपना नहीं माना और सालों जेल में या नजरबंद रखा। नजरबंदी में ही उनकी मौत हो गई। मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान को 1987 में भारत रत्न दिया गया था। वे पहले गैर-भारतीय थे, जिन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया। महात्मा गांधी के एक दोस्त ने उन्हें फ्रंटियर गांधी का नाम दिया था। उनका जन्म 6 फरवरी 1890 को हुआ था। वह अपने 98 वर्ष के जीवनकाल में कुल 35 वर्ष जेल में रहे। उनके पिता ने विरोध के बावजूद उनकी पढ़ाई मिशनरी स्कूल में कराई थी। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए बादशाह खान ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया।

परदादा अब्दुल्ला खान ने देश की आजादी की लड़ाई में निभाई थी सक्रिय भूमिका



एक सुन्नी मुस्लिम परिवार में जन्मे बादशाह खान के पिता आध्यात्मिक थे। हालांकि, उनके परदादा अब्दुल्ला खान देश की आजादी की लड़ाई में सक्रिय थे। अब्दुल गफ्फार खान को उन्हीं से राजनीतिक जुझारूपन मिला था। अलीगढ़ से ग्रेजुएशन करने के बाद अब्दुल गफ्फार खान लंदन जाना चाहते थे। इसके लिए घरवाले तैयार नहीं हुए तो वह समाजसेवा में जुट गए. फिर बाद में आजादी के आंदोलन में कूद गए।

पश्तूनों को जागरूक करने के लिए की सैकड़ों गांवों की यात्रा

20 साल की उम्र में उन्होंने अपने गृहनगर उत्मान जई में एक स्कूल खोला जो थोड़े ही महीनों में चल निकला, पर अंग्रेजी हुकूमत ने उनके स्कूल को 1915 में प्रतिबंधित कर दिया। अगले 3 साल तक उन्होंने पश्तूनों को जागरूक करने के लिए सैकड़ों गांवों की यात्रा की। कहा जाता है कि इसके बाद लोग उन्हें ’बादशाह खान’ नाम से पुकारने लगे थे।

गांधी जी से इस तरह हुई मुलाकात

बादशाह खान ने अब राजनीतिक आंदोलन का रुख कर लिया था। देश की आजादी की लड़ाई के दौरान उनकी मुलाकात 1928 में गांधी जी से हुई तो उनके मुरीद हो गए। गांधीजी की अहिंसा की राजनीति उन्हें खूब पसंद थी। विचार मिले तो वह गांधीजी के खास होते गए और कांग्रेस का हिस्सा बन गए।उन्होंने सामाजिक चेतना के लिए ’खुदाई खिदमतगार’ नाम के एक संगठन की भी स्थापना की। इस संगठन की स्थापना महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह जैसे सिद्धान्तों से प्रेरित होकर की गई थी।

नमक सत्याग्रह के दौरान हुए गिरफ्तार


नमक सत्याग्रह के दौरान गफ्फार खान को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में खुदाई खिदमतगारों के एक दल ने प्रदर्शन किया। अंग्रेजों ने इन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया, जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गए।

भारत के बंटवारे का किया विरोध

जब ऑल इंडिया मुस्लिम लीग भारत के बंटवारे पर अड़ी हुई थी, तब बादशाह खान ने इसका सख्त विरोध किया। जून 1947 में उन्होंने पश्तूनों के लिए पाकिस्तान से एक अलग देश की मांग की, लेकिन ये मांग नहीं मानी गई। बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गए।अपनी अंतरराष्ट्रीय सक्रियता के कारण बादशाह खान को 1967 में जवाहरलाल नेहरू सम्मान से नवाजा गया। 1970 में वह भारत आए और दो साल रहे। इस दौरान पूरे देश का भ्रमण किया। 1972 में पाकिस्तान वापस गए।

अपना दुश्मन समझती थी पाकिस्तान सरकार

पाकिस्तान सरकार उन्हें अपना शत्रु समझती थी, इसलिए वहां उन्हें कई साल जेल में रखा गया। 1988 में हाउस अरेस्ट के दौरान पाकिस्तान में ही उनका निधन हो गया। जिंदगीभर अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले बादशाह खान की अंतिम यात्रा भी अहिंसक न रह सकी। उनकी अंतिम यात्रा में दो भीषण विस्फोट हुए, जिसमें करीब 15 लोगों ने अपनी जान गंवाईं थी।

देश को आजादी देने के साथ लगाया विभाजन का ठप्पा

लंबे संघर्षों के बाद भारत पर राज करने के बाद अंग्रेज भारत को आजाद करने के लिए राजी तो हुए थे, लेकिन वे इस देश को छोड़ने से पहले विभाजन का ठप्पा भी लगा कर गए। यही वजह है कि देश की आजादी अपने साथ विभाजन की त्रासदी भी लेकर आई थी। 1947 में भारत का बंटवारा हुआ और एक नया देश पाकिस्तान बना। लंबे खूनी संघर्षों के बाद आजाद भारत से पृथक हुआ पाकिस्तान अब अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। 20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने भारत की आजादी की घोषणा की और इसकी जिम्मेदारी सौंपी लॉर्ड माउंटबेटन को। लॉर्ड माउंटबेटन की ही देन है देश का विभाजन।

क्या है माउंटबेटन का 3 जून प्लान


माउंटबेटन ने एक प्लान बनाया जिसे 3 जून प्लान भी कहा जाता है। इसमें कहा गया कि भारत की स्थिति को देखते हुए केवल विभाजन ही विकल्प है। भारत आजाद तो होगा, लेकिन साथ ही उसका विभाजन भी होगा।

इस प्लान में रियासतों को भी ये सुविधा दी गई कि वे भारत या पाकिस्तान के साथ मिल सकती हैं या आजाद रह सकती हैं। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश पार्लियामेंट ने इस बिल को पास कर दिया। भारत की आजादी और विभाजन पर ब्रिटिश पार्लियामेंट की मुहर लग गई। राजनीतिक कारणों से होने वाला ये अब तक का सबसे बड़ा विस्थापन है। 1861 में पास हुआ था इंडियन हाईकोर्ट एक्ट बंटवारे के दौरान दंगे भी हुए जिसमें लाखों लोग मारे गए थे। भारत के आधुनिक इतिहास में विभाजन को सबसे त्रासद घटना के तौर पर गिना जाता है।

इस तरह हुई ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई हाइकोर्ट की स्थापना

भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा पहले हाईकोर्ट की स्थापना से पहले ब्रिटिश सरकार और ईस्ट इंडिया कंपनी की दोहरी न्याय प्रणाली से भारतीयों के मुकदमों का फैसला होता था। यानी भारतीयों को दूनी सजा से गुजरना पड़ता था। ये वो समय था जब कंपनी और ब्रिटिश राज की अदालत के क्षेत्राधिकार अलग-अलग हुआ करते थे। 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म हो गया। 1861 में इंडियन हाईकोर्ट एक्ट पास होने के बाद न्यायालयों का एकीकरण हुआ और न्याय व्यवस्था ब्रिटिश सरकार के हाथों में आ गई। जिसके उपरांत ब्रिटिश सरकार को सर्वोच्च न्यायालयों और सदर अदालतों को खत्म करने का भी अधिकार मिला। जिसके उपरांत बम्बई, कलकत्ता और मद्रास तीनों प्रेसिडेंसी में एक-एक हाईकोर्ट की स्थापना की गई।

सबसे पहले हुई कोलकाता हाईकोर्ट की स्थापना


इस कानून के जरिए सबसे पहले कोलकाता हाईकोर्ट की स्थापना हुई। 1862 में बॉम्बे हाईकोर्ट की स्थापना की गई। जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट को महाराष्ट्र, गोवा, दादरा नगर हवेली और दमन और दीव के मामलों पर सुनवाई करने का अधिकार दिया गया।

15 जजों की नियुक्ति का हुआ आदेश

हाईकोर्ट में शुरुआत में 15 जजों की नियुक्ति का आदेश पारित किया गया, जबकि जज केवल सात ही नियुक्त किए गए। हाईकोर्ट की वर्तमान बिल्डिंग को बनाने का काम 1871 में शुरू हुआ। पणजी (गोवा), औरंगाबाद और नागपुर में बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच है।

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