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Kargil Vijay Diwas 2025: वीरता और बलिदान की अमर गाथा

Kargil Vijay Diwas 2025: हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, ये कहानी है वीर सैनिकों की बहादुरी, बलिदान और देशभक्ति की।

Akshita Pidiha
Published on: 26 July 2025 4:17 PM IST
Kargil Vijay Diwas 2025
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Kargil Vijay Diwas 2025 (Image Credit-Social Media)

Kargil Vijay Diwas 2025: 26 जुलाई, 2025 को भारत अपना 26वां कारगिल विजय दिवस मना रहा होगा। ये दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उन वीर सैनिकों की बहादुरी, बलिदान और देशभक्ति की कहानी है, जिन्होंने 1999 में कारगिल की बर्फीली चोटियों पर भारत की आन-बान और शान को बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया एक ऐसा युद्ध था, जिसने दुनिया को भारतीय सेना की ताकत और जज़्बे का लोहा मनवाया। इस युद्ध में 527 सैनिक शहीद हुए, 1300 से ज़्यादा घायल हुए, लेकिन भारत ने अपनी धरती का एक-एक इंच दुश्मन से वापस छीन लिया। आइए, इस कारगिल विजय दिवस पर उस ऐतिहासिक युद्ध की कहानी को याद करें और उन नायकों को श्रद्धांजलि दें, जिनके बलिदान ने हमें गर्व करने का मौका दिया।

कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि

1999 की सर्दियों में जम्मू-कश्मीर के कारगिल ज़िले की ऊंची पहाड़ियों पर एक ऐसी साजिश रची गई, जिसने भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को एक बार फिर तनावपूर्ण बना दिया। फरवरी 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसमें दोनों देशों ने शांति और दोस्ती की बात कही थी। लेकिन इसके ठीक उलट, पाकिस्तानी सेना और आतंकियों ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) को पार करके कारगिल की चोटियों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। ये घुसपैठ इतनी चालाकी से की गई कि शुरुआत में भारतीय सेना को इसका पता ही नहीं चला।


मई 1999 में एक स्थानीय गड़रिए ताशी नामग्याल ने द्रास की पहाड़ियों पर कुछ अजीब गतिविधियां देखीं। उसने तुरंत भारतीय सेना को सूचना दी। जब सेना ने जांच शुरू की, तो पता चला कि पाकिस्तानी सैनिक और आतंकी छद्म वेश में कारगिल की टाइगर हिल, तोलोलिंग, बटालिक और द्रास जैसे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों में घुस आए थे। ये वो जगहें थीं, जहां से नेशनल हाईवे 1A पर नज़र रखी जा सकती थी, जो श्रीनगर और लेह को जोड़ता है। अगर दुश्मन इन चोटियों पर कब्जा बनाए रखता, तो भारत के लिए रणनीतिक और सामरिक नुकसान बहुत बड़ा होता।

ऑपरेशन विजय: जीत का आगाज़

पाकिस्तानी घुसपैठ की खबर मिलते ही भारतीय सेना ने तुरंत कार्रवाई शुरू की। इस अभियान को ऑपरेशन विजय नाम दिया गया। भारतीय सेना के सामने चुनौतियां आसान नहीं थीं। कारगिल की चोटियां 16,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर थीं, जहां ऑक्सीजन की कमी, बर्फीले तूफान और खतरनाक रास्ते सैनिकों के लिए रोज़ की मुश्किलें थीं। इसके बावजूद, भारतीय सेना ने हिम्मत नहीं हारी। इस युद्ध में करीब 30,000 सैनिकों ने हिस्सा लिया, जिनमें पैदल सेना, तोपखाने और इंजीनियरिंग कोर के जवान शामिल थे। भारतीय वायुसेना ने भी ऑपरेशन सफेद सागर के तहत हवाई हमलों से समर्थन दिया।


युद्ध का पहला बड़ा लक्ष्य था तोलोलिंग चोटी को वापस हासिल करना। 12-13 जून 1999 की रात को 2 राजपूताना राइफल्स ने तोलोलिंग पर कब्जा कर लिया। इस जीत ने भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाया और दुनिया को दिखाया कि भारत अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इसके बाद टाइगर हिल, द्रास और बटालिक की चोटियों पर एक-एक करके कब्जा किया गया। टाइगर हिल की जीत खास तौर पर याद की जाती है, क्योंकि ये सबसे कठिन और निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी।

वीरों की अमर कहानियां

कारगिल युद्ध सिर्फ एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि ये उन नायकों की कहानी है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की। इनमें से कुछ नाम आज भी हर भारतीय के दिल में बसे हैं।

कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें शेरशाह के नाम से जाना जाता है, इस युद्ध के सबसे बड़े नायक थे। उनकी यूनिट, 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स ने टाइगर हिल पर कब्जा करने में अहम भूमिका निभाई। विक्रम ने अपने साथियों को ललकारते हुए कहा, ये दिल मांगे मोर। लेकिन 7 जुलाई 1999 को एक घायल साथी को बचाने के दौरान वो शहीद हो गए। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

लेफ्टिनेंट मनोज पांडे भी उन वीरों में से एक थे, जिन्होंने बटालिक सेक्टर में दुश्मन के बंकरों को नेस्तनाबूद किया। अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने कई दुश्मन सैनिकों को मार गिराया, लेकिन इस दौरान वो शहीद हो गए। उन्हें भी मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला।

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, जो उस समय सिर्फ 19 साल के थे, टाइगर हिल पर चढ़ाई के दौरान बुरी तरह घायल हो गए। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी और दुश्मन के बंकरों को उड़ाने में कामयाब रहे। वो इस युद्ध में परमवीर चक्र पाने वाले सबसे युवा सैनिक थे।

मेजर राजेश अधिकारी , कैप्टन सौरभ कालिया, राइफलमैन संजय कुमार जैसे कई और वीरों ने अपने बलिदान से कारगिल की चोटियों को फिर से भारत का हिस्सा बनाया। इन सैनिकों की कहानियां आज भी युवाओं को देशभक्ति और साहस की प्रेरणा देती हैं।

युद्ध का अंत और जीत की घोषणा


60 दिन तक चले इस युद्ध में भारत ने हर चुनौती का डटकर मुकाबला किया। 26 जुलाई 1999 को आखिरी दुश्मन सैनिक को कारगिल की चोटियों से खदेड़ दिया गया। उसी दिन भारत ने कारगिल विजय की घोषणा की। इस जीत ने न सिर्फ भारत की सैन्य ताकत को दुनिया के सामने ला दिया, बल्कि ये भी दिखाया कि भारत अपनी संप्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं करता।

हालांकि, इस जीत की कीमत बहुत भारी थी। 527 सैनिक शहीद हुए, जिनमें कई युवा अधिकारी और जवान थे। उनके परिवारों ने अपनों को खोया, लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। कारगिल विजय ने भारत को एकजुट किया और दुनिया को ये संदेश दिया कि हम शांति चाहते हैं, लेकिन अपनी ज़मीन और सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

कारगिल विजय दिवस का महत्व

हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देश भर में शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। द्रास में कारगिल युद्ध स्मारक पर विशेष समारोह आयोजित होते हैं, जहां सैनिक, उनके परिवार और आम नागरिक शहीदों को याद करते हैं। ये स्मारक उन वीरों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने अपनी जान देकर कारगिल की चोटियों को आज़ाद कराया।

2025 में कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ पर देश एक बार फिर उन सैनिकों को सलाम करेगा। इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी संस्थानों में कार्यक्रम आयोजित होंगे। लोग सोशल मीडिया पर शहीदों की कहानियां साझा करेंगे और देशभक्ति से भरे गीत गाए जाएंगे। लेकिन सबसे ज़रूरी बात ये है कि ये दिन हमें याद दिलाता है कि आज़ादी और सुरक्षा की कीमत कितनी बड़ी होती है।


आज जब हम कारगिल विजय दिवस मनाते हैं, तो ये सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक संकल्प है। संकल्प है कि हम अपने शहीदों के बलिदान को कभी नहीं भूलेंगे। संकल्प है कि हम अपने देश की रक्षा के लिए हर वक्त तैयार रहेंगे। संकल्प है कि हम उस जज़्बे को ज़िंदा रखेंगे, जो कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने आखिरी शब्दों में कहा था, ये दिल मांगे मोर।

कारगिल विजय दिवस 2025 पर आइए, हम सब मिलकर उन वीरों को नमन करें, जिनके कारण आज हम चैन की सांस ले रहे हैं। उनकी कहानियां, उनका साहस और उनका बलिदान हमेशा हमें प्रेरित करता रहेगा। जय हिंद!

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