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25 जून 1975 का इतिहास: जब भारत में लगाई गई थी इमरजेंसी, स्वतंत्रता पर सबसे बड़ा हमला
India Emergency History 25 June 1975: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कई ऐसे मोड़ आए जिन्होंने देश की दिशा और दशा को हमेशा के लिए बदल दिया।
India Emergency History 25 June 1975
India Emergency History 25 June 1975: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कई ऐसे मोड़ आए जिन्होंने देश की दिशा और दशा को हमेशा के लिए बदल दिया। लेकिन 25 जून 1975 का दिन ऐसा था जब भारत के संवैधानिक ढांचे और नागरिक अधिकारों पर सीधा प्रहार किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की। यह आपातकाल 21 महीने तक चला और इस दौरान प्रेस की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकार और लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता को कुचल दिया गया। इसे भारत के लोकतंत्र का ‘काला अध्याय’ कहा जाता है।
आइए जानते हैं आपातकाल की पृष्ठभूमि, इसके कारण, प्रमुख घटनाएं, इसका प्रभाव, विरोध और अंत तक की पूरी कहानी के बारे में विस्तार से -
आपातकाल की पृष्ठभूमि- कैसे शुरू हुआ सब कुछ?
1970 के दशक की शुरुआत में भारत राजनीतिक और आर्थिक दोनों ही दृष्टि से कठिन दौर से गुजर रहा था। महंगाई चरम पर थी, बेरोजगारी बढ़ रही थी और जनता में असंतोष फैल रहा था। 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी की भारी जीत के बाद उनकी स्थिति मजबूत हुई। लेकिन प्रतियोगी उम्मीदवार समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनाव हारने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और इंदिरा गांधी पर चुनाव में अनैतिक तरीके अपनाने और सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। नतीजनन 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के ऊपर दोष सिद्ध होने पर रायबरेली से उनका चुनाव रद्द कर दिया और उन्हें 6 साल तक चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया।
इस फैसले ने उनकी राजनीतिक साख पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। इस फैसले के बाद देशभर में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। जयप्रकाश नारायण ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया और छात्रों, मजदूरों और आम नागरिकों का विशाल जनसमूह सड़कों पर उतर आया। यह आंदोलन इंदिरा सरकार के लिए सीधी चुनौती बन गया।
क्या है संविधान का अनुच्छेद 352 और इसमें राष्ट्रपति की भूमिका
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आंतरिक अथवा बाहरी आक्रमण या गंभीर आंतरिक संकट की स्थिति में राष्ट्रपति आपातकाल घोषित कर सकते हैं, बशर्ते प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद इसकी सिफारिश करे।
25 जून 1975 की रात को, इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल लागू करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति ने बिना कोई सवाल किए उस पर हस्ताक्षर कर दिए और देश की जनता को इसकी जानकारी अगले दिन दी गई।
आपातकाल के दौरान क्या-क्या हुआ?
1. नागरिक अधिकारों का हनन
अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) को स्थगित कर दिया गया। पुलिस को बगैर वारंट गिरफ्तारी का अधिकार दे दिया गया। habeas corpus (बिना वजह गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा) को निलंबित कर दिया गया।
press censorship
2. प्रेस सेंसरशिप
मीडिया पर कड़ा नियंत्रण लगा दिया गया।
समाचार पत्रों को हर खबर प्रकाशित करने से पहले सरकारी मंजूरी लेनी पड़ती थी। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘द स्टेट्समैन’ जैसे प्रतिष्ठित अखबारों ने अपने संपादकीय पन्नों को खाली छोड़ विरोध जताया।
3. राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी
जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस सहित हजारों विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया गया। 1 लाख से अधिक राजनीतिक बंदियों को बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार किया गया।
4. नसबंदी अभियान
संजय गांधी की अगुवाई में ज़बरदस्ती नसबंदी कार्यक्रम चलाया गया। गरीबों, विशेषकर मुसलमानों और दलितों को निशाना बनाया गया।
5. संविधान में संशोधन
42वां संविधान संशोधन लाकर केंद्र को अत्यधिक शक्तियां दी गईं।न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सीमित करने की कोशिश हुई।
आपातकाल का अंत और चुनाव
जनता में बढ़ते असंतोष के बीच 1977 में इंदिरा गांधी ने आम चुनाव की घोषणा की। उन्हें शायद उम्मीद थी कि विपक्षी नेता जेल में हैं और जनता उनके खिलाफ नहीं जाएगी। लेकिन परिणाम इसके बिल्कुल उलट निकले।
जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला और मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों अपनी-अपनी सीटों से चुनाव हार गए।
इतिहास में 25 जून की अन्य प्रमुख घटनाएं-
1529 मुगल शासक बाबर बंगाल विजय कर आगरा लौटा।
1788 वर्जीनिया अमेरिका का 10वां राज्य बना।
1941 फिनलैंड ने सोवियत संघ पर युद्ध की घोषणा की।
1947 ऐन फ्रैंक की प्रसिद्ध पुस्तक डायरी ऑफ ए यंग गर्ल प्रकाशित हुई।
1950 उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच युद्ध शुरू हुआ।
1974 अभिनेत्री करिश्मा कपूर का जन्म।
2005 ईरान में महमूद अहमदी नेजाद राष्ट्रपति निर्वाचित।
2009 पॉप स्टार माइकल जैक्सन की मृत्यु।
आपातकाल के दौर की आलोचना और मूल्यांकन
आपातकाल के दौरान जो कुछ भी हुआ, उसे आज भी भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों पर सबसे बड़ा हमला माना जाता है। इस अवधि में ऐसा लगा मानो भारत लोकतांत्रिक नहीं, बल्कि एक तानाशाही व्यवस्था में बदल गया हो। प्रेस परिषद ने इसे 'संविधान का गला घोंटने' जैसा कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी स्वतंत्रता पर आपातकाल के असर को स्वीकार किया।
बाद में खुद इंदिरा गांधी ने इसे ‘गलती’ माना।
क्या थे आपातकाल से सीखे गए सबक
लोकतंत्र की कीमत
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागंधी की शक्तिशाली पार्टी होने के बावजूद जनता ने दिखा दिया कि लोकतंत्र को कुचला नहीं जा सकता।
संवैधानिक मर्यादा का महत्व
एमएजेंसी के हालात ने सिखाया कि राष्ट्रपति और न्यायपालिका देश की मेरुदंड की तरह काम करते हैं इसलिए इनको हमेशा अपनी मर्यादा का ध्यान रखते हुए हर स्थिति के लिए सजग रहना चाहिए।
लोकतंत्र की ताकत
किसी भी सत्ताधारी की सत्ता जनता की शक्ति से ही कायम रहती है। 25 जून 1975 सिर्फ एक तारीख नहीं, एक चेतावनी है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र की रक्षा केवल चुनावों से नहीं, बल्कि सतर्क नागरिकों और स्वतंत्र संस्थानों से होती है। आपातकाल यह सीख देता है कि, अधिकारों की रक्षा सतत निगरानी और जवाबदेही से ही संभव है।
इस काले अध्याय ने भले ही देश को झकझोर दिया, लेकिन इसी ने भारत को और अधिक लोकतांत्रिक और जागरूक बनने की राह भी दिखाई।
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