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खत्म हुआ खौफ! बिहार के मुंगेर जिले में 20 साल बाद हुई वोटिंग, नक्सली गढ़ में लोकतंत्र का जयघोष
Bihar Election 2025: बिहार के मुंगेर जिले में 20 साल बाद मतदान हुआ। नक्सल प्रभावित भीम बांध और आसपास के गांवों में वोटिंग के दौरान लोगों में जबरदस्त उत्साह देखा गया। लोकतंत्र के इस उत्सव ने साबित कर दिया कि अब नक्सल का खौफ खत्म हो चुका है और विश्वास की नई सुबह शुरू हो गई है।
Munger voting after 20 years: बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान गुरुवार का दिन मुंगेर जिले के लिए एक ऐतिहासिक अध्याय लेकर आया। नक्सल प्रभावित माने जाने वाले इस इलाके में, जिसे कभी खौफ और आतंक के साए ने घेर रखा था, वहाँ आज लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत तस्वीर देखने को मिली। यह नजारा था उन सात मतदान केंद्रों पर, जहाँ पूरे 20 साल बाद फिर से वोट डाले गए। इनमें सबसे प्रमुख रहा भीम बांध, वह दुर्भाग्यपूर्ण स्थान जहाँ 2005 में एक भीषण नक्सली हमले में एक बहादुर पुलिस अधीक्षक (एसपी) समेत सात पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। उस हृदय विदारक घटना के बाद सुरक्षा कारणों से चुनाव आयोग ने इन संवेदनशील इलाकों से मतदान केंद्रों को हटा दिया था। लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मीलों दूर जाने को मजबूर थे, जिससे मतदान प्रतिशत पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा था। लेकिन आज, एक लंबी प्रतीक्षा के बाद, न केवल भीम बांध, बल्कि आसपास के अन्य छह बूथों पर भी, आशा और विश्वास की नई सुबह का उदय हुआ।
भीम बांध बना लोकतंत्र का 'मंदिर'
तारापुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले भीम बांध के बूथ संख्या 310 (वन विभाग विश्रामालय) पर सुबह से ही एक अभूतपूर्व उत्साह और जोश का माहौल था। केंद्र पर मतदाताओं की लंबी कतारें लगी थीं, जो सिर्फ वोट डालने नहीं आए थे, बल्कि अपने गांव में लोकतंत्र की वापसी का जश्न मना रहे थे। इस बूथ पर कुल 374 मतदाता पंजीकृत हैं, जिनमें 170 महिलाएँ और 204 पुरुष शामिल हैं। सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चाक-चौबंद थी। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवान कड़ी निगरानी रखे हुए थे और लगातार पेट्रोलिंग कर यह सुनिश्चित कर रहे थे कि मतदान प्रक्रिया पूरी तरह शांतिपूर्ण रहे। प्रशासन की सख्त तैयारी और मतदाताओं के अटूट विश्वास ने यह साबित कर दिया कि अब नक्सल का डर नहीं, बल्कि संविधान की शक्ति ही यहाँ सर्वोपरि है।
बुजुर्गों के चेहरे पर खुशी, युवाओं में गर्व
इस ऐतिहासिक मौके पर मतदाताओं की प्रतिक्रियाएं भी बेहद भावुक और प्रेरक थीं। 81 वर्षीय बुजुर्ग मतदाता विशुन देव सिंह ने वोट डालने के बाद अपनी खुशी व्यक्त करते हुए कहा, “2005 से पहले हम अपने गांव में ही मतदान करते थे, लेकिन नक्सली घटना के कारण बूथ को बीस किलोमीटर दूर कर दिया गया था। सोचिए, बुजुर्ग और महिलाएँ इतनी दूर कैसे जा पातीं! इसी कारण कई लोग वोट नहीं डाल पाते थे। अब फिर से गांव में मतदान केंद्र बना है, यह देखकर बहुत खुशी हो रही है। हम इसके लिए चुनाव आयोग का दिल से धन्यवाद करते हैं।”
वहीं, पहली बार मतदान कर रहे युवा मतदाता बादल प्रताप के चेहरे पर गर्व साफ झलक रहा था। उन्होंने कहा, “बीस साल बाद गांव में मतदान हो रहा है, इसलिए यह हमारे लिए गर्व का पल है। पहले बूथ दूर होने से हम चाहकर भी वोट नहीं डाल पाते थे। इस बार गांव में ही मतदान कर बहुत खुशी महसूस हो रही है।” बादल प्रताप ने क्षेत्र के विकास पर ध्यान देने की अपेक्षा भी जताई और कहा कि नक्सल प्रभाव के कारण इलाके में शिक्षा और रोजगार की कमी है, जिस पर सरकार को अब ध्यान देना चाहिए।
लोकतंत्र की राह पर महिला शक्ति
महिला मतदाताओं ने भी इस पहल का जोरदार स्वागत किया। मतदाता नीलम देवी ने कहा, “कई सालों बाद गांव में मतदान केंद्र बना है। पहले दूर होने की वजह से कई महिलाएँ चाहकर भी मतदान नहीं कर पाती थीं। इस बार गांव में वोट डालकर बहुत अच्छा लग रहा है। अब हम बिना किसी परेशानी के अपने अधिकार का प्रयोग कर पा रही हैं।” महिलाओं की भागीदारी में आई यह वृद्धि दर्शाती है कि मतदान केंद्र की वापसी ने इस क्षेत्र के लोकतांत्रिक समावेश को मजबूत किया है। सेक्टर मजिस्ट्रेट अशोक कुमार ने पुष्टि करते हुए बताया कि दो दशक बाद मतदान होने से लोगों में भारी उत्साह है। हर बूथ पर केंद्रीय पुलिस बल की सख्त तैनाती है और निगरानी रखी जा रही है। मुंगेर के नक्सल प्रभावित भीम बांध और आसपास के इलाकों में जब दो दशक बाद ईवीएम की बटन दबाई गई, तो यह सिर्फ एक वोट नहीं था, यह लोकतंत्र के प्रति अटूट विश्वास और क्षेत्र के उज्जवल भविष्य की एक मजबूत मुहर थी।
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