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बिहार में वोटिंग के चौंकाने वाले आंकड़ों ने उड़ाए होश, गांव के मुकाबले पिछड़ा शहर, पटना का हाल बेहाल
Bihar voting trends: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मतदान के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। ग्रामीण क्षेत्र बढ़-चढ़कर वोट डाल रहे हैं, जबकि शहरी पटना की सीटों पर मतदान बेहद कम है। जानिए किस जिले में सबसे ज्यादा और सबसे कम वोटिंग हुई और 6 नवंबर को क्या हो सकता है।
Bihar voting trends: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए कल, 6 नवंबर को 121 सीटों पर वोटिंग होने जा रही है। लेकिन इस मतदान से पहले, पिछले दस सालों के आंकड़े बिहार के मतदाताओं के व्यवहार में एक दिलचस्प बदलाव दिखाते हैं। एक ओर जहाँ ग्रामीण बिहार पूरे उत्साह में है, वहीं शहरी पटना मतदान से विमुख होता दिख रहा है। यह असमानता बताती है कि लोकतंत्र के इस महापर्व में अब गाँवों की भागीदारी शहरों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो चुकी है।
गांव आगे, शहर पीछे: 4% की बढ़ोतरी का गणित
2010 से 2020 के बीच, पहले चरण की 121 सीटों पर औसत वोटिंग 52.1% से बढ़कर 56.1% हो गई, जो लगभग 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। यह बढ़ोतरी मामूली नहीं है और 121 में से 112 सीटों पर वोटिंग बढ़ी है। यहाँ तक कि 2020 में कोरोना महामारी के बावजूद, मतदान दर 55.9% से बढ़कर 56.1% पर बरकरार रही।
सबसे ज्यादा वोटिंग वाला क्षेत्र: मुजफ्फरपुर का मीनापुर विधानसभा क्षेत्र पिछले तीन चुनावों में लगातार 60% से ज़्यादा मतदान दर्ज कर रहा है।
सबसे कम वोटिंग वाला क्षेत्र: पटना की कुम्हरार सीट, जहाँ 2020 में केवल 35.3% वोटिंग हुई, जो पूरे पहले चरण में सबसे कम थी।
दरभंगा का उभार और मुजफ्फरपुर की स्थिरता
मतदान बढ़ाने के मामले में दरभंगा जिला सबसे बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है। साल 2010 में यहाँ की औसत वोटिंग सिर्फ 47.6% थी, लेकिन 2020 में यह बढ़कर 56.4% हो गई, यानी करीब 9 प्रतिशत का बड़ा उछाल। वहीं, मुजफ्फरपुर लगातार ऊंची वोटिंग दर्ज करके स्थिरता की कहानी कहता है। 2020 में सबसे ज्यादा वोटिंग वाली पाँचों सीटें इसी जिले से थीं:
मीनापुर: 65.3%
बोचाहा (SC): 65.1%
कुरहनी: 64.2%
कांटी: 63.3%
सकरा (SC): 63%
मुजफ्फरपुर की तीन चुनावों की औसत वोटिंग 59.8% रही है, जो फेज-1 की औसत से 10% ज़्यादा है।
शहरी पटना पिछड़ रहा है: लोकतंत्र से दूरी
मुजफ्फरपुर के विपरीत, पटना की स्थिति बिल्कुल उलटी है। साल 2020 में सबसे कम वोटिंग वाली पाँच में से तीन सीटें पटना की थीं:
कुम्हरार: 35.3%
बांकीपुर: 35.9%
दीघा: 36.9%
कुम्हरार में तो 2010 में 37.3% वोटिंग थी जो 2020 में घटकर 35.3% रह गई। ये आंकड़े साफ बताते हैं कि जहाँ गाँवों में मतदाता उत्साह से बढ़ रहे हैं, वहीं शहरी मतदाता मतदान से दूर हो रहे हैं।
कड़े मुकाबले से फर्क? आंकड़े कहते हैं 'नहीं'
एक आम धारणा यह है कि जब मुकाबला कड़ा होता है, तो ज्यादा लोग वोट डालने आते हैं, लेकिन बिहार के आंकड़े कुछ और कहानी कहते हैं। 2020 में वोटिंग प्रतिशत और जीत के अंतर में नकारात्मक रिश्ता (-0.169) पाया गया। यानी, जहाँ जीत का अंतर ज्यादा था, वहाँ भी वोटिंग दर थोड़ी ज्यादा रही।उदाहरण के लिए, हिलसा (नालंदा) में सिर्फ 12 वोटों से जीत हुई थी, लेकिन वहाँ वोटिंग 54.8% रही, जो औसत से कम है। वहीं मीनापुर और बोचाहा जैसी सीटों पर मुकाबला उतना करीबी नहीं था, फिर भी वोटिंग सबसे ज्यादा हुई। यह साबित करता है कि भीड़ लाने में जनसंपर्क और सामाजिक भागीदारी ज्यादा असर डालते हैं, न कि सिर्फ कड़ा मुकाबला।
6 नवंबर को क्या उम्मीद की जाए?
पिछले दस साल के डेटा से यही रुझान निकलता है:
कुल मतदान दर: 56-57% रहने की उम्मीद है।
मुजफ्फरपुर फिर आगे रहेगा: मीनापुर, बोचाहा, कुरहनी जैसी सीटों पर 60% से ऊपर वोटिंग संभव है।
पटना की शहरी सीटों में गिरावट जारी: इन सीटों पर 40% से नीचे वोटिंग की संभावना है।
असली सवाल यह है कि वोटिंग में यह असमानता क्यों है? इसका जवाब शायद पलायन, स्थानीय नेतृत्व, और सामाजिक जागरूकता जैसे कारणों में छिपा है। लेकिन इतना तय है कि 6 नवंबर को ग्रामीण बिहार फिर बढ़-चढ़कर मतदान करेगा, शहरी बिहार शायद नहीं।
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