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रोजी-रोटी बनाम चुनाव, वोटिंग से ठीक पहले लाखों वोटर ने छोड़ा बिहार, तेजस्वी-नीतीश की चिंता बढ़ी
बिहार चुनाव से ठीक पहले लाखों वोटर छठ पूजा के बाद राज्य छोड़कर लौट रहे हैं। जानिए क्या है इस पलायन के पीछे की असल वजह और क्यों चुनावी माहौल को लेकर नेताओं की चिंता बढ़ी है। पढ़ें इस रोचक रिपोर्ट में।
बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। मतदान में केवल एक हफ्ता बाकी है, लेकिन छठ पूजा के बाद राज्य में मतदाता उदासीनता और पलायन की स्थिति ने चुनावी माहौल को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। पटना जंक्शन पर भारी भीड़ देखी गई, जिसमें मजदूर, घरेलू कामगार, छात्र, नौकरीपेशा और व्यवसायी शामिल थे। ये सभी अपने कामकाजी स्थलों दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, इंदौर, कोटा जैसे शहरों की ओर लौट रहे हैं, जबकि चुनाव सिर्फ कुछ दिनों बाद होने वाले हैं।
छठ पूजा समाप्त होते ही पलायन का दृश्य हर साल की तरह इस बार भी चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ा रहा है। पहले चरण का मतदान 6 नवंबर और दूसरे चरण का 11 नवंबर को है, लेकिन कई मतदाता वोटिंग छोड़कर आर्थिक और शैक्षणिक मजबूरियों के चलते बाहर निकल रहे हैं।
पलायन के मुख्य कारण
1. गरीबी और मजबूरी:
कई मतदाताओं ने खुद को गरीब और मजबूर बताया। एक विकलांग व्यक्ति ने कहा, “चार बच्चों की जिम्मेदारी है। वोट बाद में डालना पड़ेगा, लेकिन कमाना जरूरी है।” यह दर्शाता है कि गरीब मतदाता के लिए रोज़ी-रोटी प्राथमिक है।
2. रोजगार की आवश्यकता:
घर खर्च, बच्चों की पढ़ाई और परिवार का पालन-पोषण करने के लिए मजदूरी करना अनिवार्य है। कई लोग कहते हैं कि अगर मजदूरी नहीं करेंगे तो खाने-पीने का इंतजाम कैसे होगा।
3. मौसमी काम:
कुछ प्रवासी अपने मौसमी काम जैसे धान कटाई या भमासा मंडी का काम के कारण जल्द लौट रहे हैं। उदाहरण के लिए, सुपौल का एक धान मजदूर कहता है कि अगर वह 5-10 दिन और रुका तो धान कटाई का सीज़न खत्म हो जाएगा और पैसे नहीं मिलेंगे।
4. ठेकेदार का दबाव:
कुछ मजदूर ठेकेदार के दबाव में काम के लिए लौट रहे हैं। एक मजदूर ने बताया कि उसे ₹10,000 रुपये मिल चुके थे और ठेकेदार ने छठ पूजा की सुबह ही चलने को कहा।
5. आय और आर्थिक स्थिरता:
काम करने वाले लोग बाहर ₹10,000 से ₹15,000 महीना कमाते हैं और कई महीनों तक वहीं रहते हैं। यह उनकी आर्थिक मजबूरी को दर्शाता है, जिसके कारण वे मतदान नहीं कर पा रहे।
प्रवासी मतदाताओं की श्रेणियाँ
• मजदूर (धान मंडी, बोरी उठाने वाले): कोटा, पंजाब
• घरेलू कामगार (खाना बनाना, सफाई): इंदौर, विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में
• बैंक कर्मचारी और ऑफिस कर्मचारी: ग्वालियर, बेगूसराय
• छात्र (इंजीनियरिंग/कॉलेज): भोपाल, इंदौर
• नौकरीपेशा कर्मचारी: विभिन्न शहरों में
छात्र और नौकरीपेशा मतदाता अपनी पढ़ाई और कामकाजी जिम्मेदारियों के कारण वोट नहीं डाल पा रहे। बैंक कर्मचारी और उनके परिवार ने भी अफसोस जताया कि छुट्टियाँ पर्याप्त नहीं होने के कारण वे मतदान नहीं कर पाएंगे।
मतदाताओं की भावनाएं और सुझाव
मतदाताओं ने वोट न डाल पाने पर अफसोस और दुख व्यक्त किया:
• “गरीब आदमी के लिए वोट डालना कठिन है, लेकिन अफसोस तो बहुत होता है।”
• एक बैंक कर्मचारी की पत्नी ने इसे “बहुत दुखद” बताया।
• एक महिला मतदाता ने कहा कि वोटिंग हर साल छूट जाने पर ऐसा लगता है जैसे कोई त्यौहार छूट गया।
• एक छात्र ने सुझाव दिया कि दूरस्थ स्थानों के लिए ऑनलाइन वोटिंग की व्यवस्था होनी चाहिए।
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