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Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर में स्काईस्ट्राइकर भारत का आत्मनिर्भर और सटीक जवाब, जानिए इस खतरनाक आत्मघाती ड्रोन के बारे में
Operation Sindoor: भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव की शुरुआत पहलगाम हमले से शुरू हुई वहीँ भारतीय सेना के ऑपरेशन सिन्दूर ने उनकी सैन्य तैयारियों के बारे पूरी दुनिया को बता दिया है।
Skystriker Dangerous Suicide Drone (Image Credit-Social Media)
Operation Sindoor: भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव के बीच शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल देश की सैन्य तैयारियों को उजागर किया है, बल्कि स्वदेशी तकनीक की शक्ति को भी सामने लाया है। इस ऑपरेशन में जो हथियार सबसे ज्यादा चर्चा में रहा, वह है स्काईस्ट्राइकर आत्मघाती ड्रोन, जिसे बेंगलुरु में डिजाइन और निर्मित किया गया है। इस ड्रोन ने परंपरागत युद्ध प्रणाली से हटकर आधुनिक, सटीक और अदृश्य हमले की एक नई परिभाषा गढ़ी है। आइए जानते हैं इस आत्मघाती ड्रोन के बारे में विस्तार से -
बेंगलुरु में तैयार, सीमाओं पर तैनात
स्काईस्ट्राइकर ड्रोन का निर्माण बेंगलुरु स्थित अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज द्वारा किया गया है, जो रक्षा उत्पादन क्षेत्र में अग्रणी कंपनी मानी जाती है। यह ड्रोन इज़राइल की प्रमुख रक्षा कंपनी एल्बिट सिस्टम्स के साथ हुए तकनीकी साझेदारी के तहत तैयार किया गया है। यह साझेदारी ‘मेक इन इंडिया’ की भावना को मजबूती देती है, जहां विदेशी विशेषज्ञता और भारतीय निर्माण क्षमता मिलकर एक शक्तिशाली हथियार प्रणाली का निर्माण करती हैं।
आत्मघाती ड्रोन की अवधारणा चुपचाप हमला, सटीक परिणाम
स्काईस्ट्राइकर को ‘कामिकेज़ ड्रोन’ भी कहा जाता है, जिसका तात्पर्य ऐसे ड्रोन से है जो अपने लक्ष्य से टकराकर विस्फोट करते हैं। यह प्रणाली विशेष रूप से उच्च परिशुद्धता वाले लक्ष्यों के खिलाफ तैनात की जाती है, जहां पारंपरिक बमबारी की तुलना में कम संसाधनों और अधिक गोपनीयता के साथ हमला संभव होता है। यह ड्रोन लक्ष्य के ऊपर काफी देर तक मंडरा सकता है और जब एकदम सही क्षण आता है, तो अपने आप को विस्फोट कर देता है।
इजराइली तकनीक और भारतीय निर्माण का मिश्रण
एल्बिट सिस्टम्स द्वारा डिजाइन किए गए स्काईस्ट्राइकर ड्रोन को भारतीय सेना की आवश्यकताओं के अनुसार स्थानीय रूप से अनुकूलित किया गया है। यह 10 किलोग्राम तक का विस्फोटक लोड ले जा सकता है और 100 किलोमीटर की सीमा तक उड़ान भर सकता है। इसकी आवाज इतनी कम होती है कि यह दुश्मन के रडार या निगरानी में आए बिना लक्ष्य तक पहुंचने में सक्षम है।
ऑपरेशन सिंदूर जवाबी कार्रवाई में स्काईस्ट्राइकर की भूमिका
2025 के आरंभ में जब पाकिस्तान द्वारा भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर सीमित मिसाइल हमले किए गए, तो भारत ने एक तेज़, सटीक और नियंत्रित जवाब देने के लिए ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन में स्काईस्ट्राइकर ड्रोन को महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैनात किया गया। यह ड्रोन पहले से चिन्हित सैन्य और रणनीतिक ठिकानों को कुछ ही मिनटों में नष्ट करने में सक्षम साबित हुआ।
GNSS विफलता के बावजूद कार्यशील
स्काईस्ट्राइकर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) पर पूर्णतः निर्भर नहीं रहता। यह ऐसे क्षेत्रों में भी काम कर सकता है जहां सिग्नल जैमिंग की संभावना होती है। यह इसे इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की स्थिति में भी उपयोगी बनाता है, जहां दुश्मन द्वारा सिग्नल बाधित करने की कोशिश की जाती है।
बालाकोट के बाद स्काईस्ट्राइकर का अधिग्रहण
भारतीय वायुसेना ने 2019 के बालाकोट स्ट्राइक के बाद ड्रोन आधारित हमले की प्रभावशीलता को देखते हुए 2021 में लगभग 100 स्काईस्ट्राइकर ड्रोन के लिए आपातकालीन खरीद प्रक्रिया शुरू की थी। रक्षा मंत्रालय ने इसे सामरिक जरूरतों की दृष्टि से अत्यावश्यक मानते हुए प्रक्रिया को मंजूरी दी थी। अब यह ड्रोन भारत की वायुशक्ति का एक अहम हिस्सा बन चुका है।
अन्य आत्मघाती ड्रोन हारोप का परिचय
स्काईस्ट्राइकर के साथ ही एक और इजराइली ड्रोन हारोप भी भारत के पास है, जिसे इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज द्वारा विकसित किया गया है। यह ड्रोन लंबे समय तक किसी क्षेत्र में मंडरा सकता है और जैसे ही उसे लक्ष्य की पहचान होती है, वह बिना किसी निर्देश के खुद-ब-खुद हमला कर सकता है। इसकी विशेषता यह है कि यह लक्ष्य को पहचानने और हमले की प्रक्रिया को स्वचालित रूप से संचालित करता है, जिससे इसकी प्रभावशीलता कई गुना बढ़ जाती है।
संयुक्त हथियार प्रणाली SCALP और हैमर के साथ समन्वय
ऑपरेशन सिंदूर में स्काईस्ट्राइकर का उपयोग अकेले नहीं किया गया, बल्कि इसे SCALP क्रूज मिसाइलों और हैमर बमों के साथ एक समन्वित अभियान के तहत प्रयोग किया गया। इसका उद्देश्य दुश्मन की बहुस्तरीय रक्षा प्रणाली को भ्रमित करना और विभिन्न दिशाओं से एकसाथ हमला कर उसे अचेत करना था। ड्रोन ने प्राथमिक ठिकानों पर निशाना साधा, जिससे मिसाइलों और बमों को बेहतर मार्गदर्शन और प्रभावशीलता मिली।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक और कदम
स्काईस्ट्राइकर न केवल युद्ध के क्षेत्र में तकनीकी उन्नति का प्रतीक है, बल्कि यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का भी प्रत्यक्ष उदाहरण है। इसका निर्माण भारत में ही किया जा रहा है, जिससे विदेशी रक्षा उपकरणों पर निर्भरता कम हो रही है। साथ ही, इससे रक्षा क्षेत्र में रोजगार और अनुसंधान को भी बढ़ावा मिला है।
सीमा पार सटीकता का प्रतीक
भारत ने स्काईस्ट्राइकर को तैनात कर यह स्पष्ट संदेश दिया है कि अब पारंपरिक जवाबी कार्रवाइयों से आगे बढ़ते हुए, देश अब तकनीकी रूप से उन्नत और तेज़ प्रतिक्रिया देने में सक्षम हो चुका है। यह ड्रोन दुश्मन की सीमा के भीतर सटीक हमले करता है, जिसमें न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप और अधिकतम तकनीकी दक्षता होती है।
भविष्य के युद्धों में एक निर्णायक भूमिका निभाएंगे ये ड्रोन
रक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञ मानते हैं कि स्काईस्ट्राइकर जैसे ड्रोन भविष्य के युद्धों में एक निर्णायक भूमिका निभाएंगे। भारत अब अगली पीढ़ी के स्वदेशी ड्रोन पर भी काम कर रहा है, जिनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और स्वचालित लक्ष्य पहचान जैसी क्षमताएं शामिल होंगी। इसका उद्देश्य युद्ध क्षेत्र में मानव जोखिम को कम करते हुए सफलता की संभावना को बढ़ाना है।ऑपरेशन सिंदूर में स्काईस्ट्राइकर की तैनाती भारत की सैन्य नीति में एक बड़ा बदलाव है। यह दिखाता है कि भारत अब तकनीकी रूप से सक्षम, रणनीतिक रूप से तैयार और वैश्विक मानकों के बराबर पहुंच चुका है। ड्रोन तकनीक, विशेष रूप से कामिकेज़ ड्रोन, आने वाले वर्षों में भारतीय सशस्त्र बलों की रीढ़ बन सकते हैं। आत्मनिर्भरता, सटीकता और अप्रत्याशित हमले की क्षमता ये तीनों मिलकर स्काईस्ट्राइकर को आधुनिक युद्ध का एक अनिवार्य हिस्सा बना देते हैं।
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