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इस्तांबुल में बना 'पहलगाम हमले' का ब्लूप्रिंट? ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में तुर्की-पाकिस्तान की साज़िश? भारत को घेरने का बन रहा मास्टरप्लान!
Pahalgam Attack: पहलगाम हमले के बाद जहाँ पूरी दुनिया भारत के साथ और आंतक के खिलाफ नज़र आ रही थी वहीँ पाकिस्तान के साथ साथ तुर्की के इस्तांबुल में भारत के खिलाफ एक "कहानी" तैयार की जा रही थी।
Türkiye-Pakistan conspiracy (Image Credit-Social Media)
Pahalgam Attack : जिस वक्त भारत के पहलगाम में मातम पसरा था, शहीदों के परिवार चीख-चीख कर इंसाफ मांग रहे थे और पूरा देश गुस्से से उबल रहा था, ठीक उसी समय हज़ारों किलोमीटर दूर तुर्की के इस्तांबुल में एक ऐसा आयोजन हो रहा था, जो भारत के खिलाफ एक खतरनाक प्रोपेगेंडा का मंच बन चुका था। ये कोई आम सेमिनार नहीं था यहां भारत के खिलाफ एक "कहानी" तैयार की जा रही थी, जिसे आतंक के रंग में रंगा गया। जो शब्द वहाँ बोले जा रहे थे, वो गोलियों की तरह भारत की संप्रभुता पर चलने वाले थे। और अब सवाल उठ रहे हैं क्या पहलगाम का हमला सिर्फ एक आतंकी घटना थी या फिर यह एक गहरी, अंतरराष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा?
सेमिनार या साज़िश? इस्तांबुल में हुआ 'कश्मीर का सच' का मंचन
कश्मीर हमेशा से भारत की राजनीतिक और राष्ट्रीय आत्मा का हिस्सा रहा है। लेकिन अब यह भूभाग सिर्फ सैन्य मोर्चा नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रोपेगेंडा युद्ध का केंद्र भी बन चुका है। सूत्रों के मुताबिक, पहलगाम में हुए आतंकी हमले से ठीक दो हफ्ते पहले तुर्की के इस्तांबुल शहर में ‘कश्मीर मुद्दे’ पर एक सेमिनार आयोजित किया गया था। इस आयोजन में पाकिस्तान समर्थक कई जाने-माने चेहरे शामिल थे, जिनका मकसद था दुनिया को यह दिखाना कि भारत कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन कर रहा है। यह कोई सामान्य कूटनीतिक बहस नहीं थी। इसमें इस्तेमाल किए गए शब्द, प्रस्तुत की गई 'रिपोर्टें', और दिखाए गए 'सबूत' किसी भी स्वतंत्र और निष्पक्ष मंच का हिस्सा नहीं लगते थे। इन सबका मकसद सिर्फ एक था भारत की वैश्विक छवि को बदनाम करना और कश्मीर को एक 'संघर्षरत क्षेत्र' के रूप में पेश करना। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस आयोजन में वही चेहरे मौजूद थे, जो पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान और उसके खुफिया तंत्र ISI के करीब माने जाते हैं। सवाल उठता है क्या यह आयोजन महज एक संयोग था या पहलगाम हमले की मानसिक तैयारी और अंतरराष्ट्रीय वैधता का मंच?
'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद क्यों बढ़ी बेचैनी?
भारतीय सेना द्वारा हाल ही में चलाया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ आतंकी ठिकानों के खिलाफ एक निर्णायक कदम था। यह कार्रवाई कश्मीर घाटी में छिपे हुए आतंकवादियों पर सर्जिकल और इंटेलिजेंस आधारित हमलों की एक शृंखला थी। ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान की ओर से बौखलाहट देखी गई, और इसी दौरान तुर्की में भारत विरोधी आयोजन और बयानबाजी का सिलसिला शुरू हुआ। विशेषज्ञों का मानना है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने घाटी में कई वर्षों से पनप रही आतंकी संरचनाओं को तोड़ दिया। इससे न सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि उसके अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों को भी झटका लगा — खासकर उन संगठनों को, जो इस्लामिक दुनिया में कश्मीर के नाम पर भारत के खिलाफ अभियान चलाते रहे हैं। ऐसे में तुर्की में हुआ यह सेमिनार केवल एक 'जवाबी प्रहार' नहीं, बल्कि एक बड़ी साज़िश की भूमिका भी हो सकती है।
तुर्की का बदला हुआ चेहरा: ISI का नया मंच?
तुर्की, खासकर राष्ट्रपति एर्दोगन के नेतृत्व में, पिछले कुछ वर्षों से खुद को इस्लामी नेतृत्वकर्ता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। एर्दोगन ने कई बार कश्मीर मुद्दे पर खुलकर पाकिस्तान का पक्ष लिया है। लेकिन अब यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है। TRT वर्ल्ड जैसे सरकारी मीडिया चैनल और TUGVA जैसे संगठन सीधे तौर पर भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाने में लगे हैं। TRT वर्ल्ड ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में कई एकतरफा और भ्रामक रिपोर्टें चलाईं, जिनमें भारतीय सेना को 'अत्याचारी' और कश्मीरियों को 'पीड़ित' के रूप में दिखाया गया। यही नहीं, तुर्की में चलने वाले कई NGO, जो एर्दोगन परिवार के करीब माने जाते हैं, भारत विरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। इन NGOs का नेटवर्क दक्षिण एशिया, मिडिल ईस्ट और यूरोप तक फैला है, और वे ISI व हमास जैसे संगठनों के साथ मिलकर भारत के खिलाफ वैश्विक मंच तैयार कर रहे हैं।
पहलगाम हमला: क्या ये 'जवाबी कार्रवाई' थी?
अब तक मिली जानकारियों से स्पष्ट है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले की तैयारी कोई अचानक उठाया गया कदम नहीं था। यह सुनियोजित, प्रशिक्षित और उद्देश्यपूर्ण हमला था। यह वो वक्त था जब भारत कूटनीतिक रूप से G20 और SCO जैसे मंचों पर प्रभावशाली भूमिका निभा रहा था। ऐसे में यह हमला भारत को घरेलू स्तर पर अस्थिर करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाने की एक सुनियोजित चाल के रूप में देखा जा रहा है। और जब इसे तुर्की में हुए सेमिनार और पाकिस्तान की हालिया गतिविधियों के संदर्भ में देखा जाए, तो यह पूरी तस्वीर और भी डरावनी हो जाती है।
पाकिस्तान-तुर्की गठजोड़: 'डिप्लोमेसी से डर्टी वार' तक
हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की तुर्की यात्रा के दौरान कई अहम समझौते हुए रक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, खुफिया साझेदारी, शिक्षा और मीडिया सहयोग जैसे क्षेत्रों में। यह सामान्य रणनीतिक संबंध नहीं, बल्कि एक ठोस और दिशा-निर्देशित योजना का संकेत है। जानकार मानते हैं कि इन समझौतों का एक छिपा हुआ पहलू भी है भारत विरोधी नैरेटिव का निर्माण और वैश्विक मंच पर उसे वैधता देना। यही कारण है कि सेमिनारों से लेकर टीवी चैनलों तक, तुर्की अब पाकिस्तान का 'प्रोपेगेंडा हब' बन चुका है।
भारत के सामने चुनौती: सिर्फ सीमा नहीं, छवि की भी जंग
भारत अब दोहरी लड़ाई लड़ रहा है — एक अपनी सीमाओं पर और दूसरी अपने सम्मान और छवि के लिए। एक ओर सेना आतंकियों से मोर्चा ले रही है, तो दूसरी ओर डिप्लोमैट्स और मीडिया को वैश्विक स्तर पर भारत के खिलाफ फैलाए जा रहे झूठ और भ्रम का मुकाबला करना पड़ रहा है। भारत को चाहिए कि वह तुर्की और पाकिस्तान के इस गठजोड़ को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करे। चाहे वो UN हो, G20 हो या OIC हर मंच पर यह उजागर किया जाना चाहिए कि कैसे कुछ देश आतंक और प्रचार के गठबंधन के तहत काम कर रहे हैं।
क्या पहलगाम का हमला तुर्की में बना ब्लूप्रिंट था?
इतिहास गवाह है कि आतंकवाद केवल बंदूक से नहीं, विचारों से भी फैलता है। तुर्की में हुआ सेमिनार, TRT की रिपोर्टिंग, NGO का नेटवर्क और पाकिस्तान का सैन्य-सामरिक मेल यह सब मिलकर एक ऐसा नेटवर्क बना चुके हैं, जो भारत को सिर्फ रणभूमि में नहीं, मानसिक और कूटनीतिक स्तर पर भी कमजोर करने की कोशिश में जुटा है। अब यह भारत के लिए केवल जवाब देने का नहीं, बल्कि साज़िशों को जड़ से उखाड़ फेंकने का समय है। क्योंकि यह सिर्फ एक हमला नहीं था यह एक ब्लूप्रिंट था, जिसे हजारों किलोमीटर दूर, इस्तांबुल में बैठकर तैयार किया गया था।
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