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क्या होगा अगर दुनिया से मधुमक्खियाँ गायब हो जाएं...? जवाब आपको चौंका देगा! जानिए क्यों पूरी दुनिया घबरा रही है?
मधुमक्खियाँ दुनियाभर में पौधों के परागण और शहद उत्पादन के लिए बेहद महत्वपूर्ण कीट हैं। दुनिया में मधुमक्खियों की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं । लेकिन इनमें से कुछ ही प्रजातियाँ शहद उत्पादन में सहयोग करती हैं।
bees disappeared from the world (photo credit: social media)
एक बार ऐसी कल्पना कीजिए कि सुबह आप नींद से जागते ही देखते हैं कि आपके बगीचे में तमाम फूल तो खिले दिख रहे हैं। लेकिन उन पर कोई मधुमक्खी नहीं मंडरा रही है। शहद की मिठास तो दूर की बात है, सेब, बादाम, टमाटर और यहाँ तक कि कॉफी भी आपकी थाली से गायब हो गई है। क्या यह केवल एक डरावना सपना है या आने वाले एक संभावित समय की झलक?
मधुमक्खियाँ: प्रकृति की नायिका
EatingWell की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मधुमक्खियाँ सिर्फ शहद बनाने वाली कीट नहीं हैं बल्कि वे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) की नींव हैं। दुनिया की लगभग 75% फूलों की नस्लें और एक-तिहाई खाद्य उत्पादन मधुमक्खियों जैसे परागणकर्ताओं (pollinators) पर पूर्ण रूप से निर्भर होता है। जिनमें सेब, चेरी, ब्लूबेरी जैसी फसलें तकरीबन 90% तक मधुमक्खियों की परागण (pollination) पर निर्भर हैं।
मधुमक्खियाँ (Bees) दुनियाभर में पौधों के परागण (pollination) और शहद उत्पादन के लिए बेहद महत्वपूर्ण कीट हैं। दुनिया में मधुमक्खियों की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं । लेकिन इनमें से कुछ ही प्रजातियाँ शहद उत्पादन में सहयोग करती हैं।
विश्व स्तर पर मधुमक्खियों की प्रमुख प्रजातियाँ:
वैज्ञानिक वर्गीकरण के मुताबिक, मधुमक्खियों की कुल 20,000 से ज्यादा प्रजातियाँ पायी जाती हैं । लेकिन शहद उत्पादन के लिए मुख्य रूप से 4 ही प्रजातियाँ मानी जाती हैं:
1. Apis mellifera – वेस्टर्न हनी बी (Western Honey Bee)
- वेस्टर्न हनी बी मुख्य रूप से यूरोप में पायी जाने वाली प्रजाति है । लेकिन अब विश्वभर में पाई जाती है।
- यह मधुमक्खी शहद उत्पादन के लिए अत्यधिक पाली जाने वाली प्रजाति है।
2. Apis cerana – इंडियन हनी बी (Indian Honey Bee)
- इंडियन हनी बी भारत और दक्षिण एशिया की मूल प्रजाति के रूप में जानी जाती है।
- ये मधुमक्खियां मध्यम स्तर का शहद उत्पादन करती है।
3. Apis dorsata – रॉक बी (Rock Bee)
- रॉक बी बड़ी आकार की जंगली मधुमक्खी होती हैं।
- ये मधुमक्खियां ज्यादा मात्रा में शहद उत्पादन करती है । लेकिन इन्हें पाला नहीं जा सकता।
4. Apis florea – डवार्फ बी (Dwarf Bee)
- डवार्फ बी एक छोटी आकार की मधुमक्खी होती है।
- ये मधुमक्खियां कम मात्रा में शहद उत्पादन करती है।
भारत में पाई जाने वाली मधुमक्खियों की प्रमुख प्रजातियाँ:
1. रॉक बी (Apis dorsata) - ये मधुमक्खियों की सबसे बड़ी प्रजाति होती है जो बहुत अधिक शहद देती है और जंगली होती है।
2. इंडियन हनी बी (Apis cerana indica) - ये मधुमक्खियां पाली जाती हैं, मध्यम शहद उत्पादन और ये भारत की मूल प्रजाति होती हैं।
3. यूरोपीय हनी बी (Apis mellifera) - ये मधुमक्खियां विदेश से लाई गई हैं जो कि उच्च उत्पादन क्षमता रखती हैं।
4. ड्वार्फ बी (Apis florea) - ये मधुमक्खियां मुख्यतः आकार में छोटी और कम शहद उत्पादन करती हैं।
5. डैमरल या स्टिंगलेस बी (Trigona iridipennis) - ये मधुमक्खियां बिना डंक वाली मधुमक्खी होती हैं और औषधीय शहद के लिए प्रसिद्ध हैं।
साल 2023 तक भारत में शहद उत्पादन का आंकड़ा:
- साल 2022-23 में भारत में लगभग 1.3 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ है।
- भारत दुनिया के सबसे शीर्ष 5 शहद उत्पादक देशों में से एक है।
- भारत में प्रमुख शहद उत्पादक राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड।
मधुमक्खियों का फूलों में योगदान-
परागण (pollination): मधुमक्खियाँ फूलों से पराग इकठ्ठा कर उन्हें अन्य फूलों तक पहुँचाती हैं, जिससे फल और बीज विकसित होता है।
खाद्य सुरक्षा (food security): फल, सब्जियाँ, मेवे और बीजों की उपलब्धता मधुमक्खियों की मेहनत का नतीजा होता है।
आर्थिक मूल्य (economic value): सिर्फ अमेरिका में मधुमक्खियों द्वारा परागण से लगभग 9 अरब डॉलर से ज्यादा का आर्थिक रूप से बड़ा फायदा होता है
स्वास्थ्य (Health): मधुमक्खियों द्वारा परागित फसलों में विटामिन A, C, और फोलेट जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
यदि मधुमक्खियाँ गायब हो जाएं तो...
मधुमक्खियों के बिना, परागण की प्रक्रिया रुक जाएगी जिस कारण फलों, सब्जियों और मेवों की पैदावार में बड़ी मात्रा में गिरावट आएगी। Britannica के मुताबिक, मधुमक्खियों के बिना ताजे उत्पादों की उपलब्धता और विविधता में ज्यादा गिरावट आएगी, जिससे मानव पोषण पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इसके साथ ही, पौधों के परागण न होने से पेड़-पौधों की प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं जिससे शाकाहारी जानवरों की खाद्य श्रृंखला टूट जायेगी और अंत में मांसाहारी जानवरों पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।
मधुमक्खियों की तेजी से घटती संख्या का कारण
कीटनाशकों का प्रयोग (use of pesticides): निओनिकोटिनोइड्स जैसे कीटनाशक मधुमक्खियों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं।
पर्यावरणीय बदलाव (environmental change): तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन, बढ़ता पारा और असामान्य मौसम पैटर्न मधुमक्खियों के जीवन चक्र को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
रोग और परजीवी (Diseases and parasites): वैरुआ माइट्स और अन्य रोगजनक मधुमक्खियों की कॉलोनियों को ख़त्म कर सकते हैं।
आवास की कमी (housing shortage): तेजी से शहरीकरण और कृषि विस्तार के कारण मधुमक्खियों के प्राकृतिक आवास ख़त्म होते जा रहे हैं।
आज भारत में मधुमक्खियों की स्थिति क्या है?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में मधुमक्खियाँ कृषि और वन विज्ञान में आवश्यक भूमिका निभाती हैं। नागपुर के मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ के मुताबिक, रॉक बी (Apis dorsata), स्टिंगलेस बी (Trigona), और इंडियन हाइव बी (Apis cerana indica) जैसी तमाम प्रजातियाँ जैव विविधता पौधों के पुनर्जनन और फसल उत्पादकता का समर्थन करती हैं।
हालांकि, औद्योगीकरण (industrialization) और पर्यावरणीय असंतुलन (environmental imbalance) के कारण मधुमक्खियों की संख्या में भारी कमी देखी जा रही है। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ जैसे PMEGP और हनी मिशन मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने में मदद कर रहे हैं।
इस दिशा में हम क्या कर सकते हैं?
मधुमक्खी-अनुकूल पौधों का रोपण: अपने बगीचे में लैवेंडर, सूरजमुखी, तुलसी जैसे पौधे ज्यादा से ज्यादा लगाएं।
कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग: प्राकृतिक कीटनाशकों का इस्तेमाल सिमित तरीके से ही करें और रासायनिक कीटनाशकों से बचें।
स्थानीय मधुमक्खी पालकों का समर्थन: स्थानीय रूप से उत्पादित शहद और मधुमक्खी उत्पाद अवश्य खरीदें।
जागरूकता की ओर कदम बढ़ाएं: मधुमक्खियों के महत्व के बारे में पहले खुद जानें और अपने समुदाय में भी जागरूकता फैलाएँ।
इस दिशा में बढ़ाएं कदम...
मधुमक्खियाँ हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की एक बेहद अनमोल कड़ी हैं। उनकी अनुपस्थिति न सिर्फ हमारे खाद्य स्रोतों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी बल्कि संपूर्ण जैव विविधता और मानव जीवन पर भी नकारत्मक असर डालेगी। इसीलिए बिना देरी के आज ही हमें मिलकर मधुमक्खियों के संरक्षण के लिए बड़ा कदम उठाना होगा ताकि समय रहते प्रकृति की इस मिठास को बचा सके जिससे भविष्य में आने वाली पीढ़ियाँ भी इसका आनंद ले पाएं।
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