TRENDING TAGS :
Parliament Bill 2025: क्या 251 सांसदों की सांसदी पर लटकेगी तलवार? नए विधेयक से किस पार्टी को ज्यादा खतरा?
Parliament Bill 2025: इस विधेयक का उद्देश्य केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963 की धारा 45 में संशोधित करना है।
Parliament Criminal MPS Ministers Bill 2025 Lok Sabha Analysis (Image Credit-Social Media)
Parliament Bill 2025: केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद के मानसून सत्र 2025 में तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को पेश किया है, जो भारतीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं। इन विधेयकों का उद्देश्य उन जनप्रतिनिधियों पर नकेल कसना है, जो गंभीर आपराधिक मामलों में शामिल हैं। विशेष रूप से, ये विधेयक यह सुनिश्चित करते हैं कि यदि कोई प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य का मंत्री गंभीर आपराधिक मामले में 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहता है, तो उसे 31वें दिन अपने पद से हटा दिया जाएगा। इस कदम का असर न केवल मंत्रियों, बल्कि उन सांसदों पर भी पड़ सकता है, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। वर्तमान लोकसभा में 543 सांसदों में से 251 यानी लगभग 46 फीसदी के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह आंकड़ा भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की गंभीर समस्या को उजागर करता है। इस लेख में हम इन विधेयकों के प्रभाव, सांसदों के आपराधिक रिकॉर्ड और विभिन्न राजनीतिक दलों पर इसके असर का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
नए विधेयकों का विवरण
केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए तीन विधेयक हैं:
केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025: इस विधेयक का उद्देश्य केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963 की धारा 45 में संशोधन करना है। वर्तमान में इस कानून में कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार मुख्यमंत्री या मंत्री को हटाया जा सके नए प्रावधान के तहत यदि कोई मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहता है, तो उसे पद से हटाना अनिवार्य होगा।
संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025: यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 75, 164, और 239AA में संशोधन करने का प्रस्ताव करता है। इन अनुच्छेदों में वर्तमान में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री या राज्य के मुख्यमंत्री/मंत्री को हटाया जाए। यह संशोधन सुनिश्चित करेगा कि ऐसे मामलों में हटाना अनिवार्य हो।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025: यह विधेयक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 54 में संशोधन करता है। इसके तह यदि जम्मू-कश्मीर का कोई मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आपराधिक मामले में 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो उसे 31वें दिन पद से हटा दिया जाएगा।
इन विधेयकों का उद्देश्य शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाना है। सरकार का तर्क है कि गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे नेताओं का पद पर बने रहना लोकतंत्र और सुशासन के सिद्धांतों के खिलाफ है। इन विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजा गया है ताकि विस्तृत चर्चा के बाद इन्हें अंतिम रूप दिया जा सके।
सांसदों का आपराधिक रिकॉर्ड
वर्तमान लोकसभा में 543 सांसदों में से 251 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कुल सांसदों का लगभग 46% है। इनमें से कई सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले हैं, जिनमें हत्या, भ्रष्टाचार, और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित अपराध शामिल हैं। विश्लेषण के अनुसार:
भाजपा (BJP): 240 सांसदों में से 63 (26%) ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
कांग्रेस (Congress): 99 सांसदों में से 32 (32%) के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हैं।
समाजवादी पार्टी (SP): 37 सांसदों में से 17 (46%) पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
तृणमूल कांग्रेस (TMC): 29 सांसदों में से 7 (24%) गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं।
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK): 22 सांसदों में से 6 (27%) पर गंभीर मामले हैं।
तेलुगु देशम पार्टी (TDP): 16 सांसदों में से 5 (31%) के खिलाफ गंभीर मामले हैं।
शिवसेना: 7 सांसदों में से 4 (57%) पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि आपराधिक मामले केवल एक या दो दलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक व्यापक समस्या है, जो विभिन्न दलों के सांसदों को प्रभावित करती है।
नए विधेयकों का प्रभाव
ये विधेयक उन सांसदों और मंत्रियों के लिए एक बड़ा खतरा बन सकते हैं, जो गंभीर आपराधिक मामलों में शामिल हैं। वर्तमान कानूनों के तहत, किसी सांसद या मंत्री को तब तक पद से नहीं हटाया जा सकता, जब तक कि उसे अदालत द्वारा दोषी ठहराया न जाए। हालांकि, नए विधेयकों के तहत, केवल 30 दिनों की हिरासत ही उनके पद को खतरे में डाल सकती है। इसका मतलब है कि जिन सांसदों के खिलाफ पहले से मामले दर्ज हैं, उनकी सांसदी पर तलवार लटक सकती है।
उदाहरण के लिए, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी जैसे नेताओं ने लंबे समय तक हिरासत में रहने के बावजूद अपने पदों को बनाए रखा। केजरीवाल शराब नीति मामले में 6 महीने जेल में रहे, जबकि बालाजी 241 दिनों तक हिरासत में थे। नए विधेयकों के लागू होने पर ऐसी स्थिति असंभव हो जाएगी।
किस पार्टी को ज्यादा खतरा?
नए विधेयकों का प्रभाव विभिन्न दलों पर अलग-अलग होगा, क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस दल के कितने सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। आंकड़ों के आधार पर निम्नलिखित विश्लेषण किया जा सकता है:
शिवसेना: सबसे अधिक जोखिम में शिवसेना है, क्योंकि इसके 57% सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। हालांकि, शिवसेना के पास केवल 7 सांसद हैं, इसलिए इसका कुल प्रभाव सीमित हो सकता है।
समाजवादी पार्टी (SP): 46% सांसदों पर गंभीर मामले होने के कारण सपा को भी बड़ा खतरा है। सपा के 37 सांसदों में से 17 पर मामले दर्ज हैं, जो इसे दूसरी सबसे प्रभावित पार्टी बनाता है।
कांग्रेस: 32% सांसदों पर गंभीर मामले हैं। चूंकि कांग्रेस के पास 99 सांसद हैं, यह संख्या (32 सांसद) इसे तीसरे स्थान पर लाती है।
तेलुगु देशम पार्टी (TDP): 31% सांसदों पर मामले दर्ज हैं। हालांकि, टीडीपी के पास केवल 16 सांसद हैं, इसलिए इसका प्रभाव मध्यम होगा।
भाजपा: सत्तारूढ़ दल होने के नाते भाजपा के 240 सांसदों में से 63 (26%) पर गंभीर मामले हैं। यद्यपि प्रतिशत कम है, लेकिन सांसदों की संख्या अधिक होने के कारण यह दल भी प्रभावित होगा।
TMC और DMK: क्रमशः 24% और 27% सांसदों पर मामले हैं, जो इन्हें अपेक्षाकृत कम जोखिम में रखता है।
संख्यात्मक दृष्टिकोण से, भाजपा और कांग्रेस सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि इनके पास सबसे अधिक सांसद हैं हालांकि, प्रतिशत के आधार पर, शिवसेना और सपा को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है।
विपक्ष की आपत्ति
विपक्ष ने इन विधेयकों का कड़ा विरोध किया है। उनका तर्क है कि ये विधेयक केंद्र सरकार को विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का हथियार दे सकते हैं। विपक्षी नेताओं का कहना है कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री या मंत्री को झूठे मामलों में फंसाकर हटा सकता है। उदाहरण के लिए, कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने इन विधेयकों की आलोचना की और इसे ‘लोकतंत्र पर हमला’ करार दिया।
विपक्ष की चिंता यह भी है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण इन प्रावधानों का दुरुपयोग हो सकता है। विशेषज्ञों ने भी आशंका जताई है कि गंभीर आपराधिक मामलों की परिभाषा अस्पष्ट हो सकती है, जिससे इसका गलत इस्तेमाल संभव है।
सरकार का तर्क
केंद्र सरकार और विशेष रूप से गृह मंत्री अमित शाह ने इन विधेयकों को सुशासन और संवैधानिक नैतिकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। शाह ने कहा कि जब वे स्वयं झूठे मामले में जेल गए थे, तब उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि गंभीर आरोपों का सामना कर रहे नेता यदि पद पर बने रहते हैं, तो यह जनता के विश्वास को कमजोर करता है।
सरकार का मानना है कि ये विधेयक भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को दर्शाते हैं। यह कदम जनप्रतिनिधियों के चरित्र और आचरण को हर संदेह से परे रखने की कोशिश है, ताकि जनता का विश्वास शासन व्यवस्था में बना रहे।
संभावित परिणाम
यदि ये विधेयक कानून बनते हैं, तो भारतीय राजनीति में कई बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं:
पारदर्शिता और जवाबदेही: गंभीर आपराधिक मामलों में शामिल नेताओं को तुरंत हटाने से शासन में पारदर्शिता बढ़ेगी।
राजनीतिक दुरुपयोग का खतरा: विपक्ष की आशंकाओं के अनुसार, इन प्रावधानों का उपयोग राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए हो सकता है।
सांसदों की साख पर प्रभाव: 251 सांसदों पर आपराधिक मामले होने के कारण, यह विधेयक कई नेताओं की सांसदी को खतरे में डाल सकता है।
लोकतंत्र की छवि: यह कदम जनता के बीच नेताओं की छवि को सुधार सकता है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठता है कि क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करेगा।
केंद्र सरकार के इन नए विधेयकों ने भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय शुरू किया है। 251 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले होने का तथ्य यह दर्शाता है कि राजनीति में अपराधीकरण एक गंभीर समस्या है। इन विधेयकों का उद्देश्य इस समस्या से निपटना है, लेकिन इसके दुरुपयोग की आशंका भी कम नहीं है। शिवसेना और सपा जैसे दलों को प्रतिशत के आधार पर सबसे अधिक खतरा है, जबकि भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों को सांसदों की संख्या के कारण प्रभावित होने की संभावना है।
इन विधेयकों का भविष्य संसद की संयुक्त समिति की चर्चा पर निर्भर करता है। यदि ये कानून बनते हैं, तो यह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक बदलाव होगा जो सुशासन को बढ़ावा दे सकता है लेकिन साथ ही राजनीतिक दुरुपयोग के नए रास्ते भी खोल सकता है। जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि इन प्रावधानों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाए।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!