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पेंशन का गणित समझिए, नेताओं को लाखों, आम आदमी को हजारों में? जानिए विस्तार से क्या है अंतर
नेताओं को मिलती लाखों की पेंशन, कर्मचारियों को हजारों में जानिए दोनों में कितना अंतर है।
हाल ही में भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा देने के बाद पेंशन के लिए आवेदन किया। उन्होंने यह आवेदन राजस्थान विधानसभा सचिवालय में दिया। इस आवेदन की ख़बर के सामने आने के बाद यह सवाल एक बार फिर से चर्चा में आ गया है कि राजनीतिक पदों पर रहे व्यक्तियों और आम सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन में क्या फर्क होता है।
धनखड़ एक लंबे राजनीतिक करियर से जुड़े रहे हैं। वे पहले विधायक, फिर सांसद, राज्यपाल और आखिर में भारत के उपराष्ट्रपति बने। ऐसे में वे अब एक नहीं बल्कि तीन पदों की पेंशन पाने के हकदार हैं।
उनका मामला इसलिए खास है क्योंकि वह एक साथ तीन पेंशन पाने वाले कुछ गिने-चुने लोगों में शामिल हो सकते हैं। उन्हें विधायक, सांसद और उपराष्ट्रपति पद की पेंशन मिलेगी। हालांकि, वह राज्यपाल भी रहे हैं, लेकिन भारत में राज्यपाल पद से रिटायर होने के बाद कोई पेंशन नहीं दी जाती।
जगदीप धनखड़ को कितनी पेंशन मिलेगी?
धनखड़ की तीन पेंशनों को मिलाकर उनकी मासिक पेंशन करीब ₹2.73 लाख तक हो सकती है। इसके अलावा उन्हें कुछ सुविधाएं जैसे कि हेल्थ कवरेज, सुरक्षा, और कुछ मामलों में ड्राइवर व स्टाफ जैसी सुविधाएं भी मिल सकती हैं, जो आम नागरिकों या कर्मचारियों को नहीं मिलतीं।
अब सवाल ये उठता है कि नेताओं और सरकारी कर्मचारियों की पेंशन में इतना बड़ा अंतर क्यों है?
सांसद और विधायकों को कैसे मिलती है पेंशन?
भारत में सांसदों की पेंशन का निर्धारण उनकी कार्यकाल की अवधि के आधार पर होता है। किसी भी पूर्व सांसद को न्यूनतम ₹25,000 प्रति माह पेंशन मिलती है। यदि उन्होंने 5 साल से अधिक सेवा की है, तो हर अतिरिक्त वर्ष पर ₹2,000 प्रति वर्ष की अतिरिक्त राशि जुड़ जाती है।
उदाहरण के लिए, अगर किसी सांसद ने 10 साल सेवा की है, तो उन्हें ₹25,000 + (5 x ₹2,000) = ₹35,000 की मासिक पेंशन मिलेगी। इसके साथ ही उन्हें कई बार अन्य सुविधाएं जैसे कि रेल यात्रा, स्वास्थ्य सेवा आदि मिलती हैं।
इसी तरह, राज्य के विधायकों को भी पेंशन मिलती है, जो हर राज्य में अलग-अलग हो सकती है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान में विधायक को ₹35,000 प्रति माह पेंशन मिलती है। यदि वह एक से अधिक कार्यकाल पूरे कर चुके हैं, तो हर अतिरिक्त कार्यकाल पर ₹8,000 की बढ़ोतरी की जाती है।
यदि कोई व्यक्ति पहले विधायक और बाद में सांसद बनता है, तो वह दोनों पदों की पेंशन ले सकता है। यही कारण है कि कई पूर्व राजनेता एक साथ दो या तीन पेंशन लेते हैं।
आम सरकारी कर्मचारियों की पेंशन कैसे तय होती है?
सरकारी नौकरी करने वालों के लिए पेंशन की व्यवस्था नेताओं से बिल्कुल अलग होती है।
1. पुरानी पेंशन योजना (OPS) के तहत, कर्मचारियों को उनकी सेवा के आखिरी 10 महीनों के औसत वेतन का 50% पेंशन के रूप में दिया जाता था।
उदाहरण के लिए, अगर किसी कर्मचारी का अंतिम औसत वेतन ₹60,000 है, तो उनकी मासिक पेंशन ₹30,000 होगी।
2. वहीं, अब ज्यादातर नए कर्मचारियों पर नई पेंशन योजना (NPS) लागू होती है, जिसमें कर्मचारी और सरकार दोनों एक निश्चित योगदान देते हैं। पेंशन बाजार आधारित होती है और यह निश्चित नहीं रहती।
3. अगर कोई कर्मचारी EPFO (Employees’ Provident Fund Organisation) की पेंशन योजना यानी EPS (Employees’ Pension Scheme) के अंतर्गत आता है, तो वहां पेंशन की गणना इस फॉर्मूले से होती है:
(पेंशनेबल सैलरी × पेंशनेबल सर्विस) ÷ 70
उदाहरण के लिए, यदि किसी कर्मचारी की पेंशनेबल सैलरी ₹15,000 है और उन्होंने 30 साल सेवा दी है, तो उन्हें
(15,000 × 30) ÷ 70 = ₹6,428.57 प्रति माह पेंशन मिलेगी।
क्यों है नेताओं और कर्मचारियों की पेंशन में इतना फर्क?
इस फर्क के पीछे मुख्य कारण है – पेंशन की व्यवस्था अलग-अलग नियमों से संचालित होती है।
• राजनेताओं की पेंशन अलग-अलग कानूनों द्वारा तय होती है, और इसमें उन्हें कई पदों की पेंशन एक साथ लेने की छूट है।
• सरकारी कर्मचारियों की पेंशन पूरी तरह सेवा शर्तों, वेतनमान और सेवावधि पर आधारित होती है।
• आमतौर पर एक सरकारी कर्मचारी एक ही पेंशन के लिए पात्र होता है, और अगर वह किसी और पद पर काम करता है, तो दो पेंशन पाने की अनुमति नहीं होती।
इसके अलावा कई बार नेताओं को अतिरिक्त सुविधाएं भी मिलती हैं जैसे कि सुरक्षा, आवास, स्टाफ आदि, जो आम कर्मचारियों या नागरिकों को नहीं मिलतीं।
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