बहुत उड़ रहा था तुर्किये, PM मोदी ने चल दी ऐसी चाल की अर्दोआन की उड़ गई नींद, बढ़ गई बेचैनी

साइप्रस भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित है, जहाँ यूरोप, एशिया और अफ्रीका की सीमाएँ मिलती हैं। यह वही सामरिक समुद्री मार्ग है, जो भविष्य में भारत–मध्य पूर्व–यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) के संभावित रूट का अहम हिस्सा बन सकता है।

Shivam Srivastava
Published on: 31 Oct 2025 4:31 PM IST (Updated on: 31 Oct 2025 4:38 PM IST)
बहुत उड़ रहा था तुर्किये, PM मोदी ने चल दी ऐसी चाल की अर्दोआन की उड़ गई नींद, बढ़ गई बेचैनी
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भारत की विदेश नीति में हाल के वर्षों में एक दिलचस्प और रणनीतिक बदलाव दिखाई दे रहा है। पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच स्थित छोटा लेकिन महत्वपूर्ण देश साइप्रस, जो लंबे समय से तुर्की के साथ विवादों में उलझा रहा है, अब भारत के नए सामरिक साझेदार के रूप में उभर रहा है। यह रिश्ता केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि उस बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की झलक है जिसमें भारत एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

साइप्रस के विदेश मंत्री कॉन्स्टेंटिनोस कोम्बोस की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2025-2029 भारत-साइप्रस एक्शन प्लान की समीक्षा की। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस रिश्ते को “विश्वसनीय मित्रता” बताते हुए कहा कि “भारत और साइप्रस भरोसेमंद साझेदार हैं, जिन्होंने समय की कसौटी पर अपनी प्रतिबद्धता साबित की है।” उन्होंने साइप्रस को भारत का “स्थायी सहयोगी” बताते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और NSG में भारत की सदस्यता को लेकर मिले समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।

कोम्बोस ने भी भारत को “वैश्विक महाशक्ति” बताते हुए कहा कि “हम भारत को न सिर्फ पुराने मित्र के रूप में, बल्कि भविष्य के रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हैं।” यह बयान वर्तमान वैश्विक शक्ति-संतुलन की नई भाषा को दर्शाता है।

भौगोलिक दृष्टि से, साइप्रस यूरोप, एशिया और अफ्रीका के संगम पर स्थित है। यह वही क्षेत्र है, जो भविष्य में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) के संभावित मार्ग का अहम हिस्सा बन सकता है। साइप्रस यूरोपीय संघ का सदस्य है और 2026 में यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता भी संभालेगा। ऐसे में भारत के साथ उसके संबंध भारत-ईयू रिश्तों को नई गति दे सकते हैं।

ऊर्जा, रक्षा, समुद्री सुरक्षा और तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में भारत और साइप्रस के बीच नए अवसर खुल रहे हैं। भूमध्य सागर में साइप्रस की सामरिक स्थिति भारत के लिए पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच एक रणनीतिक गेटवे बन सकती है। वहीं, तुर्की के बढ़ते प्रभाव के बीच भारत साइप्रस के लिए एक भरोसेमंद एशियाई साझेदार के रूप में उभर रहा है।

साइप्रस-तुर्की विवाद, जिसे साइप्रस संकट के रूप में जाना जाता है, 1974 से चला आ रहा है। तुर्की ने उस समय साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्ज़ा कर वहाँ एक अलग “तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस” बना दिया था, जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली। भारत ने हमेशा साइप्रस की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है। वहीं तुर्की, पाकिस्तान का घनिष्ठ सहयोगी और कश्मीर मुद्दे पर भारत का मुखर आलोचक रहा है।

इस पृष्ठभूमि में भारत-साइप्रस साझेदारी केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है यह तुर्की के विस्तारवादी रुख के विरुद्ध एक वैकल्पिक शक्ति-संतुलन का संकेत है। भारत अब ग्रीस, फ्रांस, इज़रायल और साइप्रस के साथ एक अनौपचारिक “भूमध्य धुरी (Mediterranean Axis)” तैयार कर रहा है, जो पश्चिम एशिया और यूरोप में भारत के हितों की रक्षा करेगी।

भारत-यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते (EU-India FTA) की बातचीत अंतिम चरण में है, जिसमें साइप्रस भारत का एक प्रमुख समर्थक है। यदि यह समझौता 2025 तक पूर्ण होता है, तो भारत को यूरोप के बाज़ारों तक तेज़ और सुलभ पहुँच मिलेगी, जबकि साइप्रस को भारत के विशाल उपभोक्ता आधार से जुड़ने का अवसर प्राप्त होगा।

साइप्रस की ताकत समुद्री परिवहन, वित्तीय सेवाओं और ऊर्जा अन्वेषण में है। इन क्षेत्रों में भारत निवेश और तकनीकी सहयोग के माध्यम से भूमध्य सागर में अपनी उपस्थिति को सुदृढ़ कर सकता है। इसके साथ ही, साइप्रस IMEC कॉरिडोर का यूरोपीय छोर बन सकता है, जिससे हिंद महासागर से भूमध्य सागर तक भारत की आर्थिक और सुरक्षा पहुँच सुनिश्चित होगी।

स्पष्ट है कि विश्व अब एक नए बहुध्रुवीय युग में प्रवेश कर चुका है, जहाँ शक्ति-संतुलन अमेरिका या चीन तक सीमित नहीं रहा। ऐसे में भारत-साइप्रस मित्रता उस वैश्विक दृष्टिकोण की प्रतिनिधि है, जो विभाजन नहीं, सहयोग में विश्वास रखती है। साइप्रस के समर्थन से भारत संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को और सशक्त बना सकता है।

आख़िरकार, भारत की विदेश नीति अब पारंपरिक “गुटनिरपेक्षता” से आगे बढ़कर “गुटनिर्माण” की दिशा में अग्रसर है जहाँ वह अपने हितों के अनुरूप नए सहयोग तंत्र गढ़ रहा है। साइप्रस के साथ बढ़ती निकटता इसी परिपक्व, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी भारतीय कूटनीति का उदाहरण है। जैसे-जैसे साइप्रस 2026 में यूरोपीय संघ की बागडोर संभालेगा, भारत की आवाज़ भी पश्चिमी मंचों पर और प्रभावशाली होती जाएगी। भूमध्य सागर से हिंद महासागर तक, भारत अब सिर्फ़ व्यापारिक साझेदार नहीं, बल्कि एक वैश्विक रणनीतिक शक्ति के रूप में उभर रहा है।

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