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देश में SIR से विपक्ष की टूटेगी कमर या BJP का होगा सूपड़ा साफ? जानिए किसे मिलेगा सबसे ज्यादा फायदा
देश के 12 राज्यों में शुरू हुई SIR प्रक्रिया से मतदाता सूची में बड़े बदलाव होंगे। जानिए इससे बीजेपी और विपक्ष को क्या फायदा या नुकसान होगा और आने वाले चुनावों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
SIR process in India: देश की चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए चुनाव आयोग ने एक बड़ा और महत्वाकांक्षी अभियान शुरू कर दिया है। बिहार में विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) का काम पूरा होने के बाद, अब देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मंगलवार (आज) से SIR प्रक्रिया का दूसरा चरण शुरू हो रहा है। चुनाव आयोग का कहना है कि इस सघन पुनरीक्षण का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची को पूरी तरह से शुद्ध करना है खासकर दोहराए गए नामों को हटाने और निधन हो चुके मतदाताओं के नाम को सूची से बाहर करना। इस चरण को 7 फरवरी 2026 तक पूरा करने की समय सीमा निर्धारित की गई है, जिसके बाद अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।
SIR वाले 12 राज्य: अगले 3 साल में 10 राज्यों में चुनाव
SIR के दूसरे चरण में जिन 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया है, उनमें छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश और पुडुचेरी राज्य शामिल हैं। इसके अलावा लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार दो केंद्र शासित प्रदेश हैं।
यह प्रक्रिया रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले तीन वर्षों में इनमें से 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं:
2026 की शुरुआत: पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी।
2027: गोवा, उत्तर प्रदेश और गुजरात।
2028: छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान।
असम को फिलहाल इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया है क्योंकि वहां सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में चल रही नागरिकता की जांच के कारण आयोग ने बाद में SIR कराने का फैसला लिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा है कि असम में मतदाता सूची के संशोधन का ऐलान अलग से होगा।
सियासी समीकरण: बीजेपी और विपक्ष दोनों की सरकारें निशाने पर
SIR के दूसरे चरण में जिन राज्यों को शामिल किया गया है, उनमें बीजेपी और विपक्षी दलों दोनों की सरकारें हैं। पश्चिम बंगाल (टीएमसी), केरल (लेफ्ट) और तमिलनाडु (डीएमके) में विपक्षी दलों की सरकारें हैं। जबकि गोवा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी की सरकारें हैं। इस तरह यह अभियान राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी राजनीतिक बहस का विषय बन गया है। इन 12 राज्यों में मतदाताओं की संख्या करीब 51 करोड़ है। अकेले उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 15.44 करोड़ मतदाता हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में 7.66 करोड़ और तमिलनाडु में 6.41 करोड़ मतदाता हैं।
SIR की आवश्यकता क्यों: घुसपैठ और विस्थापन की चुनौती
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि SIR प्रक्रिया की जरूरत क्यों है। इसके चार मुख्य कारण बताए गए हैं:
तेजी से विस्थापन (Urbanization): बदलते शहरीकरण के चलते लोगों का तेज़ी से पलायन हो रहा है।
दोहराव (Duplication): इसके चलते काफ़ी लोगों के मतदाता सूची में दो-दो जगह पर नाम दर्ज हैं।
मृतकों के नाम: मतदाता सूची से मतदाताओं के मृत होने के बाद भी नाम नहीं हटाए जाना।
घुसपैठ: देश के तमाम हिस्सों में गलत तरीके से घुसपैठ करके बड़ी संख्या में लोगों ने मतदाता सूची में नाम जुड़वा लिए हैं।
एसआईआर प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक मतदाता को एक यूनिक फ़ॉर्म दिया जाएगा, जिसमें संशोधन का विकल्प होगा। आयोग ने मतदाताओं से रंगीन फ़ोटो लगाने का सुझाव दिया है ताकि पहचान पत्र में चेहरा स्पष्ट उभरकर सामने आ सके।
विपक्ष हमलावर: 'वोट चोरी का नया तरीक़ा'
चुनाव आयोग के इस कदम को लेकर विपक्षी दलों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टियों ने इसे लोकतंत्र के ख़िलाफ़ साज़िश करार देते हुए कड़ा रुख अपनाया है। डीएमके ने 2 नवंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाने का ऐलान किया है और कहा है कि बिहार जैसी स्थिति तमिलनाडु में दोहराने नहीं देंगे। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने इसे 'वोट चोरी का नया तरीक़ा' बताया और कहा कि बिहार SIR के सवालों का जवाब अभी तक नहीं मिला है। उन्होंने आरोप लगाया कि एसआईआर अभियान अल्पसंख्यक, एससी/एसटी और महिलाओं को निशाना बना रहा है।
बीजेपी का बचाव: 'लोकतंत्र का पवित्र यज्ञ'
वहीं, बीजेपी ने SIR के फैसले का स्वागत किया है। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि जो लोग बूथ क़ब्ज़ा करके और फ़र्ज़ी वोट डलवाकर चुनाव जीतने का मंसूबा पाले थे, उनके सीने में दर्द होगा। उन्होंने इस प्रक्रिया को 'लोकतंत्र का पवित्र यज्ञ' बताया और कहा कि "अगर देश में कोई घुसपैठिया घुस आया है और हमारी मतदाता सूची तक घुस गया है, तो उसे बाहर होना चाहिए।" बीजेपी ने इस कदम के जरिए विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने का मौका भुना लिया है, जिससे मतदाता सूची के शुद्धिकरण को लेकर देश की राजनीति गरमा गई है।
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