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Axiom-4 Mission: शुभांशु शुक्ला के साथ अंतरिक्ष में गया है 'जल भालू', जाने क्या है ये और क्यूं खास है Axiom-4 मिशन
Axiom-4 Mission: लखनऊ के शुभांशु शुक्ला ने Axiom-4 मिशन के तहत SpaceX के Falcon-9 रॉकेट से इंटरनेशनल अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए रवाना हो गये हैं। आइये जाने क्यूं खास है ये मिशन
Axiom-4 Mission
Axiom-4 Mission: भारत के लिए आज बहुत गर्व का पल है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला और उनके साथ तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों ने Axiom-4 मिशन के तहत SpaceX के Falcon-9 रॉकेट से इंटरनेशनल अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए उड़ान भर दी है। SpaceX के Falcon-9 रॉकेट ने नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से दोपहर 12 बजकर 1 मिनट पर अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उड़ान भरी है। Axiom-4 मिशन नासा और SpaceX का संयुक्त मिशन है। वहीं अंतरिक्ष में ये Axiom-4 का चौथा प्राइवेट मिशन है। स्पेस में 28 घंटे की यात्रा के बाद अंतरिक्ष यात्रियों का भारतीय समयानुसार गुरूवार की शाम साढ़ो चार बजे इंटरनेशनल अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पहुंचने का अनुमान है।
एस्ट्रोनॉट कितने दिन रहेंगे स्पेस में?
इस स्पेश मिशन में भारत को मिलाकर कुल चार देशों अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के एस्ट्रोनॉट शामिल हैं। ये चारों एस्ट्रोनॉट 14 दिनों तक स्पेस में रहने वाले हैं। चारों एस्ट्रोनॉट्स ने ड्रैगन कैप्सूल में उड़ान भरी। ये ड्रैगन कैप्सूल इलॉन मस्क की कंपनी SpaceX द्वारा बनाया गया है। इस ड्रैगन कैप्सूल की लॉन्चिंग नासा के Falcon-9 रॉकेट के जरिए हुई है।
क्या है शुभांशु के मिशन का उद्देश्य
इस मिशन में शुभांशु स्पेस में वैज्ञानिक रिसर्च करेंगे। इस रिसर्च में माइक्रोग्रेविटी से संबंधित अलग-अलग रिसर्च शामिल हैं। मिशन के व्यवसायिक उद्देश्य की बात करें तो इस मिशन के जरिए भविष्य में स्पेस स्टेशन की स्थापना का प्लान बनाया जा रहा है। टेक्नोलॉजी टेस्टिंग के तहत स्पेस में नई तकनीकों का परीक्षण और विकास किया जाएगा। इस मिशन से विभिन्न देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को एक मंच मिलेगा। साथ ही इस मिशन का एक मकसद अंतरिक्ष के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाना भी है।
शुभांशु शुक्ला के साथ अंतरिक्ष में गया 'जल भालू' क्या है?
शुभांशु शुक्ला स्पेस में अपने साथ 'जल भालू' यानी टार्डिग्रेड्स ले गये हैं। ये एक प्रकार का बेहद सूक्ष्म जलीय जीव है जिसे चैंपियन सर्वाइवर के नाम से भी जाना जाता है। इसे ये नाम इसलिए मिला क्योंकि किसी भी परिस्थिती में जीवित रह सकता है। ये भीषण ठंड या खौलते पानी में भी जिंदा रहने में सक्षम है और इतना ही नहीं ये हजारों गुना ज्यादा रेडिएशन से भी बच सकता है।
टार्डिग्रेड के पास कुछ हफ्ते की ही एक्टिव लाइफ होती है। ये सुपर हाइबरनेशन में 100 साल तक जिंदा रह सकता है। इसकी खोज 1773 में जर्मनी के जोहान गोएज ने की थी और तब से अब तक टार्डिग्रेड की 1300 प्रजातियों की पहचान हो चुकी है।
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