अमेरिकी राष्ट्रपतियों और कैंसर. संघर्ष, विजय और चिकित्सा की सीमाएं

American Presidents and Cancer: अमेरिका के कई राष्ट्रपति ऐसे हैं जिन्हे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ा जहाँ कुछ ने इसपर से विजय प्राप्त कर ली वहीँ कुछ इससे जीत नहीं पाए।

Neel Mani Lal
Published on: 19 May 2025 5:44 PM IST
American Presidents and Cancer
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American Presidents and Cancer (Image Credit-Social Media)

American Presidents and Cancer: अमेरिकी इतिहास में कई राष्ट्रपतियों को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ा है — एक ऐसी बीमारी जो किसी को नहीं बख्शती, चाहे उनके पास देश की सबसे बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएं ही क्यों न हों। शुरुआती शल्यचिकित्साओं से लेकर आधुनिक उपचार पद्धतियों तक, इन नेताओं ने भिन्न-भिन्न परिणामों का अनुभव किया — कुछ ने कैंसर पर विजय पाई तो कुछ इसके आगे हार गए। उपलब्ध सर्वोत्तम चिकित्सा जांच और उपचार के बावजूद, कैंसर की जटिलता और अनिश्चित प्रकृति अक्सर अत्याधुनिक चिकित्सा को भी चुनौती देती है।

जो बाइडेन का मामला

16 मई 2025 को, अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति जो बाइडेन को आक्रामक प्रोस्टेट कैंसर होने की पुष्टि हुई। यह निदान उनके पद छोड़ने के चार महीने बाद, 20 जनवरी 2025 को हुआ। बाइडेन के मामले में कैंसर अब हड्डियों तक फैल चुका है, जिससे उपचार और पूर्वानुमान दोनों जटिल हो गए हैं। यह हालिया मामला अमेरिका के किसी पूर्व राष्ट्रपति में सामने आया सबसे प्रमुख कैंसर मामलों में से एक है।


यह घटना जिमी कार्टर के 2015–2016 में मेटास्टेटिक मेलानोमा से सफलतापूर्वक उबरने और रोनाल्ड रीगन की 1985 में कोलन कैंसर से स्वस्थ होने जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के समानांतर देखी जा रही है। जिमी कार्टर जहां इम्यूनोथेरेपी के माध्यम से कैंसर मुक्त हो गए थे, वहीं बाइडेन के मामले में मेटास्टेसिस (कैंसर का फैलना) के कारण भविष्य अधिक अनिश्चित प्रतीत हो रहा है। यह प्रकरण इस बात को रेखांकित करता है कि बेहतरीन चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद कैंसर का पता लगाना और उसका उपचार करना आज भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

जॉर्ज वॉशिंगटन


1794 में, अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन का एक त्वचा संबंधी बीमारी के इलाज के लिए उपचार किया गया, जिसे बाद में मेलानोमा (त्वचा का खतरनाक कैंसर) माना गया। डॉ. जेम्स टेट ने सर्जरी द्वारा संक्रमित त्वचा को हटा दिया, और ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि इसके बाद वॉशिंगटन को दोबारा कैंसर नहीं हुआ। यह दर्शाता है कि उस युग में भी स्थानीयकृत त्वचा रोगों का समय पर शल्यचिकित्सा से उपचार प्रभावी था, हालांकि चिकित्सा विज्ञान उस समय काफी सीमित था।

रोनाल्ड रीगन


पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को उनके कार्यकाल के दौरान और उसके बाद कई बार कैंसर का सामना करना पड़ा। जुलाई 1985 में, एक नियमित कोलोनोस्कोपी के दौरान उनके बड़ी आंत में एक कैंसरयुक्त पॉलिप पाया गया। बेथेस्डा नेवल मेडिकल सेंटर में सर्जरी द्वारा उस पॉलिप को हटा दिया गया, जो आंत की दीवार तक पहुंच चुका था लेकिन अन्य ऊतकों में नहीं फैला था। उनकी रिकवरी तेजी से हुई और उन्होंने जल्द ही राष्ट्रपति पद का कार्यभार फिर से संभाल लिया। 1987 में रीगन को नॉन-मेलानोमा स्किन कैंसर भी हुआ, जिसके लिए त्वचा से घावों को हटा दिया गया। इन दोनों मामलों में सफल उपचार हुआ और रीगन 2004 तक जीवित रहे। उनकी मृत्यु निमोनिया और अल्जाइमर से हुई, न कि कैंसर से।

जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश


अमेरिका के 41वें राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश को जीवन के उत्तरार्ध में नॉन-मेलानोमा स्किन कैंसर, विशेष रूप से बेसल सेल कार्सिनोमा हुआ। उनके चेहरे और सिर से कैंसरयुक्त घावों को हटा दिया गया, और यह उपचार सफल रहा। हालांकि, बाद के वर्षों में उन्हें नॉन-हॉजकिन लिम्फोमा (एक गंभीर रक्त कैंसर) भी हो गया। इलाज के बावजूद 2018 में उनकी मृत्यु हो गई, जिसमें लिम्फोमा ने उनके स्वास्थ्य की गिरावट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जिमी कार्टर


2015 में, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर को मेटास्टेटिक मेलानोमा का निदान हुआ, जो उनके लिवर और मस्तिष्क तक फैल चुका था। उन्होंने एमोरी यूनिवर्सिटी के विनशिप कैंसर इंस्टीट्यूट में इम्यूनोथेरेपी और रेडिएशन जैसी आधुनिक चिकित्सा ली। आश्चर्यजनक रूप से, उन्होंने इलाज पर शानदार प्रतिक्रिया दी और 2016 में उन्होंने घोषणा की कि वे कैंसर-मुक्त हैं। यह इम्यूनोथेरेपी की प्रगति का प्रमाण है। 100 वर्ष की आयु में, वे अभी भी जीवित हैं, जो उन्नत कैंसर से उबरने वाले दुर्लभ मामलों में से एक हैं।

बेहतर इलाज के बावजूद कैंसर क्यों बना रहता है एक चुनौती

राष्ट्रपतियों को श्रेष्ठ चिकित्सा सेवाएं और नियमित स्वास्थ्य जांच उपलब्ध होती हैं, फिर भी वे कैंसर की चपेट में क्यों आते हैं? इसके कई कारण हैं:

1. कैंसर कोई एक बीमारी नहीं है — यह रोगों का एक समूह है, जिनका व्यवहार अलग-अलग होता है। आक्रामक कैंसर, जैसे बाइडेन का प्रोस्टेट कैंसर या कार्टर का मेटास्टेटिक मेलानोमा, शरीर में इतनी तेजी से फैल सकते हैं कि नियमित जांचों से भी छिपे रह जाते हैं। बाइडेन के मामले में, कैंसर तब तक नहीं पकड़ा गया जब तक वह हड्डियों तक नहीं पहुंच गया था।

2. नियमित जांच भी पूर्ण सुरक्षा नहीं देती — कोलोनोस्कोपी या PSA टेस्ट जैसे परीक्षण शुरुआती चरण के कैंसर का पता लगा सकते हैं, लेकिन वे अचूक नहीं हैं। आक्रामक कैंसर अक्सर जांचों के बीच के समय में भी विकसित हो सकते हैं या अस्पष्ट लक्षणों के साथ प्रकट होते हैं, जैसे बाइडेन के मामले में मूत्र संबंधी समस्याएं, जिनसे प्रोस्टेट कैंसर की पहचान हुई।

3. आयु एक महत्वपूर्ण कारक है — अधिकतर राष्ट्रपतियों को वृद्धावस्था में कैंसर हुआ। बाइडेन (82 वर्ष), बुश (94 वर्ष में निधन) और कार्टर (90 वर्ष में निदान) — इन सभी को कैंसर तब हुआ जब शरीर की कोशिकाओं में म्यूटेशन की संभावना अधिक होती है और इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ता है।

4. उन्नत उपचारों के बावजूद, मेटास्टेटिक कैंसर चुनौतीपूर्ण हैं — जैसे बुश का लिम्फोमा और बाइडेन का मेटास्टेटिक प्रोस्टेट कैंसर। प्रोस्टेट कैंसर जैसे हार्मोन-संवेदनशील कैंसर में इलाज संभव है, लेकिन जब यह शरीर में फैल जाता है तो परिणाम अधिक जटिल हो जाते हैं।

5. राष्ट्रपति पद की मानसिक और शारीरिक थकान — यह भी एक कारक हो सकता है, हालांकि इसका सीधा संबंध कैंसर से सिद्ध नहीं है। बाइडेन के निदान के समय कई रिपोर्टों में उनके कार्यकाल के दौरान मानसिक और शारीरिक थकावट की बात की गई थी, लेकिन इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है कि इसका प्रभाव उनके कैंसर पर पड़ा।

निष्कर्ष

इन राष्ट्रपतियों के अनुभव यह दर्शाते हैं कि जहां एक ओर शल्यचिकित्सा (वॉशिंगटन, रीगन), इम्यूनोथेरेपी (कार्टर) और हार्मोन थेरेपी (बाइडेन) जैसी तकनीकों से जीवन प्रत्याशा बढ़ी है, वहीं कैंसर की पहचान और इलाज की सीमाएं अब भी बनी हुई हैं। बाइडेन के निदान के बाद डोनाल्ड ट्रंप, कमला हैरिस, बराक ओबामा समेत अन्य नेताओं ने उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की है। यह संघर्ष यह दर्शाता है कि कैंसर से लड़ाई में अत्याधुनिक चिकित्सा व्यवस्था होने पर भी मनुष्य की सीमाएं सामने आती हैं, और इस क्षेत्र में शोध और नवाचार की जरूरत बनी हुई है।

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