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Bharat Ka Khajana: भारत में कहां है रेयर अर्थ एलिमेंट का खजाना, चीन के पास इसका सबसे बड़ा भंडार कैसे

Bharat Ka Khajana History: रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) 17 खनिजों का एक समूह है, जो धरती की सतह पर कम मात्रा में मिलते हैं।

Akshita Pidiha
Published on: 15 July 2025 7:30 AM IST (Updated on: 15 July 2025 7:30 AM IST)
Bharat Ka Khajana History
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Bharat Ka Khajana History (Image Credit-Social Media)

Bharat Ka Khajana History: रेयर अर्थ एलिमेंट्स, यानी दुर्लभ पृथ्वी तत्व, आज की दुनिया में टेक्नोलॉजी और रक्षा क्षेत्र की रीढ़ हैं। स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक गाड़ियां, मिसाइल, ड्रोन और विंड टरबाइन तक, हर आधुनिक तकनीक में इनका इस्तेमाल होता है। ये 17 खनिजों का समूह है, जिनमें लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम जैसे नाम शामिल हैं। लेकिन सवाल ये है कि भारत में इनका खजाना कहां छिपा है और चीन ने कैसे इस क्षेत्र में दुनिया पर राज कर लिया?

रेयर अर्थ एलिमेंट्स क्या हैं

रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) 17 खनिजों का एक समूह है, जो धरती की सतह पर कम मात्रा में मिलते हैं। इनमें स्कैंडियम, यिट्रियम और 15 लैंथेनाइड तत्व शामिल हैं। ये तत्व इसलिए खास हैं, क्योंकि इनके बिना आधुनिक टेक्नोलॉजी और रक्षा उपकरण बनाना मुश्किल है।



स्मार्टफोन, लैपटॉप और टीवी स्क्रीन में इनका इस्तेमाल होता है।

इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी और मोटर में नियोडिमियम और डिस्प्रोसियम जैसे तत्व जरूरी हैं।

रक्षा क्षेत्र में, मिसाइल, रडार और फाइटर जेट्स में इनका उपयोग होता है।

मेडिकल उपकरण जैसे एमआरआई मशीन और कैंसर ट्रीटमेंट में भी ये तत्व काम आते हैं।

हालांकि ये तत्व "दुर्लभ" कहलाते हैं, लेकिन ये धरती पर कई जगह पाए जाते हैं। असल चुनौती इन्हें खनन करने और रिफाइन करने में है, क्योंकि ये प्रक्रिया महंगी, जटिल और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली है।

भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स का खजाना

भारत दुनिया में रेयर अर्थ एलिमेंट्स के भंडार के मामले में तीसरे या पांचवें नंबर पर है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस स्रोत को मानते हैं। यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (USGS) के मुताबिक, भारत के पास 6.9 मिलियन मीट्रिक टन रेयर अर्थ भंडार हैं, जबकि कुछ अन्य स्रोत 12.73 मिलियन टन मोनाजाइट (जिसमें REE पाए जाते हैं) का अनुमान लगाते हैं। ये भंडार मुख्य रूप से समुद्री तटों की रेत और कुछ इनलैंड इलाकों में मिलते हैं।

भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स के प्रमुख स्थान हैं:


आंध्र प्रदेश: यहां 3.78 मिलियन टन से ज्यादा मोनाजाइट भंडार हैं, खासकर श्रीकाकुलम और विशाखापत्तनम के तटीय इलाकों में। ये क्षेत्र रेयर अर्थ तत्वों का बड़ा स्रोत हैं।

केरल: चवारा और अलप्पुझा के समुद्री तटों पर मोनाजाइट रेत में लैंथेनम, सेरियम और नियोडिमियम जैसे तत्व प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।

ओडिशा: गंजम जिले के चाटरपुर में मोनाजाइट रेत के बड़े भंडार हैं, जो रेयर अर्थ का खजाना हैं।

तमिलनाडु: कन्याकुमारी और मनावलाकुरिची के तटीय क्षेत्रों में भी रेयर अर्थ तत्वों की अच्छी मात्रा है।

तेलंगाना: सिंगरेनी कोलियरीज की खदानों में स्कैंडियम और स्ट्रॉंटियम जैसे तत्व मिले हैं, जो कोयला खदानों के कचरे से निकाले जा सकते हैं।

भारत में ज्यादातर रेयर अर्थ एलिमेंट्स हल्के तत्व हैं, जैसे लैंथेनम, सेरियम और सैमरियम। लेकिन भारी तत्व जैसे डिस्प्रोसियम और टर्बियम की कमी है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों और हाई-टेक उपकरणों के लिए जरूरी हैं।

भारत में रेयर अर्थ उत्पादन की चुनौतियां

भारत के पास भंडार तो है, लेकिन इसका उत्पादन और रिफाइनिंग अभी बहुत सीमित है। 2024 में भारत ने सिर्फ 2900 टन रेयर अर्थ का उत्पादन किया, जबकि वैश्विक जरूरत का 1% ही पूरा कर पाया। इसके कई कारण हैं:

रिफाइनिंग की कमी: भारत में खनन तो होता है, लेकिन रिफाइनिंग की सुविधाएं बहुत कम हैं। ज्यादातर कच्चा माल चीन भेजा जाता है, जहां इसे रिफाइन किया जाता है।

पर्यावरणीय चिंताएं: रेयर अर्थ का खनन और रिफाइनिंग पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। रेडियोधर्मी कचरे और केमिकल उत्सर्जन की वजह से स्थानीय लोग विरोध करते हैं, जिससे कई प्रोजेक्ट रुके हुए हैं।

निजी कंपनियों की कम भागीदारी: भारत में रेयर अर्थ उद्योग में जोखिम और लागत ज्यादा होने की वजह से निजी कंपनियां कम रुचि दिखाती हैं।

टेक्नोलॉजी की कमी: रेयर अर्थ को रिफाइन करने के लिए उन्नत तकनीक चाहिए, जिसमें भारत अभी पीछे है। चीन ने इस क्षेत्र में दशकों से निवेश किया है, जबकि भारत अभी शुरुआती दौर में है।

नीतिगत बाधाएं: भारत में रेयर अर्थ तत्वों को परमाणु खनिज का दर्जा दिया गया है, जिसके कारण सख्त नियम और लाइसेंसिंग की जरूरत पड़ती है। इससे खनन प्रक्रिया जटिल हो जाती है।

चीन के पास सबसे बड़ा भंडार कैसे


चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा रेयर अर्थ भंडार है, जो लगभग 44 मिलियन मीट्रिक टन है। ये वैश्विक भंडार का 38-44% है। लेकिन चीन का दबदबा सिर्फ भंडार की वजह से नहीं है। उसने रणनीतिक रूप से इस क्षेत्र में एकाधिकार हासिल किया है।

चीन ने कैसे बनाया ये एकाधिकार, आइए समझते हैं:

शुरुआती निवेश: 1990 के दशक से चीन ने रेयर अर्थ को रणनीतिक संसाधन माना। उसने खनन, रिफाइनिंग और टेक्नोलॉजी में भारी निवेश किया। 1995 में चीन और अमेरिका का रेयर अर्थ उत्पादन बराबर था, लेकिन 2024 तक चीन का उत्पादन अमेरिका से छह गुना ज्यादा हो गया।

सस्ती लागत: चीन में सस्ती मजदूरी, ढीले पर्यावरण नियम और सस्ती बिजली उपलब्ध है, जिससे रिफाइनिंग जैसे ऊर्जा-गहन काम सस्ते में हो जाते हैं।

तकनीकी विशेषज्ञता: चीन के 39 विश्वविद्यालयों में रेयर अर्थ की प्रोसेसिंग पर पढ़ाई होती है, जबकि अमेरिका में एक भी ऐसा कोर्स नहीं है। इससे चीन को तकनीकी बढ़त मिली।

रणनीतिक नीतियां: चीन ने रेयर अर्थ को हथियार की तरह इस्तेमाल किया। 2010 में उसने जापान को निर्यात रोक दिया, जिससे दुनिया को उसकी ताकत का अंदाजा हुआ। 2025 में भी उसने रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, जिससे वैश्विक ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग प्रभावित हुए।

प्रोसेसिंग में दबदबा: चीन न सिर्फ 70% रेयर अर्थ का खनन करता है, बल्कि 90% रिफाइनिंग भी नियंत्रित करता है। इसका मतलब, भले ही कोई देश खनन कर ले, रिफाइनिंग के लिए उसे चीन पर निर्भर रहना पड़ता है।

भारत की स्थिति और आत्मनिर्भरता की कोशिश

भारत ने हाल के वर्षों में रेयर अर्थ के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम उठाए हैं। सरकार और निजी कंप Moscrop and Sons Limited क्षेत्र में सक्रियता बढ़ रही है। कुछ प्रमुख कदम हैं:

नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन: 2024 में शुरू हुआ ये मिशन 2031 तक 1200 जगहों पर सर्वे कर 30 प्रमुख खनिज भंडारों की पहचान करेगा। इसके तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन क्रिटिकल मिनरल्स भी बनाया जाएगा।

रेयर अर्थ मैग्नेट्स की घरेलू विनिर्माण योजना: मोदी सरकार ने 1000 करोड़ रुपये की योजना शुरू की है, जिसका लक्ष्य अगले 10-15 दिनों में 1500 टन रेयर अर्थ मैग्नेट्स का उत्पादन शुरू करना है।

कोयला खदानों से खनन: तेलंगाना की सिंगरेनी कोलियरीज ने कोयला खदानों के कचरे से स्कैंडियम और स्ट्रॉंटियम जैसे तत्व निकालने की शुरुआत की है। अगस्त 2025 से व्यावसायिक आपूर्ति शुरू होने की उम्मीद है।

क्वाड देशों के साथ सहयोग: भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर रेयर अर्थ की खोज और प्रोसेसिंग को बढ़ावा दे रहा है।

जापान के साथ समझौता रद्द: भारत ने जापान को रेयर अर्थ निर्यात पर 13 साल पुराना समझौता रद्द कर घरेलू जरूरतों को प्राथमिकता दी है।

वैश्विक परिदृश्य और भारत की रणनीति


दुनिया में रेयर अर्थ भंडार के मामले में चीन (44 मिलियन टन), ब्राजील (21 मिलियन टन), भारत (6.9 मिलियन टन), ऑस्ट्रेलिया और रूस प्रमुख हैं। लेकिन उत्पादन में चीन 2.7 लाख टन के साथ पहले नंबर पर है, जबकि भारत सिर्फ 2900 टन का उत्पादन करता है।

भारत की रणनीति अब बदल रही है। 2013 से 2023 तक भारत का रेयर अर्थ निर्यात 14 गुना बढ़कर 54 मिलियन डॉलर तक पहुंचा, लेकिन ये अभी भी चीन के 763 मिलियन डॉलर के मुकाबले बहुत कम है। भारत अब कजाकिस्तान जैसे देशों के साथ साझेदारी कर रहा है, जहां 15 रेयर अर्थ तत्वों के भंडार हैं।

चुनौतियां और भविष्य

भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है रिफाइनिंग तकनीक और पर्यावरणीय नियमों का संतुलन। स्थानीय विरोध और रेडियोधर्मी कचरे की समस्या ने कई प्रोजेक्ट्स को रोक रखा है। लेकिन सरकार की नई योजनाएं, जैसे गुजरात मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (GMDC) की पहल और नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन, भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अहम कदम हैं।रिफाइनिंग सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत है ताकि कच्चा माल विदेश न भेजना पड़े। निजी कंपनियों को प्रोत्साहन देकर इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाया जा सकता है। पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों का विकास जरूरी है ताकि स्थानीय विरोध कम हो। अंतरराष्ट्रीय साझेदारी, जैसे क्वाड और कजाकिस्तान के साथ, भारत की निर्भरता कम कर सकती है।

भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स का खजाना आंध्र प्रदेश, केरल, ओडिशा, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में फैला हुआ है। 6.9 मिलियन टन के भंडार के साथ भारत दुनिया में तीसरे या पांचवें नंबर पर है। लेकिन रिफाइनिंग की कमी, पर्यावरणीय चिंताएं और नीतिगत बाधाओं ने भारत को चीन पर निर्भर बना रखा है। दूसरी ओर, चीन ने सस्ती लागत, उन्नत तकनीक और रणनीतिक नीतियों के दम पर रेयर अर्थ के वैश्विक बाजार पर कब्जा कर लिया है। भारत अब नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन, क्वाड साझेदारी और नई खनन योजनाओं के जरिए इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। अगर ये प्रयास सही दिशा में चले, तो भारत न सिर्फ अपनी जरूरतें पूरी कर सकता है, बल्कि वैश्विक बाजार में भी बड़ा खिलाड़ी बन सकता है।

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