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Bhukamp Kyon Ata Hai: चांद पर भूकंप क्यों आता है, क्या धरती की तरह चाँद पर मचती है तबाही, आइए जानें
Bhukamp Kyon Ata Hai Chand Per: क्या आप जानते हैं कि जिस चांद को हम रात में देखकर कविताएं लिखते हैं, वहां भी भूकंप आते हैं? आइये इसके बारे में विस्तार से समझते हैं।
Earthquake Occur on the Moon (Image Credit-Social Media)
Earthquake Occur on the Moon: चांद, हमारा सबसे करीबी खगोलीय पड़ोसी, रात के आकाश में चमकता हुआ एक शांत और रहस्यमयी उपग्रह लगता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस चांद को हम रात में देखकर कविताएं लिखते हैं, वहां भी भूकंप आते हैं? जी हां, इन्हें मूनक्वेक्स कहते हैं। धरती पर भूकंप तो हम सुनते ही रहते हैं, लेकिन चांद पर भूकंप की बात सुनकर हैरानी होती है। नासा ने अपने अपोलो मिशनों के दौरान चांद पर भूकंप का पता लगाया था और तब से वैज्ञानिक इस रहस्य को समझने में जुटे हैं। तो चलिए, इस लेख में हम जानते हैं कि चांद पर भूकंप क्यों आते हैं, इनके पीछे की वजह क्या है और क्या ये भूकंप धरती की तरह तबाही मचाते हैं।
मूनक्वेक्स क्या है
सबसे पहले ये समझ लेते हैं कि मूनक्वेक्स आखिर है क्या। धरती पर भूकंप तब आता है जब टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में टकराती हैं या खिसकती हैं, जिससे ऊर्जा निकलती है और जमीन हिलने लगती है। लेकिन चांद पर तो कोई टेक्टोनिक प्लेट्स नहीं हैं। फिर भूकंप कैसे? मूनक्वेक्स चांद की सतह पर होने वाली कंपन की घटनाएं हैं, जो कई अलग-अलग कारणों से होती हैं। नासा ने 1969 से 1977 के बीच अपने अपोलो मिशनों के दौरान चांद पर सीस्मोमीटर लगाए थे, जिन्होंने इन मूनक्वेक्स को रिकॉर्ड किया। ये सीस्मोमीटर इतने संवेदनशील थे कि चांद की सतह पर होने वाली छोटी-छोटी कंपन को भी पकड़ लेते थे। मूनक्वेक्स धरती के भूकंप से अलग होते हैं, क्योंकि चांद का ढांचा और बनावट धरती से बहुत अलग है। चांद की सतह ज्यादातर बेसाल्टिक चट्टानों और रेगोलिथ (मिट्टी जैसी परत) से बनी है, जो इसे भूकंप के लिए अनोखा बनाती है। मूनक्वेक्स की तीव्रता धरती के भूकंप की तुलना में कम होती है, लेकिन ये लंबे समय तक चल सकते हैं।
चांद पर भूकंप की वजह
चांद पर भूकंप आने की कई वजहें हैं और ये धरती के भूकंप की वजहों से काफी अलग हैं। नासा और वैज्ञानिकों ने चार मुख्य कारण बताए हैं, जो मूनक्वेक्स को जन्म देते हैं। चलिए इन्हें एक-एक करके समझते हैं:
गहरे मूनक्वेक्स (Deep Moonquakes): ये चांद के अंदर, लगभग 700 से 1200 किलोमीटर की गहराई में होते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण चांद की सतह पर होने वाले तनाव से पैदा होते हैं। जब चांद पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है, तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण चांद की सतह को खींचता और दबाता है, जिससे कंपन पैदा होता है। ये मूनक्वेक्स छोटे होते हैं, लेकिन बार-बार आते हैं।
थर्मल मूनक्वेक्स (Thermal Moonquakes): चांद पर दिन और रात का तापमान बहुत अलग होता है। दिन में तापमान 121 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि रात में -133 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इस तापमान के अंतर से चांद की सतह सिकुड़ती और फैलती है, जिससे छोटे-छोटे कंपन पैदा होते हैं। ये थर्मल मूनक्वेक्स ज्यादातर चांद की सतह पर ही होते हैं।
उल्कापिंड प्रभाव (Meteorite Impacts): चांद का कोई वातावरण नहीं है, इसलिए उल्कापिंड सीधे इसकी सतह से टकराते हैं। ये टक्कर इतनी तेज होती है कि चांद की सतह पर कंपन पैदा होता है, जिसे मूनक्वेक्स कहते हैं। अपोलो मिशनों के दौरान कई ऐसे मूनक्वेक्स रिकॉर्ड किए गए, जो उल्कापिंडों की टक्कर से हुए थे।
उथले मूनक्वेक्स (Shallow Moonquakes): ये सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली मूनक्वेक्स होते हैं, जो चांद की सतह से 20-30 किलोमीटर की गहराई में होते हैं। इनकी तीव्रता धरती के भूकंप के बराबर हो सकती है, यानी रिक्टर स्केल पर 5 तक। वैज्ञानिक अभी तक इनके सटीक कारण का पता नहीं लगा पाए हैं, लेकिन कुछ का मानना है कि ये चांद के सिकुड़ने से जुड़े हो सकते हैं।
चांद पर भूकंप कितने शक्तिशाली होते हैं
धरती पर भूकंप की तीव्रता को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है और चांद पर भी यही तरीका अपनाया जाता है। लेकिन मूनक्वेक्स की प्रकृति धरती के भूकंप से अलग है। चांद का वातावरण न के बराबर है और इसकी सतह ज्यादा ठोस और कम लचीली है। इसलिए मूनक्वेक्स के कंपन धरती की तुलना में ज्यादा देर तक रहते हैं। गहरे मूनक्वेक्स की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 2 से कम होती है, लेकिन ये बार-बार आते हैं और चांद के अंदर गहरे होते हैं। थर्मल मूनक्वेक्स बहुत छोटे होते हैं और इनकी तीव्रता 1 से भी कम होती है। ये सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ज्यादा होते हैं। उल्कापिंड प्रभाव से होने वाले मूनक्वेक्स की तीव्रता 1 से 3 के बीच हो सकती है, लेकिन ये इस बात पर निर्भर करता है कि उल्कापिंड कितना बड़ा था। उथले मूनक्वेक्स सबसे शक्तिशाली होते हैं और इनकी तीव्रता 5 तक हो सकती है। ये धरती के मध्यम भूकंप के बराबर हैं।
चांद पर भूकंप से कितनी तबाही
धरती पर भूकंप इमारतों को गिरा सकता है, सड़कों को तोड़ सकता है और भारी नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन चांद पर तबाही का सवाल थोड़ा अलग है, क्योंकि वहां न तो इमारतें हैं, न लोग और न ही कोई पानी जो सुनामी पैदा करे। फिर भी, मूनक्वेक्स के प्रभाव को समझना जरूरी है, खासकर अगर भविष्य में चांद पर मानव बस्तियां बसाई जाएं। चांद की सतह पर मूनक्वेक्स से गड्ढे बन सकते हैं या सतह में दरारें पड़ सकती हैं। ये दरारें चांद की सतह को और भी जटिल बनाती हैं। उल्कापिंड प्रभाव से होने वाले मूनक्वेक्स चांद की सतह पर नए क्रेटर बना सकते हैं, जो पहले से ही क्रेटरों से भरी है। थर्मल मूनक्वेक्स छोटे होते हैं, लेकिन बार-बार होने से चांद की सतह पर छोटी-छोटी दरारें बन सकती हैं, जो समय के साथ बढ़ सकती हैं। उथले मूनक्वेक्स सबसे ज्यादा चिंता का विषय हैं, क्योंकि इनके झटके चांद की सतह को हिला सकते हैं। अगर भविष्य में चांद पर बस्तियां हों, तो ये बस्तियों के लिए खतरा बन सकते हैं।
नासा के अनुसार, मूनक्वेक्स धरती की तरह व्यापक तबाही नहीं मचाते, क्योंकि चांद पर कोई आबादी या ढांचा नहीं है। लेकिन अगर हम चांद पर बस्तियां बसाने की बात करें, तो इन मूनक्वेक्स को गंभीरता से लेना होगा। उदाहरण के लिए, अपोलो 17 के लूनर मॉड्यूल की वजह से कुछ मूनक्वेक्स हुए थे, क्योंकि धातु का मॉड्यूल तापमान के बदलाव से चटकता था। इससे वैज्ञानिकों को समझ आया कि चांद पर बनने वाली संरचनाओं को तापमान और कंपन के लिए तैयार करना होगा।
नासा की खोज और अपोलो मिशन
नासा ने अपने अपोलो मिशनों (1969-1977) के दौरान चांद पर सीस्मोमीटर लगाए थे, जो मूनक्वेक्स को रिकॉर्ड करने में कामयाब रहे। ये सीस्मोमीटर इतने संवेदनशील थे कि एक छोटे से उल्कापिंड की टक्कर को भी पकड़ लेते थे। अपोलो 11, 12, 14, 15, 16 और 17 मिशनों में चांद पर सीस्मोमीटर लगाए गए थे। इन सीस्मोमीटर्स ने हजारों मूनक्वेक्स रिकॉर्ड किए, जिनमें से ज्यादातर गहरे मूनक्वेक्स थे। अपोलो 17 ने एक लूनर मॉड्यूल छोड़ा था, जिसके कारण थर्मल मूनक्वेक्स रिकॉर्ड हुए। ये मॉड्यूल तापमान के बदलाव से चटकता था, जिससे कंपन पैदा होता था। नासा के वैज्ञानिकों ने पाया कि चांद की सतह धरती की तुलना में ज्यादा ठोस है, जिसके कारण मूनक्वेक्स के कंपन लंबे समय तक रहते हैं।
चांद का सिकुड़ना और मूनक्वेक्स
नासा की एक दिलचस्प खोज ये थी कि चांद धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है, जैसे एक अंगूर सूखकर किशमिश बन जाता है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि चांद का आंतरिक हिस्सा ठंडा हो रहा है। इस सिकुड़न से चांद की सतह पर दरारें और फॉल्ट्स बन रहे हैं, जो उथले मूनक्वेक्स का कारण बनते हैं। चांद की सतह पर बनी ये दरारें लावा के बहने का रास्ता देती हैं, जिससे चांद की सतह और जटिल हो जाती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद की सतह में यूरेनियम, थोरियम और पोटेशियम जैसे रेडियोधर्मी तत्व भी हैं, जो गर्मी पैदा करते हैं और सतह को सिकुड़ने में मदद करते हैं। ये सिकुड़न भविष्य में चांद पर बस्तियां बसाने के लिए चुनौती बन सकती है।
भविष्य में मूनक्वेक्स का महत्व
चांद पर भूकंप का अध्ययन सिर्फ वैज्ञानिक जिज्ञासा नहीं है, बल्कि ये भविष्य के मिशनों के लिए भी जरूरी है। नासा का आर्टेमिस प्रोग्राम, भारत का चंद्रयान और चीन के मून मिशन चांद पर मानव बस्तियां बसाने की योजना बना रहे हैं। ऐसे में मूनक्वेक्स को समझना और इनसे निपटने की तैयारी करना जरूरी है। अगर चांद पर बस्तियां बसाई जाएंगी, तो इमारतों को मूनक्वेक्स और तापमान के बदलाव के लिए तैयार करना होगा। उथले मूनक्वेक्स सबसे ज्यादा खतरा पैदा कर सकते हैं, क्योंकि इनकी तीव्रता ज्यादा होती है। चांद पर कोई वातावरण न होने की वजह से उल्कापिंडों का खतरा भी ज्यादा है, जो मूनक्वेक्स को बढ़ा सकता है।
चांद पर भूकंप, यानी मूनक्वेक्स, एक अनोखा और रोचक विषय है। ये धरती के भूकंप से अलग हैं, क्योंकि चांद पर न तो टेक्टोनिक प्लेट्स हैं और न ही कोई वातावरण। मूनक्वेक्स की वजहें हैं - पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण, तापमान का अंतर, उल्कापिंडों की टक्कर और चांद का सिकुड़ना। नासा के अपोलो मिशनों ने इन मूनक्वेक्स को समझने में बड़ी भूमिका निभाई है। हालांकि, चांद पर कोई आबादी नहीं है, इसलिए मूनक्वेक्स से अभी कोई तबाही नहीं होती। लेकिन भविष्य में, जब हम चांद पर बस्तियां बसाएंगे, तो इन मूनक्वेक्स को ध्यान में रखना होगा। चांद की सतह पर होने वाली हर छोटी-बड़ी हलचल हमें इसके रहस्यों को समझने में मदद करती है और ये हमें अपने पड़ोसी उपग्रह के और करीब लाती है।
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