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Bhukamp Kyon Ata Hai: धरती क्यों कांपती है, टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल कैसे बदल रही पृथ्वी का नक्शा?

Earthquake Kyon Ata Hai: यह लेख टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल को रोचक वैज्ञानिक अंदाज़ में उजागर करता है, जो भूकंप, ज्वालामुखी और पर्वत निर्माण जैसी घटनाओं का कारण बनती है।

Shivani Jawanjal
Published on: 20 July 2025 9:10 AM IST (Updated on: 20 July 2025 9:11 AM IST)
Earthquake Kyon Ata Hai
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Earthquake Kyon Ata Hai

Earthquake Kyon Ata Hai: जब हम पृथ्वी को देखते हैं तो वह एक शांत, स्थिर और मजबूत ग्रह की तरह प्रतीत होती है। लेकिन इस स्थिरता के नीचे एक जीवंत और शक्तिशाली ताकत हर पल सक्रिय है जिसे प्लेट टेक्टोनिक्स कहा जाता है। यह प्रणाली पृथ्वी की आंतरिक संरचना की धड़कन है जो महाद्वीपों को खिसकाती है, समुद्रों को आकार देती है, पर्वतों को खड़ा करती है और भूकंप व ज्वालामुखियों जैसी विनाशकारी घटनाओं का कारण बनती है। वास्तव में प्लेट टेक्टोनिक्स वह अदृश्य शक्ति है जो हमारी पृथ्वी को लगातार रूपांतरित कर रही है। इसे समझना मानो पृथ्वी की नब्ज़ को छू लेने जैसा है वह रहस्य जो हमारे ग्रह के अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ता है।

प्लेट टेक्टोनिक्स क्या है?


पृथ्वी की ऊपरी सतह वास्तव में एक कठोर खोल नहीं है, बल्कि यह कई टुकड़ों जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है, से बनी होती है। ये टेक्टोनिक प्लेट्स पृथ्वी की स्थलमंडल परत का हिस्सा होती हैं, जिसमें बाहरी ठोस क्रस्ट और ऊपरी मेंटल का कुछ भाग शामिल होता है। ये कठोर प्लेट्स एक लचीली, आंशिक रूप से पिघली हुई परत जिसे एस्थेनोस्फीयर कहा जाता है के ऊपर स्थित होती हैं,और इसी पर ये धीरे-धीरे खिसकती रहती हैं जैसे किसी तरल सतह पर कोई वस्तु तैर रही हो। यही लचीलापन प्लेट्स को गति करने की क्षमता देता है। ये प्लेट्स कभी एक-दूसरे से दूर जाती हैं, कभी एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं और कभी एक प्लेट दूसरी के नीचे धंस जाती है जिसे सबडक्शन कहते हैं। इन्हीं गतियों की वजह से पृथ्वी की सतह पर समय-समय पर भूकंप, ज्वालामुखी, पर्वत निर्माण और महाद्वीपों की स्थिति में बदलाव जैसी घटनाएँ घटती हैं। यह गतिशीलता ही प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत का मूल है जो बताता है कि पृथ्वी की सतह स्थिर नहीं बल्कि एक जीवंत और बदलती हुई संरचना है।

प्लेट्स की संख्या और उनके प्रकार


वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की सतह पर 7 मुख्य टेक्टोनिक प्लेट्स और दर्जनों छोटी प्लेट्स मौजूद हैं। मुख्य प्लेट्स में शामिल हैं:

• यूरेशियन प्लेट

• इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट

• नॉर्थ अमेरिकन प्लेट

• साउथ अमेरिकन प्लेट

• अफ्रीकन प्लेट

• पैसिफिक प्लेट

• एंटार्कटिक प्लेट

इन प्लेटों की सीमाएं (boundaries) भूकंपीय और ज्वालामुखीय गतिविधियों के लिए अत्यंत संवेदनशील होती हैं।

प्लेट्स कैसे हिलती हैं?


टेक्टोनिक प्लेट्स की गति के पीछे मुख्य कारण पृथ्वी के मेंटल में उठने वाले कन्वेक्शन करंट्स होते हैं। पृथ्वी के अंदर मौजूद अत्यधिक ताप से उत्पन्न यह करंट्स गर्म पदार्थ को ऊपर और ठंडे पदार्थ को नीचे की ओर ले जाते हैं जिससे स्थलमंडल की कठोर प्लेट्स पर दबाव बनता है और वे धीरे-धीरे खिसकती हैं। हालांकि यह एकमात्र कारण नहीं है। प्लेट्स की गति को और भी प्रक्रियाएँ प्रभावित करती हैं। जैसे रिज पुश, जिसमें मिड-ओशैनिक रिड्ज़ से नई परतें बनने पर प्लेट्स एक-दूसरे से दूर धकेली जाती हैं, स्लैब पुल जिसमें भारी और ठंडी प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे खिंचती चली जाती है और ट्रेंच सक्शन जिसमें सबडक्शन जोन में नीचे जाती प्लेट आस-पास की प्लेटों को भी अपनी ओर खींचती है। इन सभी ताकतों के समन्वय से पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स निरंतर गति करती रहती हैं जो हमारी धरती की सतह को लगातार रूपांतरित करती है।

टेक्टोनिक प्लेट बॉर्डर के प्रकार


प्लेट टेक्टोनिक्स के अंतर्गत पृथ्वी की सतह पर स्थित प्लेट्स विभिन्न दिशाओं में गति करती हैं और उनके संपर्क बिंदु को प्लेट बॉर्डर कहा जाता है। इन बॉर्डरों पर विभिन्न भूगर्भीय घटनाएँ होती हैं जो धरती की भौगोलिक बनावट को प्रभावित करती हैं। मुख्य रूप से तीन प्रकार के टेक्टोनिक बॉर्डर होते हैं:

डायवर्जेंट बॉर्डर (Divergent Boundaries) - जब दो टेक्टोनिक प्लेट्स एक-दूसरे से दूर होती हैं तो उस स्थान को डायवर्जेंट बॉर्डर कहा जाता है। यहाँ नई सतह का निर्माण होता है विशेष रूप से महासागरों में। मिड-अटलांटिक रिज इसका प्रमुख उदाहरण है जहाँ अटलांटिक महासागर के बीच में लगातार नई समुद्री सतह बन रही है।

कन्वर्जेंट बॉर्डर (Convergent Boundaries) - जब दो प्लेट्स आपस में टकराती हैं और एक प्लेट दूसरी के नीचे धंसती है (इस प्रक्रिया को सबडक्शन कहते हैं), तब कन्वर्जेंट बॉर्डर बनता है। इस प्रक्रिया से पर्वतों का निर्माण भी होता है। हिमालय पर्वत श्रृंखला इसका जीवंत उदाहरण है, जो भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव से बनी है।

ट्रांसफॉर्म बॉर्डर (Transform Boundaries) - जब दो प्लेट्स एक-दूसरे के समानांतर दिशा में खिसकती हैं तो उस स्थान को ट्रांसफॉर्म बॉर्डर कहा जाता है। ये सीमाएँ भूकंपों के लिए अधिक संवेदनशील होती हैं। सैन एंड्रियास फॉल्ट (कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका) एक प्रसिद्ध ट्रांसफॉर्म फॉल्ट है जो इस प्रकार की प्लेट गतिशीलता का उदाहरण है।

प्लेट टेक्टोनिक्स का इतिहास

टेक्टोनिक प्लेट सिद्धांत की नींव रखने वाले शुरुआती विचारों में से एक था महाद्वीपीय बहाव सिद्धांत, जिसे जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में प्रस्तुत किया था। वेगनर का मानना था कि आज के महाद्वीप कभी एक साथ जुड़कर पैंजिया नामक एक विशाल महाद्वीप का हिस्सा थे, जो समय के साथ धीरे-धीरे अलग होकर आज की स्थिति में पहुँच गए। हालांकि उनका विचार क्रांतिकारी था लेकिन वे इस बात को स्पष्ट रूप से नहीं बता पाए कि ये महाद्वीप किन बलों से और कैसे खिसकते हैं। इसी कारण उस समय के वैज्ञानिक समुदाय ने उनके सिद्धांत को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया। लेकिन बाद में 1960 के दशक में जब प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत सामने आया और भूगर्भीय प्रक्रियाओं को समझने के लिए साक्ष्य मिलने लगे, तो वेगनर के विचारों को वैज्ञानिक आधार और मान्यता प्राप्त हुई।

प्लेट टेक्टोनिक्स और भूगर्भीय घटनाएँ


टेक्टोनिक प्लेट्स की गति न केवल पृथ्वी की सतह को बदलती है बल्कि इससे जुड़ी कई महत्वपूर्ण और शक्तिशाली भूगर्भीय घटनाएँ भी जन्म लेती हैं। जब प्लेट्स आपस में टकराती, अलग होती या एक-दूसरे के पास से खिसकती हैं तो इन सीमाओं पर अत्यधिक तनाव जमा हो जाता है। जैसे ही यह तनाव अचानक मुक्त होता है ऊर्जा भूकंपीय तरंगों के रूप में बाहर निकलती है जिससे भूकंप आता है और यही कारण है कि अधिकांश भूकंप प्लेट सीमाओं के आसपास ही दर्ज किए जाते हैं। इसी प्रकार ज्वालामुखी भी प्लेट गतियों से जुड़े होते हैं। कन्वर्जेंट सीमाओं पर एक प्लेट दूसरी के नीचे धंसती है (सबडक्शन) जिससे मेंटल का भाग पिघल जाता है और लावा ऊपर की ओर आता है। वहीं डायवर्जेंट सीमाओं पर जहाँ प्लेट्स दूर जा रही होती हैं वहाँ भी लावा ऊपर उठकर नया क्रस्ट बनाता है। ये दोनों परिस्थितियाँ ज्वालामुखीय गतिविधि को जन्म देती हैं। इसके अलावा जब दो महाद्वीपीय प्लेट्स आमने-सामने टकराती हैं तो पृथ्वी की सतह ऊपर उठती है और पर्वत श्रृंखलाएँ बनती हैं। हिमालय पर्वत इसी प्रक्रिया का उत्कृष्ट उदाहरण है जो भारतीय और यूरेशियन प्लेट्स के टकराव से निर्मित हुआ।

हिमालय - प्लेट टेक्टोनिक्स की जीवंत मिसाल

हिमालय पर्वतमाला का निर्माण भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स के टकराव का परिणाम है और यह टक्कर आज भी जारी है। इस निरंतर टकराव के कारण हिमालय हर साल धीरे-धीरे ऊपर उठता जा रहा है । वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी ऊँचाई हर वर्ष लगभग 1 सेंटीमीटर या उससे अधिक बढ़ जाती है। लेकिन यह भौगोलिक वृद्धि अपने साथ एक खतरा भी लाती है। प्लेट्स के बीच लगातार बनता दबाव समय-समय पर अचानक मुक्त होता है जिससे हिमालयी क्षेत्र में तीव्र और उथले भूकंप आते हैं। यही कारण है कि यह क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है।

प्लेट टेक्टोनिक्स और महाद्वीपों का भविष्य

हालाँकि पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स बेहद धीमी गति से औसतन 2 से 5 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष खिसकती हैं लेकिन यह धीमी प्रक्रिया समय के साथ पृथ्वी की सतह को पूरी तरह बदल सकती है। कुछ प्लेटें जहाँ 1 सेंटीमीटर से भी कम गति से चलती हैं वहीं कुछ 10 सेंटीमीटर प्रति वर्ष तक भी गति कर सकती हैं। इस धीमी लेकिन निरंतर गतिशीलता के चलते महाद्वीपों की स्थिति लाखों वर्षों में पूरी तरह बदल जाती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी प्रक्रिया के कारण भविष्य में एक बार फिर सभी महाद्वीप एकजुट होकर 'पैंजिया प्रोएक्सिमा' नामक नया सुपरकॉन्टिनेंट बना सकते हैं। यह अनुमान वैज्ञानिक शोध और भूगर्भीय डेटा पर आधारित है और इसे वैज्ञानिक समुदाय द्वारा एक संभावित भविष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है।

प्लेट टेक्टोनिक्स का महत्व

प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत केवल पृथ्वी की आंतरिक गतिविधियों को ही नहीं समझाता बल्कि यह हमारे ग्रह की सतह पर होने वाली अनेक घटनाओं की वैज्ञानिक व्याख्या भी प्रस्तुत करता है। इसी सिद्धांत के माध्यम से हम महाद्वीपों की वर्तमान स्थिति, पर्वतों का निर्माण, महासागरीय गर्त, ज्वालामुखी विस्फोट और भूकंप जैसी घटनाओं को गहराई से समझ पाते हैं। इसके अलावा यह सिद्धांत प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान में भी अत्यंत सहायक है। प्लेट सीमाओं की पहचान से यह पता लगाया जा सकता है कि किन क्षेत्रों में भूकंप या ज्वालामुखी की संभावना अधिक है जिससे समय रहते सतर्कता और आपदा प्रबंधन संभव हो पाता है। साथ ही खनिज, पेट्रोलियम और गैस जैसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों की खोज में भी प्लेट टेक्टोनिक्स की जानकारी बेहद उपयोगी होती है क्योंकि इन संसाधनों का निर्माण और संचय अक्सर उन्हीं भूगर्भीय क्षेत्रों में होता है जहाँ प्लेट गतियाँ सक्रिय होती हैं।

प्लेट टेक्टोनिक्स और जीवन की उत्पत्ति

प्लेट टेक्टोनिक्स न केवल पृथ्वी की सतही गतिविधियों को संचालित करता है बल्कि वैज्ञानिकों के अनुसार, यह जीवन की उत्पत्ति में भी अहम भूमिका निभा सकता है। एक प्रमुख सिद्धांत हाइड्रोथर्मल वेंट थ्योरी यह सुझाव देता है कि पृथ्वी के शुरुआती समय में समुद्र की गहराई में मौजूद हाइड्रोथर्मल वेंट्स और ज्वालामुखी गतिविधियाँ जीवन के आरंभ का आधार बनीं। इन वेंट्स से निकलने वाली अत्यधिक गर्मी, खनिज और रासायनिक तत्व जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड और मीथेन ने जटिल कार्बनिक यौगिकों के निर्माण की संभावनाएँ बढ़ा दीं, जो जीवन के विकास के लिए आवश्यक माने जाते हैं। चूंकि इन क्षेत्रों में सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता लेकिन रसायन और ऊष्मा प्रचुर मात्रा में मौजूद होते हैं, वैज्ञानिक मानते हैं कि जीवन की पहली चिंगारी यहीं भड़की हो सकती है।

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