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छोटी सी बटन का इतिहास! जिसकी कहानी हज़ारों साल पुरानी है, सभ्यता की सिलवटों में छिपी एक मौन क्रांति
Button Ka Avishkar Kab Hua: क्या आप जानते हैं कि एक छोटा से बटन का आविष्कार किस सदी में हुआ था? जो आज लगभग कर परिधान का कितना महत्वपूर्ण हिस्सा है।
Button Invention History
Button Ka Avishkar Kab Hua: बटन — एक छोटा-सा यंत्र, जो आज लगभग हर परिधान का हिस्सा है। हम इसे रोज़ इस्तेमाल करते हैं, कभी शर्ट में, कभी जैकेट में, कभी जींस में — लेकिन शायद ही कभी इसके इतिहास या विकास के बारे में सोचते हैं।इस छोटे से आविष्कार ने न केवल फैशन की दिशा बदली, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक प्रतीकों को भी परिभाषित किया।
बटन का सबसे प्राचीन प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता (2000–2500 ईसा पूर्व) के कालखंड में मिलता है, जहाँ शंख और पत्थर से बने गोल बटन सजावटी उद्देश्यों से उपयोग में लाए गए।ये बटन कपड़े को जोड़ने के लिए नहीं, बल्कि सौंदर्य और प्रतीकात्मकता के लिए प्रयोग किए जाते थे।इसी तरह के प्रमाण हमें मिस्र की ममियों, चीन के रेशमी वस्त्रों, और रोमन सैन्य परिधानों में भी मिलते हैं।इससे स्पष्ट होता है कि बटन का आरंभिक स्वरूप केवल उपयोगिता से नहीं, सौंदर्यबोध और पहचान से जुड़ा था।
बटन की उपयोगिता
बटन को परिधान को बाँधने के रूप में 13वीं शताब्दी के यूरोप, विशेषतः जर्मनी और फ्रांस में इस्तेमाल किया जाने लगा।यहाँ से बटन और बटनहोल का युग आरंभ हुआ।अब बटन सिर्फ सजावट नहीं रहा, बल्कि फिटिंग, सुविधा और व्यावहारिकता का माध्यम बन गया।अमीरों के बटन सोने, चाँदी, रत्न और काँच से बने होते, जबकि आम जन अभी भी डोरी और गांठ पर ही निर्भर रहते।कई बार बटन इतने कीमती होते कि उन्हें वारिसी संपत्ति की तरह सहेजा जाता।
भारत में बटन की यात्रा
हालाँकि भारत में बटन की प्राचीन झलक सिंधु घाटी में मिलती है, परंतु व्यवस्थित उपयोग ब्रिटिश शासन के दौरान प्रारंभ हुआ।नेहरू जैकेट, अचकन, अंगरखा आदि में बटन को सौंदर्य और संरचना दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण माना गया।भारत में बटन का विकास सजावटी कलात्मकता के साथ जुड़ा रहा, जहाँ हाथ से कढ़े हुए या धातु जड़े बटन आम थे।
औद्योगिक क्रांति ने बटन निर्माण की दुनिया में क्रांति ला दी।मशीनी उत्पादन शुरू हुआ।बेकलाइट, रेज़िन, और बाद में प्लास्टिक जैसे पदार्थों से बटन बनने लगे।बटन अब सिर्फ राजा-रईसों तक सीमित नहीं रहा — वह हर आम आदमी के कपड़े का हिस्सा बन गया।
आधुनिक युग का बटन: विविधता, फैशन और तकनीक का मेल
आज बटन केवल उपयोग का साधन नहीं, बल्कि फैशन स्टेटमेंट, ब्रांडिंग टूल और कलात्मक अभिव्यक्ति बन चुका है।बच्चों की पोशाकों में कार्टून थीम बटन,डेनिम में मेटल टैक बटन,सूट-ब्लेज़र में ब्रांडेड लोगो बटन,पारंपरिक पोशाकों में हाथ से बने शिल्प बटन और आज के स्मार्ट फैशन में सेंसरयुक्त बटन भी शामिल हैं।
ज़िप और वेल्क्रो बनाम बटन
20वीं सदी में जैसे-जैसे जीवन तेज़ हुआ, वैसे-वैसे तेज़ी से पहनने-उतारने की सुविधाएं माँगी जाने लगीं। इसी क्रम में ज़िप और वेल्क्रो जैसे विकल्प सामने आए।ज़िप (Zipper): 1890 के दशक में विकसित, और 1913 के बाद लोकप्रिय हुआ। 1851 में अमेरिका के Elias Howe, जिन्होंने सिलाई मशीन का आविष्कार भी किया, ने ज़िप जैसी एक व्यवस्था का पेटेंट कराया, पर इसे कभी बाज़ार में नहीं उतारा। यह तेज़, सुरक्षित और सीधा समाधान है, विशेषकर जींस, जैकेट और बैग के लिए। 1913: Gideon Sundback ने आधुनिक ज़िप डिजाइन किया — एक ऐसी प्रणाली जिसमें दो इंटरलॉकिंग चेन और एक स्लाइडर होता है। 1893: Whitcomb Judson ने “Clasp Locker” नामक एक प्रणाली बनाई, जिसे आज ज़िप का प्रारंभिक रूप माना जाता है। 1923 में B.F. Goodrich Company ने अपने रबर बूट्स में Sundback के डिज़ाइन का उपयोग किया और उसे पहली बार “Zipper” नाम दिया।यहीं से ज़िप का नाम ध्वनि से जुड़ गया — ज़िप की आवाज़ = “Zip”!
वेल्क्रो (Velcro): 1940 के दशक में स्विस इंजीनियर जॉर्ज डे मेस्ट्राल द्वारा आविष्कृत — मुख्यतः बच्चों, दिव्यांगों और सैन्य उपयोग के लिए।
ज़िप के प्रकार:
1. Coil Zipper – प्लास्टिक या पॉलिएस्टर से बनी, मुलायम और लचीली
2. Invisible Zipper – पीछे से सिल जाती है, आमतौर पर ड्रेसेज़ में
3. Metal Zipper – जींस और लेदर जैकेट में, मजबूत
4. Plastic Molded Zipper – मोटी जैकेट्स और बैग्स में
5. Waterproof Zipper – ट्रैवल गियर्स में प्रयोग होती है
चिटपुचिया — यह शब्द आमतौर पर भारत के कई हिंदी भाषी क्षेत्रों में बच्चों, गृहणियों और स्थानीय लोगों द्वारा ज़िप को संबोधित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
इसका नाम इसकी विशिष्ट “चिट-चिट, पुट-पुट” जैसी आवाज़ से आया है, जब हम इसे खोलते या बंद करते हैं।यह एक ऐसा छोटा यंत्र है जिसने परिधान, जूते, बैग, तंबू, सैनिक वर्दी और यहाँ तक कि अंतरिक्ष सूट तक में क्रांति ला दी है।यह बटन का विकल्प नहीं, बल्कि उसकी पूरक सुविधा है — तेज़, कार्यकुशल और आधुनिक।
फिर भी, बटन का स्थान इन दोनों में से कोई नहीं ले सका, क्योंकि बटन क्लासिक सौंदर्य, हाथों की कला, और संस्कृति का स्पर्श लिए हुए होता है।ज़िप और वेल्क्रो सुविधा तो देते हैं, परंतु अभिव्यक्ति और चरित्र बटन ही लाता है।
पारंपरिक बटन शिल्प: कला, परंपरा और पहचान
भारत में बटन केवल उपयोगी वस्तु नहीं, बल्कि लोककलाओं और कारीगरी का हिस्सा रहा है। राजस्थानी मीनाकारी बटन – पारंपरिक पोशाकों में प्रयुक्त, रंगीन कांच व धातु पर की गई महीन नक्काशी।कश्मीर के कढ़ाईदार बटन – पश्मीना शॉलों पर हाथ से बनाए गए ऊन के बटन।बनारसी सिल्क बटन – बनारसी ज़री से बने, विवाह और उत्सव के वस्त्रों में।लकड़ी, बांस और नारियल के बटन – विशेषतः उत्तर-पूर्व और केरल में पर्यावरण अनुकूल फैशन का प्रतीक।अज्रक और कच्छ क्षेत्र के हस्तनिर्मित बटन – जिन्हें वस्त्रों पर उकेरा जाता है या परंपरागत रूप से पिरोया जाता है।
इन बटन में न केवल शिल्प की परंपरा जीवित है, बल्कि स्थानीय पहचान और संवेदनशीलता भी समाहित होती है।
बटन के पीछे की कहानियाँ
नेपोलियन ने अपने सैनिकों की वर्दी में बटन इस तरह लगवाए कि वे आस्तीन से नाक न पोंछें — ताकि अनुशासन बना रहे! अमेरिका में Button Museum जैसी संस्थाएँ हैं जहाँ हजारों बटन प्रदर्शन में हैं।विश्व बटन दिवस हर वर्ष 16 नवंबर को मनाया जाता है। Buttonologists यानी बटन संग्रहकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय समुदाय है।
एक बटन, अनेक कहानियाँ
बटन भले ही छोटा हो, लेकिन यह सभ्यता के सौंदर्य, आवश्यकता, प्रौद्योगिकी, और वर्ग-संकेतों की कहानी अपने भीतर समेटे हुए है।यह एक ऐसी वस्तु है जो राजा की पोशाक में भी थी, और आज सड़क किनारे की दुकान में भी है।
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