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Famous Murder Case: ओ.जे. सिम्पसन मर्डर केस क्या था, जिसमें शामिल था नस्लवाद?

Famous Murder Case OJ Simpson: मशहूर अमेरिकी फुटबॉल स्टार और एक्टर ओ.जे. सिम्पसन की पूर्व पत्नी निकोल और रोनाल्ड जो निकोल का दोस्त था और पेशे से एक वेटर और मॉडल था के डबल मर्डर ने अमेरिका को हिलाकर रख दिया था।

Akshita Pidiha
Published on: 30 Jun 2025 4:55 PM IST
O.J Simpson Murder Case
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O.J Simpson Murder Case (Image Credit-Social Media)

Famous Murder Case OJ Simpson: 12 जून, 1994 की रात, लॉस एंजिल्स के ब्रेंटवुड इलाके में एक डबल मर्डर हुआ, जिसने अमेरिका को हिलाकर रख दिया। मरने वाले थे निकोल ब्राउन सिम्पसन और रोनाल्ड गोल्डमैन। निकोल एक 35 साल की खूबसूरत महिला थीं, जो मशहूर अमेरिकी फुटबॉल स्टार और एक्टर ओ.जे. सिम्पसन की पूर्व पत्नी थीं। रोनाल्ड, 25 साल का एक वेटर और मॉडल, निकोल का दोस्त था। इस डबल मर्डर का इल्ज़ाम लगा ओ.जे. सिम्पसन पर, जो उस समय अमेरिका के सबसे बड़े सेलिब्रिटीज़ में से एक थे। यह केस सिर्फ एक हत्याकांड नहीं था, बल्कि इसमें नस्लवाद, सेलिब्रिटी कल्चर, पुलिस की नाकामी और मीडिया का तमाशा सब शामिल था। इसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा, और भारत जैसे देशों में भी लोग इसे टीवी और अखबारों में फॉलो करते थे। आइए, इस कहानी को शुरू से समझते हैं, ताकि यह सिर्फ एक क्राइम स्टोरी न रहे, बल्कि उस दौर की सच्चाई को भी उजागर करे।

ओ.जे. सिम्पसन: एक अमेरिकी हीरो

ऑरेंथल जेम्स सिम्पसन, जिन्हें दुनिया ओ.जे. के नाम से जानती थी, 1947 में सैन फ्रांसिस्को में एक गरीब परिवार में पैदा हुए। अपनी मेहनत और टैलेंट से उन्होंने अमेरिकी फुटबॉल में बड़ा नाम कमाया। 1968 में, उन्होंने कॉलेज फुटबॉल में हाइज़मैन ट्रॉफी जीती, जो इस खेल का सबसे बड़ा अवॉर्ड है। बाद में, वे नेशनल फुटबॉल लीग (NFL) में बफैलो बिल्स के लिए खेले और 1973 में 2000 यार्ड्स रशिंग करने वाले पहले खिलाड़ी बने। उनकी तेज़ी और स्टाइल ने उन्हें "द जूस" का निकनेम दिलाया।


फुटबॉल के बाद, ओ.जे. ने हॉलीवुड में भी कदम रखा। उन्होंने द नेकेड गन जैसी फिल्मों में काम किया और टीवी विज्ञापनों में नज़र आए। उनकी मुस्कान और चार्म ने उन्हें अमेरिका का चहेता बना दिया। लेकिन उनकी पर्सनल लाइफ उतनी चमकदार नहीं थी। 1985 में उनकी शादी निकोल ब्राउन से हुई, जिनसे उनके दो बच्चे, सिडनी और जस्टिन, थे। लेकिन यह रिश्ता घरेलू हिंसा और तनाव से भरा था। 1992 में दोनों का तलाक हो गया, और निकोल ने कई बार पुलिस को बताया कि ओ.जे. उन्हें मारते-पीटते थे।

हत्याकांड की रात

12 जून 1994 को, निकोल ब्राउन सिम्पसन अपने ब्रेंटवुड वाले घर के बाहर मृत पाई गईं। उनके साथ रोनाल्ड गोल्डमैन का शव भी था। दोनों की हत्या चाकू से की गई थी। निकोल का गला इतनी बेरहमी से काटा गया था कि सिर शरीर से लगभग अलग हो चुका था। रोनाल्ड के शरीर पर कई घाव थे, जो बताते थे कि उन्होंने हमलावर से लड़ने की कोशिश की थी। पुलिस को मौके पर खून से सने दस्ताने, एक टोपी और खून के निशान मिले।

पुलिस का पहला शक ओ.जे. सिम्पसन पर गया, क्योंकि निकोल की हत्या के पीछे घरेलू हिंसा का इतिहास एक बड़ा क्लू था। ओ.जे. उस रात लॉस एंजिल्स में थे, और हत्या के कुछ घंटे बाद उन्हें शिकागो जाने वाली फ्लाइट में देखा गया था। जब पुलिस ने उनके घर की तलाशी ली, तो वहाँ खून के धब्बे और एक खूनी मोज़ा मिला। उनके व्हाइट फोर्ड ब्रॉन्को गाड़ी में भी खून के निशान थे। इन सबूतों ने ओ.जे. को मुख्य संदिग्ध बना दिया।

द ब्रॉन्को चेज़: एक टीवी ड्रामा

17 जून 1994 को, ओ.जे. सिम्पसन को सरेंडर करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, वे अपने दोस्त अल काउलिंग्स की ड्राइव की हुई व्हाइट फोर्ड ब्रॉन्को में भाग निकले। यह पीछा लॉस एंजिल्स की हाईवे पर हुआ, और इसे लाइव टीवी पर दिखाया गया। करीब 95 मिलियन लोग इसे देख रहे थे, जो उस समय का रिकॉर्ड था। हेलिकॉप्टर से इस चेज़ को कवर किया गया, और लोग अपने टीवी स्क्रीन से चिपक गए। ओ.जे. के पास एक बंदूक थी, और वे आत्महत्या की धमकी दे रहे थे। आखिरकार, कई घंटों बाद, वे अपने घर पहुँचे और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।


यह चेज़ सिर्फ एक पुलिस ऑपरेशन नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक घटना बन गया। लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि उनका हीरो, जो कभी फुटबॉल फील्ड पर चमकता था, अब एक भगोड़ा बन गया है। इसने केस को और सनसनीखेज बना दिया, और दुनिया भर में लोग इसकी चर्चा करने लगे।

मुकदमा: सदी का ट्रायल

ओ.जे. सिम्पसन का मुकदमा 24 जनवरी 1995 को शुरू हुआ और 3 अक्टूबर 1995 तक चला। इसे लॉस एंजिल्स सुपीरियर कोर्ट में जज लांस इटो ने देखा। अभियोजन पक्ष का नेतृत्व मार्सिया क्लार्क और क्रिस्टोफर डार्डन ने किया, जबकि ओ.जे. की डिफेंस टीम में रॉबर्ट शापिरो, जॉनी कोचरन और एफ. ली बेली जैसे बड़े वकील थे, जिन्हें "ड्रीम टीम" कहा गया। यह मुकदमा लाइव टीवी पर दिखाया गया, और इसे रोज़ाना लाखों लोग देखते थे।

अभियोजन पक्ष का दावा था कि ओ.जे. ने जलन और गुस्से में निकोल और रोनाल्ड की हत्या की। उनके पास कई सबूत थे: खून के निशान, डीएनए, खूनी दस्ताने, और ओ.जे. का घरेलू हिंसा का इतिहास। लेकिन डिफेंस ने इन सबूतों को चुनौती दी। उन्होंने दावा किया कि पुलिस ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की और ओ.जे. को नस्लवादी मकसद से फँसाया गया। डिफेंस की सबसे मशहूर रणनीति थी "दस्ताने का ड्रामा"। कोर्ट में ओ.जे. को खूनी दस्ताने पहनने को कहा गया, लेकिन वे उनके हाथ में फिट नहीं हुए। जॉनी कोचरन ने इस मौके पर मशहूर लाइन कही: इफ इट डज़ नॉट फिट, यू मस्ट एक्विट (अगर दस्ताना फिट नहीं, तो बरी करना होगा)।

डिफेंस ने पुलिस के एक डिटेक्टिव, मार्क फुहरमैन, को भी निशाना बनाया। उन्होंने सबूत दिए कि फुहरमैन ने अतीत में नस्लवादी टिप्पणियाँ की थीं। इससे जूरी को शक हुआ कि पुलिस ने ओ.जे. को जानबूझकर टारगेट किया। यह केस न सिर्फ हत्या के बारे में था, बल्कि नस्लवाद, पुलिस की विश्वसनीयता और सेलिब्रिटी पावर पर भी बहस बन गया।

नस्लवाद का कोण

यह केस अमेरिका में नस्लीय तनाव का प्रतीक बन गया। ओ.जे. एक अश्वेत व्यक्ति थे, और निकोल व रोनाल्ड श्वेत थे। जूरी में 9 अश्वेत, 2 श्वेत और 1 हिस्पैनिक सदस्य थे। कई अश्वेत अमेरिकियों का मानना था कि ओ.जे. को पुलिस ने नस्लवादी कारणों से फँसाया, क्योंकि लॉस एंजिल्स पुलिस का अश्वेत समुदाय के खिलाफ अत्याचार का इतिहास था। 1992 के रॉडनी किंग दंगों ने इस तनाव को और बढ़ा दिया था। दूसरी ओर, कई श्वेत अमेरिकियों का मानना था कि ओ.जे. ने अपनी सेलिब्रिटी स्टेटस और पैसों के दम पर जूरी को प्रभावित किया।


इस नस्लीय विभाजन ने अमेरिका को दो हिस्सों में बाँट दिया। जब 3 अक्टूबर 1995 को फैसला आया कि ओ.जे. नॉट गिल्टी हैं, तो अश्वेत समुदाय ने इसे जीत के रूप में देखा, जबकि श्वेत समुदाय में गुस्सा और निराशा थी। यह फैसला न सिर्फ कानूनी था, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी एक टर्निंग पॉइंट बन गया।

फैसले का प्रभाव

ओ.जे. का बरी होना दुनिया भर में चर्चा का विषय बना। कई लोगों का मानना था कि डिफेंस ने जूरी को भावनात्मक रूप से प्रभावित किया, खासकर नस्लवाद के मुद्दे को उठाकर। दूसरी ओर, कुछ लोगों का कहना था कि अभियोजन पक्ष के पास मजबूत सबूत होने के बावजूद, पुलिस की गलतियों ने केस को कमजोर कर दिया।

1997 में, निकोल और रोनाल्ड के परिवारों ने ओ.जे. के खिलाफ सिविल केस दायर किया, जिसमें उन्हें हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। इस केस में ओ.जे. को 33.5 मिलियन डॉलर का हर्जाना देने का आदेश दिया गया, लेकिन उन्होंने इसका ज़्यादातर हिस्सा कभी नहीं चुकाया।

इस केस ने अमेरिकी समाज पर गहरा असर डाला। मीडिया कवरेज ने दिखाया कि सेलिब्रिटी केस को कैसे सनसनीखेज बनाया जा सकता है। टीवी चैनलों ने इसे एक रियलिटी शो की तरह दिखाया, जिसने न्यूज़ की परिभाषा बदल दी। यह केस रियलिटी टीवी और 24/7 न्यूज़ चैनलों के उदय का प्रतीक बना।

कानूनी तौर पर, इसने पुलिस की जाँच और सबूत इकट्ठा करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए। डीएनए सबूत, जो उस समय नई तकनीक थी, इस केस में अहम थी, लेकिन पुलिस की लापरवाही ने इसे विवादास्पद बना दिया। इसने भविष्य में फोरेंसिक साइंस के लिए नए स्टैंडर्ड सेट किए।

ओ.जे. की ज़िंदगी बाद में

बरी होने के बाद, ओ.जे. की ज़िंदगी पहले जैसी नहीं रही। उनकी पब्लिक इमेज एक हीरो से विलेन में बदल गई। 2007 में, लास वेगास में एक होटल में हथियारबंद डकैती के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया। 2008 में, उन्हें 33 साल की सजा सुनाई गई, लेकिन 2017 में वे पैरोल पर रिहा हो गए।

2016 में, द पीपल वर्सेज़ ओ.जे. सिम्पसन: अमेरिकन क्राइम स्टोरी नाम की टीवी सीरीज़ ने इस केस को फिर से सुर्खियों में लाया। 2016 में ही, ओ.जे.: मेड इन अमेरिका नाम की डॉक्यूमेंट्री ने ऑस्कर जीता। इन दोनों ने नई पीढ़ी को इस केस की जटिलताओं से रूबरू कराया।

भारत में इसकी चर्चा

भारत में 1990 के दशक में केबल टीवी का ज़माना शुरू हो रहा था। CNN और BBC जैसे चैनल इस मुकदमे को लाइव दिखाते थे और भारतीय दर्शक इसे उत्सुकता से देखते थे। अखबारों में भी इसकी खबरें छपती थीं। भारत में लोग इसे एक हॉलीवुड ड्रामे की तरह देखते थे, लेकिन यह नस्लवाद और न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाता था। कई भारतीयों को यह समझने में दिलचस्पी थी कि कैसे एक सेलिब्रिटी इतने गंभीर इल्ज़ामों से बच सकता है।

ओ.जे. सिम्पसन केस हमें कई सबक देता है। यह दिखाता है कि न्याय व्यवस्था कितनी जटिल हो सकती है, खासकर जब नस्ल, पैसा और प्रसिद्धि का मिश्रण हो। यह केस पुलिस सुधारों का कारण बना, खासकर डीएनए और फोरेंसिक सबूतों के इस्तेमाल में।

यह मीडिया की ताकत को भी उजागर करता है। इसने दिखाया कि कैसे न्यूज़ को एक तमाशा बनाया जा सकता है, और कैसे पब्लिक ओपिनियन को प्रभावित किया जाता है। आज के सोशल मीडिया के ज़माने में, यह केस हमें याद दिलाता है कि सच्चाई को तथ्यों के आधार पर देखना चाहिए, न कि भावनाओं या सनसनी के आधार पर।

इसके अलावा, यह नस्लीय तनाव पर भी रोशनी डालता है। अमेरिका में अश्वेत और श्वेत समुदायों के बीच की खाई इस केस में साफ दिखी। यह हमें सिखाता है कि सामाजिक एकता और विश्वास कितने जरूरी हैं, ताकि ऐसी घटनाएँ समाज को और न बाँटें।

ओ.जे. सिम्पसन मर्डर केस एक हत्याकांड से कहीं ज्यादा था। यह एक ऐसा दर्पण था, जिसने अमेरिकी समाज की खामियों को उजागर किया। नस्लवाद, सेलिब्रिटी पावर, पुलिस की नाकामी और मीडिया का तमाशा, यह सब इस केस में एक साथ आया। दुनिया भर में लोग इसे इसलिए याद रखते हैं, क्योंकि यह सिर्फ एक क्राइम स्टोरी नहीं थी, बल्कि इंसानी कमजोरियों और समाज की जटिलताओं की कहानी थी। भारत में भी, जहाँ लोग इसे दूर से देख रहे थे, यह एक सबक था कि न्याय की राह कितनी पेचीदा हो सकती है। ओ.जे. की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई को ढूँढने के लिए तथ्यों और तर्क की जरूरत होती है, न कि सिर्फ भावनाओं की।

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