History of hypnosis in hindi: प्राचीन काल में सम्मोहन कैसे किया जाता था – जानिए डरावने रहस्य

Hypnosis in Ancient Times:सम्मोहन का इतिहास अंधविश्वास, जिज्ञासा और विज्ञान का अनोखा मिश्रण है। पहले इसे जादू माना जाता था, आज यह मनोविज्ञान की प्रभावी चिकित्सा विधि बन चुका है।

Shivani Jawanjal
Published on: 15 Oct 2025 2:16 PM IST
History of hypnosis in hindi: प्राचीन काल में सम्मोहन कैसे किया जाता था – जानिए डरावने रहस्य
X

Pic Credit - Social Media

Evolution of Hypnosis:मानव मस्तिष्क जितना रहस्यमयी है, उतना ही दिलचस्प है उसे समझने का प्रयास भी। सम्मोहन या हिप्नोसिस (Hypnosis) ऐसी अवस्था होती है जब व्यक्ति का मन बाहरी दुनिया से थोड़ा दूर होकर भीतर की गहराई में उतर जाता है। इस अवस्था में चेतन (Conscious) और अवचेतन (Subconscious) मन के बीच का संतुलन बदल जाता है, जिससे व्यक्ति अधिक संवेदनशील और ग्रहणशील हो जाता है। आज सम्मोहन का इस्तेमाल मनोचिकित्सा, तनाव कम करने, आदतें बदलने और दर्द नियंत्रण जैसी चिकित्सा विधियों में किया जाता है, लेकिन इसका इतिहास बहुत पुराना और रोचक है। आइए जानते हैं - सम्मोहन की उत्पत्ति, विकास और इसके वैज्ञानिक सफर की पूरी कहानी।

प्राचीन काल में सम्मोहन का उल्लेख

प्राचीन भारत में 'सम्मोहन' या 'वशीकरण' जैसी विद्या का उल्लेख कई धार्मिक और तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है। उस समय इसे मन और चेतना पर नियंत्रण पाने की एक कला माना जाता था। ऋषि-मुनि इसका उपयोग ध्यान, साधना और आत्म-नियंत्रण के लिए करते थे। अथर्ववेद में भी ऐसे 'स्पर्श-मंत्रों' का जिक्र है, जिनसे किसी व्यक्ति के मन पर प्रभाव डाला जा सकता था। वहीं 'मोहिनी विद्या' भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से जुड़ी मानी जाती है, जहाँ उन्होंने अपने आकर्षक रूप से असुरों को भ्रमित किया था। इस विद्या का उद्देश्य किसी के मन या भावनाओं को प्रभावित करना था। वशीकरण की परंपराएँ बाद में नवनाथ योगियों और शाबर मंत्रों के माध्यम से लोकप्रिय हुईं। श्रीकृष्ण को भी 'मोहना' कहा गया है यानी 'मोह लेने वाला' । कई विद्वानों का मानना है कि भगवद्गीता में श्रीकृष्ण का अर्जुन से संवाद वास्तव में एक प्रकार का 'मानसिक सम्मोहन' था, जिसने अर्जुन को भय-मुक्त और आत्म-विश्वासी बना दिया। इस तरह देखा जाए तो सम्मोहन भारत में कोई नई चीज़ नहीं, बल्कि इसकी जड़ें बहुत गहरी और आध्यात्मिक हैं।

प्राचीन सभ्यताओं में सम्मोहन का आरंभ

सम्मोहन का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी जड़ें मिस्र, भारत, ग्रीस और चीन जैसी प्राचीन सभ्यताओं में मिलती हैं। प्राचीन मिस्र में लगभग 3000 ईसा पूर्व 'स्लीप टेंपल' बनाए जाते थे, जहाँ पुजारी रोगियों को मंत्र-जाप और ध्यान के माध्यम से गहरी नींद जैसी अवस्था में ले जाकर उनका इलाज करते थे। यह आधुनिक सम्मोहन की शुरुआती झलक मानी जाती है।

भारत में वेदों, योगशास्त्र और ध्यान परंपराओं में 'संमोहन', 'त्राटक' और 'ध्यान' जैसी विधियाँ प्रचलित थीं। 'त्राटक' यानी किसी बिंदु या दीपक की लौ पर लगातार ध्यान केंद्रित करना - मन को नियंत्रित करने और एकाग्रता बढ़ाने की प्रक्रिया थी, जो आज के सम्मोहन सिद्धांत से काफी मेल खाती है।

प्राचीन यूनान (ग्रीस) में भी ऐसे 'ड्रीम टेंपल' थे जहाँ सपनों और नींद की अवस्था के माध्यम से रोगों का उपचार किया जाता था। यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा का जनक कहा जाता है, मानते थे कि मन की शांति और नींद, शारीरिक स्वास्थ्य की मूल कुंजी हैं।

वहीं चीन में भी पारंपरिक चिकित्सा में ध्यान, मंत्र-जाप और बिंदु पर एकाग्रता जैसी तकनीकों का उपयोग मानसिक संतुलन और उपचार के लिए किया जाता था। इन सभ्यताओं के अनुभव बताते हैं कि सम्मोहन मन और शरीर के गहरे संबंध को समझने का एक प्राचीन वैज्ञानिक प्रयास था।

18वीं शताब्दी - फ्रांज़ एंटोन मेस्मर और ‘मेस्मरिज़्म’

आधुनिक सम्मोहन की शुरुआत 18वीं शताब्दी में ऑस्ट्रिया के डॉक्टर फ्रांज़ एंटोन मेस्मर से मानी जाती है, जिन्होंने 'एनिमल मैग्नेटिज़्म' या 'मेस्मरिज़्म' की अवधारणा दी। मेस्मर का मानना था कि हर जीवित प्राणी में एक अदृश्य चुंबकीय शक्ति होती है, जिसे अगर सही दिशा में प्रवाहित किया जाए तो बीमारियाँ ठीक की जा सकती हैं। इलाज के दौरान वे मरीजों को हल्के स्पर्श, चुंबकों या गहरी नजरों से देखते हुए एक विशेष 'त्रांस' यानी नींद जैसी अवस्था में ले जाते थे। यह अवस्था आज के सम्मोहन जैसी ही थी। हालांकि बाद में फ्रांस के राजा लुई XVI द्वारा गठित आयोग ने मेस्मर के सिद्धांतों को वैज्ञानिक रूप से अस्वीकार कर दिया और कहा कि यह प्रभाव केवल व्यक्ति की कल्पना या सुझाव की शक्ति से होता है। फिर भी मेस्मर के प्रयोगों ने आधुनिक हिप्नोसिस की नींव रखी और आज भी 'मेस्मरिज़्म' शब्द सम्मोहन के इतिहास का अहम हिस्सा माना जाता है।

जेम्स ब्रेड और 'Hypnosis' शब्द का जन्म

'हिप्नोसिस' शब्द की वैज्ञानिक पहचान ब्रिटिश चिकित्सक जेम्स ब्रेड ने 1843 में की। उन्होंने फ्रांज़ मेस्मर के 'एनिमल मैग्नेटिज़्म' सिद्धांत को गलत साबित करते हुए बताया कि सम्मोहन किसी चुंबकीय या रहस्यमयी शक्ति से नहीं, बल्कि मन की एक विशेष मानसिक अवस्था से उत्पन्न होता है। जेम्स ब्रेड ने पाया कि यदि कोई व्यक्ति किसी छोटी, चमकदार वस्तु पर लंबे समय तक एकटक देखे, तो उसका मन 'त्रांस' यानी गहरी एकाग्रता की अवस्था में चला जाता है। इसी प्रक्रिया को उन्होंने ग्रीक शब्द 'Hypnos' (जिसका अर्थ है नींद) से प्रेरित होकर 'Hypnosis' नाम दिया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि हिप्नोसिस असली नींद नहीं होती, बल्कि ऐसी स्थिति होती है जब व्यक्ति पूरी तरह जागरूक रहते हुए भी बाहरी सुझावों को अधिक आसानी से स्वीकार करता है। जेम्स ब्रेड के काम ने सम्मोहन को रहस्य और अंधविश्वास से निकालकर चिकित्सा और मनोविज्ञान की एक वैज्ञानिक विधा के रूप में स्थापित किया।

जेम्स एसडेल और भारत में सम्मोहन-आधारित सर्जरी

स्कॉटलैंड के डॉक्टर जेम्स एसडेल (James Esdaile) ने 19वीं शताब्दी के मध्य में भारत के कोलकाता स्थित हुगली अस्पताल में एक अनोखा प्रयोग किया। उन्होंने बिना किसी दवा या रासायनिक एनेस्थीसिया के केवल सम्मोहन (Hypnosis) के ज़रिए सैकड़ों सर्जरी कीं। 1840 के दशक में उन्होंने करीब 300 से अधिक बड़ी शल्य क्रियाएँ कीं - जैसे ट्यूमर निकालना, ऑर्किडेक्टॉमी (अंडकोष हटाना) और अन्य जटिल ऑपरेशन और मरीजों को दर्द का बहुत कम अनुभव हुआ। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'Mesmerism in India and Its Practical Application in Surgery and Medicine' (1846) में अपने इन अनुभवों का विस्तार से वर्णन किया। उनके प्रयोगों ने यह साबित किया कि सम्मोहन न केवल दर्द को कम कर सकता है बल्कि सर्जरी के बाद मरीज की रिकवरी को भी तेज करता है। आधुनिक चिकित्सा इतिहास में उन्हें एनेस्थीसिया के शुरुआती पायनियरों में गिना जाता है।

शारको और बर्नहेम: फ्रांस में न्यूरोलॉजी और मनोविज्ञान में प्रवेश

फ्रांस में जीन-मार्टिन शारको (Jean-Martin Charcot) ने 1870 के दशक में हिस्टीरिया जैसे मानसिक विकारों पर सम्मोहन के प्रयोग किए। वे पेरिस के प्रसिद्ध सलपेट्रिएर अस्पताल में न्यूरोलॉजिस्ट थे और उन्होंने माना कि सम्मोहन एक न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया है। उन्होंने इसके तीन चरण बताए लेथार्जी, कटाटोनिया और लेकोनिक क्राइसिस। हालांकि बाद में यह विवाद हुआ कि उनके कई परिणाम रोगियों के 'अनुकरण' यानी नकल के कारण थे। दूसरी ओर, हिप्पोलाइट बर्नहेम (Hippolyte Bernheim) जो नान्सी विश्वविद्यालय में कार्यरत थे, ने सम्मोहन को मन की 'सुझाव शक्ति' (suggestion power) से जुड़ा बताया। उनका मानना था कि सम्मोहन एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, न कि तंत्रिका संबंधी विकार। शारको और बर्नहेम के बीच चली इस बहस ने आगे चलकर आधुनिक मनोचिकित्सा (Psychiatry) और मनोविज्ञान (Psychology) की दिशा तय की।

सिगमंड फ्रायड और सम्मोहन

सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud), जिन्हें आधुनिक मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) का जनक माना जाता है, ने 1880 के दशक में पेरिस में शारको के साथ काम किया और वहाँ सम्मोहन की तकनीक सीखी। उन्होंने इसे अपने मरीजों के अवचेतन मन तक पहुँचने का माध्यम बनाया। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने पाया कि सभी लोग सम्मोहन के लिए समान रूप से संवेदनशील नहीं होते। इस कारण उन्होंने सम्मोहन को छोड़कर नई विधि 'मुक्त संहति' (Free Association) और 'मनोविश्लेषण' (Psychoanalysis) विकसित की, जो आगे चलकर आधुनिक मनोविज्ञान की नींव बनी। फ्रायड का यह परिवर्तन सम्मोहन से मनोविज्ञान की वैज्ञानिक दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुआ।

आधुनिक काल में भूमिका

आधुनिक समय में सम्मोहन (Hypnosis) ने चिकित्सा और मनोविज्ञान दोनों क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। 20वीं सदी में इसका उपयोग मनोविज्ञान, मनोरोग और दर्द नियंत्रण जैसी चिकित्सा विधियों में तेजी से बढ़ा। सिगमंड फ्रायड जैसे प्रसिद्ध मनोविश्लेषकों ने इसे मानव के अवचेतन मन को समझने का एक प्रभावी माध्यम माना। आज कई देशों में सम्मोहन का इस्तेमाल तनाव और चिंता कम करने, स्मृति सुधारने, नशा या व्यसन छोड़ने और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार, सम्मोहन का सफर प्राचीन रहस्यमयी साधनाओं से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों तक फैला हुआ है जिसने इंसान के मन की गहराइयों को समझने और नियंत्रित करने के नए रास्ते खोले हैं।

1 / 6
Your Score0/ 6
Shivani Jawanjal

Shivani Jawanjal

Mail ID - [email protected]

Senior Content Writer

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!