भानुमति ने कुनबा जोड़ा- महाभारत की वो कहानी जो मुहावरे में बदल गई

महाभारत की भानुमति की कहानी, जिसने 'भानुमति ने कुनबा जोड़ा' जैसी मशहूर कहावत को जन्म दिया। जानें दुर्योधन, कर्ण और भानुमति से जुड़े रोचक प्रसंग और उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि।

Jyotsna Singh
Published on: 30 Sept 2025 1:39 PM IST
Bhanumati Mahabharata Story
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Bhanumati Mahabharata Story (Image Credit-Social Media)

Bhanumati Mahabharata Story: हमारी भाषा में कई ऐसे मुहावरे और कहावतें हैं जो सुनने में बड़े सरल लगते हैं, लेकिन उनके पीछे गहरी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि छिपी होती है। जैसे कि 'कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा' कहावत बेहद प्रचिलत है। जिसका इस्तेमाल आमतौर पर लोग करते हैं। परंतु इसके पीछे की कहानी महाभारतकालीन पात्र भानुमति से जुड़ी है। आइए जानते हैं इस लोकप्रिय कहावत के पीछे छिपी कहानी के बारे में - आइए जानते हैं भानुमति कौन थी

भानुमति काम्बोज देश के राजा चन्द्रवर्मा की पुत्री थी। वह अद्वितीय रूप से सुंदर, आकर्षक और बुद्धिमान थी। साथ ही शारीरिक रूप से भी बेहद शक्तिशाली मानी जाती थी। उसकी सुंदरता और पराक्रम के किस्से दूर-दूर तक मशहूर थे, इसलिए उसके स्वयंवर में शिशुपाल, जरासंध, रुक्मी, वक्र और कर्ण जैसे बड़े-बड़े योद्धा आए थे। दुर्योधन भी उनमें से एक था और उसकी भी यही अभिलाषा थी कि भानुमति उसे ही अपना जीवनसाथी चुने।

भानुमति का स्वयंवर और दुर्योधन का क्रोध


स्वयंवर के दिन जब भानुमति हाथ में वरमाला लेकर सभा में आई और एक-एक राजा के पास से गुजरती गई, तो दुर्योधन की उम्मीद थी कि वह उसे माला पहनाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भानुमति उसके सामने से आगे निकल गई। यह अपमान दुर्योधन से सहा नहीं गया। उसने क्रोधित होकर भानुमति के हाथ से माला छीन ली और स्वयं ही अपने गले में डाल ली। तभी दरबार में खलबली मच गई और उपस्थित राजाओं ने तलवारें खींच लीं। दुर्योधन ने तत्क्षण भानुमति का हाथ पकड़ लिया और बाहर की ओर ले जाते हुए सबको चुनौती दी कि पहले उसके मित्र कर्ण को परास्त करो, तभी उससे भानुमति को छीनने की सोचो।

कर्ण का पराक्रम और दुर्योधन का विवाह

इस चुनौती को स्वीकारते हुए कर्ण ने युद्ध किया और अपने शौर्य से अधिकांश राजाओं को परास्त कर दिया। जरासंध से उसका युद्ध लंबे समय तक चला, लेकिन अंततः विजय कर्ण की ही हुई। इस तरह दुर्योधन ने कर्ण की शक्ति के बल पर भानुमति को हरण कर लिया और हस्तिनापुर ले आया। जब यह विवाह समाज में प्रश्नों के घेरे में आया, तो दुर्योधन ने इसे उचित ठहराने के लिए भीष्म पितामह का उदाहरण दिया कि उन्होंने भी अपने भाइयों के लिए अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण किया था। अंततः भानुमति ने स्थिति को स्वीकार कर लिया और दुर्योधन की पत्नी बन गई।

दुर्योधन और भानुमति का पारिवारिक जीवन

विवाह के बाद भानुमति और दुर्योधन के दो संतान हुए। पुत्र लक्ष्मण महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथों मारा गया, जबकि पुत्री लक्ष्मणा का विवाह कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ। यहां भी घटनाएं उलझनों से भरी रहीं। लक्ष्मणा को साम्ब भगा ले गया और अंततः उसी से उसका विवाह हुआ। दूसरी ओर, बलराम चाहते थे कि उनकी पुत्री वत्सला की शादी दुर्योधन के बेटे लक्ष्मण से हो। लेकिन वत्सला और अभिमन्यु एक-दूसरे से प्रेम करते थे और घटोत्कच की चालाकी से लक्ष्मण विवाह से पीछे हट गया। बाद में वही लक्ष्मण कुरुक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुआ।

भानुमति और कर्ण की मित्रता


इतिहास और लोककथाओं में भानुमति और कर्ण की मित्रता का उल्लेख भी मिलता है। दोनों के बीच आपसी सम्मान और विश्वास का रिश्ता था। एक रोचक प्रसंग में बताया जाता है कि एक बार दोनों शतरंज खेल रहे थे और कर्ण जीत रहा था। तभी भानुमति ने दुर्योधन को आते देखा और उठने लगी। कर्ण को लगा कि वह हार मानकर खेल छोड़ रही है, इसलिए उसने मज़ाक में उसका हाथ पकड़कर बैठाना चाहा। इसी दौरान उसकी मोतियों की माला टूट गई और सारे मोती ज़मीन पर बिखर गए। तभी दुर्योधन कमरे में आ गया। कर्ण और भानुमति दोनों ही संकोच और भय से भर गए कि कहीं दुर्योधन गलत न समझ ले। लेकिन दुर्योधन ने अपने मित्र पर विश्वास जताते हुए सहज भाव से कहा कि 'मोतियों को यूं ही बिखरे रहने दोगे या मैं भी इन्हें समेटने में मदद करूं?' यह घटना दुर्योधन के कर्ण पर अटूट विश्वास और दोनों के रिश्तों की गहराई को दर्शाती है।

ऐसे बनी कहावत की पृष्ठभूमि

गंधारी ने महाभारत के सती पर्व में भानुमति का वर्णन किया है और बताया है कि वह इतनी बलवान थी कि दुर्योधन के साथ खेल-खेल में कुश्ती करती थी और कई बार उसे हरा भी देती थी। यह बात भानुमति के असाधारण व्यक्तित्व को और भी उजागर करती है कि वह केवल सुंदर और आकर्षक ही नहीं, बल्कि पराक्रमी और साहसी भी थी। कई लोककथाओं में यह भी सुनने को मिलता है कि दुर्योधन और लक्ष्मण की मृत्यु के बाद भानुमति ने पांडवों में से अर्जुन से विवाह कर लिया था। हालांकि यह प्रसंग महाभारत के प्रमाणिक ग्रंथों में नहीं मिलता, लेकिन लोकश्रुति में यह कथा पीढ़ियों से सुनाई जाती रही है। 'भानुमति ने कुनबा जोड़ा' केवल एक साधारण कहावत नहीं बल्कि महाभारत काल की उन उलझनों, विसंगतियों और मजबूरियों का प्रतीक है, जो एक स्त्री के जीवन में आकर उसे टूटे मोतियों की माला की तरह बिखेर देती हैं। भानुमति ने जबरन विवाह सहा, अपने बच्चों की त्रासदी झेली और रिश्तों की जटिलताओं से गुज़री। यही कारण है कि उसके जीवन की घटनाओं ने इस कहावत को जन्म दिया और यह आज भी हमारी भाषा में जीवित है।

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Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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