Mahabharata: बेहद रोचक है कुरुक्षेत्र के शूरवीरों के पुनर्जीवन की कहानी, महाभारत की सबसे अद्भुत घटना

वेदव्यास की तपस्या के बल से युद्ध में मारे गए सभी शूरवीर एक रात के लिए पुनर्जीवित हुए और अपने परिजनो

Jyotsna Singh
Published on: 1 Sept 2025 10:00 AM IST
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Mahabharata (Image Credit-Social Media)

Amazing Event of Mahabharata: महाभारत केवल एक युद्धकथा नहीं है, बल्कि इसमें धर्म और अधर्म का संघर्ष तो है ही, साथ ही मृत्यु और पुनर्जन्म जैसे रहस्यों का संकेत भी मिलता है। इसी महाकाव्य का एक अत्यंत अद्भुत प्रसंग है, जब कुरुक्षेत्र युद्ध के पंद्रह वर्ष बाद, महर्षि वेदव्यास की तपस्या के बल से युद्ध में मारे गए सभी शूरवीर एक रात के लिए पुनर्जीवित हुए और अपने परिजनों से मिले। आइए जानते हैं महाभारत के इस रोचक किस्से के बारे में -

युद्ध के पंद्रह वर्ष बाद की विभीषिका


कुरुक्षेत्र युद्ध ने पूरे भारतवर्ष को शोक से भर दिया था। युद्ध के मैदान में लाखों योद्धा मारे गए थे। पांडव विजयी हुए, लेकिन इस विजय के पीछे अपनों की असंख्य लाशें थीं। धृतराष्ट्र और गांधारी अपने सभी पुत्रों को खो चुके थे। कुंती ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कर्ण को खोया, और द्रौपदी के आंचल से उसके पांचों पुत्र छिन गए। पंद्रह वर्षों का समय बीत जाने के बाद भी यह शोक उनके हृदयों में ताजा था। इसी दौरान धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती और संजय ने राजमहल का मोह त्यागकर वन में तपस्वी जीवन बिताना शुरू कर दिया।

विदुरजी का निधन और वेदव्यास का आगमन

वनवास के इन्हीं दिनों में युधिष्ठिर उनसे मिलने पहुंचे। उसी समय विदुरजी ने योगबल से अपने प्राण त्याग दिए। जब महर्षि वेदव्यास आश्रम में आए और उन्हें यह समाचार मिला, तो उन्होंने बताया कि विदुर वास्तव में धर्मराज के अवतार थे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि युधिष्ठिर स्वयं भी धर्मराज के अंश हैं, इसलिए विदुरजी के प्राण युधिष्ठिर के शरीर में समा गए। यह रहस्य सभी के लिए अत्यंत अद्भुत और विस्मयकारी था।

वेदव्यास का वचन और परिजनों की अभिलाषा


विदुरजी के निधन से धृतराष्ट्र और गांधारी अत्यंत दुखी हो गए। कुंती के हृदय में भी शोक की लहर दौड़ गई। तब महर्षि वेदव्यास ने सभी को सांत्वना दी और कहा कि वे अपनी तपस्या का प्रभाव दिखा सकते हैं। उन्होंने सबको आश्वासन दिया कि उनकी जो भी अभिलाषा होगी, वह आज रात पूरी होगी। धृतराष्ट्र और गांधारी ने अपने पुत्रों को देखने की इच्छा जताई। कुंती ने अपने कर्ण को देखने की बात कही। द्रौपदी ने अपने पांचों पुत्रों से मिलने की प्रार्थना की। सभी ने अपने-अपने खोए परिजनों का स्मरण किया और वेदव्यास से निवेदन किया। वेदव्यास ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और सबको गंगा तट पर चलने का निर्देश दिया।

गंगा तट पर दिव्य रात्रि का आरंभ

गंगा का तट एक ऐसी अद्भुत घटना का भी साक्षी बना था जब धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती, युधिष्ठिर और अन्य सभी वहां अपने सभी युद्ध में मारे जा चुके प्रियजनों से मिलने के लिए एकत्र हुए थे। महाभारत के ग्रंथ में दर्ज एक किस्से के अनुसार गंगा तट पर रात का अंधकार छा गया तो महर्षि वेदव्यास गंगा में प्रविष्ट हुए और अपने योगबल से युद्ध में मारे गए सभी योद्धाओं को पुकारा। गंगा का जल हिलोरें लेने लगा और अचानक उसमें से एक-एक कर महान योद्धा बाहर निकलने लगे।

गंगा की लहरों से सबसे पहले प्रकट हुए भीष्म पितामह। उनके पीछे आए द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन और दु:शासन। अभिमन्यु, घटोत्कच, द्रौपदी के पांचोंन पुत्र, राजा द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, शकुनि और असंख्य अन्य वीर भी गंगा से बाहर निकले। ये सभी योद्धा शांत और दिव्य स्वरूप में थे। जैसे मृत्यु ने उनके भीतर की सारी कलुषता को मिटा दिया हो।

वेदव्यास ने धृतराष्ट्र और गांधारी को दिए दिव्य नेत्र



इस विशेष क्षण में वेदव्यास ने धृतराष्ट्र और गांधारी को दिव्य नेत्र प्रदान किए, ताकि वे अपने दिवंगत हो चुके पुत्रों को देख सकें। अपने सौ पुत्रों को सामने देख धृतराष्ट्र और गांधारी की आंखें अश्रुओं से भर आईं। कुंती ने कर्ण को देखा और वर्षों का मातृत्व उसके हृदय में उमड़ आया। द्रौपदी ने अपने पांचों पुत्रों को गले लगाया और अपने लंबे समय से दबे आंसुओं को बहा दिया। उस रात गंगा तट पर हर किसी का हृदय संतोष और करुणा से भर गया।

रात भर पुनर्जीवित योद्धा अपने परिजनों के साथ रहे। भीष्म ने धर्म और कर्तव्य की व्याख्या की, द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा की भूलों पर खेद जताया, कर्ण ने अपने भाइयों से स्नेहपूर्ण बातें कीं। अभिमन्यु ने अपनी मां और पिता को धैर्य दिया। युद्ध में खोए सभी संबंध उस रात एक बार फिर जीवित हो उठे। पांडव और कौरव दोनों पक्षों के लोग एक-दूसरे से मिले और उनके बीच वर्षों का वैरभाव मिट गया।

योद्धाओं को गंगा में लौट जाने का मिला संकेत

जैसे ही सुबह हुई, वेदव्यास ने सभी योद्धाओं को गंगा में लौट जाने का संकेत दिया। धीरे-धीरे सब पुनः जल में विलीन हो गए। इस पुनर्मिलन के बाद परिजनों के हृदय में अब दुख की जगह शांति और संतोष का भाव था। उन्होंने अनुभव किया कि मृत्यु अंत नहीं है, बल्कि आत्मा का शाश्वत सफर है। युद्ध में मारे गए वीरों का एक रात के लिए पुनर्जीवित होना, परिजनों का उनसे मिलना और फिर पुनः उनका विलीन हो जाना यह सब जीवन और मृत्यु के गहरे रहस्यों की ओर ले जाता है। वेदव्यास की तपस्या ने यह सिद्ध कर दिया कि आत्मा अनंत है और मृत्यु केवल एक पड़ाव।

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