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जानिए प्रकृति के उन अद्भुत जीवों के बारे में, जो पहले से ही लगा लेते हैं अनहोनी का अंदाज़ा!
Animals that predict natural disasters:प्रकृति ने हर जीव को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए कुछ विशेष संवेदनाएं दी हैं।
Natural disaster prediction by animals:प्रकृति में कई ऐसे रहस्य हैं जिन्हें विज्ञान आज भी पूरी तरह समझ नहीं पाया है। उनमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि कुछ जानवरों में ऐसी खास क्षमताएँ होती हैं, जिनकी मदद से वे आने वाली घटनाओं या मौसम में बदलाव को पहले ही महसूस कर लेते हैं। जबकि इंसान को भूकंप, सुनामी या तूफ़ान जैसी घटनाओं का अंदाज़ा लगाने के लिए आधुनिक उपकरणों की ज़रूरत होती है, ये जानवर बिना किसी तकनीक के ही इन प्राकृतिक परिवर्तनों का पता लगा लेते हैं।
कुत्ते - कंपन और भावनाओं के सूक्ष्म ज्ञाता
कुत्तों में इंसानों से कई गुना बेहतर सूंघने और सुनने की क्षमता होती है। उनके पास लगभग 300 मिलियन गंध रिसेप्टर्स होते हैं जबकि इंसानों में केवल 5 मिलियन होते हैं। इसके अलावा, वे इतनी ऊँची आवाज़ें भी सुन सकते हैं जो मनुष्य सुन नहीं पाते। भूकंप जैसे प्राकृतिक घटनाओं से पहले कुत्ते अक्सर असामान्य व्यवहार दिखाते हैं जैसे बेचैनी, बार-बार घूमना या जोर-जोर से भौंकना। जापान, इटली और नेपाल में किए गए अध्ययनों में पाया गया कि करीब 20% कुत्तों ने भूकंप से कई घंटे या दिन पहले ही अजीब हरकतें दिखाई। वैज्ञानिक मानते हैं कि कुत्ते धरती की हल्की कंपन, गैसों की सूक्ष्म गंध या वातावरण में बदलाव को महसूस कर सकते हैं, जिसे इंसान नहीं पहचान पाते। इसके अलावा कुत्तों को हेल्थ डिटेक्शन डॉग्स के रूप में प्रशिक्षित किया गया है जो मिर्गी, डायबिटीज़, कैंसर और मलेरिया जैसी बीमारियों की गंध से पहचान कर सकते हैं। वे अपने मालिक की भावनाओं जैसे डर, तनाव या उदासी को भी आसानी से पहचान लेते हैं।
बिल्लियाँ - ऊर्जा बदलाव की संवेदनशील ज्ञाता
बिल्लियाँ अपने आसपास के छोटे-छोटे बदलावों को महसूस करने में बहुत संवेदनशील होती हैं जैसे तापमान, हवा का दबाव, ध्वनि तरंग या हल्की कंपन। उनकी यह क्षमता उनकी तीव्र सुनने और संवेदनशील तंत्रिका प्रणाली के कारण होती है। बिल्लियाँ उन ऊँची आवृत्तियों वाली आवाज़ों को भी सुन सकती हैं जो इंसानों के लिए असुनने योग्य नहीं होतीं। जापान और चीन में किए गए कुछ अध्ययनों में पाया गया कि भूकंप या अन्य प्राकृतिक घटनाओं से पहले बिल्लियाँ बेचैन हो सकती हैं, छिप सकती हैं या ऊँचे सुरक्षित स्थानों पर चली जाती हैं। वैज्ञानिक इसे पूरी तरह भविष्यवाणी के रूप में नहीं मानते लेकिन माना जाता है कि वे सूक्ष्म कंपन और ध्वनि तरंगों को महसूस कर लेती हैं। इसके अलावा आध्यात्मिक दृष्टिकोण में कहा जाता है कि बिल्लियाँ वातावरण की ऊर्जा को महसूस कर सकती हैं और नकारात्मक ऊर्जा को संतुलित करती हैं। अक्सर वे ऐसे स्थानों पर बैठना पसंद करती हैं जहाँ ऊर्जा असंतुलित होती है और उनका ‘गुनगुनाना’ (purring) उस ऊर्जा को स्थिर करने में मदद करता है।
पक्षी - चुम्बकीय क्षेत्र के अद्भुत संवेदक
प्रवासी पक्षियों में दिशा पहचानने की अद्भुत क्षमता होती है। वे पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग कर सही दिशा तय करते हैं। उनकी आंखों में क्रिप्टोक्रोम नामक रासायनिक अणु होता है जो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और ताकत को महसूस करने में मदद करता है। प्रयोगों में यह देखा गया कि अगर चुंबकीय क्षेत्र बदल दिया जाए, तो पक्षी अपनी उड़ान की दिशा बदल देते हैं, जैसे वे एक 'जीवित कम्पास' के रूप में काम कर रहे हों। प्राकृतिक घटनाओं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या तूफ़ान से पहले वायुदाब, आयनमंडलीय बदलाव और चुंबकीय अस्थिरता होती है। पक्षी इन सूक्ष्म परिवर्तनों को महसूस कर बेचैन हो जाते हैं और असामान्य उड़ानें भरते हैं या बड़े झुंडों में क्षेत्र छोड़ देते हैं। उदाहरण के तौर पर, 2004 की हिंद महासागर सुनामी से पहले श्रीलंका और भारत के तटीय क्षेत्रों में कई पक्षियों और जानवरों को ऊँचे सुरक्षित स्थानों की ओर बढ़ते देखा गया था । जो उनके द्वारा सूक्ष्म कंपन और वातावरण के बदलाव को महसूस करने का संकेत था।
हाथी - धरती की गहराई की कंपन के जानकार
हाथियों में असाधारण संवेदनशीलता होती है। उनके कान और पैर विशेष तंत्रिका नेटवर्क से भरे होते हैं, जिससे वे धरती पर उत्पन्न निम्न आवृत्ति की ध्वनियों (Infrasound) और भूकंपीय कंपन को बहुत आसानी से महसूस कर सकते हैं। उनके पैरों की तलवों में मौजूद मैकेनो-रिसेप्टर्स कंपन को पकड़ते हैं और यह संकेत उनके अस्थि तंत्र से दिमाग और कान तक पहुंचता है। इससे हाथी कई किलोमीटर दूर की गड़गड़ाहट या हल्के झटकों को भी पहचान सकते हैं। 2004 की हिंद महासागर सुनामी से पहले श्रीलंका, थाईलैंड और भारत के कुछ हिस्सों में कई हाथी अचानक ऊँचे स्थानों की ओर चले गए थे। बाद में यह माना गया कि उन्होंने समुद्र के नीचे उत्पन्न भूकंपीय तरंगों और इंफ्रासोनिक ध्वनियों को पहले ही महसूस कर लिया था। हाथियों के बड़े कान सिर्फ सुनने के लिए ही नहीं, बल्कि शरीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। कानों में रक्त वाहिकाएँ होती हैं जो अतिरिक्त गर्मी निकालने में मदद करती हैं। और कान और सिर के आसपास की संवेदनशील त्वचा उन्हें सूक्ष्म ध्वनियों और कंपन को महसूस करने में सहायक होती है।
मछलियाँ और समुद्री जीव
समुद्र में रहने वाले जीव जैसे मछलियाँ, डॉल्फ़िन और अन्य समुद्री स्तनधारी, पानी में छोटे-छोटे बदलाव को भी महसूस कर सकते हैं। उनके पास लेटरल लाइन सिस्टम और त्वचा में मैकेनोरेसेप्टर्स होते हैं, जो पानी में हल्की-से-हल्की हलचल, दबाव, तापमान और लवणता के बदलाव को पकड़ लेते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जब समुद्र के नीचे भूकंपीय कंपन या प्लेट टेक्टोनिक गतिविधियाँ होती हैं तो ये पानी की धारा, दबाव और विद्युत-चुंबकीय क्षेत्रों में बदलाव पैदा करती हैं। कई मछलियाँ इस बदलाव को महसूस कर सतह या किनारों की ओर तैरने लगती हैं। उदाहरण के लिए 2004 की हिंद महासागर सुनामी से पहले इंडोनेशिया और श्रीलंका के तटों पर मछलियों का असामान्य व्यवहार देखा गया था। विशेष रूप से 'ओअरफिश' को भूकंप या सुनामी का संकेतक माना जाता है। 2011 की तोहोकू सुनामी से पहले जापान में लगभग 20 ओअरफिश सतह पर देखी गई थीं। हालांकि वैज्ञानिक इसे सीधे भविष्यवाणी के रूप में नहीं मानते, बल्कि इसे समुद्र के नीचे गतिविधियों या ऑक्सीजन स्तर में बदलाव का परिणाम मानते हैं।
चींटियाँ और मेंढक
शोधों और अनुभवों के अनुसार, चींटियाँ वायुमंडलीय आर्द्रता और वायुदाब में छोटे बदलाव को पहले ही महसूस कर लेती हैं। बारिश या तूफान आने से पहले कई प्रजातियाँ अपने बिल के मुहाने को बंद कर देती हैं या अंडों और लार्वा को ऊँचे सुरक्षित स्थानों पर ले जाती हैं ताकि पानी से बचा जा सके। वैज्ञानिक मानते हैं कि चींटियाँ वायुमंडलीय दबाव गिरने, तापमान कम होने और जमीन में नमी बढ़ने जैसी शुरुआती संकेतों को अपनी संवेदन इंद्रियों से पहचान लेती हैं। इसी तरह, मेंढक नमी-प्रिय जीव हैं और जब आर्द्रता बढ़ती है और तापमान थोड़ी गिरावट आती है, तो उनका मेटाबॉलिज़्म सक्रिय हो जाता है। इस दौरान वे सामान्य से अधिक सक्रिय हो जाते हैं और तेज़ टर्राने की आवाज़ें निकालते हैं जो वर्षा का संकेत देती हैं।
सांप और अन्य सरीसृप
सांप भूकंप जैसी भौगोलिक गतिविधियों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। वे धरती के नीचे रहते हैं और भूकंपीय कंपन, इंफ्रासाउंड, विद्युत-चुंबकीय बदलाव, जमीन में गैसों या तापमान के छोटे बदलाव को पहले ही महसूस कर लेते हैं। चीन में कई ऐतिहासिक घटनाओं में यह देखा गया है कि भूकंप से पहले सांप अपने बिलों से निकलकर असामान्य तरीके से इधर-उधर रेंगने लगते थे। उदाहरण के लिए 1920 में हाइयुआन में 8.5 तीव्रता के भूकंप से पहले हजारों सांप अपने बिलों से बाहर आ गए थे और 1976 के टांगशान भूकंप से एक दिन पहले भी कई सांप असामान्य व्यवहार दिखा रहे थे। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह व्यवहार पृथ्वी की प्लेटों में तनाव, सूक्ष्म तरंगें, विद्युत आवेश बदलाव और गैस उत्सर्जन को महसूस करने के कारण होता है। NASA और अन्य शोध संस्थानों के अनुसार, जानवर इंसानों की तुलना में इन कंपन और विद्युत तरंगों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
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