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International Yoga Day 2025: ताल से ताल मिला
International Yoga Day: अलग-अलग प्रदेशों के सभी लोक नृत्य और संगीत एक तरह की थेरेपी हैं, जो कि करने वाले की ऊर्जा को बढ़ाते हैं।
International Yoga Day 2025: छोटे-छोटे बच्चों को योग दिवस पर योग करते देखने और महिलाओं को योग और योग की मुद्राओं में नृत्य करते देखना या संगीत पर थाप देते देखने से यह पंक्तियां याद आ गईं-----
'दिल ये बेचैन वे
रस्ते पे नैन वे
जिंदड़ी बेहाल है,
सुर है न ताल है,
आजा सांवरिया,
आ आ आ आ,
ताल से ताल मिला हो हो,
ताल से ताल मिला।'
राजश्री प्रोडक्शंस द्वारा 1999 में बनाई गई 'ताल' फिल्म का यह गाना बहुत ही प्यारा गाना है, जिसे अलका याग्निक और उदित नारायण ने अपनी दिलों को छू लेने वाली आवाज में गाया था, जिसका संगीत प्रसिद्ध संगीत निर्देशक ए. आर. रहमान ने दिया था और इसके बोल प्रसिद्ध गीतकार आनंद बक्शी साहब ने लिखे थे। इस खूबसूरत से गाने का नृत्यांकन प्रसिद्ध नृत्य निर्देशिका सरोज खान ने किया था। ऐश्वर्या राय, अक्षय खन्ना और अनिल कपूर द्वारा अभिनीत इस फिल्म का यह गाना बहुत ही कर्णप्रिय है। यह गाना क्यों मन को छू जाता है .......? अपने संगीत के कारण क्योंकि जो संगीत हमारे कानों को लुभाता है, हमारे दिमाग को इस कोलाहलपूर्ण जीवन में शांत करता है, वह संगीत हमारे मन को सुकून पहुंचाता है।
कल विश्व योग दिवस और विश्व संगीत दिवस दोनों का ही मौका था। पूरे देश भर में ही नहीं दुनिया भर में इस अवसर पर योग दिवस मनाने की तैयारियां जोरों से चल रही थी और इसका बखूबी कल पालन भी किया गया। योग को सिर्फ एक शारीरिक अभ्यास मानना कतई गलत होगा। यह शरीर को लचीला रखने के साथ-साथ मानसिक जड़ता को भी समाप्त करता है और अगर इसके साथ संगीत का भी साथ हो जाए तो सोने पर सुहागा होगा। दरअसल भारतीय नृत्य या संगीत भी शरीर के अभ्यास के साथ-साथ मानसिक अभ्यास के साधन हैं। हमारे शास्त्रीय नृत्य की मुद्राओं का आधार तो योग ही है या हम यह भी कह सकते हैं कि जितना हम योग को जानने लगते हैं, सीखने लगते हैं, समझने लगते हैं और उसमें अपने आप को लिप्त कर लेते हैं उतना ही हम भारतीय शास्त्रीय नृत्य के करीब होते हैं। अब जबकि हम तकनीकी युग में सांस ले रहे हैं, हम तकनीक के इतने अधिक गुलाम हैं कि शारीरिक श्रम से परहेज कर बैठे हैं या शारीरिक श्रम के नाम पर जिम में पसीना बहा लेते हैं और हमारा काम भी अब शारीरिक श्रम से ज्यादा मानसिक श्रम से उपजे तनाव को झेलने वाला हो गया है, ऐसे में जितना हमारा शारीरिक श्रम कम होगा, मानसिक तनाव बढ़ेगा और यह मानसिक तनाव चिड़चिड़ापन और विचार शून्यता का कारक होता है। ऐसे में योग और संगीत दोनों हमारे शरीर को डिटॉक्स करते हैं।
संगीत का अर्थ कानफोड़ू डिस्को बार वाले संगीत से नहीं, जहां पर न तो हवा का निकास होता है और न ही प्राकृतिक रोशनी। अंधेरे में चमकती और आंखों पर जोर डालती डिस्को लाइट्स और कानफोड़ू संगीत आपको क्षणिक आनंद तो दे सकता है, आपको तनाव से मुक्ति तो एक समय के लिए दे सकता है पर दीर्घकाल के लिए, एक लंबे समय के लिए यह हमारे लिए मुश्किलें ही पैदा करता है और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता और सेहत में सुधार जैसे काम भी नहीं कर सकता। योग और संगीत दोनों गुरु की सीख से ही संभव होते हैं ,दोनों में समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ-साथ अभ्यास बहुत ज्यादा आवश्यक है।
असम के बिहू का संगीत और नृत्य हो या राजस्थान का घूमर और कालबेलिया, गुजरात का डांडिया हो या महाराष्ट्र की लावणी, पंजाब का भांगड़ा और गिद्दा हो या उत्तर प्रदेश का कत्थक और इसके साथ ही अलग-अलग प्रदेशों के सभी लोक नृत्य और संगीत एक तरह की थेरेपी हैं, जो कि करने वाले की ऊर्जा को बढ़ाते हैं, स्वस्थ रखते हैं और भावनात्मक रूप से भी उनको संबल प्रदान करते हैं, और स्वयं को स्थापित करने में भी सहयोग करते हैं। ' ताल से ताल मिला' इसलिए नहीं कि विश्व योग दिवस या विश्व संगीत दिवस मनाना है बल्कि इसलिए कि छोटा सा दिखने वाला यह कदम एक बड़ी ही खुशी ही नहीं देगा वरन स्वास्थ्य और भावनात्मक चिकित्सीय उपचार के साथ-साथ सुर, ताल, भाव भंगिमाओं और मन की शांति के साथ-साथ उस थकान को दूर करके ऊर्जा प्रदान करेगा जो थकान को हम हमेशा अपने साथ लिए घूमते हैं।
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