Air Pollution Emergency: सावधान! ये है इमरजेंसी, हवा में फैल रहा जहर, गायब हो रही ऑक्सीजन

हर साल 18 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण से, हर सांस में जहर का कश,

Ramkrishna Vajpei
Published on: 3 Nov 2025 9:42 PM IST (Updated on: 3 Nov 2025 9:43 PM IST)
Air Pollution Emergency
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Air Pollution Emergency (Image from Social Media)

Air Pollution Emergency: एक अभूतपूर्व और भयावह स्थिति में, स्विट्जरलैंड की पर्यावरण संस्था आईक्यूएयर (IQAir) की नवीनतम रिपोर्ट ने भारत की वायु गुणवत्ता को लेकर एक कठोर चेतावनी दी है। इस रिपोर्ट ने दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में अब सभी 10 स्थानों पर सिर्फ भारतीय शहरों को दर्ज किया है। यह आंकड़ा सिर्फ प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आपातकाल की घंटी है—जहां हर सांस के साथ ज़हर शरीर में प्रवेश कर रहा है।

देश की हवा में ज़हर: भयावह संकेत

रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान का बिगासर (PM2.5 स्तर 830), हरियाणा का सोनीपत (433) और झज्जर (477), तथा उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर (634) और गाजियाबाद (439) जैसे शहर अब वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक प्रदूषित माने जा रहे हैं।

यह स्थिति तब और अधिक गंभीर हो जाती है जब देश की राजधानी दिल्ली इस सूची में 13वें स्थान पर है, जिसकी हवा 'गंभीर श्रेणी' में दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्तर की हवा में फेफड़ों, हृदय और तंत्रिका तंत्र पर दीर्घकालिक असर होता है, और यह भारत में समयपूर्व मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में से एक बन चुका है।

"विकास की सच्ची परिभाषा वही है, जहाँ विकास के साथ हवा भी स्वच्छ रहे।"

आईक्यूएयर की रिपोर्ट दर्शाती है कि हमने विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति को पीछे छोड़ दिया है। आज भारत के लिए प्रदूषण केवल पर्यावरण की समस्या नहीं, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक त्रासदी भी बन चुकी है।

अदृश्य संकट: 'धीमी मौत' का खतरा

प्रदूषण अब एक "धीमी मौत" का रूप ले चुका है। आईक्यूएयर और विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर वर्ष 15 से 18 लाख लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है।

• बच्चों में अस्थमा, श्वसन संक्रमण और एलर्जी तेजी से बढ़ रही हैं।

• बुजुर्गों में हृदय और रक्तचाप संबंधी बीमारियाँ बढ़ रही हैं।

• कार्यशील युवाओं की उत्पादकता घट रही है।


प्रदूषण के मूल कारणों में वाहन उत्सर्जन की विस्फोटक वृद्धि, औद्योगिक प्रदूषण पर कमज़ोर नियंत्रण, अनियंत्रित निर्माण कार्य की धूल, और कृषि क्षेत्रों में पराली जलाना शामिल हैं। साथ ही, कोयला आधारित बिजली संयंत्र अभी भी बड़े पैमाने पर सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं।

समाधान की दिशा: अब आधे उपाय नहीं चलेंगे

विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का मानना है कि केवल 'ऑड-ईवन' जैसे अल्पकालिक उपाय अब पर्याप्त नहीं हैं। इस राष्ट्रीय आपातकाल से निपटने के लिए बहुआयामी और कठोर कदम उठाने होंगे:

1. नीति-स्तर पर सख़्ती: सरकार को उद्योगों और थर्मल पावर स्टेशनों के उत्सर्जन मानकों पर तुरंत कठोर नियंत्रण लागू करना होगा।

2. हरित परिवहन को प्रोत्साहन: सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना।

3. कृषि में सुधार: पराली जलाने की समस्या के लिए किसानों को बायोमास संयंत्र और कम्पोस्टिंग जैसे आर्थिक और तकनीकी विकल्प उपलब्ध कराना।

4. जन-सहभागिता: यह संकट केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं है। हर नागरिक को पेड़ लगाने, प्लास्टिक का उपयोग कम करने और स्थानीय स्वच्छता अभियानों में भागीदार बनना होगा।

5. ग्रीन बेल्ट और शहरी नियोजन: शहरों में ग्रीन बेल्ट, खुली भूमि, और औद्योगिक क्षेत्रों का पृथक्करण सुनिश्चित करना अनिवार्य है।

भारत को अब यह समझना होगा कि हर सांस एक प्रश्न है और स्वच्छ हवा उपलब्ध कराना अब केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि हर नागरिक का जीवन का अधिकार है।

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