Madhopatti Village Ki Kahani: 75 घर, 50 अफसर: IAS-IPS की कहानी कहता यूपी का माधोपट्टी

Madhopatti Village Ki Kahani: महज 75 घरों वाला छोटा-सा गांव माधोपट्टी आज पूरे देश में ‘UPSC गांव’ के नाम से जाना जाता है।

Jyotsna Singh
Published on: 6 Sept 2025 10:00 AM IST
UPSC village of India
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UPSC village of India (Image Credit-Social Media)

Madhopatti Village Ki Kahani: भारत में लाखों युवा एक प्रशासनिक अधिकारी बनने का ख्वाब आंखों में सजाएं सालों तक कड़ी मेहनत के साथ तैयारी करते हैं। इस उम्मीद में किसी तरह यूपीएससी की परीक्षा पास कर IAS या IPS बन जाएं। इसके लिए वे अपना घर और गांव छोड़ कर बड़े शहरों की कोचिंग में जाकर हजारों-लाखों रुपए परीक्षा की तैयारी में खर्च करते हैं। जिनमें से कई सफल होते हैं और कई नहीं हो पाते। क्या आपको पता है भारत के यूपी में एक ऐसा गांव है जहां लगभग हर घर से एक अधिकारी निकल चुका हो? यह कोई कहानी नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का सच है। महज 75 घरों वाला छोटा-सा गांव माधोपट्टी आज पूरे देश में ‘UPSC गांव’ के नाम से जाना जाता है। यहां से अब तक 50 से ज्यादा अफसर निकल चुके हैं, जिनमें IAS, IPS, IRS से लेकर वैज्ञानिक और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में काम करने वाले लोग शामिल हैं। जिसका श्रेय स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर भगवती दीन सिंह और उनकी पत्नी श्यामरति सिंह को जाता है। जिन्हेंने गांव में पढ़ाई-लिखाई की अलख जगाई। आइए जानते हैं इस खास गांव के बारे में जानते हैं विस्तार से -

शिक्षा की लौ से चमकी इस गांव की किस्मत


आज से एक सौ आठ साल पहले माधोपट्टी एक साधारण गांव था। लोग खेती-बाड़ी करते और जीवन यापन में जुटे रहते। लेकिन साल 1917 में स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर भगवती दीन सिंह और उनकी पत्नी श्यामरति सिंह ने गांव में पढ़ाई-लिखाई की अलख जगाई। श्यामरति सिंह ने अपने घर में ही लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। उस जमाने में यह बहुत बड़ा कदम था, क्योंकि ग्रामीण समाज में बेटियों को पढ़ाना आम नहीं था। धीरे-धीरे लड़के भी उनके पास पढ़ने आने लगे। यहीं से शिक्षा का माहौल बना और पढ़ाई गांव की पहचान बनने लगी।

माधोपट्टी गांव का पहला IAS जो बना सबकी प्रेरणा

1952 में इस गांव से पहली बार डॉ. इंदुप्रकाश ने यूपीएससी पास कर इतिहास रच दिया। उन्होंने पूरे देश में दूसरी रैंक हासिल की और IAS बने। उनकी सफलता ने पूरे गांव को एक नई दिशा और प्रेरणा मिली। इसके बाद एक परम्परा बन सिलसिला चल निकला।

1964 में छत्रसाल सिंह IAS बने और आगे चलकर तमिलनाडु के मुख्य सचिव बने। उसी साल अजय सिंह भी अफसर बने। 1968 में शशिकांत सिंह ने कामयाबी हासिल की। 1990 के दशक में तो यह गांव पूरे देश की सुर्खियों में आ गया, जब एक ही परिवार के पांच लोग IAS-IPS बने। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था।

इस गांव में बेटियां भी पीछे नहीं हैं

माधोपट्टी की पहचान सिर्फ पुरुष अधिकारियों से नहीं है। यहां की बेटियों ने भी सिविल सेवाओं में झंडे गाड़े। 1980 में आशा सिंह, 1982 में ऊषा सिंह और 1983 में इंदु सिंह ने अधिकारी बनकर साबित किया कि यह गांव लड़कियों को भी सपनों की उड़ान देना जानता है।

सिर्फ अफसर ही नहीं, वैज्ञानिक और वैश्विक पहचान में भी है अव्वल


यह गांव सिर्फ IAS-IPS तक ही सीमित नहीं रहा। यहां के लोग विज्ञान, शिक्षा, सेना और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भी झण्डा गाड़ चुके हैं। इसी गांव के जन्मेजय सिंह विश्व बैंक में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं। डॉ. ज्ञानू मिश्रा इसरो में वैज्ञानिक हैं। देवेंद्र नाथ गुजरात के सूचना निदेशक रह चुके हैं।

गांव के कई लोग NASA और UN जैसी संस्थाओं में काम कर रहे हैं।यानी माधोपट्टी ने अपनी प्रतिभा से गांव का नाम देश की सीमाओं से बाहर भी चमकाया है।

प्रधानमंत्री भी हैं इस गांव के प्रशंसक

माधोपट्टी की पहचान अब इतनी मजबूत हो चुकी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसका जिक्र किया। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान जौनपुर की एक सभा में उन्होंने कहा था कि यह गांव देश के लिए गर्व की बात है, जहां से इतनी बड़ी संख्या में अफसर निकले हैं।

आखिर क्या है इस सफलता का राज़

माधोपट्टी की कामयाबी का राज उसके परिवारों और समाज की सोच में छिपा है। यहां बच्चों को शुरू से पढ़ाई के लिए प्रेरित किया जाता है। जब किसी घर से कोई बच्चा IAS बनता, तो बाकी बच्चे भी उसी राह पर चलने के लिए प्रोत्साहित होते। यह सकारात्मक प्रतिस्पर्धा धीरे-धीरे गांव की संस्कृति का हिस्सा बन गई।

यहां माता-पिता बच्चों से कहते, 'खेती हम कर लेंगे, तुम बस पढ़ाई करो।' यही सोच अगली पीढ़ी को नई ऊंचाइयों तक ले गई।

मजबूत हौंसलों से की हर बाधा पार

सीमित सुविधाओं के बीच इस गांव के होनहारों के सामने बेशक, यह रास्ता आसान नहीं था। गांव में बिजली से लेकर किताबों की उपलब्धता बेहद सीमित थीं। अच्छे स्कूल, लाइब्रेरी और कोचिंग जैसी व्यवस्था नहीं थी। फिर भी बच्चों ने मेहनत से सबको पीछे छोड़ दिया। आज भी कई युवा बड़े शहरों में जाकर तैयारी करते हैं, लेकिन उनका हौसला और लगन उन्हें सफलता की ओर ले जाता है।

नजीर बन गया है आज का माधोपट्टी


आज जब कोई माधोपट्टी पहुंचता है, तो वहां का माहौल देखकर हैरान रह जाता है। इस छोटे से गांव के हर घर में पढ़ाई को लेकर गंभीरता दिखती है। बच्चों के कमरे किताबों और नोट्स से भरे रहते हैं। बड़े-बुजुर्ग भी बच्चों से रोज पूछते हैं कि उनकी तैयारी कैसी चल रही है। खेती-बाड़ी के साथ-साथ पढ़ाई इस गांव की असली पहचान बन चुकी है।

भारत में हजारों गांव ऐसे हैं, जहां पढ़ाई अभी भी प्राथमिकता नहीं है। वहीं माधोपट्टी यह साबित करता है कि अगर समाज मिलकर शिक्षा को महत्व दे, तो सीमित संसाधन भी बड़ी रुकावट नहीं बनते। यह गांव देश को संदेश देता है कि छोटे से छोटे स्थान से भी बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं।

माधोपट्टी एक प्रेरणा बन चुका है। यह गांव संदेश देता है कि असली ताकत न तो पैसे में है और न ही संसाधनों में, बल्कि शिक्षा, मेहनत और सकारात्मक सोच में है। माधोपट्टी ने साबित कर दिया है कि अगर सपना देखने की हिम्मत हो और उसे पूरा करने का जुनून हो, तो व्यक्ति हर हालात से गुजर कर दुनिया का गौरव बन सकता है।

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