Motivation Poem Hindi: "बर्फ की दीवार से बयार की महक तक: प्रेम, स्मृति और अंतर्मन का स्वर-संगीत"

Motivation Hindi Poem: "यह संग्रह प्रेम, स्मृति और जीवन के आंतरिक संघर्ष की गहन अनुभूतियों को बर्फ से बयार तक की प्रतीकों और स्वर-संगीत के माध्यम से उजागर करता है।"

Yogesh Mishra
Published on: 12 Sept 2025 7:00 AM IST
Hindi poem
X

Hindi poem (Image Credit-Social Media)

बर्फ की दीवार सी

बर्फ की दीवार थी

तुम

पिघल गयी

घुल गयी हवा

और

वह परछाई भी

और

ठोस जो साकार था।

घुल गया

आंगन में नहीं

ओसारे में नहीं

दोगाहे में नहीं

दुआर

बहुत बड़ा दयार

कोई मेड़

बांध

बसवार भी नहीं

खुला-खुला

खिला-खिला

वैसे

जैसे

बांहों के बीच

अब

बर्फ नहीं

बयार भर है

महकती सी।

========================================

ऋचा

ऋचा

तुम हो वेद मंत्र

सच बताओ

कैसे गाऊं !

गाने में

यूं स्वर कंपन

कैसा तर्पण

कैसा अर्पण

आत्म समर्पण

आत्म अमर्पण

कितना अपनापन

कैसे मैं सुर मिलाऊं।

तार गई

मैं हार गई

यह हार विजय की

यह हार हृदय की

गुनगुनी धूप बसंत

की

जैसे

पाखुरी कचनार से

प्रेम की पुलकित भाषा

ऋचा को

गाने, सुर मिलाने, अपनाने

की अभिलाषा ।

जीवन

सपने

सृजन

कहो ना, गाओ ना

गुनगुनाओ ना मैं

भी गाऊं, सुर मिलाओ।

तुम मेरी हो

यह कह हर्षाऊं

फिर तुम को पाने का

उत्स मनाऊं

तेरे पावन परिणय में

मैं एक सप्तपदी बन जाऊं।

============================================

तुम ही तो

असाध्य वीणा

अलंघ्य क्रीड़ा

अव्यक्त पीड़ा।

और

पिघल रहे प्रेम की मानिन्द

नैनों का सावन

तुम ही तो थे।

झर-झर स्वर के निनाद

उठते धुएं में लुकाने को

भागता चांद,

या कि देहरी से भीतर

देह की अलंघ्य माद

पोर-पोर बाकी और

बंधन में

गुंथी गात की हर सांस

में तुम ही तो थे।

आतुर मन और

हृदय का उन्माद

प्रणय के आलिंगन से

कसमसा कर भागे

बिछलाकर निकले

और

निकल चुके द्वार के

उस पार भी

तुम ही तो थे।

तुम ही तो थे।

=======================================

आ सुन

गीत गाते

शब्द पाते औ' अघाते

स्वर सताते

सुर जगाते

याद

सच में याद

तू

फरियाद तो सुन।

उस किताबी

फूल की

हर पंखुड़ी पर

आह से

उच्छवास भर

जो अंक चिपका

जरा वह याद तो सुन।

पत्र के पन्ने कुंवारे

आंख के सपने हमारे

सांस की सौगात थामे

शब्द पथ पर

चल हमारे

सब दुआरे

उस किनारे जो उठा

और

दौड़ा जिन्दगी की ओर

आ शेष-अवशेष से

निनाद तो सुन।

और सुन

उस गांव को

अभिमान को

अनुमान को

जिसके सहारे

राह निकली दूर

चाह अपनी

साथ उनका

फिर पुरानी

कसमों से आगे

बहुत भागे, खूब भागे

पर जा चुकी उस बात

और सौगात से

संज्ञान तो सुन।

आ!

जरा एक बार फिर से

उम्र की आवाज़ तो सुन।

प्रेम के प्यासे

समन्दर से उठी

लहरों की तड़प

और धारा की

तान तो सुन।

आ! सुन

फरियाद तो सुन।

============================================

राम-रावण

न इस देश में राम रहे हैं

न इस देश में रावण ।

न इस वेश में राम रहे हैं

न इस वेश में रावण ।

फिर भी हर वर्ष

हम दशहरा मनाते हैं

रावण पर राम की विजय करा

हर्षाते हैं।

हर बार रावण राम के हाथों बिंधा जाता

कुम्भकरण मेघनाथ भी हता जाता।

लेकिन हमेशा हमारे अन्दर का रावण

और नया जीवन पा जाता

अन्दर के राम का मरना हमें भाता।

हर आदमी के अन्दर है राम-रावण

राम के थोथे आचार-रावणी विचार

पर आदमी क्यों नहीं मारता अन्दर का रावण।

वह हर वर्ष

कागजी रावण को मार क्यूं हर्षाता

रामलीला में दशहरे पर

इस कर्म को पर्व के रूप में मनाता।

लेकिन अन्दर का रावण नहीं मार पाता।

वह हर साल नया जीवन पाता

अन्दर राम-रावण समर में

हर क्षण राम हता जाता

राम के मरने की यह

परम्परा जब तक रहेगी जीवित

तब तक यह राम-रावण युद्ध

रहेगा अविजित ।

रावण के दस शीशों ने

बना लिए हैं लाखों-करोड़ों सर

अनगिनत भुजाएं

जिसमें हमारा राम नित समाता जाता

राम-रावण के इस समर में

रावण के वध की जगह

राम को बचाने का होना चाहिए नया नाता।

1 / 6
Your Score0/ 6
Admin 2

Admin 2

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!