TRENDING TAGS :
Motivation Poem in Hindi: तुम्हारा प्यार, मौन का संवाद और शहर की परछाइयाँ
Motivation Poem in Hindi: “योगेश मिश्र की कविताएँ प्रेम की गहराई, शहर की सच्चाई और मौन की भाषा को उजागर करती हैं। ये कविताएँ संवेदनाओं और जीवन के अनुभवों का सजीव चित्रण हैं।”
Yogesh Mishra Poem (Image Credit-Social Media)
तुम्हारा प्यार
तुम्हारा प्यार
कि जैसे नदियों की कल-कल नाद से
उपजी अनुभूति।
झरनों की झर-झर से गूंजे स्वर
जैसे लहरों में उठती गिरती
लहराती बलखाती नाव।
जैसे पर्वत की चोटियों से
प्रतिध्वनित होकर आती
खुद की पुकार।
कभी बन जाती मेघ मल्हार
और छेड़ देती
प्राणों के स्पन्दित स्वर
कि जैसे चैत की पुरुवा बयार
जैसे बादलों को कोसती बतियाती
और फिर कहीं और चली जाती
फागुनी हवा।
जैसे सावन की बून्दों से
उधार मांगते संगीत ।
तुम्हारा प्यार
कि जैसे कभी-कभी
सुरखाब के पर देखते समय
सुन ली हो पपीहे की तान।
दूर गूंज रहा झींगुर का गान
कभी कोयल का तराना
कभी कागा की उचरन
और पायल की झंकार।
कभी बहुत दूर नदी में तैरते
दीये की लौ...
कभी मंदिर से आती
घंटियों की निनाद सुनाती आवाज।
कभी दुल्हन के हाथ का महावर
कहीं बसवारी में
सरसराती बहती बयार।
कहीं हरदी की गांठ जस
पियराई, गदराई, अल्हड़ सरसों।
कभी लाल टेस पलाश की
चहुंओर दिखन।
कभी झूमती नीम की डाल
कभी पुरइन के पात पर ठिठकी कोई बूंद।
==============================================
शहर
शहरों में नहीं बसते हैं अपने लोग
यहां होता है आडम्बर औ' पाखंड जीता व्यक्ति ।
बहुरूपिए शहर में
असली चेहरे की शिनाख्त होती है मुश्किल।
नितांत बेतरतीबी औ' बदहवासी
के साथ पांव पसारते शहरों में
लोगों की आंखों में दिखता
निपट अपरिचय-उपेक्षा का भाव।
बाजार के खेल पर यहां टिकी होती हैं
सामाजिक संरचनाएं,
पाउच में बिकती संवेदनाएं
गिट्टियों की शक्ल में बिकते पहाड़
खानदानी रवायतों-परतों को तोड़कर
भागती जमीन ।
आत्म केन्द्रित कुटिल समय के साथ
उगते मशीनी सभ्यता के विषैले डंक
तुरत-फुरत आप में समा जाने वाली आत्मीयता
नितांत मौलिक प्रश्नों से टकराते चरित्र
निरन्तर नुकीले होते औ' चुभते दृष्टिबोध।
यहां होते हैं सभ्यता के अंतर-विरोधी चरण
जिनका सम्भव नहीं वरण
ये बताते हैं यहां सब कुछ
बनाया गया है, बसाया गया है।
यहां बहती नदियां, आस-पास के पहाड़
झरने, सड़क, दीवार औ' मीनार
सब हैं सजावटी-बनावटी
इसीलिए निरन्तर बदलती जाती है
यहां रिश्तों की जमीन ।
जो नहीं दे पाते रागात्मक चेतना को बल
उसे नहीं प्रदान करते सम्बल।
===========================================
मौन का संवाद
मौन में शब्द भले न हों
पर मौन में होते हैं अनेक अर्थ
अनेक प्रसंग, अनेक सन्दर्भ
अनेक तरह के सन्देश।
तभी तो आंखें बोलती हैं
लब सिले होते हैं
फिर भी पढ़ ली जाती हैं बातें।
अंग-भाषा भी पढ़ते हैं तमाम लोग
भौहें मुस्कुराती हैं
फड़कते हैं होंठ, बाहें और आंखें
इनके भी होते हैं अर्थ
कभी सुना है मौन में बुदबुदाते शब्द।
उनींदी आंखों में होते हैं शब्द
बंद आंखें कहती हैं चुक जाने की कथा
बताती हैं सारी व्यथा ।
मैंने कई बार पढ़े हैं
तुम्हारे चेहरे की झुर्रियों में
अपने जीवन के तमाम अंश।
तुम्हारी आंखों में कई अधूरे ख्वाबों की इबारत
सुनी है खामोश आंखों से करती हुई बातें।
वह छूकर बताती है अपना-मेरा प्रेम
वह प्रेम कह नहीं पाती
क्योंकि प्रेम नहीं है शब्द
नहीं है अर्थ
यह अनुभूति है।
इसे कहने के लिए
हैं शब्द व्यर्थ।
इसके छुअन में हैं अनंत अर्थ।
मौन में व्यक्त हो जाते हैं सारे सच
जिन्हें कह पाने में शब्द होते हैं विवश
मौन में अर्थ नहीं होते
तो नहीं होती कलाएं
कलाओं में संग्रहित रहती हैं परम्पराएं
कलाएं वाहक होती हैं धरोहरों की
चिन्तन के स्तर पर कलाएं भी
करती हैं संवाद
तमाम स्मृतियों-विस्मृतियों
खामियों और विशेषताओं को ढोती हैं कलाएं।
बहुत कुछ कहती हैं हवाएं
नदियां, समन्दर और पहाड़
पर इनके पास नहीं होती कोई भाषा
फिर भी ये बनते हैं प्रतीक
तमाम कुछ कहने के लिए
जब कुछ ज्यादा कहना हो
तब खामोशी होती है सबसे अहम किरदार ।
शब्द इतने अनिवार्य होते
तो दो भाषा-भाषियों
दो देशवासियों
के बीच कैसे उपजता,
पनपता, बढ़ता, फलता-फूलता प्रेम।
कितना सालती है
कुछ न कह पाने की टीस
कितना सालती है उसके कुछ न कह पाने की खीस।
बोलने और खामोश रहने का अन्तर
बताता है खामोशी में
कम नहीं है भाष्य
इसी में होता है चिरजीवी आभास ।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!