Nagpur Orange History: नागपुर क्यों कहलाता है ऑरेंज सिटी? जानिए संतरे की खेती का इतिहास

Nagpur Orange History: नागपुर के रसीले संतरे की खुशबू ने इसे सिर्फ खेतों तक नहीं बल्कि देशभर में 'ऑरेंज सिटी ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर कर दिया है।

Shivani Jawanjal
Published on: 26 July 2025 10:40 AM IST (Updated on: 26 July 2025 10:41 AM IST)
Nagpur Orange History
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Nagpur Orange History: भारत के हृदय स्थल, महाराष्ट्र राज्य का एक प्रमुख शहर है - नागपुर। यह न केवल भौगोलिक दृष्टि से देश के केंद्र में स्थित है बल्कि सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण शहर है। लेकिन जब भी नागपुर का नाम आता है, तो सबसे पहले दिमाग में जो छवि बनती है वह है - 'ऑरेंज सिटी' की। यानी संतरों का शहर। आख़िर क्या वजह है कि नागपुर को संतरे का शहर कहा जाता है? इस शहर का संतरे से क्या नाता है? क्या यह सिर्फ एक पहचान है या इसके पीछे कोई ऐतिहासिक, आर्थिक और कृषि आधारित कारण भी हैं?

आइए जानते हैं कि नागपुर को ऑरेंज सिटी क्यों कहा जाता है और कैसे यह नाम इसकी पहचान बन चुका है।

संतरे की खेती का इतिहास


नागपुर में संतरे की खेती की परंपरा लगभग 200 वर्षों पुरानी मानी जाती है, जिसकी शुरुआत भोसले राजवंश के समय हुई थी। 19वीं सदी में यहां संतरे की जो पहली किस्म उगाई गई वह 'नागपुरी संतरा' के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस क्षेत्र की अनोखी काली मिट्टी (ब्लैक कॉटन सॉइल) और सर्दियों में दिन और रात के तापमान में होने वाला अंतर, संतरे की खेती के लिए बेहद अनुकूल माहौल तैयार करते हैं। इसके अलावा यहां की सिंचाई व्यवस्था भी संतरे की गुणवत्ता को निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नागपुर का संतरा अपने मीठे स्वाद, रसीले गूदे और मोटे छिलके के लिए जाना जाता है।

नागपुर संतरा - एक विशेष किस्म


नागपुर का संतरा जिसे नागपुर मंडरिन या नागपुरी संतरा भी कहा जाता है। एक खास किस्म का सिट्रस फल है जो अपने मीठे स्वाद, पतले छिलके और अत्यधिक रस की मात्रा के लिए मशहूर है। इसमें विटामिन C और शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं। यह संतरा न केवल ताजे फल के रूप में खाया जाता है बल्कि इसका उपयोग जूस, जैम, कैंडी और अन्य खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्माण में भी बड़े पैमाने पर होता है। इसकी विशिष्ट गुणवत्ता और क्षेत्रीय पहचान को देखते हुए, नागपुर संतरे को 2014 में भौगोलिक संकेत (GI टैग) से सम्मानित किया गया। जो इसे कानूनी रूप से एक विशेष कृषि उत्पाद का दर्जा देता है।

उत्पादन और निर्यात केंद्र के रूप में नागपुर


नागपुर और इसके आसपास के जिलों जैसे अमरावती, वर्धा, चंद्रपुर, भंडारा और यवतमाल में संतरे की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। जिससे यह पूरा विदर्भ क्षेत्र भारत के प्रमुख संतरा उत्पादक क्षेत्रों में शामिल होता है। नागपुर जिले में लगभग 40,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में संतरे की खेती की जाती है । वार्षिक उत्पादन की बात करें तो नागपुर मंडरिन संतरे के उत्पादन का आंकड़ा लाखों मीट्रिक टन तक पहुंचता यहां उगाए जाने वाले नागपुरी संतरे न सिर्फ देश के प्रमुख महानगरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु की मंडियों में पहुंचते हैं बल्कि इनकी मिठास अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को भी पार करती है। बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल और खाड़ी देशों जैसे वैश्विक बाजारों में नागपुर संतरे की मांग लगातार बढ़ रही है। जिससे यह फल वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान मजबूत कर चुका है। जिससे यह क्षेत्र भारत के फल निर्यात में भी योगदान देता है।

संतरा व्यवसाय और अर्थव्यवस्था में योगदान

नागपुर का संतरा न केवल अपने बेहतरीन स्वाद और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है बल्कि यह क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। इस फल की खेती से जुड़े लाखों लोग किसान, मजदूर, व्यापारी, पैकिंग और ट्रांसपोर्ट कर्मचारी कृषि से लेकर विपणन तक की पूरी शृंखला में कार्यरत हैं। संतरे का यह व्यापार हजारों परिवारों की आजीविका का मुख्य आधार बन गया है। नागपुर के समीप स्थित कलमना फल बाजार एशिया के सबसे बड़े फल बाजारों में से एक माना जाता है। जहां प्रतिदिन हजारों टन संतरे की खरीद-बिक्री होती है। यह न केवल किसानों को व्यापक व्यापारिक अवसर देता है बल्कि संपूर्ण विदर्भ क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करता है। हाल के वर्षों में यह कृषि-व्यवसाय ग्रामीण समृद्धि और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मजबूत कदम साबित हो रहा है।

संतरे से जुड़े त्यौहार और सांस्कृतिक महत्त्व


नागपुर में संतरे से जुड़ी सांस्कृतिक परंपराओं में 'ऑरेंज फेस्टिवल' एक विशेष स्थान रखता है। यह उत्सव न केवल संतरे की विभिन्न प्रजातियों और आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रदर्शन करता है बल्कि यह किसानों, वैज्ञानिकों और व्यापारियों के लिए एक साझा मंच भी प्रदान करता है। जहाँ वे अपने अनुभव, नवाचार और उत्पादों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। नागपुर ऑरेंज फेस्टिवल क्षेत्र की कृषि समृद्धि के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को भी उजागर करता है। इस आयोजन से स्थानीय लोगों में गर्व की भावना उत्पन्न होती है और यह संतरा उत्पादकों को नई प्रेरणा तथा संभावनाओं से जोड़ता है।

सरकारी योजनाएं और शोध

नागपुर और विदर्भ क्षेत्र में संतरे की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र सरकार और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा कई सराहनीय पहल की गई हैं। किसानों को आधुनिक खेती की तकनीकों, उन्नत बीजों, कीट नियंत्रण उपायों और बेहतर सिंचाई प्रणाली के उपयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके साथ ही, राष्ट्रीय बागवानी मिशन (National Horticulture Mission) और एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) जैसी योजनाएं केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए कार्य कर रही हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत किसानों को प्रशिक्षण, गुणवत्ता युक्त बीज, सिंचाई उपकरण, फसल सुरक्षा साधन और विपणन सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, जिससे नागपुर के संतरा उत्पादकों को सीधे लाभ मिल रहा है। साथ ही पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ (PDKV), अकोला सहित कई शोध संस्थान संतरे की नई किस्मों, बेहतर उत्पादकता और कीट-रोग नियंत्रण के लिए निरंतर अनुसंधान कर रहे हैं। ये संस्थान स्थानीय किसानों को स्थायी और वैज्ञानिक खेती के तौर-तरीकों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

संतरे से जुड़ी चुनौतियाँ

नागपुर के संतरा किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिनमें कीट और रोग प्रमुख हैं। साइट्रस कैंकर, साइट्रस ग्रिप, गम ब्लोट और फफूंदीजनित रोग फलों की गुणवत्ता और उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। जिससे सतत कृषि पद्धतियों में रोग नियंत्रण अत्यंत आवश्यक हो जाता है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन भी एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। मानसून की अनिश्चितता, तीव्र गर्मी और मौसम में अस्थिरता फसल पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। आर्थिक दृष्टिकोण से भी किसानों को बाजार मूल्य में असंतुलन, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की अनुपलब्धता और बढ़ती उत्पादन लागत जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है। साथ ही क्षेत्र में संतरे के प्रसंस्करण जैसे जूस, जैम और अन्य उत्पादों को बनाने वाली इकाइयों की कमी के कारण फलों का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता, जिससे काफी मात्रा में उत्पादन व्यर्थ चला जाता है। इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को कृषि संस्थानों और उद्योगों को मिलकर दीर्घकालिक नीतियाँ बनानी होंगी। जैसे किसानों को कीट-रोग प्रबंधन की नवीनतम तकनीकों का प्रशिक्षण देना, जलवायु-अनुकूल कृषि विधियों का विकास करना, MSP और बाज़ार की बेहतर व्यवस्था करना, प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश को प्रोत्साहन देना और वित्तीय सहायता एवं बीमा जैसी सुविधाओं को सरल बनाना।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण से संतरा उत्पादन


नागपुर के संतरे न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। संतरे के बागों में लगे वृक्ष वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिससे हरितगृह गैसों में कमी आती है और वायु की गुणवत्ता में सुधार होता है। ये बाग न केवल पर्यावरण को शुद्ध करते हैं बल्कि हवा में मौजूद धूल और प्रदूषकों को भी कम करने में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त संतरे के पेड़ों की मजबूत जड़ें मिट्टी को थामे रखती हैं, जिससे वर्षा या तेज हवाओं के कारण होने वाले कटाव को रोका जा सकता है। ये बाग पक्षियों, कीट-पतंगों और सूक्ष्मजीवों के लिए एक सुरक्षित आवास भी प्रदान करते हैं। जिससे स्थानीय जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार नागपुर का संतरा एक ऐसी कृषि प्रणाली का प्रतीक है जो आर्थिक लाभ के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन को भी बनाए रखने में सहायक है।

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