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Karnataka Mysore Palace: कर्नाटक का मैसूर पैलेस है, इतिहास का जीत-जागता उदाहरण, आइए जानें इस पैलेस की खासियतें

Karnataka Mysore Palace History: मैसूर पैलेस, सिर्फ एक महल नहीं, बल्कि वडियार राजवंश की शाही विरासत और भारतीय वास्तुकला का एक अनमोल नमूना है।

Akshita Pidiha
Published on: 3 July 2025 7:37 PM IST
Mysore Palace of Karnataka
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Mysore Palace of Karnataka (Image Credit-Social Media)

Karnataka Mysore Palace History: मैसूर पैलेस, जिसे अंबा विलास पैलेस के नाम से भी जाना जाता है, कर्नाटक के मैसूर शहर का दिल है। ये सिर्फ एक महल नहीं, बल्कि वडियार राजवंश की शाही विरासत और भारतीय वास्तुकला का एक अनमोल नमूना है। इसे देखने के लिए हर साल लाखों पर्यटक देश-विदेश से आते हैं, और इसे ताजमहल के बाद भारत का दूसरा सबसे ज्यादा देखा जाने वाला ऐतिहासिक स्मारक माना जाता है। मैसूर को 'महलों का शहर' कहा जाता है, और इसकी चमक में मैसूर पैलेस सबसे ज्यादा जगमगाता है।

मैसूर पैलेस का इतिहास: एक शाही सफर

मैसूर पैलेस की कहानी 14वीं सदी से शुरू होती है, जब वडियार राजवंश ने इस क्षेत्र पर शासन शुरू किया। इस महल को कई बार तोड़ा और बनाया गया, लेकिन हर बार ये और भव्य बनकर उभरा। आइए, इसके इतिहास को कुछ अहम बिंदुओं में समझें:


शुरुआत और पहला महल: वडियार राजवंश की नींव 1399 में यदुराया वडियार ने रखी थी। उन्होंने मैसूर के पुराने किले में पहला महल बनवाया, जो लकड़ी का था। ये महल उस समय की साधारण वास्तुकला का नमूना था, लेकिन बार-बार आग लगने की वजह से इसे कई बार दोबारा बनाना पड़ा।

टिपू सुल्तान का दौर: 18वीं सदी में, जब टिपू सुल्तान ने मैसूर पर कब्ज़ा किया, तो उन्होंने पुराने महल को तोड़कर नया बनवाया। 1799 में टिपू की हार के बाद वडियार राजवंश फिर से सत्ता में आया, और महाराजा कृष्णराज वडियार तृतीय ने 1803 में हिंदू शैली में एक नया महल बनवाया।

1897 की आग: 1897 में, चामराज वडियार की बेटी जयलक्ष्मम्मनी की शादी के दौरान, लकड़ी से बना ये महल आग में जलकर राख हो गया। इसके बाद, रानी वानी विलास सन्निधाना और उनके बेटे महाराजा कृष्णराज वडियार चतुर्थ ने फैसला लिया कि एक ऐसा महल बनवाया जाए, जो दुनिया में अपनी छाप छोड़े।

आधुनिक मैसूर पैलेस: 1897 में शुरू हुआ निर्माण 1912 में पूरा हुआ। इस बार ब्रिटिश आर्किटेक्ट हेनरी इरविन ने इसे डिज़ाइन किया, और इसकी लागत उस समय 41 लाख 47 हज़ार 913 रुपये थी। ये नया महल इंडो-सरैसेनिक शैली में बना, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, राजपूत और गॉथिक शैलियों का अनोखा मिश्रण है।

आज का मैसूर पैलेस वही है, जो 1912 में बनकर तैयार हुआ। इसके बाद 1940 में महाराजा जयचामराजेंद्र वडियार ने इसमें कुछ और विस्तार करवाया। आज भी वडियार परिवार का एक हिस्सा इस महल में रहता है, जबकि बाकी हिस्सा संग्रहालय के रूप में पर्यटकों के लिए खुला है।

मैसूर पैलेस की वास्तुकला: कला और शिल्प का संगम


मैसूर पैलेस की वास्तुकला इतनी खूबसूरत है कि इसे देखकर आँखें ठहर सी जाती हैं। ये महल इंडो-सरैसेनिक शैली का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें भारतीय और यूरोपीय तत्वों का मेल है। आइए, इसकी वास्तुकला की खासियतों को समझें:

बाहरी संरचना: महल तीन मंज़िला है और ग्रे ग्रेनाइट से बना है। इसकी लंबाई 245 फीट और चौड़ाई 156 फीट है। महल के चारों कोनों पर चौकोर टावर हैं, जिनके ऊपर गुलाबी संगमरमर के गुंबद बने हैं। सबसे ऊँचा टावर 145 फीट का है, जिसके ऊपर सोने का पानी चढ़ा गुंबद चमकता है।

प्रवेश द्वार: महल में चार मुख्य द्वार हैं - जय मार्तंड (पूर्व), जयराम (उत्तर), बलराम (दक्षिण) और वराह (पश्चिम)। मुख्य प्रवेश द्वार को 'अणे बागिलु' यानी एलिफेंट गेट कहते हैं, जो शक्ति और भव्यता का प्रतीक है। इस द्वार के दोनों तरफ ब्रिटिश मूर्तिकार रॉबर्ट विलियम कोल्टन द्वारा बनाई गई कांस्य की बाघों की मूर्तियाँ हैं।

दरबार हॉल: ये महल का सबसे शानदार हिस्सा है। इसमें रंग-बिरंगे खंभे, नक्काशीदार छत और विशाल दर्पण हैं। दीवारों पर वडियार राजवंश और हिंदू पौराणिक कथाओं की पेंटिंग्स हैं। इस हॉल में राजा अपने सलाहकारों के साथ बैठकर शासन के काम निपटाते थे।

कल्याण मंडप: शादी और समारोहों के लिए बना ये हॉल आठ कोनों वाला है। इसकी छत पर बेल्जियम से लाया गया रंग-बिरंगा कांच लगा है, जिसमें मोर और फूलों के डिज़ाइन हैं। फर्श पर चमकदार टाइल्स और दीवारों पर नक्काशी इसे और खास बनाती है।

गोमबे थोट्टि: इसे गुड़िया मंडप भी कहते हैं। यहाँ दशहरा उत्सव के दौरान गुड़ियों की पूजा और प्रदर्शन होता है। इस हिस्से में सोने से सजा एक लकड़ी का हाथी भी रखा है, जो शाही वैभव को दर्शाता है।

सुनहरा सिंहासन: महल का सबसे कीमती आकर्षण है सुनहरा हौदा, जिसका वज़न 750 किलो है और ये 80 किलो सोने की परतों से बना है। इसे दशहरा जुलूस में इस्तेमाल किया जाता है, जब चामुंडेश्वरी माता की मूर्ति को इस पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है।

बगीचे और मंदिर: महल के चारों तरफ हरे-भरे बगीचे हैं, जो इसकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं। परिसर में 12 हिंदू मंदिर हैं, जिनमें से लक्ष्मीरमण स्वामी मंदिर और श्वेत वराहस्वामी मंदिर सबसे प्रसिद्ध हैं। ये मंदिर 14वीं से 20वीं सदी के बीच बने।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व



मैसूर पैलेस सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि मैसूर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक है। आइए, इसके महत्व को कुछ बिंदुओं में देखें:

वडियार राजवंश का गौरव: वडियार राजवंश ने 1399 से 1947 तक मैसूर पर शासन किया। इस दौरान उन्होंने कला, साहित्य और वास्तुकला को बढ़ावा दिया। महल में मौजूद पेंटिंग्स, हथियार और शाही कपड़े इस राजवंश की समृद्धि को दर्शाते हैं।

दशहरा उत्सव: मैसूर का दशहरा दुनिया भर में मशहूर है। इस दौरान महल को 97,000 बल्बों से सजाया जाता है, जो रात में इसे किसी जादुई नगरी जैसा बना देता है। दशहरा जुलूस में सुनहरा हौदा और चामुंडेश्वरी माता की मूर्ति मुख्य आकर्षण होते हैं।

योग और कला का केंद्र: 20वीं सदी की शुरुआत में, महाराजा के अनुरोध पर तिरुमलै कृष्णमाचार्य ने यहाँ योग सिखाया। उनके शिष्य बी.के.एस. अयंगर और के. पट्टाभि जोइस ने विश्व में योग को लोकप्रिय बनाया। इसके अलावा, महल में कन्नड़ साहित्य और कला को भी बढ़ावा दिया गया।

पर्यटन का केंद्र: हर साल 35 लाख से ज्यादा पर्यटक यहाँ आते हैं। ये महल न सिर्फ मैसूर, बल्कि पूरे कर्नाटक के पर्यटन का प्रमुख हिस्सा है।

मैसूर पैलेस घूमने की जानकारी

अगर आप मैसूर पैलेस घूमने की सोच रहे हैं, तो यहाँ कुछ ज़रूरी जानकारी दी जा रही है, जो आपकी यात्रा को आसान और मज़ेदार बनाएगी:

स्थान: मैसूर पैलेस, अग्रहारा, चामराजपुरा, मैसूर, कर्नाटक 570001

समय: सुबह 10 बजे से शाम 5:30 बजे तक। लाइट एंड साउंड शो रात 7 बजे से 7:45 बजे तक (रविवार और सार्वजनिक छुट्टियों को छोड़कर)।

प्रवेश शुल्क: वयस्कों के लिए 100 रुपये, 7-18 साल के बच्चों के लिए 50 रुपये, 7 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त, विदेशी पर्यटकों के लिए 1000 रुपये।

कैसे पहुँचें: मैसूर बेंगलुरु से 140 किमी दूर है। आप बस, ट्रेन या टैक्सी से पहुँच सकते हैं। निकटतम हवाई अड्डा मैसूर हवाई अड्डा (10 किमी) और रेलवे स्टेशन मैसूर जंक्शन है। शहर में ऑटो, कैब और बसें आसानी से उपलब्ध हैं।

घूमने का सबसे अच्छा समय: अक्टूबर से फरवरी, जब मौसम सुहावना होता है। दशहरा उत्सव (सितंबर-अक्टूबर) के दौरान महल की सजावट और जुलूस देखने लायक होते हैं।

टिप्स:

जूते उतारने पड़ते हैं, इसलिए लॉकर सुविधा का इस्तेमाल करें (2 रुपये शुल्क)।

ऑडियो गाइड (हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़ आदि में) उपलब्ध हैं, जो 50-100 रुपये में मिलते हैं।

मोबाइल से फोटोग्राफी की अनुमति है, लेकिन DSLR या अन्य कैमरों का इस्तेमाल मना है।

भीड़ से बचने के लिए सुबह जल्दी या सप्ताह के दिनों में जाएँ।

लाइट एंड साउंड शो के टिकट केवल नकद में उपलब्ध हैं, जो रात 6:30 बजे के बाद मिलते हैं।

पास के आकर्षण जैसे चामुंडी हिल्स, मैसूर ज़ू और जयलक्ष्मी विलास हवेली भी ज़रूर देखें।

महल के प्रमुख आकर्षण


मैसूर पैलेस में कई ऐसी चीज़ें हैं, जो इसे खास बनाती हैं। यहाँ कुछ मुख्य आकर्षणों की बात करते हैं:

पेंटिंग्स गैलरी: 1934 से 1945 के बीच, वडियारों ने कर्नाटक के पाँच बेहतरीन कलाकारों को दशहरा जुलूस की भव्यता को चित्रित करने का काम सौंपा। इन 26 पेंटिंग्स में जुलूस की हर छोटी-बड़ी डिटेल को बखूबी दिखाया गया है।

सुनहरा हौदा: ये 750 किलो का सोने से सजा सिंहासन है, जिसमें 80 किलो शुद्ध सोने की परतें हैं। इसे दशहरा जुलूस में इस्तेमाल किया जाता है और ये महल का सबसे कीमती खजाना है।

चित्र दीर्घा: यहाँ वडियार परिवार की तस्वीरें और पेंटिंग्स हैं, जो उनकी शाही जीवनशैली को दर्शाती हैं।

हथियारों का संग्रह: महल के ऊपरी माले पर हथियारों का एक छोटा संग्रह है, जिसमें तलवारें, ढाल और पुराने हथियार शामिल हैं।

गुप्त सुरंगें: कहा जाता है कि महल के तहखाने से श्रीरंगपट्टनम और अन्य जगहों तक गुप्त सुरंगें जाती थीं, जो आपातकाल में इस्तेमाल होती थीं।

पास के दर्शनीय स्थल

मैसूर पैलेस के आसपास कई और जगहें हैं, जो आपकी यात्रा को और यादगार बना सकती हैं:

चामुंडी हिल्स: यहाँ चामुंडेश्वरी मंदिर है, जो मैसूर की कुलदेवी का मंदिर है। यहाँ से शहर का नज़ारा भी शानदार दिखता है।

जयलक्ष्मी विलास हवेली: ये महल अब एक संग्रहालय है, जिसमें वडियार राजवंश की कलाकृतियाँ हैं।

जगनमोहन पैलेस: ये एक कला दीर्घा है, जहाँ राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स और अन्य कलाकृतियाँ हैं।

सेंट फिलोमेना चर्च: ये एक खूबसूरत गॉथिक शैली का चर्च है, जो मैसूर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है।

बृंदावन गार्डन: मैसूर से 20 किमी दूर, ये बगीचा अपनी म्यूज़िकल फाउंटेन शो के लिए मशहूर है।

मैसूर पैलेस की अनोखी बातें


रात में रोशनी: हर रविवार और छुट्टियों पर रात 7 से 8 बजे तक महल को 97,000 बल्बों से सजाया जाता है, जो इसे किसी स्वप्नलोक जैसा बनाता है।

दशहरा का जश्न: मैसूर का दशहरा 15वीं सदी से मनाया जा रहा है। जुलूस में सजे-धजे हाथी, घोड़े और सैनिक शामिल होते हैं, और ये पूरे भारत में मशहूर है।

शाही परिवार: वडियार परिवार का 27वाँ उत्तराधिकारी, यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वडियार, अभी भी महल के एक हिस्से में रहता है। 2013 में उन्हें राजमाता ने गोद लिया था, और वे औपचारिक रूप से मैसूर के महाराजा कहलाते हैं।

कीमती संपत्ति: हाउसिंग.कॉम के अनुसार, इस महल का मूल्य 3,136.32 करोड़ रुपये है, जो इसे भारत के सबसे महंगे स्मारकों में से एक बनाता है।

मैसूर पैलेस सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और कला का एक जीवंत दस्तावेज़ है। इसकी भव्यता, नक्काशी और शाही वैभव हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। चाहे आप इतिहास के शौकीन हों, वास्तुकला के दीवाने हों, या बस एक खूबसूरत जगह की तलाश में हों, मैसूर पैलेस आपकी हर उम्मीद पर खरा उतरेगा। दशहरा उत्सव के दौरान इसकी चमक और रौनक देखने लायक है, और इसके बगीचे, मंदिर और संग्रहालय आपके दिल में एक खास जगह बना लेंगे। तो अगली बार जब आप मैसूर जाएँ, इस शाही रत्न को देखना न भूलें। ये न सिर्फ एक जगह है, बल्कि एक ऐसी कहानी है, जो वडियार राजवंश के गौरव और मैसूर की आत्मा को बयाँ करती है।

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