Premanand Ji Maharaj: इन बातों का न करें दूसरों से बखान, प्रेमानंद महाराज का संदेश

Premanand Ji Maharaj: संत प्रेमानंद महाराज का संदेश—भजन और साधना का असली प्रभाव मौन और आंतरिक अभ्यास में छिपा है। दिखावे से बचें, चिंता से मुक्त रहें और जीवन को भक्ति, सत्कर्म व नामजप से पूर्ण बनाएं।

Jyotsna Singh
Published on: 15 Sept 2025 7:00 AM IST
Premanand Ji Maharaj
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Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premananda Ji Maharaj : संत प्रेमानंद महाराज जी के संदेश इस हद तक मानवीय संवेदनाओं को प्रभावित कर रहें है कि देश तो क्या विदेशों से भी बड़ी संख्या में इनके दर्शन और आशीर्वाद पाने के लिए लोग आतुर हो रहे हैं। ऐसे ही एक दिव्य प्रवचन में प्रेमानंद जी भौतिक सुखों की चाहत में पाप और अधर्म का राह पर तेजी से बढ़ते रही मानसिकता को झकझोरते हुए कहा है कि, मृत्यु ऐसी सच्चाई है जिसके साथ इंसान की ज़िंदगी में धन, संपत्ति, मकान और शोहरत कितनी भी क्यों न हो, एक दिन सब कुछ पीछे छूट जाता है। कोई भी चीज़ हमारे साथ नहीं जाती। लेकिन एक खजाना ऐसा है जो जन्म और मृत्यु की सीमाओं से भी परे हमें सहारा देता है। वह है भजन और साधना। संत प्रेमानंद महाराज हमेशा यही बताते हैं कि जीवन का असली सहारा भगवान का नाम है। अगर हम नाम-जप और भक्ति को अपनी आदत बना लें, तो जीवन न सिर्फ आसान हो जाता है बल्कि उसमें गहरा आनंद भी भर जाता है।

लोगों से गुप्त रखें भजन-वृत्ति और साधना से जुड़े राज


भक्ति का सबसे बड़ा नियम है इसमें बाहरी आडंबर और दिखावे का भाव नहीं होना चाहिए। महाराज कहते हैं कि हम जब सच्चे मन से लगातार ईश्वर भजन करते हैं और तप त्याग से साधना और अनुष्ठान करते हैं तो उसका लाभ भी मिलता है। लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात है कि उसका बखान दूसरों से करने की ज़रूरत नहीं होती। क्योंकि जैसे बीज को मिट्टी के भीतर दबा रहने से ही अंकुर निकलता है, वैसे ही साधना का बीज भी मौन में ही बढ़ता है। अगर इसे बार-बार बाहर निकाला जाए, तो उसकी शक्ति घट जाती है। इसलिए साधक को अपनी भजन-वृत्ति दिल की गहराइयों में संजोकर रखना चाहिए।

जीवन में सुख-शांति के लिए चिंता रूपी नागिन से मुक्ति

चिंता मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है। यह एक ऐसी नागिन है जिसने कभी किसी को नहीं छोड़ा। जो लोग अपने चित्त को केवल शरीर या संसार से जोड़कर रखते हैं, वे हमेशा भय, पाप और उद्वेग और चिंता में फंसे रहते हैं। लेकिन जिसने परमात्मा से नाता जोड़ लिया, उसकी तरफ यह चिंता कभी झांकने तक नहीं आती। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि अज्ञान ही चिंता की जड़ है। जैसे ही आत्मा को उसका असली स्वरूप यानी नामजप के साथ आध्यात्मिक ऊर्जा का बल मिलता है, चिंता अपने आप मिट जाती है।

बचपन से ही डालें भजन की आदत

अक्सर हम सोचते हैं कि बुढ़ापे में समय मिलेगा तो भजन-पूजन करेंगे। लेकिन यह सोच ही हमें सबसे ज्यादा धोखा देती है। जब शरीर स्वस्थ है और मस्तिष्क पूरी तरह से सीखने के लिए तैयार है तभी से साधना की आदत डालनी चाहिए। महाराज कहते हैं कि अगर बचपन से अभ्यास हो जाए तो भजन सहज बन जाता है। लेकिन अगर बूढ़ापे तक इंतजार किया, तो जर्जर शरीर और अशांत मन साधना के मार्ग पर टिक ही नहीं पाएंगे। इसलिए अभी से, आज से, भजन और नाम-जप को जीवन का हिस्सा बना लीजिए।

कर्म और नाम-जप का संगम ही कर्मयोग


जीवन में सत्कर्मों के साथ दैनिक कर्म करना तो ज़रूरी है, लेकिन सिर्फ कर्म करने से भगवान की प्राप्ति नहीं होती। महाराज का संदेश है कि जब हर काम भगवान के नाम के साथ किया जाए, तभी वह कर्मयोग बनता है। मतलब आपका काम तब केवल काम नहीं रहता, बल्कि पूजा का रूप ले लेता है। जब रोजमर्रा के कामों में भी भगवान का स्मरण जुड़ जाए, तो पूरा जीवन ही साधना बन जाता है। इसलिए हर समय मन के भीतर नामजप चलते रहना चाहिए।

सुख हो या दुख भगवान को याद रखना ही भक्ति की पहचान

जीवन कभी एक जैसा नहीं रहता। सुख आएगा, दुख भी आएगा। कभी लोग सम्मान देंगे, कभी अपमान। लेकिन भक्ति का असली इम्तिहान यह है कि इन सबके बीच भगवान का स्मरण लगातार बना रहे। अगर स्मरण टूट गया, तो यह संकेत है कि श्रद्धा अभी अधूरी है। सच्चा भक्त वही है जो हर सांस में भगवान को याद करे यही निरंतर स्मरण महाभागवत की पहचान है।

साधना के साथ सत्कर्म का मेल

भजन और नाम-जप के साथ-साथ अच्छे कर्म भी उतने ही अहम हैं। दया, सेवा, ईमानदारी और करुणा के बिना साधना अधूरी रह जाती है। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि केवल जप करने से नहीं, बल्कि अच्छे कर्म करने से साधना की जड़ें और गहरी होती हैं। जब नाम-जप और सत्कर्म एक साथ चलते हैं, तब जीवन में असली आनंद उतरता है।

माया के मोह से बचने का एक मात्र सरल मार्ग


इंसान अक्सर 'मेरा और तेरा' के जाल में फंस जाता है। इसी माया में वह पूरा जीवन गवा देता है। लेकिन हकीकत यह है कि मरते समय इनमें से कुछ भी साथ नहीं जाता। केवल भजन और साधना का पुण्य ही उस घड़ी हमारा सहारा बनता है। इसलिए माया के मोह को त्यागकर भगवान की शरण में जाना ही जीवन की सबसे बड़ी जीत है। संत प्रेमानंद महाराज के संदेश हमें यह सिखाते हैं कि असली कमाई पैसा नहीं, बल्कि भजन है। संपत्ति, यश और सत्ता सब क्षणिक हैं, पर साधना की पूंजी शाश्वत है। जब तक शरीर स्वस्थ है, तभी से भक्ति को जीवन का हिस्सा बना लो। सुख-दुख, मान-अपमान हर स्थिति में भगवान को याद रखो। यही निरंतर स्मरण हमारी भक्ति की परख है। अंत में, भजन ही वह सहारा है जो हमें माया के बंधन से मुक्त करके सच्चे आनंद की ओर ले जाता है।

भजन साधना का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रभाव

अगर हम इसे केवल धार्मिक दृष्टि से ही न देखें, तो भी भजन का गहरा असर हमारे मन और शरीर पर पड़ता है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि नियमित ध्यान और जप से तनाव कम होता है, दिमाग शांत होता है और सकारात्मकता बढ़ती है। अध्यात्मिक स्तर पर भजन आत्मा और परमात्मा को जोड़ने वाला पुल है। इस तरह भजन हमें भीतर से भी मजबूत बनाता है और बाहर की चुनौतियों को संभालने की ताकत भी देता है।

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