Premanand Ji Maharaj: जीवन में सुखी रहना है तो इसकी जिम्मेदारी खुद पर लेनी होगी

Premanand Ji Maharaj: मनुष्य को जितने भी कष्ट मिलते हैं...

Jyotsna Singh
Published on: 28 Aug 2025 6:00 AM IST
Premanand Maharaj
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 Premanand Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj: मनुष्य का जीवन संघर्षों और उतार चढ़ाव से भरा हुआ है। कभी परिस्थितियां इतनी कठिन हो जाती हैं कि इंसान टूटने लगता है, उसे लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा। चारों ओर अंधेरा-सा दिखाई देता है, कोई सहारा नज़र नहीं आता। ऐसे समय में संत प्रेमानंद जी के प्रेरक उपदेश एक उजाला बनकर मन और हृदय को नई शक्ति देते हैं। वे कहते हैं कि जीवन में सुखी रहना है तो इसकी जिम्मेदारी किसी और पर नहीं, बल्कि खुद पर लेनी होगी। यही आत्मबल, यही आत्मनिर्भरता, वास्तव में सुख और शांति का मूल सूत्र है।

समाधान का मार्ग

प्रेमानंद जी बताते हैं कि मनुष्य को जितने भी कष्ट मिलते हैं, उनसे छुटकारा पाने का उपाय उसके बाहर नहीं बल्कि उसके भीतर ही छिपा होता है। लोग अक्सर सोचते हैं कि कोई मददगार व्यक्ति मिल जाए, कोई ऐसा स्थान मिल जाए जहां दुखों से मुक्ति मिल सके। लेकिन यह सोच गलत है। यदि भीतर की शक्ति जागृत नहीं होगी तो कोई बाहरी मदद स्थायी समाधान नहीं दे सकती। महाभारत का उदाहरण लेते हुए प्रेमानंद जी कहते हैं कि जब अर्जुन जैसे महान योद्धा के साथ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण खड़े थे, तब भी वह संशय और चिंता में डूबे हुए थे। इसका कारण था उनका असंतुलित मन और मोह। तभी भगवान ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया कि अनुकूलता, प्रतिकूलता, सुख-दुख, मान-अपमान, लाभ-हानि सब जीवन की लहरें हैं। इन्हें स्वीकार कर लो। इन्हें सह जाने से स्थिरचित्त बना रहता है। यही सच्चा सुख है।


जीवन में दुख के मुख्य कारण

आज का इंसान सुख को शरीर, धन, पद और मान- सम्मान में ढूंढता है। लेकिन यही चीजें दुख का कारण भी बन जाती हैं। देहाभिमान, धन का अहंकार, विद्या और वैभव पर गर्व, या इन्हें हासिल करने की अतृप्त लालसा ये सब माया के बंधन हैं। जब तक इन्हें पकड़े रहेंगे, मन अशांत रहेगा। सुख पाने का एकमात्र उपाय है इनसे ऊपर उठना। प्रेमानंद जी कहते हैं कि जीवन है तो कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल परिस्थितियां आएंगी ही। लेकिन प्रतिकूलता से भागकर, टोना-टोटका, झाड़-फूंक या तांत्रिक उपायों से राहत नहीं मिलेगी। असली राहत तब मिलेगी जब इंसान अपने मुख को भगवान की ओर मोड़े। अब तक वह ईश्वर से पीठ फेरकर खड़ा था, इसलिए चिंतन में केवल दुख दिखाई देते थे। जैसे ही मन हरि नाम का स्मरण करना शुरू करता है, वैसे ही जीवन की सारी नकारात्मकता मिटने लगती है।

नाम जप में है अपार शक्ति

संत प्रेमानंद जी विशेष रूप से नाम स्मरण की महिमा पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि कृष्ण नाम में अद्भुत शक्ति है। जब मनुष्य हृदय से श्रीहरि का स्मरण करता है, तो भीतर से भय और अशांति समाप्त हो जाती है। उसका ध्यान अब दुख पर नहीं, बल्कि आनंद और शांति के स्रोत पर केंद्रित हो जाता है। यही परिवर्तन उसे भीतर से मजबूत बनाता है।

प्रेमानंद महाराज जी स्पष्ट रूप कहते हैं कि सिर्फ औपचारिक पूजा करने या माला फेरने से कुछ नहीं होगा, जब तक कि नाम जप मन और हृदय से न किया जाए। जैसे ही विश्वास और श्रद्धा के साथ नाम का उच्चारण होता है, वैसे ही जीवन की उलझनें हल होने लगती हैं।

आत्मबल ही सबसे बड़ा बल


प्रेमानंद जी बार-बार याद दिलाते हैं कि इंसान के पास सबसे बड़ी शक्ति उसका आत्मबल है। बाहरी साधन या व्यक्ति केवल सहारा दे सकते हैं, लेकिन मुक्ति तभी होगी जब इंसान खुद अपने भीतर से प्रयास करेगा। सुख-दुख को सहकर, धैर्यपूर्वक धर्ममार्ग पर चलते हुए, जब मनुष्य अपना चिंतन भगवान की ओर लगाता है, तब वह परिस्थितियों से ऊपर उठ जाता है।

संत प्रेमानंद महाराज का संदेश हमें यह सिखाता है कि जीवन का असली सुख आत्मबल, ईश्वर चिंतन और नाम स्मरण में है। यदि हम यह जिम्मेदारी खुद लें कि अपनी खुशी और शांति के निर्माता हम स्वयं हैं, तो कोई भी परिस्थिति हमें हिला नहीं सकती। दुख और कष्ट स्थायी नहीं हैं, वे केवल परीक्षाएं हैं। इन्हें सहन करने से हमारी भक्ति और चिंतन गहरा होता है।

इसलिए, यदि आप वास्तव में सुखी रहना चाहते हैं तो जीवन की जिम्मेदारी खुद लें, बाहरी सहारे की प्रतीक्षा न करें। मन को ईश्वर की ओर मोड़ें, नाम जप को अपनाएं और आत्मबल को अपना साथी बनाएं। यही जीवन का परम सत्य है। आज की भागदौड़ और तनाव से भरी जिंदगी में प्रेमानंद जी का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है। जब भी हम किसी संकट या दुःख से घिरते हैं, तुरंत बाहर सहारा खोजने लगते हैं। लेकिन हमें पहले खुद को ही मजबूत करना होगा। ईश्वर को याद कर, उनका नाम जप कर, अपने भीतर के डर और संशय को दूर करना होगा। जब यह बदलाव आएगा, तो हालात चाहे जैसे हों, हम भीतर से सुखी और शांत रह पाएंगे।

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