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Premanand Ji Maharaj Satsang: जहां चढ़ी तुलसी की मंजरी, वहां भय का क्या काम? — प्रेमानंद महाराज का जीवन बदलने वाला संदेश
Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद महाराज कहते हैं, तुलसी की मंजरी जो बाहरी दृष्टि में केवल एक कोमल पुष्प है, वास्तव में इसमें मनुष्य के भीतर के डर को हरने वाली आध्यात्मिक शक्ति है।
Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj Satsang Pravachan: भय हर मनुष्य का स्वाभाविक भाव है। मृत्यु का, असफलता का और भविष्य को लेकर आशंकाओं का। लेकिन क्या भय से भागकर जीवन जिया जा सकता है? प्रेमानंद महाराज कहते हैं, सनातन धर्म का शास्त्र और भक्ति का मार्ग हमें सिखाता है कि 'प्रेम और समर्पण से भय पर जीत हासिल करने के साथ ही जीवन को सुंदर बनाया जा सकता है। तुलसी की मंजरी जो बाहरी दृष्टि में केवल एक कोमल पुष्प है, वास्तव में इसमें मनुष्य के भीतर के डर को हरने वाली आध्यात्मिक शक्ति है। महाराज जी ने जीवन में भय से मुक्ति पाने के लिए उपाय बताया कि, भगवान नारायण के चरणों में तुलसी की मंजरी अर्पित करना केवल पूजा नहीं, बल्कि अपने भय, अहंकार और मोह को उनके चरणों में समर्पित करने का वह माध्यम है, जिससे जीवन सचमुच निर्भय बनता है।
तुलसी भक्ति और समर्पण की देवी
सनातन धर्म में तुलसी को केवल एक पौधा नहीं, बल्कि माता लक्ष्मी का रूप माना गया है। शास्त्रों में तुलसी को भगवान विष्णु की प्रियतम कहा गया है, जिनकी पूजा से भगवान तुरंत प्रसन्न होते हैं। तुलसी के पत्ते, जल और विशेष रूप से उसकी मंजरी का अर्पण करने से भगवान विष्णु भक्त पर विशेष कृपा करते हैं। प्रेमानंद महाराज के अनुसार, जब भक्त तुलसी की मंजरी को प्रेमपूर्वक अर्पित करता है, तो वह केवल पुष्प नहीं, उसका समर्पित हृदय भगवान के चरणों में जाता है। यही भावना व्यक्ति को भय, विशेष रूप से मृत्यु के भय से मुक्त करती है।
शास्त्रों में तुलसी की मंजरी का महत्व
पद्म पुराण में कहा गया है कि तुलसी पत्र, मंजरी और जल भगवान विष्णु को विशेष प्रिय हैं और इनके अर्पण से समस्त पापों का नाश होता है। स्कंद पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि जो भक्त तुलसी का पत्र या मंजरी विष्णु को अर्पित करता है, वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है और यमराज का भय उस पर कभी प्रभाव नहीं डालता। तुलसी अर्पण केवल पूजा नहीं, यह आत्मसमर्पण और जीवन की शुद्धि का प्रतीक है, जिससे आत्मा निर्भय होकर ईश्वर की ओर अग्रसर होती है।
प्रेमानंद महाराज के अनुसार समर्पण का अर्थ
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि, जब हम तुलसी की मंजरी प्रेम और श्रद्धा से भगवान को अर्पित करते हैं, तब वह हमारे हृदय की पुकार बन जाती है। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मा का पूर्ण समर्पण है, जिसमें अहंकार, भय और मोह का विसर्जन होता है। भक्त जब प्रेम से समर्पण करता है, तब प्रभु और भक्त के बीच की दूरी मिट जाती है और यही भाव उसे मृत्यु के भय से भी मुक्त करता है। महाराजजी बताते हैं कि यह अहंकार ही है, जो यम का भय उत्पन्न करता है और जब वह समाप्त हो जाता है तो जीवन में निर्भयता और शांति स्वतः स्थापित हो जाती है।
आधुनिक जीवन में तुलसी उपासना का महत्व
वर्तमान समय में, जब हर व्यक्ति तनाव, भय और असुरक्षा से घिरा है, तुलसी का महत्व और बढ़ जाता है। तुलसी पूजा केवल धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति का स्रोत है। तुलसी का पौधा न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी संतुलित करता है। प्रेमानंद महाराज का कहना है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में तुलसी पूजा को स्थान देता है, वह आत्मविश्वास, साहस और शांति से भर जाता है। तुलसी भक्ति हमें सेवा, समर्पण और आस्था का मार्ग दिखाती है, जिससे जीवन में संतुलन और स्थिरता बनी रहती है।
जब भक्त भक्ति मार्ग पर चलता है और तुलसी की मंजरी प्रेम से भगवान को अर्पित करता है, तब वह न केवल आत्मिक रूप से निर्भय होता है, बल्कि मानसिक तनाव और सामाजिक जीवन की चुनौतियों से भी उबरने में सक्षम होता है। आत्मिक मुक्ति के साथ ही तुलसी उपासना से मानसिक शांति प्राप्त होती है, जो आधुनिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह व्यक्ति को समाज में सत्य और धर्म के मार्ग पर निर्भय होकर चलने की प्रेरणा देती है। प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि, सच्चा भक्त समाज में भी सजग नागरिक बनता है, जो न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणास्रोत बनता है।
उनका मानना है कि, निर्भयता कोई चमत्कार नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और समर्पण से उपजने वाली शक्ति है। जो जीवन के हर संकट और भय को समाप्त कर देती है। तुलसी का समर्पण हमें अपने भीतर के अहंकार और भय को भगवान के चरणों में अर्पित करने की प्रेरणा देता है।
तुलसी उपासना के सरल और प्रभावी उपाय
प्रतिदिन तुलसी के समीप दीपक जलाकर, जल चढ़ाकर और प्रेमपूर्वक आरती कर उसकी पूजा करें। नई मंजरी को स्नान कराकर भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित करें। तुलसी स्तोत्र, विष्णु सहस्रनाम और तुलसी से जुड़े भक्ति गीतों का पाठ या श्रवण करें, जिससे जीवन में भक्ति भाव और आत्मबल बना रहता है। तुलसी का सेवन स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है, इसलिए इसका नियमित सेवन करें और घर में तुलसी का पौधा जरूर लगाएं।
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