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घर-घर से ‘माधुकरी’ मांगते प्रेमानंद महाराज - सादगी और भक्ति से भरे संत के वीडियो ने जीते करोड़ों दिल
संत प्रेमानंद महाराज का घर-घर जाकर ‘माधुकरी’ मांगने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। सादगी, भक्ति और विनम्रता का यह दृश्य करोड़ों भक्तों के दिलों को छू रहा है। जानिए क्या है माधुकरी की परंपरा और इसका आध्यात्मिक महत्व।
Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj : मथुरा, वृंदावन की गलियों में आज संत प्रेमानंद जी महाराज अपने भक्तों के दिलों में निवास करते हैं। इनका नाम श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक बन चुका है। हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने उनकी सादगी और भक्ति भावना को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। वीडियो में प्रेमानंद जी महाराज एक ब्रजवासी महिला के दरवाजे पर पहुंचकर पारंपरिक रूप में से रोटी-सब्जी मांगते दिख रहे हैं। उनके इस सादगी से भरे हुए व्यवहार ने भक्तों के। मन में भावनाओं की लहर दौड़ा दी है। आइए जानते हैं क्या होती है माधुकरी परम्परा -
भक्ति और विनम्रता का प्रतीक मानी जाती है माधुकरी की परंपरा
भारतीय संत परंपरा में 'माधुकरी' शब्द का विशेष महत्व है। यह शब्द ‘मधुकर’ यानी भौंरे से लिया गया है, जो फूल-फूल से थोड़ा-थोड़ा रस लेकर अपना जीवन चलाता है। उसी प्रकार, संतजन ब्रजवासियों के घर-घर जाकर प्रेम और विनम्रता से भोजन ग्रहण करते हैं। प्रेमानंद जी महाराज भी इस परंपरा को जीवंत रखते हैं। वे कहते हैं — 'माधुकरी केवल भोजन नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और संतोष का प्रतीक है।'
माधुकरी की यह परंपरा संत समाज में सदियों से चली आ रही है। संत तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु और मीराबाई जैसे कई संत भी इसी परंपरा को मानते थे। वृंदावन में आज भी कई संत बिना किसी दिखावे के ब्रजवासियों के घर जाकर प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करते हैं।
भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत उदाहरण है वायरल वीडियो जिसने भक्तों की कोमल भावनाओं को किया स्पर्श
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में प्रेमानंद जी महाराज सादे वस्त्रों में, विनम्रता के भाव से, एक ब्रजवासी महिला के दरवाजे पर रोटी-सब्जी मांगते नजर आते हैं। उनके साथ कुछ संत और भक्त भी खड़े हैं जो जयकारा लगा रहे हैं।
महिला प्रेमपूर्वक उन्हें रोटियां परोसती हैं और प्रेमानंद जी महाराज दोनों हाथों से उन्हें ग्रहण करते हैं। उस क्षण का दृश्य अत्यंत भावनात्मक है। एक ओर महाराज की विनम्रता झलकती है, तो दूसरी ओर ब्रजवासियों की भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत उदाहरण दिखाई देता है।
पारिवारिक सदस्य के समान है - संत प्रेमानंद के लिए
ब्रजवासियों का भाव
ब्रजवासियों के लिए प्रेमानंद जी महाराज किसी दूर के साधु नहीं, बल्कि अपने परिवार के सदस्य जैसे हैं। वे अक्सर कहते हैं कि ब्रज की धरती पर रहने वाला हर व्यक्ति श्रीकृष्ण का अंश है। यहां के लोगों में वही मुरलीधारी का स्नेह बसता है।
जब प्रेमानंद जी महाराज किसी के घर माधुकरी के लिए पहुंचते हैं, तो लोग अपने आप को धन्य मानते हैं। महिलाएं श्रद्धा से रोटियां बनाकर देती हैं, बच्चे नमस्कार करते हैं और पुरुष उनके चरण छूते हैं।
संत प्रेमानंद की सादगी बनी उनकी महानता
प्रेमानंद जी महाराज के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सादगी है। उनका कोई भव्य आश्रम या विलासिता भरा जीवन नहीं है। वे साधारण धोती-कुर्ता पहनते हैं, भूमि पर बैठकर भोजन करते हैं और स्वयं अपने भक्तों के बीच रहना पसंद करते हैं।
उनके शिष्य बताते हैं कि महाराज आज भी वही जीवन जीते हैं जो उन्होंने दीक्षा के समय अपनाया था। नियम, संयम और आत्मसंयम से भरा हुआ उनका जीवन है।
प्रेमानंद महाराज बताते हैं माधुकरी का आध्यात्मिक अर्थ
प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रवचनों में कहते हैं कि, 'माधुकरी लेने वाला दाता नहीं, याचक होता है। वह केवल रोटी नहीं मांगता, बल्कि प्रेम और भावना का प्रसाद लेता है।'उनका मानना है कि जब ब्रजवासी अपने हाथों से भोजन देते हैं, तो उसमें भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण का भाव होता है। इसीलिए संत उस भोजन को ‘प्रसाद’ कहते हैं, न कि सिर्फ ‘खाना’।
आज प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी सुने जाते हैं। वे श्रीमद्भागवत कथा और राधा-कृष्ण भक्ति पर गहन ज्ञान देते हैं। उनके प्रवचनों में भक्ति, करुणा और मानवता की झलक साफ दिखाई देती है।
हाल ही में वायरल वीडियो ने उनके अनुयायियों की संख्या और बढ़ा दी है। सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि, 'ऐसे संत ही हैं जो सच्चे अर्थों में धर्म की आत्मा को जीवित रखते हैं।'
प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रेरक संदेशों के माध्यम से यह सीख देते आए हैं कि, सच्ची भक्ति दिखावे में नहीं, बल्कि विनम्रता और सेवा में बसती है। ईश्वर के सच्चे दूत अहंकार से परे होते हैं।
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