रेडक्लिफ़ रेखा क्या है? और कैसे इस रेखा ने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास को स्थायी रूप से बदल दिया, जानिए सबकुछ विस्तार से!

Radcliffe Line Ka Itihas: रेडक्लिफ़ रेखा ने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास को स्थायी रूप से बदल दिया।

Shivani Jawanjal
Published on: 3 Jun 2025 7:43 PM IST
Radcliffe Line Ka Itihas
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Radcliffe Line Ka Itihas (Image Credit-Social Media)

History Of Radcliffe Line : रेडक्लिफ़ रेखा (Radcliffe Line) भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण, परंतु दर्दनाक अध्याय है। यह वह सीमा रेखा थी जो भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन के समय खींची गई थी। 1947 में जब भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली, तब इसके साथ ही देश का विभाजन भी हुआ। इस विभाजन की रेखा ही रेडक्लिफ़ रेखा के नाम से जानी जाती है, जिसका निर्धारण ब्रिटिश लॉर्ड सर साइरिल रेडक्लिफ़ द्वारा किया गया था। इस रेखा ने पंजाब और बंगाल को दो हिस्सों में बांट दिया, और करोड़ों लोगों के जीवन को स्थायी रूप से बदल कर रख दिया। इस लेख में हम ‘रेडक्लिफ लाइन’ के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर नजर डालेंगे ।

रेडक्लिफ लाइन क्या है?


1947 का भारत-पाकिस्तान विभाजन केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह एक गहरी मानवीय त्रासदी बनकर सामने आया। रेडक्लिफ़ रेखा, जो इसी विभाजन की आधारशिला बनी, उस समय खींची गई सीमा रेखा थी जिसे ब्रिटिश वकील सर साइरिल रेडक्लिफ़ ने तय किया था। उन्हें भारत के विभाजन के लिए गठित सीमा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, और उनके फैसले ने पंजाब और बंगाल जैसे बड़े और संवेदनशील प्रांतों को दो हिस्सों में बाँट दिया। पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान को मिला, पूर्वी पंजाब भारत को; इसी तरह, बंगाल का पश्चिमी हिस्सा भारत में और पूर्वी हिस्सा (जो बाद में बांग्लादेश बना) पाकिस्तान में चला गया। इस विभाजन की मार सबसे ज्यादा आम लोगों ने झेली करोड़ों लोग हमेशा के लिए अपनी जड़ों से उखड़ गए, लाखों शरणार्थी बन गए, और देश दोनों ओर से सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलसता रहा। इतिहास की इस क्रूर रेखा ने न सिर्फ नक्शा बदला, बल्कि रिश्ते, पहचान और इंसानियत की भी गहरी कीमत वसूल की।

‘रेडक्लिफ लाइन’ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


ब्रिटिश शासन के अंतिम वर्षों में भारत में धार्मिक और राजनीतिक तनाव चरम पर पहुँच चुके थे। मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग जहां एक अलग मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की मांग पर अडिग थी, वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक अखंड भारत के पक्ष में खड़ी थी। इन दो दृष्टिकोणों के बीच की खाई धीरे-धीरे इतनी गहरी हो गई कि 1946 का कैबिनेट मिशन भी उसे पाट नहीं सका। इसके बाद स्पष्ट हो गया कि अब एक साझा राष्ट्र की कल्पना व्यावहारिक नहीं रही। जुलाई 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन की योजना पेश की, जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से जाना गया। इसके तहत भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र बने, लेकिन सबसे कठिन और संवेदनशील कार्य था सीमाओं का निर्धारण विशेषकर पंजाब और बंगाल जैसे सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील प्रांतों का विभाजन। इसी संदर्भ में सामने आई रेडक्लिफ़ रेखा एक ऐसी रेखा, जो कागज़ पर खिंची गई जरूर थी, लेकिन जिसने ज़मीनी हकीकत में लाखों दिलों को चीर डाला।

साइरिल रेडक्लिफ़ की नियुक्ति


जब भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा तय करने का समय आया, तो ब्रिटिश सरकार ने इस बेहद संवेदनशील कार्य के लिए एक 'निष्पक्ष' व्यक्ति की तलाश कीऔर यह ज़िम्मेदारी दी गई ब्रिटिश न्यायविद् सर साइरिल रेडक्लिफ़ को। हैरानी की बात यह थी कि रेडक्लिफ़ ने इससे पहले कभी भारत की धरती पर कदम तक नहीं रखा था। उन्हें न तो यहां के सामाजिक ताने-बाने की समझ थी, न धार्मिक विविधताओं का अनुभव, और न ही भौगोलिक और सांस्कृतिक जटिलताओं का कोई ज्ञान। बावजूद इसके, उन्हें सिर्फ लगभग पांच - छह सप्ताह का समय दिया गया, ताकि वे पंजाब और बंगाल की सीमाएं तय कर सकें। सीमाओं के निर्धारण का कार्य अगस्त 1947 के पहले सप्ताह में समाप्त करना था। और उन्हें दो सीमा आयोगों - एक पंजाब के लिए और दूसरा बंगाल की रेखा खींचने के लिए अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

रेडक्लिफ लाइन की सीमांकन प्रक्रिया

जब सर साइरिल रेडक्लिफ़ को भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाएं तय करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई, तो उन्होंने सीमांकन के लिए मुख्य रूप से कुछ तकनीकी आधारों का सहारा लिया जैसे कि धार्मिक बहुलता (कहाँ हिंदू आबादी अधिक है, कहाँ मुस्लिम), प्रशासनिक सुविधाएं, संचार मार्ग (रेलवे, सड़कें), और आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता (नदियाँ, उद्योग, उपजाऊ ज़मीन)। लेकिन इतने बड़े और संवेदनशील फैसले के लिए उन्हें केवल पांच से छह सप्ताह का समय मिला, जो कि बेहद कम था। उन्हें जो आंकड़े दिए गए, वे अधूरे या पुराने थे, और उन पर राजनीतिक दबाव भी साफ महसूस होता था चाहे वह लॉर्ड माउंटबेटन की ओर से हो या भारतीय नेताओं की तरफ से। नतीजा यह हुआ कि सीमांकन का काम बहुत हड़बड़ी में और एक तरह से ‘कागज़ पर पेंसिल से खींची गई रेखा’ जैसा पूरा हुआ। रेडक्लिफ़ स्थानीय ज़मीनी हकीकतों, सांस्कृतिक गहराइयों और ऐतिहासिक संदर्भों को समझने का मौका ही नहीं पा सके। इसका असर सीधे उन करोड़ों लोगों पर पड़ा, जिनकी ज़िंदगियाँ इस रेखा ने हमेशा के लिए बदल दीं कहीं घर छूटे, कहीं रिश्ते, और कहीं इंसानियत ही।

रेडक्लिफ़ रेखा का निर्धारण

रेडक्लिफ़ रेखा का विभाजन दरअसल दो हिस्सों में हुआ था पंजाब सीमा आयोग ने पश्चिम में, यानी आज के भारतीय पंजाब और पाकिस्तानी पंजाब की सीमाएं तय कीं, जबकि बंगाल सीमा आयोग ने पूर्व में, यानी पश्चिम बंगाल और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की। हैरानी की बात यह है कि जब 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली, तब भी आम लोगों को यह नहीं पता था कि वे किस देश में रह रहे हैं। रेडक्लिफ़ रेखा की औपचारिक घोषणा 17 अगस्त 1947 को हुई दोनों देशों की आज़ादी के बाद। सोचिए, एक ही रात में लाखों लोगों की ज़मीन, घर और पहचान बदल गई, और उन्हें यह तक नहीं पता था कि अगली सुबह वे भारतीय कहलाएंगे या पाकिस्तानी। यह अनिश्चितता, यह असमंजस, और उस पर बढ़ती हिंसा ने इस ऐतिहासिक क्षण को उत्सव नहीं, बल्कि दर्द और खौफ़ की रात में बदल दिया।

विभाजन का प्रभाव


भारत-पाक विभाजन केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि मानव इतिहास की सबसे बड़ी और दर्दनाक त्रासदियों में से एक बनकर उभरी। करीब 1.5 करोड़ लोग अपना सब कुछ पीछे छोड़कर, सिर्फ जान बचाने के लिए अनजान दिशाओं में निकल पड़े। यह अब तक के सबसे बड़े मानव प्रवासों में गिना जाता है। इस दौरान करीब 10 लाख लोग धार्मिक हिंसा में मारे गए (हालांकि कुछ आंकड़े इसे 6 से 20 लाख के बीच बताते हैं) । पंजाब इस हिंसा का सबसे भयावह चेहरा बना, जहाँ सिख, हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच भयानक नरसंहार हुए, गांव जलाए गए, और महिलाओं पर दिल दहला देने वाले अत्याचार किए गए। बंगाल में भी विस्थापन हुआ, लेकिन वहाँ हिंसा अपेक्षाकृत कम रही; हालांकि पूर्वी बंगाल से हिंदुओं का पलायन वर्षों तक चलता रहा। पूरे देश में दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल, जगह-जगह शरणार्थी शिविरों का जाल बिछा, जहाँ लाखों लोग बेघर, बेरोजगार और अपने भविष्य को लेकर पूरी तरह अनिश्चित हालात में जी रहे थे। यह विभाजन सिर्फ जमीनों का नहीं था यह दिलों, घरों और पीढ़ियों का बंटवारा था।

रेडक्लिफ़ की प्रतिक्रिया

सर साइरिल रेडक्लिफ़ भले ही उस ऐतिहासिक विभाजन रेखा के रचयिता थे, लेकिन वे खुद कभी अपने इस कार्य से संतुष्ट नहीं रहे। यह ऐतिहासिक रूप से दर्ज है कि भारत छोड़ने से पहले उन्होंने अपने सभी दस्तावेज़ और सीमांकन से जुड़े कागज़ात जला दिए थे, मानो वे उस फैसले की स्मृति तक मिटा देना चाहते हों। उन्होंने कभी दोबारा भारत लौटने की इच्छा भी नहीं जताई। उनका एक प्रसिद्ध कथन था: “I had no alternative - the time at my disposal was so short, and the circumstances so difficult - that I was bound to make mistakes.” (मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। समय बहुत कम था और परिस्थितियाँ इतनी कठिन थीं कि मुझसे गलतियाँ होना तय था।) इस वाक्य में उनका अपराधबोध, विवशता और ऐतिहासिक गलती का बोझ साफ झलकता है। इतिहासकार भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि रेडक्लिफ़ ने यह कार्य अत्यधिक दबाव और सीमित जानकारी के आधार पर किया था, जिससे कई त्रुटियाँ हुईं, जिनकी कीमत लाखों लोगों को अपने जीवन, घर और अपनों को खोकर चुकानी पड़ी। रेडक्लिफ़ का पछतावा, शायद उस विभाजन की सबसे मौन लेकिन सबसे सच्ची स्वीकारोक्ति थी।

रेडक्लिफ लाइन से जुड़ी आलोचनाएं

रेडक्लिफ़ रेखा के निर्माण की पूरी प्रक्रिया अपने आप में जल्दबाज़ी, अधूरी जानकारी और राजनीतिक हस्तक्षेप का एक जटिल मेल थी और शायद इसी कारण यह रेखा इतिहास की सबसे विवादित सीमाओं में एक बन गई। केवल पाँच सप्ताह में इतने बड़े और सांस्कृतिक रूप से विविध क्षेत्र का विभाजन करना न तो व्यावहारिक था, न ही न्यायसंगत। रेडक्लिफ़, जो पहली बार भारत आए थे, उनके पास न तो यहाँ की सांस्कृतिक, भाषाई या ऐतिहासिक समझ थी और न ही सटीक आंकड़े। जो सूचनाएँ उन्हें दी गईं, वे अधूरी और अक्सर पुरानी थीं। ऊपर से, लॉर्ड माउंटबेटन जैसे प्रभावशाली ब्रिटिश अधिकारियों के राजनीतिक दबाव ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया। ऐसे आरोप भी लगे कि कुछ फैसले जानबूझकर बदले गए, जिनसे पाकिस्तान को नुकसान हुआ। चाहे इन आरोपों पर कितनी भी बहस हो, यह सच है कि यह रेखा सिर्फ नक्शे पर नहीं खींची गई थी यह अविश्वास, दर्द और द्वेष की एक गहरी लकीर थी, जिसने कश्मीर, पंजाब और बंगाल जैसे क्षेत्रों में आज तक चलने वाले विवादों की नींव रख दी। रेडक्लिफ़ की खींची यह रेखा सिर्फ दो देशों को नहीं, बल्कि पीढ़ियों को बाँट गई।

दीर्घकालिक प्रभाव


विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तीन बड़े युद्ध (1947, 1965, 1971) और 1999 का करगिल संघर्ष इस गहरी खाई को और भी चौड़ा करते गए। कश्मीर आज भी दोनों देशों के बीच सबसे संवेदनशील और विवादित मुद्दा बना हुआ है, जहां तनाव, सीमा संघर्ष और अविश्वास का दौर जारी है। रेडक्लिफ़ रेखा ने धार्मिक आधार पर इस विभाजन को स्थायी रूप दे दिया, जिससे उपमहाद्वीप में साम्प्रदायिकता की जड़ें और भी गहरी हो गईं। इस विभाजन ने न केवल देशों को अलग किया, बल्कि समाज में अल्पसंख्यकों के प्रति डर और अविश्वास की भावना भी जन्म दी, जो आज तक राजनीतिक और सामाजिक जीवन में झलकती है। पहले जिन क्षेत्रों पंजाब, बंगाल, सिंध में साझा इतिहास, भाषा, संस्कृति, खान-पान और परंपराएँ एक साथ बंधी थीं, वे अब दो विरोधी राष्ट्रों में बंट गईं। परिवार टूटे, रिश्ते छिन्न-भिन्न हुए, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर गंभीर असर पड़ा। इस तरह, रेडक्लिफ़ रेखा ने न केवल भौगोलिक सीमाएँ बनाई, बल्कि मानवीय, सांस्कृतिक और भावनात्मक दूरी भी पैदा कर दी, जिसका दर्द आज भी महसूस किया जाता है।

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Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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