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Shirt Ka Itihas: जानें अपने सबसे लोकप्रिय परिधान शर्ट की विकास यात्रा, प्राचीन सभ्यताओं से आधुनिक भारत तक
Shirt Brief History: शर्ट का प्रारंभिक स्वरूप प्राचीन सभ्यताओं में शरीर को ढकने और पर्यावरण से बचाव के लिए डिज़ाइन किया गया था।
Shirt Brief History and Evolution in India
Shirt Ka Itihas: शर्ट, जिसे हिंदी में ‘क़मीज़’ या ‘कमीज’ कहते हैं, केवल एक परिधान नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की सांस्कृतिक, सामाजिक और तकनीकी प्रगति का प्रतीक है। प्राचीन मिस्र की ट्यूनिक से लेकर आज के डिज़ाइनर टी-शर्ट्स तक, शर्ट ने जलवायु, उपयोगिता और फैशन के अनुरूप कई रूप बदले हैं। यह सामाजिक स्थिति, पेशा और व्यक्तिगत शैली का दर्पण बन गई है। आइए, इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक यात्रा को कालक्रम में देखें, विशेष रूप से भारत में इसकी सामाजिक स्वीकार्यता के विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए।
प्राचीन सभ्यताओं में शर्ट की नींव (3000 ईसा पूर्व – 5वीं सदी ईस्वी)
शर्ट का प्रारंभिक स्वरूप प्राचीन सभ्यताओं में शरीर को ढकने और पर्यावरण से बचाव के लिए डिज़ाइन किया गया था। मिस्र की लिनन से बनी ‘ट्यूनिक’, जो घुटनों तक लंबी और ढीली होती थी, शर्ट का आदिम रूप थी। यह गर्म जलवायु के लिए उपयुक्त थी। सिंधु घाटी सभ्यता में पुरातात्विक साक्ष्य पुरुषों द्वारा ऊपरी शरीर पर ‘ऊर्ध्व वस्त्र’ या लंबी पट्टियों को दर्शाते हैं, जो आधुनिक शर्ट की अवधारणा की नींव थे।मेसोपोटामिया सभ्यता के दौरान ढीले चोग़े और अंगरखे सामाजिक हैसियत का प्रतीक थे।
यूनानी और रोमन युग: ट्यूनिक का विकास (5वीं सदी ईसा पूर्व – 5वीं सदी ईस्वी)
यूनान और रोम में ‘ट्यूनिक’ प्रमुख परिधान थी, जिसे सिर से डालकर पहना जाता था। यह साधारण, बिना कॉलर और कभी-कभी कमरबंद से बंधा होता था। समय के साथ इसमें आस्तीनें जोड़ी गईं, जो आज की शर्ट के करीब थीं। अभिजात वर्ग और सैनिकों ने रंगों और सजावट के आधार पर सामाजिक स्थिति प्रदर्शित की।
मध्यकाल: कमीज का उदय (6वीं – 14वीं सदी)
इस्लामी दुनिया में ‘क़मीस’ (अरबी: قميص) एक लंबा, आस्तीनयुक्त और ढीला वस्त्र था। यह शब्द बाद में भारतीय भाषाओं में ‘क़मीज़’ के रूप में प्रचलित हुआ।क़मीज़ शिष्टाचार, धार्मिक पहचान और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक थी, जिसे कढ़ाई और जटिल डिज़ाइनों से सजाया जाता था। मध्यकालीन यूरोप में ‘लिनन शर्ट’ या ‘चेन शर्ट’ आंतरिक वस्त्र के रूप में पहनी जाती थी। यह स्वच्छता और सादगी का प्रतीक थी।
मुग़ल युग: भारत में क़मीज़ का स्वर्णिम काल (16वीं – 18वीं सदी)
मुग़ल साम्राज्य ने भारतीय परिधानों में क़मीज़ को एक नया आयाम दिया।शाही दरबारों में क़मीज़, कुर्ता, अंगरखा और चोग़ा लोकप्रिय थे, जिन्हें जरी, रेशम और कढ़ाई से सजाया जाता था।क़मीज़ को सलवार, चूड़ीदार या पायजामा के साथ जोड़ा जाता था, जो पुरुषों और महिलाओं दोनों में प्रचलित था। लखनऊ की चिकनकारी क़मीज़ या राजस्थान की बंधेज शैली, ने इसे सांस्कृतिक पहचान दी।
औपनिवेशिक युग: पश्चिमी शर्ट का आगमन (18वीं – 20वीं सदी)
अंग्रेज़ों के भारत आगमन के साथ पश्चिमी शैली की शर्ट, जिसमें बटन, कॉलर और कफ थे, भारतीय समाज में आई। इसे पहले अंग्रेज़ अफसरों और फिर उच्च वर्ग के भारतीयों ने अपनाया।19वीं सदी में शर्ट सफेद, पूरी आस्तीन और ढीली होती थी, जिसे कोट और टाई के साथ पहना जाता था। यह औपनिवेशिक शैली का हिस्सा थी।20वीं सदी में औद्योगिक क्रांति ने शर्ट का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया। यह स्कूल, कार्यालय और सैन्य वर्दी का हिस्सा बनी। कॉलर डिज़ाइनों (विंगटिप, स्प्रेड) और रंगों में विविधता आई।
भारत में शर्ट की सामाजिक स्वीकार्यता का ऐतिहासिक विकास
भारत में शर्ट की स्वीकार्यता ने एक लंबी और दिलचस्प यात्रा तय की है, जो सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तनों को दर्शाती है।
औपनिवेशिक काल यानी 18वीं – 19वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी शर्ट को ‘विदेशी’ और औपनिवेशिक प्रभाव का प्रतीक माना जाता था। इसे मुख्य रूप से अंग्रेज़ अफसर, मिशनरी और उच्च वर्ग के भारतीय (जैसे बंगाल के बाबू या पारसी समुदाय) पहनते थे। पारंपरिक परिधानों जैसे कुर्ता, धोती या अंगरखा की तुलना में शर्ट को औपचारिक और ‘आधुनिक’ माना जाता था, जो पश्चिमी शिक्षा और नौकरी से जुड़ा था।सामाजिक स्तर पर, शर्ट पहनना ‘पाश्चात्यकरण’ का प्रतीक था, जिसे कुछ समुदायों ने अपनाया, जबकि अन्य ने इसे सांस्कृतिक घुसपैठ के रूप में देखा।
स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता का दौर यानी 20वीं सदी की शुरुआत में स्वदेशी आंदोलन के दौरान, खादी और पारंपरिक वस्त्रों को बढ़ावा दिया गया, जिससे पश्चिमी शर्ट की लोकप्रियता पर कुछ असर पड़ा। हालाँकि, शर्ट को खादी में बनाकर इसे राष्ट्रीय पहचान से जोड़ा गया।महात्मा गांधी और अन्य नेताओं ने खादी की शर्ट या कुर्ता पहनकर इसे सामान्य जन तक पहुँचाया, जिससे यह सामाजिक समानता का प्रतीक बनी।शहरी मध्यम वर्ग में शर्ट को कार्यालय, स्कूल और औपचारिक अवसरों के लिए अपनाया गया, जो आधुनिकता और प्रगतिशीलता का प्रतीक थी।
स्वतंत्रता के बाद यानी 1947 – 1990 के बीच स्वतंत्र भारत में शर्ट आम आदमी की अलमारी का हिस्सा बन गई। यह नौकरीपेशा मध्यम वर्ग, सरकारी कर्मचारियों और छात्रों के लिए रोज़मर्रा का परिधान बन गई।शर्ट को पतलून या पायजामा के साथ जोड़ा गया, जो पारंपरिक और पश्चिमी शैली का मिश्रण था। इस दौर में शर्ट ने सामाजिक बाधाओं को तोड़ा। गाँवों में भी इसे धोती या लुंगी के साथ पहना जाने लगा, जिससे यह ग्रामीण-शहरी विभाजन को कम करने वाला वस्त्र बन गया।
बॉलीवुड ने भी शर्ट की लोकप्रियता को बढ़ाया। 1960-70 के दशक में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन जैसे सितारों ने रंगीन और स्टाइलिश शर्ट्स को युवाओं के बीच ट्रेंड बनाया।
वैश्वीकरण का युग यानी 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के साथ, वैश्विक ब्रांड्स जैसे लेवी’s, रेमंड और ऐरो भारत में आए, जिसने शर्ट को फैशन स्टेटमेंट बना दिया।
टी-शर्ट्स, पोलो शर्ट्स और डिज़ाइनर शर्ट्स ने युवा पीढ़ी को आकर्षित किया। यह अब केवल औपचारिकता का प्रतीक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत शैली और स्वतंत्रता का प्रतीक बन गई।शहरी भारत में शर्ट्स को जींस, शॉर्ट्स या चूड़ीदार के साथ जोड़ा गया, जो सांस्कृतिक मिश्रण को दर्शाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी सस्ती और टिकाऊ शर्ट्स (विशेष रूप से कॉटन या मिश्रित कपड़े) ने धोती या लुंगी के साथ जगह बनाई, जिससे यह हर वर्ग का परिधान बन गया।महिलाओं के लिए भी शर्ट्स का चलन बढ़ा। यूनिसेक्स और फिटेड शर्ट्स ने लैंगिक सीमाओं को धुंधला किया, और यह कॉलेज, कार्यस्थल और कैज़ुअल अवसरों के लिए लोकप्रिय हो गई।
आज भारत में शर्ट हर सामाजिक-आर्थिक वर्ग में स्वीकार्य है। यह गाँव के किसान से लेकर कॉर्पोरेट सीईओ तक, सभी की अलमारी में मौजूद है।शर्ट को कुर्ता-क़मीज़, शेरवानी या सूट के साथ जोड़कर सांस्कृतिक आयोजनों में पहना जाता है, जो परंपरा और आधुनिकता का संगम दर्शाता है।पर्यावरण-अनुकूल शर्ट्स (जैसे ऑर्गेनिक कॉटन या खादी) और स्थानीय ब्रांड्स (जैसे फेबइंडिया) ने इसे सतत फैशन का हिस्सा बनाया है।शर्ट अब विचारधारा का भी प्रतीक है। उदाहरण के लिए, राजनीतिक रैलियों में लोग संदेशयुक्त टी-शर्ट्स पहनते हैं, जो सामाजिक या राजनीतिक विचारों को व्यक्त करते हैं।
आधुनिक युग: शर्ट का वैश्विक और विविधतापूर्ण स्वरूप (21वीं सदी)
आज शर्ट एक सार्वभौमिक और बहुआयामी वस्त्र है।कॉटन, लिनन, डेनिम, पोलिएस्टर, रेशम और पर्यावरण-अनुकूल कपड़े (जैसे बांस) ने शर्ट को हर मौसम और अवसर के लिए उपयुक्त बनाया। फॉर्मल, कैज़ुअल, टी-शर्ट, पोलो, डेनिम, फ्लैनेल और हिप-हॉप स्टाइल शर्ट्स ने इसे वैश्विक फैशन का हिस्सा बनाया। वैश्विक ब्रांड्स (जैसे लुई विटॉन) से लेकर स्थानीय दर्जी तक, शर्ट हर वर्ग के लिए उपलब्ध है। शर्ट ने पूर्व-पश्चिम, ग्रामीण-शहरी और पुरुष-महिला की सीमाओं को पार किया है। भारत में यह कुर्ता-क़मीज़, शेरवानी या स्टैंडअलोन फैशन के रूप में प्रचलित है।
स्मार्ट टेक्सटाइल्स (जैसे दाग-प्रतिरोधी या तापमान-नियंत्रित शर्ट्स) और डिजिटल प्रिंटिंग ने शर्ट को और आधुनिक बनाया है।
शर्ट के प्रकार और उनका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व
शर्ट व्यक्तित्व, पेशा और सामाजिक स्थिति का संकेतक है। इसके प्रमुख प्रकार और उनके सांस्कृतिक अर्थ निम्नलिखित हैं:-
फॉर्मल शर्ट:-ये कॉलर, कफ, बटन, सादे या हल्के पैटर्न, स्लिम/क्लासिक फिट किसी भी तरह की हो सकती है। इसे कॉर्पोरेट मीटिंग्स, इंटरव्यू, औपचारिक आयोजन कहीं भी पहना जा सकता है ।यह पहनने वाले पेशेवरता, विश्वसनीयता, सामाजिक सम्मान को बयां करती है।
कैज़ुअल शर्ट:- ये रंगीन, प्रिंटेड, हाफ स्लीव वाली व अनटक्ड पहनने वाली होती हैं। इन्हें रोज़मर्रा, छुट्टियाँ, अनौपचारिक मुलाकातों के दौरान पहन सकते हैं। यह पहनने वाले के स्वतंत्रता, उत्सवधर्मिता, खुले विचार को प्रकट करती है।
टी-शर्ट:- ये कॉलर रहित, ग्राफिक्स, लोगो, राउंड/वी-नेक में होती है। इसे खेल, कॉलेज, स्टार्टअप कल्चर के दौरान पहना जा सकता है। यह पहनने वाले के रचनात्मकता, युवा ऊर्जा, गैर-पारंपरिक दृष्टिकोण के बारे में बताती है।
कुर्ता-क़मीज़:- यह लंबी, कढ़ाई युक्त, बिना कॉलर वाली होती है। इस पहनावे को प्रसाद: सांस्कृतिक उत्सव, विवाह आदि के समय पहना जाते है। यह पहनने वाले के परंपरा, सांस्कृतिक गौरव, पारिवारिक मूल्य के बारे में बताती है।
डेनिम और फ्लैनेल शर्ट:- ये मोटा कपड़ा, चेक या नीला रंग की प्राय: होती है। इसे सर्दियाँ में युवा फैशन के रुप में पहनते हैं। यह बताती है कि इसे पहनने वाला स्वतंत्रता पसंद, मेहनतकश जीवनशैली जीने का आदि है।
पोलो शर्ट:- यह कालर या बिना कॉलर वाली किसी तरह की हो सकती है। इसमें बचन होती है। इसका लुक स्पोर्टी होता है। इसे कैज़ुअल के रुप में खेल और बिज़नेस के समय पहना जाता है।पोलो शर्ट यह बताती है कि पहनने वाला संतुलित और आधुनिक व्यक्तित्व का मालिक है।
शर्ट की यात्रा प्राचीन मिस्र की ट्यूनिक से शुरू होकर, इस्लामी क़मीस, मुग़ल अंगरखा, औपनिवेशिक बटन-शर्ट और आधुनिक डिज़ाइनर टी-शर्ट तक एक रंगीन सफर है। भारत में इसकी सामाजिक स्वीकार्यता औपनिवेशिक प्रभाव से शुरू होकर स्वतंत्रता संग्राम, वैश्वीकरण और आधुनिक फैशन तक विकसित हुई है। आज शर्ट गाँव के किसान से लेकर शहरी पेशेवर तक, हर वर्ग और संस्कृति का हिस्सा है। यह परंपरा और आधुनिकता, उपयोगिता और शैली का अनूठा संगम है।
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