Bhagwati Charan Verma: जानें भगवती चरण वर्मा के साहित्य को

Bhagwati Charan Verma: भगवतीचरण वर्मा ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता लेखन से की।

Shyamali Tripathi
Published on: 31 Aug 2025 4:14 PM IST
Bhagwati Charan Verma
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Bhagwati Charan Verma (Image Credit-Social Media)

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहां कल वहां चले।

मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहां चले।

भगवतीचरण वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध साहित्यकार थे, जिन्हें उनके उपन्यासों, कहानियों और कविताओं के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 30 अगस्त, 1903 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। उनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई, जहाँ उन्होंने बी.ए. और एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त की।

भगवतीचरण वर्मा ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता लेखन से की। बाद में, वे उपन्यासकार के रूप में अधिक प्रसिद्ध हुए।

भगवती चरण वर्मा एक ऐसे उपन्यासकार थे जिनकी सोच समय से कहीं आगे चलती थी वह हर मामले में चाहे वह धर्म हो समाज हो, उनकी रचनाधर्मिता बहुत ही क्रांतिकारी थी।

उनके उपन्यास चित्रलेखा के अनुसार -

“धर्म समाज द्वारा निर्मित है। धर्म ने नीति शास्त्र को जन्म नहीं दिया है वरन् इसके विपरीत नीति शास्त्र ने धर्म को जन्म दिया है”

“इसीलिए ऐसी भी परिस्थितियां आ सकती हैं, जब धर्म के विरुद्ध चलना समाज के लिए कल्याण कारक हो जाता है और धीरे-धीरे धर्म का रूप बदल जाता है।”

उन्होंने कई वर्षों तक पत्रकारिता और फिल्म उद्योग में भी काम किया। उन्होंने "विचार" नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन भी किया। 1957 में, उन्होंने पूरी तरह से स्वतंत्र लेखन को अपना लिया। उनके उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर दो बार फिल्म भी बन चुकी हैं और उन्हें उनकी रचनाओं के लिए कई पुरस्कार भी मिले। उन्हें ‘भूले बिसरे चित्र’ उपन्यास के लिए 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। सन 1971 में भगवती चरण वर्मा को पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया यह सम्मान उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया था। 5 अक्टूबर, 1981 को उनका निधन हो गया।

प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ

भगवतीचरण वर्मा का साहित्य अत्यंत विविधतापूर्ण है, जिसमें उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक और संस्मरण शामिल हैं।

उपन्यास

* 'चित्रलेखा' (1934): यह उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसने उन्हें हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट पहचान दिलाई। यह उपन्यास पाप-पुण्य के नैतिक प्रश्न पर आधारित है। उपन्यास में चित्रलेखा नामक एक नर्तकी की कहानी है, जो समाज के नैतिक मानदंडों पर सवाल उठाती है। यह उपन्यास प्रेम और वासना के बीच के द्वंद्व को खूबसूरती से दिखाता है।

* 'भूले-बिसरे चित्र' (1959): इस उपन्यास के लिए उन्हें 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। यह चार पीढ़ियों की कहानी है, जो 1885 से 1959 तक के भारतीय समाज में हुए बदलावों को दर्शाती है। इसमें जमींदारी व्यवस्था के पतन और नए सामाजिक मूल्यों के उदय का मार्मिक चित्रण किया गया है।

* 'टेढ़े-मेढ़े रास्ते' (1946): इसे हिंदी का पहला राजनीतिक उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में उन्होंने विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, जैसे गांधीवाद, साम्यवाद और पूंजीवाद, की आलोचनात्मक पड़ताल की है।

* 'सीधी-सच्ची बातें': यह उपन्यास स्वतंत्रता के बाद के भारतीय समाज और राजनीति पर केंद्रित है। इसमें भ्रष्टाचार और राजनीतिक पतन का यथार्थवादी चित्रण किया गया है।

* अन्य प्रमुख उपन्यास: 'पतन' (1928), 'तीन वर्ष' (1936), 'अपने खिलौने' (1957), 'सामर्थ्य और सीमा' (1962), 'रेखा' (1964) और 'सबहिं नचावत राम गोसाईं' (1970)।

कविताएँ

भगवतीचरण वर्मा ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविताओं से की थी। उनकी कविताओं में जीवन, प्रेम और मानव अस्तित्व का गहरा दर्शन मिलता है।

* 'मधुकण' (1932): यह उनका पहला कविता संग्रह है।

* 'प्रेम-संगीत' और 'मानव': ये उनके अन्य महत्वपूर्ण कविता संग्रह हैं।

* 'हम दीवानों की क्या हस्ती': यह उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता है, जो स्वतंत्रता और मस्ती का संदेश देती है।

कहानी-संग्रह और अन्य रचनाएँ

उन्होंने कई कहानियाँ भी लिखीं, जो उनके कहानी-संग्रहों में संकलित हैं।

* 'दो बाँके' (1936), 'मोर्चाबंदी' और 'इंस्टालमेंट' उनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं।

* उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे, जैसे 'वसीहत' और 'रुपया तुम्हें खा गया'।

* उनके संस्मरणों का संग्रह 'अतीत के गर्त से' उनकी जीवन-यात्रा और अनुभवों को दर्शाता है।

भगवती चरण वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान और हिंदी साहित्य में उनके प्रभाव को देखते हुए उन्हें 1978 में राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया था।

भगवतीचरण वर्मा का साहित्य सामाजिक यथार्थवाद, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और दार्शनिक चिंतन का अद्भुत मिश्रण है। वे किसी एक वाद से बंधे नहीं थे, बल्कि उन्होंने समाज और मानव जीवन को उसकी संपूर्णता में चित्रित करने का प्रयास किया। उनके उपन्यास और कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे मानव मन की गहराई और समाज की जटिलताओं को दर्शाती हैl

“चलना है सबको छोड़ यहां

अपने सुख-दुख का भार प्रिये,

करना है कर लो आज उसे

कल पर किसका अधिकार प्रिये।”

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