भारत में स्वतंत्रता दिवस बहिष्कार: विपक्ष की अशिष्टता पर बवाल

भारत में राष्ट्रीय पावन पर्व का सुनियोजित बहिष्कार ! अशिष्टता और ढिठाई की इन्तेहा!

Anand Upadhyay
Published on: 18 Aug 2025 7:04 PM IST
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Boycott Independence Day: विश्व के विशालतम लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली वाले राष्ट्र भारतवर्ष के 79 वें स्वतंत्रता दिवस के ऐतिहासिक सुअवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले की प्राचीर से भारतीय तिरंगा ध्वज का पुनीत झंडारोहण- राष्ट्र गान और अब तक के कार्यकाल के सबसे दीर्घकालिक समयान्तराल तक दिए गये राष्ट्रीय संबोधन का विपक्ष के स्तर से किया गया बहिष्कार न सिर्फ अलोकतांत्रिक हरकत है वरन स्वतंत्र भारत के इतिहास में कदाचित पहला अशिष्ट और उद्दण्ड बर्ताव बन कर सामने आया है।

देश की मुख्य प्रतिपक्ष पार्टी (सारे दांवपेंच और तथाकथित प्रोपेगेंडा के बावजूद मात्र 99 सीटें हासिल) के नेता की इस निन्दनीय हरकत ने बाकायदा साबित कर दिया कि लोकतंत्र और संविधान की किताब दिखा- दिखा कर जब-तब संसद और संसद के बाहर देश-विदेश में डेमोक्रेसी की दुहाई देने का उनका कृत्य सिर्फ और सिर्फ एक राजनीतिक स्वांग व प्रायोजित ड्रामा के सिवा और कुछ नहीं है!

देश भी एक वृहद परिवार सदृश्य ही होता है! किसी परिवार का ही सदस्य क्या कभी अपने ही घर में मनाए जा रहे त्योहार और विशिष्ट खुशी के सुअवसर का कभी बहिष्कार कर सकता है?

मुख्य प्रतिपक्ष की पार्टी और विपक्षी गठबंधन दलों के संयुक्त सहयोग से नेता प्रतिपक्ष के रूप में नामित राहुल गांधी जो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसे संवैधानिक पद पर आसीन हैं, इनके साथ ही कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में नामित वयोवृद्ध श्री मल्लिकार्जुन खड़गे का स्वतंत्रता दिवस जैसे अति महत्वपूर्ण और पुनीत पर्व के आयोजन से अकारण और सुनियोजित तरीके से जानबूझकर गायब हो जाना (उनकी आवंटित कुर्सियों का खाली दिखना) दर असल सिर्फ कोई सांकेतिक विरोध की राजनीतिक चाल न होकर 2014 से ही नव चयनित भाजपा नीत गठबंधन सरकार और खासकर लगातार चुने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु समूचे वैश्विक मंच पर प्रतिस्थापित लोकप्रियता व स्वीकारोक्ति के प्रति नितांत पूर्वाग्रही मनोवृत्ति, विशुद्ध व्यक्तिपरक ईर्ष्या और घटियापन भरी डाह! और घृणास्पद स्तर तक जा पहुंची राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का प्रतिफल साफ नजर आता है! अलबत्ता कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी का भी शामिल न होना (हालांकि कोई संवैधानिक पद पर आसीन नहीं हैं) उनके तथाकथित स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर जस्टिफाई किया जा सकता है। मगर वाईनाड से सांसद गांधी परिवार की सदस्य क्या बहाना गढ़ सकेंगी! वह वे ही तय करेंगी?

इतिहास गवाह है कि नितांत स्वेच्छाचारी व तानाशाही मनोवृत्ति का परिचय देकर तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के स्तर से देश की सारी संवैधानिक संस्थाओं को बलात ठेंगा दिखाकर आम जनता सहित समूचे देश को संवैधानिक रूप से पंगु बनाकर 19 महिने आपातकाल में झोंक देने और देश के तबके सभी विपक्षी नेताओं और नेता प्रतिपक्ष तक को अकारण बिना जुर्म के जेलों के सींखचों में कैद कर देने ही नहीं वरन अमानवीय व्यवहार सहने को अभिशप्त हुए प्रतिपक्षी नेताओं ने भी रिहाई के बाद की किसी भी कांग्रेसी या गठबंधन सरकार के समय आयोजित स्वतंत्रता दिवस अथवा गणतंत्र दिवस जैसे अति पुनीत व राष्ट्रीय गौरव के पर्याय त्योहार/ पर्व का कभी बहिष्कार करने का दु:स्साहस नहीं किया!

राहुल गांधी और खड़गे सरीखे नेताओं को विचार करना चाहिए था कि सैकड़ों साल की बर्बर गुलामी और शोषण-दमन के पश्चात देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों सहित हजारों नाम- बेनाम! अमर बलिदानियों के प्राणोत्सर्ग के बाद यह आजादी मिल पाई है। दरअसल यह पुनीत स्मरणीय दिवस महज एक सरकारी औपचारिक आयोजन का अवसर न होकर 140 करोड़ देशवासियों के लिए अपने बलिदानी पुरखों के प्रति सामूहिक कृतज्ञता ज्ञापित करने, उनके त्याग और अप्रतिम योगदान को याद करने के साथ ही आजादी के बाद देश में हुई तरक्की, ऐतिहासिक गौरवपूर्ण चातुर्दिक उपलब्धियों व सर्वांगीण विकास के सोपान के प्रति गौरवान्वित होने का भी पल होता है! निश्चित तौर पर प्रतिपक्ष के ऐसे निन्दनीय कुकृत्य पर भारत की आम जनता ही नहीं अपितु तथाकथित विपक्षी दलों के अनुयायी समर्थकों को भी आन्तरिक पीड़ा की अनुभूति महसूस हुई है! सम्प्रति आपरेशन सिन्दूर जैसे मिलिट्री आपरेशन के दौर के बाद जहां सम्पूर्ण राष्ट्र राष्ट्रीय सम्प्रभुता और अखंडता के संवेदनशील विषय पर पूरी शिद्दत के साथ संगठित होकर न सिर्फ दुश्मन देश आतंकिस्तान उर्फ पाकिस्तान और उसको तथाकथित संरक्षण देते आ रहे चीन जैसे देश के खिलाफ विश्व जनमत को विश्वास में लेकर अपनी सामरिक रणनीति को और सुदृढ़ करने में प्रयासरत है, अमरीका के स्तर से जबरन दबाव बनाने के तहत जबरन थोपे गये 50 फीसदी वाणिज्यिक टैरिफ के एकतरफा कार्रवाई का दृढ़संकल्पित होकर विरोध करते और वैकल्पिक रास्ते तलाशने में तत्पर है! ऐसे प्रतिकूल परिदृश्य में जब वैश्विक मंच पर सम्पूर्ण भारतवर्ष को एकता और अक्षुण्य सहभागिता का प्रतीक बन कर अंतर्राष्ट्रीय पटल पर परिलक्षित होना चाहिए! ऐसी विषम परिस्थिति में अपने को 140 साल पुरानी पार्टी बताने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और नेता प्रतिपक्ष (लोकसभा तथा राज्यसभा) का भारतीय लोकतंत्र के ऐसे पवित्र और ऐतिहासिक गौरवपूर्ण पर्व का बहिष्कार करना न सिर्फ निन्दनीय कुकृत्य और शर्मनाक हरकत है वरन भर्त्सना योग्य ढिठाई भी है! नेता प्रतिपक्ष को अपने इस अनुचित व्यवहार के लिए सार्वजनिक प्लेटफार्म पर आकर भारत की जनता से माफी मांगने ही चाहिए!

आनन्द उपाध्याय " सरस"

( सुपरिचित साहित्यकार- स्वतंत्र पत्रकार व टिप्पणीकार)

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