नेताजी सुभाष चंद्र बोस: त्याग, संघर्ष और शहादत को नमन

भारत के अमर स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का योगदान आज भी युवाओं को प्रेरित करता है। आज उनकी शहादत पर पूरा देश उन्हें नमन करता है।

Shyamali Tripathi
Published on: 19 Aug 2025 3:31 PM IST (Updated on: 19 Aug 2025 6:08 PM IST)
Netaji Subhash Chandra Bose Death Anniversary: Tribute to Hero
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Netaji Subhash Chandra Bose Death Anniversary: Tribute to Hero (image from Social Media)

Netaji Subhash Chandra Bose: हमारे अत्यंत प्रिय एवं करोड़ों भारतीयों के आदर्श नेताजी सुभाष चंद्र बोस का कथित रूप से 18 अगस्त को निर्वाण दिवस था। भारत वर्ष के स्वतंत्रता आन्दोलन में नेताजी का योगदान आज भी युवाओं को प्रेरित करता है। नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में एक हिन्दू बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था. मशहूर वकील एवं राय बहादुर की पदवी से सम्मानित जानकीनाथ बोस एवं प्रभावती देवी की नौवीं संतान सुभाष बचपन से ही मेधावी एवं महत्वाकांक्षी रहे। कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपीयन स्कूल और रेवेन शॉ कॉलेजिएट स्कूल में श्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद विद्यार्थी सुभाष ने 1913 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया। प्रारंभ से ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की प्रवृत्ति के कारण कॉलेज से उन्हें किसी विवाद के कारण निष्कासित कर दिया गया था। तीव्र बुद्धिमत्ता एवं जुझारू प्रवृत्ति के धनी सुभाष ने 1920 में सिविल सर्विसेज की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। भारत मां को अंग्रेजों की दास्तान की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए उनके इस सच्चे सपूत में 1921 में भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया। सन 1921 में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर सुभाष ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित की। 1922 में उन्होंने ‘स्वराज’ नामक समाचार पत्र की स्थापना की, चित्तरंजन दास द्वारा शुरू किए गए "फॉरवर्ड" नामक समाचार पत्र के संपादक के रूप में भी कार्य किया एवं बंगाल प्रांतीय कांग्रेस के प्रचार का कार्यभार संभाला। इस कार्य में अपनी कुशलता के कारण 1923 में, उन्हें भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस का सचिव चुना गया। 1930 में, वह कलकत्ता के मेयर चुने गए। महात्मा गांधी के परम अनुयाई और उन्हें राष्ट्रपिता नाम देने वाले सुभाष की सोच महात्मा गांधी से थोड़ी सी अलग थी। नेताजी का मानना था कि ब्रिटिश शासन को केवल अहिंसात्मक तरीकों से समाप्त करना संभव नहीं है। उन्होंने नाज़ी जर्मनी और फासीवादी जापान के सहयोग से आज़ाद हिंद फ़ौज का गठन किया। इस सेना का उद्देश्य अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्रता दिलाना था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आज़ाद हिंद फ़ौज ने भारत की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सेना के खिलाफ संघर्ष किया। 4 जुलाई 1944 को नेताजी ने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ का नारा दिया। 5 जुलाई 1943 को उन्होंने सिंगापुर में आज़ाद हिंद फ़ौज को संबोधित करते हुए ‘दिल्ली चलो’ का प्रसिद्ध नारा दिया। 21 अक्टूबर 1943 को, उन्होंने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई, जिसे 11 देशों की मान्यता प्राप्त थी। 1944 में, आज़ाद हिंद फ़ौज ने अंग्रेजों पर हमला किया और कुछ भारतीय क्षेत्रों को मुक्त कराया। 6 जुलाई 1944 को, उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी को एक संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिए उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगी। गांधीजी ने इस संदेश का जवाब देते हुए कहा कि वह बोस के प्रयासों का समर्थन करते हैं और उनकी सफलता की कामना करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह बोस को एक देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी मानते हैं। जापान द्वारा नियंत्रित ताइवान में एक विमान से उड़ान भरते समय 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हुई ऐसा माना जाता है। विमान के पूरी तरह जल जाने के कारण नेताजी का पूरा शरीर बुरी तरह जल गया था और चार दिन बाद उनको मृत घोषित कर दिया गया। हालांकि इस पर विवाद है और माना जाता है कि नेताजी उस दुर्घटना में बच गए थे। भारत सरकार ने उनकी मृत्यु की जांच के लिए कई आयोग गठित किये लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका। नेताजी ने भाषणों से नहीं वर्णन अपने कर्मों, अपने संघर्षों के द्वारा युवाओं को प्रेरणा दी कि मातृभूमि और उसकी सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं। यदि वे चाहते तो किसी बड़े पद पर आसीन होकर भली भांति जीवन व्यतीत करते, किंतु उन्होंने अपनी भारत मां को अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा देख अपनी हर सुख सुविधा को त्याग दिया एवं भारतवर्ष को स्वतंत्र करने के लिए अपना जीवन होम दिया। उनकी देशभक्ति, निस्वार्थ सेवा, और भारतीय स्वतंत्रता के प्रति उनके अदम्य साहस को आज भी याद किया जाता है। नेताजी की शहादत को नमन।

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