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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: जीवन से सीखें संघर्ष, प्रेम और धर्म का संदेश
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को महज़ एक उत्सव के रूप में न मना कर कृष्ण के जीवन से यदि हम कुछ सीख सकें तो ही इस पर्व की सार्थकता है
आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। वो कृष्ण जिनका जन्म अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में हुआ। जन्म से ले कर जब तक गोकुल में रहे तब तक जीवन हमेशा खतरे में रहा फिर भी उन्होंने हर परिस्थिति का सामना बड़ी ही समझदारी से किया। खुद को भी हर खतरे से बचाया साथ में औरों को भी। हार मान कर रोते नहीं रहे या किसी पर अपने कष्टों का दोषारोपण नहीं किया। हर चुनौती का सामना डटकर किया और अपनी इच्छाशक्ति के कारण हर समस्या से बाहर निकले।
वो चाहते तो अच्छे से जीवन कट रहा था गोकुल में फिर भी मथुरा आए और अपने पुत्र धर्म को निभाया, अपने माता पिता को कैद से निकाला और कंस के वध के द्वारा ये संदेश दिया कि अच्छाई की ताकत से किसी भी राक्षस का वध किया जा सकता है।
चाहते तो कौरवों का साथ देते मगर उन्होंने अपनी अक्षौहिणी सेना को चुनने वाले दुर्योधन को न चुनकर निरीह पांडवों का साथ दिया। पांडवों के पास विभिन्न योग्यताएं तो थीं लेकिन उनको सही दिशा दी कृष्ण ने। कृष्ण ने ये संदेश दिया कि अपने अंदर की योग्यताओं को पहचानकर, उनका उपयोग सही दिशा में किया जाए तो कितने ही दुश्मनों पर विजय पाई जा सकती है। कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के द्वारा एक और सीख दी कि अपराध करने वाला चाहे जितना भी अपना हो, उसका विरोध करना, उसे सही रास्ते पर लाना और यदि ये संभव न हो तो भी उसका साथ तो नहीं ही देना चाहिए। साथ हमेशा सत्य का देना चाहिए चाहे उसमे कितनी ही कठिनाइयां आएं।
स्त्री के सम्मान की बात आने पर कृष्ण से बढ़कर कौन सा बड़ा उदाहरण है? जब भी स्त्री की गरिमा की रक्षा की बात आती है तो द्रौपदी के चीरहरण का चित्र आंखों के सामने प्रकट हो जाता है जिसमें यदि श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की सहायता न की होती, तो आज इतिहास कुछ और अधिक कलंकित होता।
प्रेम की निर्बाधता यदि कोई समझना चाहे तो कृष्ण ने कई ऐसे उदाहरण दिए। उन्होंने न सिर्फ राधा - कृष्ण के प्रेम को सम्मानित दृष्टि से देखना सिखाया, बल्कि अर्जुन एवं सुभद्रा के प्रेम के लिए वे अपने भाई बलराम तक के सम्मुख खड़े हो गए। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनके द्वारा कृष्ण तमाम परंपराओं या यूं कहें रूढ़ियों का विरोध करते दिखते हैं, इंद्र की पूजा छोड़ गोवर्धन पर्वत का महात्म्य बताने के पीछे का उद्देश्य रूढ़ियों, पाखंड को नकारना ही है।
गीता के माध्यम से भी श्रीकृष्ण ने एक मनुष्य को किस प्रकार जीवन जीना चाहिए ये सिखाया। क्रोध पर नियंत्रण रखना, सदैव मस्तिष्क को नियंत्रित रखना, शांत चित्त रहना, स्वयं में विश्वास रखना, अपने क्रिया कलापों पर नियंत्रण रखना, वास्तविकता को, होनी को स्वीकारना, कर्म पर विश्वास करना, अपनी जिम्मेदारियों को निभाना, निरंतर अभ्यास, दया एवं क्षमा आदि को अपने जीवन में उतारना एवं जीवन पर्यंत इसका पालन करने की शिक्षा हमें श्री कृष्ण ने भगवद गीता के माध्यम से दी।
जन्म है तो मरण भी सुनिश्चित है। मृत्यु एक शाश्वत सत्य है। कोई भी मृत्यु से परे नहीं है। मृत्यु को सहजता से स्वीकारना भी कृष्ण ने ही सिखाया।
ऐसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को महज़ एक उत्सव के रूप में न मना कर उनके जीवन से यदि हम कुछ सीख सकें तो ही इस पर्व की सार्थकता है...
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