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UP politics heats up: जो सत्ता से लड़ेगा वही बढ़ेगा! यूपी में विपक्ष की नई जंग शुरू
बसपा रैली के बाद यूपी में विपक्षी खेमों में तकरार तेज, मायावती की योगी सरकार की तारीफ से सपा-कांग्रेस गठबंधन में बढ़ी बेचैनी, दलित वोटर निर्णायक बनेंगे।
Mayawati News (image from Social Media)
UP politics heats up: सत्ता से लड़ने वाला ही सत्ता हासिल कर सकता है, जो जितना लड़ पाएगा वो उतना सत्ता के करीब बढ़ पाएगा। बेहतर कार्यों को नजरंदाज कर सरकार की कमियों को उजागर करना विपक्ष का धर्म है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में दो विपक्षी खेमे है- एक सपा-कांग्रेस का इंडिया गठबंधन और दूसरी बहुजन समाज पार्टी। विपक्ष की इन दो ताकतों की आपसी प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है। किंतु जो विपक्षी खेमा दूसरे विपक्षी खेमे पर ज्यादा हमला करेगा और सत्ता पर अधिक हमलावर होने के बजाय तारीफ करेगा उस दल के बारे में सरकार विरोधी मतदाताओं की राय बहुत अच्छी तो नहीं होगी। और जो विपक्षी खेमा हुकुमत पर हमलावर होगा सरकार विरोधी वोटर एकजुट होकर उस विपक्षी दल के समर्थन में खड़ा होगा।
धर्म-जाति को किनारे रखकर देखिए तो चार तरह का वोटर नजर आता है। एक सत्ता को पसंद करता है और दूसरा सत्ता से नाखुश होता है,सत्ता के कार्यों से संतुष्ट नहीं होता। जो सत्ता के कार्यों से संतुष्ट हैं और उसे पसंद करता है वो वर्ग सत्तारूढ़ पार्टी को वोट देता है। जो सत्ता को पसंद नहीं करता वो वर्ग उस विपक्षी दल को चुनेगा जो सत्ता उखाड़ने में संघर्ष कर रहा हो और सत्ता के प्रति आक्रामक हो।
तीसरा वोटर वर्ग वो है जिसने सत्तारूढ़ पार्टी पर विश्वास कर सत्ता बनवाई। लेकिन उसकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं, ऐसे वर्ग विकल्प ढूंढेगा।
चौथा वर्ग भी है जो सत्ता को बेहतर इसलिए समझता है क्योंकि उसे सत्ता की खामियों का ज्ञान नहीं है। ऐसे
सत्ता समर्थक वोटरों की आंखेंं खोलकर अपने पाले में लाने के लिए भी विपक्षी दल सत्ता का कच्चा चिट्ठा खोलते हैं। बताते हैं कि मौजूदा सरकार ने जन अपेक्षाएं पूरी नहीं की। जन-विरोधी है सरकार। हुकुमत पर ऐसे हमले करने के लिए विपक्षियों में मुकाबला होता है।
यही कारण है कि विपक्ष का मूल स्वभाव सत्ता की आलोचना करना और सत्ता की किसी भी ख़ूबी को नजरंदाज करना है।
बीते 9 अक्टूबर को बसपा की रैली में पार्टी सुप्रीमो मायावती ने सत्ता से अधिक विपक्ष पर हमले किए। योगी सरकार की तारीफ की तब सवाल उठना लाजमी थे। बसपा भाजपा की भी टीम है! ऐसी तोहमतों के रंग गहराना भी स्वाभाविक था।
बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा मैदान वापसी और खूब भीड़ वाली एक सफल रैली के बाद बसपाइयों और सपाइयों में नई जंग छिड़ गई। बी टीम की तोहमतों को आधार मिल गया । सपाई कह रहे हैं कि बहन जी ने मंच पर योगी आदित्यनाथ की सरकार की तारीफ करके अब तो भाजपा से अघोषित गठबंधन प्रकट कर दिया है। आरोप ये भी लग रहे हैं कि सरकारी मशीनरी ने मायावती की रैली में भीड़ जुटाई। भाजपा के सहयोग से बसों का इंतेजाम किया गया था। समाजवादी कह रहे हैं कि विपक्ष का काम सत्ता की कमियों को सामने लाना होता है, लेकिन बसपा सुप्रीमो तो सत्ता की तारीफ कर रही हैं और विपक्षी दलों पर हमलावर हैं। वो स्पष्ट करें कि बसपा एनडीए की सहयोगी है या विपक्ष में है ? इस तरह तारीफ तो भाजपा के सहयोगी संजय निषाद, अनुप्रिया पटेल और ओम प्रकाश राजभर भी नहीं करते।
सपा के ऐसे आरोपों के जवाब भी बसपाई खेमे से आने लगे हैं। कहां जा रहा है कि विपक्षी दल द्वारा सत्ता का आभार व्यक्त करना कोई ग़लत बात नहीं।
बसपाई सत्तारूढ़ भाजपा से सपा के रिश्ते याद दिला रहे हैं। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव द्वारा संसद में नरेंद्र मोदी की जीत की शुभकामनाएं देनी की याद दिला रहे हैं। मुलायम परिवार से मोदी-योगी के व्यक्तिगत मधुर रिश्तों से लेकर मुलायम सरकार का हिस्सा बनी कल्याण सिंह की पार्टी की याद दिलाई जा रही है।
ये सच है कि प्रतिद्वंद्वी होना, राजनीति प्रतिस्पर्धी या राजनीति में विरोधी होने का अर्थ ये कतई नहीं कि हम आपसी शिष्टाचार भी भूल जाएं। सपा संस्थापक मुलायम सिंह का संघ प्रमुख मोहन भागवत के करीब बैठना, मुलायम परिवार के विवाह समारोह में प्रधानमंत्री मोदी का जाना, मुलायम सिंह का कुशलक्षेम पूछने योगी आदित्यनाथ का जाना शिष्टाचार है। इससे राजनीतिक प्रतिस्पर्धा या विरोध का कोई मतलब नहीं।
इसी तरह बसपा सुप्रीमो मायावती का योगी सरकार को आभार व्यक्त करना भी ग़लत नहीं। लेकिन ये तय है कि यदि मायावती सत्तारूढ़ भाजपा से ज्यादा सपा-कांग्रेस पर आक्रमक होती रही तो बसपा की स्थिति और भी खराब होती रहेगी। और सपा-कांग्रेस भी सत्ता के बजाय बसपा पर ज्यादा हमले करती रहेगी तो ये इंडिया गठबंधन के लिए हानिकारक होगा।
दलित में एक वर्ग ऐसा है जिसके लिए बसपा सर्वोपरि तो है पर यदि वो भाजपा के खिलाफ आक्रमण नहीं होगी तो वो बसपा का साथ छोड़कर कोई विकल्प ढूंढ लेगा।
दलित समाज में कुछ ऐसे भी हैं जब उन्हें लगता है कि बसपा लड़ाई से बाहर और सत्ता में आने की संभावनाओं से काफी दूर है ऐसे लोगो ने भाजपा को विकल्प मान कर भाजपाई सरकार बनवाने में अपना बड़ा योगदान दिया।
भाजपा के लिए सॉफ्ट और बसपा को पसंद करने वाला एक बड़ा वोटर वर्ग है। ये वर्ग मजबूरी में बसपा से इसलिए दूर हो गया था क्योंकि बसपा ने मैदान छोड़ दिया था। मायावती मैदान में वापस आ गईं हैं इसलिए ये वोटर वर्ग बसपा में वापस होगा।
बसपा के एक-एक वोटर में एक बात कामन रहेगी कि वो भाजपा के प्रति सॉफ्ट होगा। ऐसा वोटर भाजपा से बसपा वापस होकर भाजपा का नुक़सान कर सकता है। संविधान खत्म होने के खतरे दिखाकर यूपी में सपा-कांग्रेस ने दलित समाज का जो वोट हासिल किया था वो जिन्दा हो रही बसपा में आकर इंडिया गठबंधन का नुक़सान कर सकता है।
बसपा की सफल रैली कई मायनों से सपा को सफलता की राह भी दिखाने वाली लगी। मायावती द्वारा सपा के साथ कांग्रेस पर जबरदस्त हमलों से सपा का ये डर कम हो गया कि कांग्रेस उसका साथ छोड़ कर बसपा के साथ गठबंधन कर सकती है। योगी सरकार की तारीफ से ये तय हो गया कि अब सपा के मुस्लिम बल्कि वोट में अब बसपा आठ-दस फीसद वोट में भी सेंध नहीं लगा सकेगी। बसपा सुप्रीमो मायावती के दोबारा मैदान में आने से यदि दलित घर वापसी कर बसपा में वापस होता है तो इसका नुकसान सिर्फ सपा-कांग्रेस को ही नहीं भाजपा को भी खूब होगा। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि आगामी 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में यदि त्रिकोणीय मुकाबला हुआ और दलित वोटों के सहारे बसपा पचास-पचपन सीटें भी ले आईं और इंडिया गठबंधन और एनडीए को बहुमत नहीं मिल सका तो दोनों गठबंधनों में किसी एक को मायावती को मुख्यमंत्री बनाना होगा। बहन जी ऐसी राजनीतिक कार्ययोजना पर काम कर रही हैं।
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