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Happy Birthday MS Dhoni: महेंद्र सिंह धोनी का 44वां जन्मदिन, पढ़िए कैप्टन कूल के क्रिकेट के महान फिनिशर बनने की कहानी
Happy Birthday MS Dhoni: आज जब एमएस धोनी अपना 44वां जन्मदिन मना रहे हैं, यह समझना दिलचस्प होगा कि कैसे एक साधारण से परिवार का लड़का दुनिया का सबसे महान फिनिशर बन गया।
Happy Birthday MS Dhoni (photo: social media )
Happy Birthday MS Dhoni: महेंद्र सिंह धोनी का नाम सुनते ही क्रिकेट प्रेमियों की आंखों में वह छवि उभरती है, पैरों को जमाए, बल्ला हवा में घूमता हुआ, गेंद बाउंड्री के पार जाती हुई, और आंखों में वही शांत आत्मविश्वास। आज जब एमएस धोनी अपना 44वां जन्मदिन मना रहे हैं, यह समझना दिलचस्प होगा कि कैसे एक साधारण से परिवार का लड़का दुनिया का सबसे महान फिनिशर बन गया।
रेलवे स्टेशन से क्रिकेट ग्राउंड तक धोनी
महेंद्र सिंह धोनी का जन्म 7 जुलाई 1981 को रांची, झारखंड (तब बिहार) में हुआ था। एक मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखने वाले धोनी को बचपन में फुटबॉल पसंद था। वह अपने स्कूल टीम के गोलकीपर हुआ करते थे। लेकिन कोच ने उनकी चुस्ती देख क्रिकेट में विकेटकीपिंग करने को कहा और यहीं से शुरुआत हुई एक नए अध्याय की हुई। रेलवे टिकट कलेक्टर की नौकरी करते हुए भी धोनी ने क्रिकेट को नहीं छोड़ा। रेलवे स्टेशन पर ड्यूटी देने के बाद वे लोकल मैचों में खेलते। लेकिन उनके भीतर ‘फिनिशर’ बनने की आग धैर्य और समय के साथ तपती रही।
फिनिशर बनने की नींव की शुरुआत
महेंद्र सिंह धोनी का 2004 में भारतीय टीम में चयन हो गया। उन्होंने 23 दिसंबर 2004 को बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय वनडे मैच खेला, उसमें बिना खाता खोले रन आउट हो गए थे।उसके बाद 2005 में पाकिस्तान के खिलाफ खेले गए मैच में धोनी ने 148 रन की विस्फोटक पारी खेली। इसके बाद 183 की ऐतिहासिक पारी आई। जो उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ जयपुर में खेली। यह वही दौर था जब दुनिया ने पहली बार देखा कि धोनी न केवल रन बना सकते हैं, बल्कि मुश्किल हालात में टीम को अकेले मैच जिता सकते है।
दिमागी संतुलन ही फिनिशर की ताकत
महेंद्र सिंह धोनी को ‘कैप्टन कूल’ ऐसे ही नहीं कहा जाता है। एक महान फिनिशर बनने के लिए बल्लेबाज के पास सिर्फ ताकत या स्ट्रोक्स नहीं, बल्कि परिस्थिति को पढ़ने और दबाव में निर्णय लेने की क्षमता भी होनी चाहिए। इस कला के धोनी उस्ताद ठहरे थे। उन्होंने बार-बार साबित किया कि आखिरी ओवर में जीतना कोई जादू नहीं, बल्कि रणनीति, आत्मविश्वास और अनुभव का मेल है। वे जानते थे कि किस गेंदबाज को कब निशाना बनाना है, किस गेंद को छोड़ना है, और कब बड़ा शॉट खेलना है।
विश्व कप फाइनल फिनिशिंग का शिखर
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में 2 अप्रैल 2011 को इतिहास रचा गया। फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ भारत मुश्किल में था। लेकिन कप्तान धोनी ने खुद को पांचवें पर भेजा और नाबाद 91 रन की पारी खेलकर भारत को 28 साल बाद छक्का मारकर विश्व कप जीतवाया। उसके साथ ही धोनी ने फिनिशर शब्द को नए मायने दिए। पहले यह सिर्फ अंतिम ओवरों में बड़े शॉट खेलने वाले खिलाड़ियों के लिए इस्तेमाल होता था। लेकिन धोनी ने एक पूर्ण भूमिका बना दिया। टॉप ऑर्डर के ढहने के बाद पारी को संभालना, रन रेट को संतुलित रखना, और अंत में बिना घबराए मैच खत्म करना।
आंकड़ों में धोनी का फिनिशिंग करियर
वनडे क्रिकेट में 47.60 की औसत से 10,773 रन बनाएं। नंबर 6 या नीचे खेलते हुए सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज है। वनडे क्रिकेट में 84 बार नाबाद लौटे है। उनके रहते भारत ने 200 से अधिक रन के लक्ष्य को 40 से ज्यादा बार सफलतापूर्वक चेज़ किया है। धोनी ने आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) के लिए भी बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल टीम को 5 बार चैंपियन बनाया, बल्कि दर्जनों बार आखिरी ओवरों में अकेले दम पर जीत दिलाई। उनका "थाला" बनना केवल प्रदर्शन की वजह से नहीं, बल्कि मैच फिनिशिंग क्षमता और नेतृत्व कौशल की वजह से हुआ।
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